ऑटो से उतरते ही हलचल का अंदाज़ हो चुका था।
दोपहर के वक्त शांत रहने वाली हमारी हाउसिंग सोसाइटी में चहल पहल थी।
मैन गेट से आगे आई तो एक एंबुलेंस नजर आई।
हे ईश्वर!सबकी रक्षा करना। मन ही मन भगवान का नाम लेते हुए आगे बढ़ी मैं।
लिफ्ट के पास कुछ परिचित चेहरे नजर आए।
“कौन बीमार है,क्या हुआ?”
“अब क्या बताएं आपको?”
ये रीता थी,हर बात का बतंगड़ बनाने में माहिर, सो उसे नजर अंदाज करते हुए आगे बढ़ते हुए मैं पम्मी और किरण के पास आ कर खड़ी हो गई।
“क्या हुआ है,किसके लिए एंबुलेंस आई है?”
“मीता अपने एक्स हसबैंड को घर लेकर आई है , हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा कर।”
” सोचकर देखो,क्या असर पड़ेगा उसकी इस हरकत का , बच्चे क्या सोचेंगे?”
“यही संस्कार देंगे हम अपने बच्चों को?
हम तो यही कहेंगे,इतना ही प्यार था तो तलाक क्यों लिया?”
चारों ओर से उठती आवाजों ने हैरान कर दिया मुझे।
रंजन जी और मीता दोनों ही तलाक शुदा हैं। तलाक के बाद कई वर्षों से हमारी इस टाउनशिप में अलग अलग फ्लैट में रहते हैं।
समझदार ,पढ़ीलिखी मीता के आकर्षक व्यक्तित्व को देख कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई।अपने काम से काम रखने वाली और दूसरों की मदद को तत्पर रहने वाली मीता ने कभी किसी को बातें बनाने का मौका ही नहीं दिया।
एक बेटा भी है दोनों का सोहम।
बहुत मिलनसार,कुशाग्र बुद्धि और हंसमुख।
अधिकतर मीता के साथ ही रहता है,पर कभी कभी पापा के फ्लैट पर भी आता जाता है।
अधिकांश महिलाएं दबी जुबान में मीता और रंजन जी की बातें करती हैं पर उनके सामने कभी किसी ने कुछ भी कहने की कभी हिम्मत नहीं दिखाई।
इतने वर्षों से मन में दबी बातों को आज अचानक स्वर मिल गए हों जैसे,सभी मुखर हो उठीं।
“इतना ही प्यार है तो साथ में रहें,दोबारा शादी कर लें पर इस तरह तलाकशुदा पति को घर पर कौन लाता है?”
रोज सरे आम अपने पति और घरवालों की बुराई करने वाली महिलाएं भी अपने संस्कारों की दुहाई दे रही थीं।
मैं इन सब बातों पर कभी ध्यान नहीं देती,पर मेरे मन में भी कुछ सवाल जन्म लेने लगे थे।
अगर मीता ने ये कदम उठाया है तो जरूर कुछ न कुछ वजह तो अवश्य रही होगी। बिना उससे विचार किए किसी निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं था, सो मैंने भी सब कल पर टाल दिया और अपनी तथाकथित महिला मित्रों से विदा ले घर आ गई मैं।
अभी चाय लेकर बैठी ही थी कि एक के बाद एक लगातार आने वाले नोटिफिकेशन देख फोन उठाया और आश्चर्य चकित रह गई।
बिल्डिंग की हम सभी महिलाओं का एक वाट्सअप ग्रुप है,जिसमें आवश्यक जानकारी साझा होती रहती है।मीता भी इसकी सदस्य है,पर आज की घटना के बाद सभी ने उसे ग्रुप से निष्कासित कर उसके खिलाफ़ मोर्चा ही खोल लिया।
संस्कार और संस्कृति की दुहाई देते हुए जिस अभद्र भाषा का प्रयोग उसके लिए किया जा रहा है,मेरे लिए सब असहनीय हो रहा है।
किसी के बारे में पूरा सच जाने बिना उसे कठघरे में खड़ा करने का किसी को अधिकार नहीं।
और जिन बच्चों के बिगड़ने या गलत प्रभाव पड़ने की बात की जा रही है,वो भी इतने छोटे नहीं है।
उन सभी को अपने मित्रों के साथ कई बार अशोभनीय हरकतें और मस्ती करते हुए भी सभी ने देखा है।
अकर्मण्य पति को छोड़कर अपने दम पर अपने बेटे को बड़ा किया मीता ने,पति के घर में आज भी उसे इज्जत से बुलाया जाता है पर कभी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी उसने।
कभी किसी परिस्थिति का गलत फायदा उठाने की कोशिश भी नहीं की।
बेटे के बड़े हो जाने के बाद अपना अधिकांश समय समाज सेवा और असहाय व्यक्तियों की देखरेख में लगाती है।
एक बार मुझसे कहा भी था “जानती हो इंसान का सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा शत्रु उसका मन होता है।”
जिसने मन को साध लिया ,समझो दुनिया को जीत लिया।”
सोहम से जब भी मिली ,उसके बारे में मेरे दिल में जगह बनती ही चली गई।
कुशाग्र बुद्धि और व्यवहार कुशल,किसी से भी पहली मुलाकात में ही घुलमिल जाने वाला।
हमेशा उसे देख मीता की परवरिश पर गर्व ही होता है,फिर आज उसी को सब इस तरह संस्कार हीन क्यों कह रहे हैं?
रात में पतिदेव को भी सब बताया,हंसते हुए बात हवा में उड़ा दी इन्होंने।
“अरे उनका आपसी मामला है,हम कौन होते हैं दखल देने वाले?
हमसे पूछकर अलग नहीं हुए तो अभी भी हमें अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
तुम मीता से कोई सफाई मत मांगना,उचित समझेंगी तो खुद ही बताएंगी तुम्हें।”
सच में,इनके इसी सकारात्मक दृष्टिकोण की कायल हो जाती हूं मैं, हमेशा ही।
कोई भी परिस्थिति हो,हमेशा संतुलित व्यवहार रहता है इनका।
अगले दिन सुबह के काम निबटा रही थी ,इनका टिफिन पैक ही किया था कि मीता का फोन आया।
हेलो..!फुर्सत में हो तो बात करें या बाद में लगाऊं?
“नहीं नहीं,फ्री ही हूं, बताओ कैसी हो?”
“कुछ पूछोगी नहीं, मैं रंजन जी को अपने घर क्यों लाई हूं?”
“मुझे यकीन है अगर बताने वाली बात होगी तो तुम खुद ही बताओगी।”
इतना कहते हुए भी अपनी आवाज की लड़खड़ाहट महसूस हुई मुझे।
मेरी ही अंतरात्मा ने उसी क्षण मुझे धिक्कारा, कि मैं भी उसे गलत समझ रही हूं ।
खुद पर काबू पाते हुए मैंने धीरे से कहा”,क्या हुआ रंजन जी को?अब कैसी तबियत है?”
“दरअसल उनकी शुगर बहुत बढ़ गई थी,उंगलियां काटने की नौबत आ गई थी।”
“समय पर हॉस्पिटल नहीं जाते तो कुछ भी हो सकता था।
सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बनकर सोहम भी अपनी टीम का प्रतिनिधित्व करने तीन माह के लिए विदेश दौरे पर है।
तबियत खराब होने पर रंजन ने पहला फोन सोहम को किया और वो अपना अधूरा कार्यक्रम छोड़कर आने को तैयार हो गया।
तुम ही बताओ ,पहली बार मौका मिला है ,उसके भविष्य का सवाल है , वापस कैसे आने देती।
सोहम की चिंता बढ़ती जा रही थी,अलग भले ही रहते हों पर रंजन के साथ अच्छी ट्यूनिंग है उसकी।
बहुत सोच विचार कर ठंडे दिमाग से मैंने ये फैसला लिया।
तुम्हें पता है ना रंजन की बिल्डिंग में लिफ्ट भी नहीं है,अगर उन्हें वहां ले जाकर मैं रोज जाती,बातें तो तब भी होती।
ईश्वर जानता है, किन हालातों से निकल कर यहां तक आई हूं मैं,रंजन के अत्याचारों से टूटकर ही तलाक का फैसला लिया था मैंने।
उसने मेरे साथ गलत किया पर मैं इस तरह बदला नहीं ले सकती थी।
पिता के रूप में सोहम के मन में बसी छबि कैसे खंडित कर दूं?
क्या संस्कार दूंगी उसे,और जब मैं रोज अन्य दीन दुखियों की सेवा के लिए जाती हूं,तो ये भी उसीका हिस्सा हुआ न।
सिर्फ इतना ही कहूंगी रंजन का मेरे जीवन या घर में कोई स्थान नहीं,पर मेरे बेटे के पिता होने के नाते तिल तिल कर तड़पने के लिए नहीं छोड़ सकती उन्हें मैं।
जैसे ही तबियत सुधरेगी उनके घर में शिफ्ट कर दूंगी।
अपने संस्कार और मानवीय धर्म की मेरी यही परिभाषा है।
कोई कुछ भी कहे,अगर मैं सही हूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे बस अपने बेटे को एक अच्छा इंसान बनाना है।”
इस घटना को भी अब करीब सात आठ महीने बीत चुके हैं,सोहम को विदेश में ही अच्छी नौकरी मिल गई।
मीता आज भी रोज सुबह अपनी नौकरानी के हाथों रंजन जी का टिफिन भेजती है।
पिछली कड़वी यादें निश्चित रूप से भुला नहीं सकती पर उसका ये व्यवहार सोहम के मन में जिन संस्कारों को पुख्ता कर रहा है,वो आजीवन उसे भटकने नहीं देंगे।
सोच रही हूं संस्कार घोल कर पिलाए नहीं जाते,हमारा व्यवहार ही दृढ़ संस्कारों को जन्म देता है।
मीता जैसे सुदृढ़ व्यक्तित्व की महिलाएं ही संस्कृति की सच्ची संवाहक हैं,सोचते हुए मेरे चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी।
मौलिक/वर्षा गर्ग