अन्याय न करना चाहिये न सहना चाहिये – बीना शुक्ला अवस्थी

आज करीब बीस दिन बाद नीलिमा मायके आई है। बीस दिन पहले चेन्नई जाने के चार दिन पहले माँ से मिलकर गई थी। जाने वाले दिन फोन पर बात करने का बहुत प्रयत्न किया था, परन्तु पता नहीं क्यों किसी का भी फोन लगा ही नहीं। अमर से कहा भी-” बहुत प्रयत्न कर रही हूँ, घर का फोन नहीं लग रहा है। चिन्ता हो रही है।”

” तुम्हारी नाटक बाजी का जवाब नहीं, अभी दो दिन पहले तो मिल कर आ रही हो, फिर शुरू हो गईं।”

” मैं जाने के लिये नहीं कह रही, लेकिन किसी का फोन क्यों नहीं उठ रहा?”

” मुझे नहीं पता, अब तैयारी करो, हमें शाम को निकलना है। लाओ मेरा मोबाइल वापस करो, अपना तो सम्हाल नहीं सकती, मेरा भी खराब कर दोगी।”

आज सुबह ही सास का हाथ लग जाने के कारण उसका मोबाइल पानी में गिर गया था, उसे तो काफी देर बाद पता लगा। जिसके कारण भी उसी को डाँट पड़ी थी- ” रसोई मोबाइल रखने की जगह है क्या? हर समय मोबाइल में घुसे रहने से काम कहाँ से होगा?” अब थोड़े दिन के लिये छुट्टी मिली।”

सास की बात सुनकर पता नहीं क्यों उसे लगा कि उसका मोबाइल जान बूझकर पानी में डाल दिया गया है।

शाम की ट्रेन से चेन्नई चले गये वो लोग। अपने पास मोबाइल न होने के कारण वह माँ से बात भी नहीं कर पा रही थी। पाँचवें दिन जिठानी के मोबाइल से फोन किया तो छोटे भाई शरद का फोन मिल गया। उसने केवल इतना ही कहा-” दीदी, सब ठीक है, रास्ते में हूँ, बाद में बात करता हूँ।”

बार बार किसी से मोबाइल माँगते भी शर्म लग रही थी।नया घर, नये लोग। अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई है उसकी। एक बार पापा से बात हुई तो उन्होंने बताया कि मम्मी गाँव गईं है – ” और तुम तो जानती हो बिटिया तुम्हारी मम्मी मोबाइल रखती नहीं है।”




बिस्तर पर पड़ी माँ की स्थिति देखकर तड़प उठी वह-” मम्मी आपने ऐसी स्थिति की भी मुझे खबर नहीं दी। शादी बाद क्या मैं इतनी बेगानी हो गई कि आपकी बेटी नहीं रही? इस घर के सुख दुख से मेरा संबंध नहीं रहा?” व्याकुल स्वर और झरते आँसू भरा उलाहना।”

” पगली! तू क्या जानती नहीं कि कष्ट के क्षणों में मेरी साँस साँस ने अपनी नीलू को याद किया होगा? हम सबकी शक्ति और संजीवनी है तू। मेरी ऐसी स्थिति में तेरे पापा और शरद बिल्कुल अपंग हो गये थे।”

वात्सल्य और ममता भरा हाथ नीलिमा को सहलाता जा रहा था- तेरे चेन्नई जाने के एक दिन पहले शाम को एक्सीडेन्ट हुआ था। तेरे स्वभाव से परिचित हैं हम सब। अगर तुझे मालुम पड़ जाता तो क्या तू जा सकती थी? मेरे कारण तुम सबका प्रोग्राम बरबाद हो जाता। इसलिये शरद ने तुझे खबर न दी, अकेले ही सारी परेशानियाँ उठाता रहा। अपने पापा को भी बताने को मना कर दिया था।” भीगा कंठ, गीली पलकें – ” एक बार तो लगने लगा था कि अब तुझे कभी नहीं देख पाउँगी।”

“चेन्नई जाना मेरी मम्मी के जीवन से बढ़कर था क्या? यदि उन लोंगों के लिये जाना आवश्यक था तो वो लोग चले जाते, मेरे बिना क्या फर्क पड़ जाता? आज बीस दिन बाद यह स्थिति है तो उस समय की सिर्फ कल्पना कर सकती हूँ। आश्चर्य तो मुझे इस बात का है कि दीदी बिना एक कदम न चल पाने वाला शरद मेरी शादी होते ही इतना बुद्धिमान कैसे हो गया? आने दीजिये ,उसकी खबर लेती हूँ।”

परन्तु भाई से कुछ कहने का प्रश्न ही नहीं उठा-” दीदी, मम्मी पापा पर कभी सच्चाई प्रकट न कीजियेगा। सच तो यह है कि मम्मी के एक्सीडेंट की खबर मैंने सबसे पहले आपको ही दी थी, आप सुनकर घबड़ा जातीं इसलिये मैंने जीजाजी को फोन किया लेकिन उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि रात में उन्हें परेशान न किया जाये। सुबह भी जब किसी तरह आपका फोन न मिला तो फिर उनसे मिन्नत की लेकिन उन्होंने आपसे बात तक न करवाई। कह दिया आज उन लोंगों को जाना है, सारी तैयारियां करनी हैं, इसलिये किसी तरह भी आपका आना संभव नहीं है, लौटकर आने के बाद देखा जायेगा। झूठ न बोलता तो क्या करता? मेरी विवशता आपके अतिरिक्त कौन समझ सकता है? पापा तो बदहवास से हो गये थे, मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया था। लेकिन यह सच है कि अगर मम्मी को कुछ हो जाता तो मैं अपनी जान दे देता क्योंकि आपको क्या मुँह दिखाता?”

ग्लानि से नीलिमा छोटे भाई के समक्ष सिर नहीं उठा पा रही थी – ” आपके स्नेह की छाया में पला मैं तो सदैव आपका आज्ञा पालक था दीदी। मेरी बुद्धि काम नहीं कर रही थी, बस मन कर रहा था कि एक बार आप मिल जातीं।” शरद का भारी स्वर।




” मम्मी बार बार अर्धचेतना में नीलू…….. नीलू पुकार रहीं थीं और मैं असहाय सा कुछ नहीं कर पा रहा था। एक बार तो मन किया कि जाकर आपको लिवा लाऊँ लेकिन यह सोंचकर नहीं आया कि जीजाजी आपको भेजेंगे नहीं और आप मम्मी और उनके बीच दोराहे पर खड़ी होकर असहनीय कष्ट भोगेंगी। कोई भी निर्णय आपकी तीन महीने पहले हुई शादी में तनाव पैदा कर सकता था। ” शरद के दोनों हाथ उसके समक्ष जुड़ गये – ” दीदी, मुझे और पापा को क्षमा कर दो अपने प्रति किये इस अन्याय के लिये।”

नीलिमा की आँखों के आँसू सूख गये, स्तब्ध रह गई शरद की बात सुनकर- ” उस दिन बहुत रोया मैं प्रारब्ध की विडम्बना पर। जो व्यक्ति सगी माँ की ऐसी स्थिति जानकर इतना निर्दयी हो सकता है, उसके साथ पड़ोसियों के दुख से व्याकुल होने वाली मेरी संवेदनशील दीदी पूरा जीवन कैसे गुजारेंगी?स्वयं के समक्ष अपराधी हैं हम जो हमने अपनी भावुक, स्नेहमयी प्यारी बेटी को एक हृदयहीन को सौंपकर आजीवन तड़पने का दंड दिया है। समझ में नहीं आता कि इस अन्याय का कैसे प्रतिकार करूॅ? “

शरद बोलता जा रहा था और नीलिमा भाई के आँसू भरे चेहरे को एकटक निहार रही थी -” जानता हूँ कि आप कभी कुछ नहीं कहेंगी लेकिन मुझे विश्वास हो गया है कि नियति ने हम सबके हृदय के अंश मेरी दीदी को हमेशा के लिये हमसे अलग करके एक अंतहीन जलती अग्नि में झोंक दिया है। अब मेरी दीदी का हृदय कभी सच्ची खुशी और प्रसन्नता की आभा से नहीं जगमगायेगा।




बिलख बिलखकर रोते भाई को चुप कराने के लिये नीलिमा के पास शब्द न थे। तीन महीनों में इतना तो जान ही गई थी कि अमर के लिये अपने सुख और खुशी से बढ़कर कुछ नहीं है। मेरा अस्तित्व उनके समक्ष एक आज्ञापालक रोबोट से अधिक नहीं है। लेकिन वो इतना गिर सकते हैं, कभी सोंच भी नहीं सकती थी। अमर के लिये जेठ के लड़के का जन्मदिन मेरी माँ के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है? रात की नींद ,चेन्नई जाना इतना आवश्यक था कि मानवता भूल गये? मुझे एक बार बताया तक नहीं? मेरा मोबाइल जानबूझकर खराब कर दिया गया?

अपनी माँ को ईश्वर मानने वाले, ससुराल के प्रति मेरे कर्तव्य और निष्ठा का दिन रात उपदेश देने वाले अमर कैसे भूल गये कि माँ सबकी बराबर होती है। मुझे भी उन्हीं की तरह किसी ने जन्म देकर अपने रक्त से सींचकर पाला है, विवाह के पहले भी मेरा एक प्यारा सा संसार था जो मेरे अस्तित्व में समाया है। क्यों किया अमर ने मेरे साथ ऐसा अन्याय? केवल इसलिये ही ना कि वो पुरुष हैं, ? यहीं यदि मैंने किया होता तो क्या वो कभी माफ कर पाते मुझे? आजीवन साथ रहकर भी क्या मैं उन्हें माफ कर पाऊँगी कभी ? मानवता और न्याय की तुला पर मेरे कर्तव्य और निष्ठा के बदले दूसरे पलड़े पर अपना कौन सा कर्तव्य रखेंगे? अपने पुरुष होने का अहंकार ही ना वरना अपनी पत्नी के प्रति ऐसा अन्याय करने का क्या अधिकार था? नीलिमा ने सोंच लिया कि चाहे जो हो जाये लेकिन विवाह के नाम पर हर अन्याय करने का लाइसेंस अब अमर को नहीं देगी। मॉ के जीवन मरण की बात न होती तो शायद वह चुप रह जाती लेकिन यदि मॉ को कुछ हो जाता तो क्या करती वह? वह तो अमर के कारण मॉ के साथ अपना भाई भी खो देती।

अभी तक मॉ की दी सीख, नई शादी के कारण नये घर में सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास में शान्त थी लेकिन अब  तो अमर ने सीमा ही पार कर दी थी। अब भी कुछ न बोलना अन्याय को बढ़ावा देना होगा। अमर को अब वह अहसास कराकर रहेगी कि अन्याय न करना चाहिये और न ही सहना चाहिये क्योंकि अन्याय सहने वाला भी अपराधी होता है।

#अन्याय

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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