अंतिम फ़ैसला- के कामेश्वरी

रामकिशन सुबह की सैर करके आए थे । उनको आते देखते ही सुलोचना चाय बनाने चली गई । जैसे ही रामकिशन फ़्रेश होकर आए दोनों बैठकर चाय पीने लगे ।उसी समय बाहर गेट के खुलने की आवाज़ हुई ।सुलोचना उठती है और झाँक कर देखती है । यशोदा गेट खोलकर अंदर आ रही थी ।

अरे ! यशोदा इतनी सुबह सुबह क्या बात है । कैसी हो? आओ बैठो ! आपके लिए भी चाय बना देती हूँ ।

नमस्ते जी आप दोनों को । मैं ठीक हूँ । आप दोनों चाय पी लीजिए मैं चाय पीकर ही आ रही हूँ ।

मुझे आप दोनों से कुछ ज़रूरी बात करनी है । बोलो यशोदा क्या बात है ? हमारी बहू तुलसी कैसी है उसे भी साथ ले आतीं तो और अच्छा लगता था ।

जी मैं उसी के बारे में बात करने आई हूँ ।सुलोचना जी देखिए न कल महेश का मेल आया था । उसमें क्या लिखा है नहीं मालूम पर जब से उसने उस मेल को पढ़ा तब से रोए जा रही है । मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।इसलिए मैंने सोचा आप लोगों से बात कर लेती हूँ ।शायद आपको भी मेल आया हो या आपको कुछ मालूम होगा ।

रामकिशन ने कहा —रुको !यशोदा मैं एक बार चेक कर लेता हूँ ।मेरे लिए कोई मेल आया है क्या? क्योंकि महेश से दो दिन हो गए हैं बात नहीं हुई है ।हमने सोचा शायद अपने काम में व्यस्त है ।

यशोदा से बात करते हुए ही रामकिशन कमरे में जाकर अपना लैपटॉप ऑन करते हैं और उसे ओपन करके मेल चेक करते हैं । उन्होंने देखा उसमें महेश से मेल आया हुआ था ।

मेल खोलकर पढ़ना शुरू किया जैसे जैसे पढ़ते जा रहे थे ग़ुस्से से उनके नथुने फूलने लगे और सुलोचना को ज़ोर से पुकारा आवाज़ में ग़ुस्सा साफ नज़र आ रहा था । सुलोचना के साथ यशोदा भी कमरे में गई उन्हें देखते ही कहा—देखा सुलोचना अपने बेटे ने क्या गुल खिलाया है ।




सुलोचना ने कहा— क्या हुआ कुछ बोलिए न मेरा दिल बैठा जा रहा है ।

रामकिशन ने कहा कि मैं क्या कहूँ  ? तुम ही सुनो मैं पढ़कर सुना देता हूँ । कहते हुए सुनाने लगे……

माँ पापा ,

मेरी बात पढ़कर आपको ग़ुस्सा आ रहा होगा पर मैं सीधी बात पर आ जाता हूँ घुमा फिराकर आपको उलझन में नहीं डालूँगा । आप लोगों को मैं यह बताना चाहता था कि तुलसी मुझे अच्छी नहीं लगी थी । इसलिए मैं उसे तलाक़ देना चाहता हूँ । मैंने उसे भी मेल कर दिया है ।अब तक तो उसने पढ़ भी लिया होगा । मैं जानता हूँ आप यही कहेंगे कि दोनों की रज़ामंदी से ही शादी हुई है फिर तीन महीनों में ही ऐसा फ़ैसला क्यों ? मुझे नहीं मालूम क्यों पर मुझे वह अच्छी नहीं लगी । मैं उसे और आप सबको धोखे में नहीं रखना चाहता हूँ । मैं अनचाहे बंधन में बंध कर जीना नहीं चाहता हूँ । इसलिए उसे भी आज़ादी देकर खुद भी आज़ाद होना चाहता हूँ । हम दोनों मिलकर रज़ामंदी से तलाक़ लेंगे तो तलाक़ जल्दी से मिल जाएगा ।इसलिए इन सबके लिए जो भी कार्यवाही करनी हो उसमें आप तुलसी की मदद कर दीजिए । मेरी ज़रूरत है तो मैं भी आ जाऊँगा । आपके दिल को अगर ठेस पहुँचाया है तो उसके लिए तहेदिल से माफ़ी माँगना चाहता हूँ ।

आपका पुत्र महेश

यशोदा ने भी उस पत्र को सुना और बिना किसी से कुछ कहे चुपचाप अपने घर वापस आ गई । रामकिशन  को पिछली बातें याद आने लगी थी ।

मैं अपने माता-पिता की दूसरी संतान था । जगमोहन भाई पिताजी का कारोबार सँभालते हुए गाँव में ही रह गए थे । मैंने एम ए किया और कॉलेज में पढ़ाने लगा और भाई के कहे अनुसार ही उनके द्वारा पसंद की गई सुलोचना से शादी कर ली और अपने परिवार के साथ शहर में ही बस गया था । हमारा भी एक ही बेटा था महेश  जो इंजीनियरिंग के बाद एम एस करने अमेरिका गया और वहीं बस गया था । मुझे और मेरी पत्नी सुलोचना को महेश की शादी की फ़िक्र होने लगी थी । हमने उससे पूछा कि वह शादी के लिए तैयार है । उसके हाँ कहते ही उसके लिए हम रिश्ते ढूँढने लगे ।

उसी समय मेरे साथ कॉलेज में काम करने वाले प्रोफ़ेसर विजय की मृत्यु एक हादसे में हो गई थी । मैं भी अपने कॉलेज के सहयोगियों के साथ उनके घर उनके परिवार से मिलने गया था । हम सब वहाँ उनके परिजनों से मिले ।विजय के दो बच्चे थे एक बेटी तुलसी और बेटा नरेंद्र दोनों ही होनहार थे । तुलसी चार साल से नौकरी भी कर रही थी । विजय के परिवार के साथ मिलकर हम सब वापस आ गए ।




मैं घर पहुँचा पर मेरे दिमाग़ में तुलसी ही घूम रही थी । मैंने सुलोचना को भी तुलसी के बारे में बताया कि लड़की बहुत सुंदर है पढ़ी लिखी है और नौकरी भी कर रही है । अपने महेश के लिए इससे बेहतर लड़की नहीं मिल सकती है । सुलोचना से मैंने कहा मैं तुम्हें विजय के घर ले जाऊँगा  बस उनके घर की रीति रिवाजों को ख़त्म हो जाने दो फिर हम चलेंगे ।

एक महीने के बाद मैं और सुलोचना विजय के घर पहुँचे और उनकी पत्नी यशोदा से मिलकर तुलसी के बारे में बात की थी । यह भी बताया कि अपने बेटे से बात करेंगे और फिर आपकी बेटी को अपने घर ले जाएँगे । महेश से मैंने और सुलोचना ने बात की उसे तुलसी के बारे में बताया उसका फ़ोन नंबर भी दिया कि पहले एक बार बात कर लो । दोनों ने बातें की दोनों के विचार मिले और महेश शादी के लिए इंडिया आने के लिए राज़ी हो गया पर एक शर्त रखी कि लड़की को देखने के बाद हम अपना निर्णय उन्हें बताएँगे । हमें भी यही ठीक लगा इसलिए हमने उसकी शर्त को मान लिया था ।

उस दिन महेश इंडिया आ रहा था पूरे तीन साल बाद मैं और सुलोचना उसे देखने वाले थे । हम बहुत ही खुश थे । सुलोचना ने उसकी पसंद के सारे पकवान बनाए । हम दोनों एयरपोर्ट समय से पहले ही पहुँच गए थे और महेश का इंतज़ार करने लगे थे । हमें लग रहा था समय जैसे रुक गया हो ।

इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुई और महेश आ गया । उसने हम दोनों के पैर छुए और गले लग गया । सुलोचना तो उसे देखे ही जा रही थी जैसे पलक झपकते ही वह आँखों से कहीं ओझल न हो जाए । हम घर पहुँच गए । मैंने रास्ते में उसे तुलसी के परिवार के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे दी थी । बहुत दूर से आया है इसलिए उस दिन सिर्फ़ हम तीनों ने ही वक़्त बिताया था । महेश ने दूसरे दिन सुबह कहा पापा हम उनसे मिल आते हैं क्योंकि फिर मेरे पास ज़्यादा समय नहीं होगा । हमें भी यह ठीक लगा इसलिए मैंने यशोदा जी को फ़ोन किया और शाम को तीनों उनके घर पहुँच गए । चाय पानी के बाद तुलसी और महेश को आपस में बातें करने का मौक़ा दिया गया था । दोनों ने बातें की और सबको अपना फ़ैसला बता दिया कि वे दोनों शादी के लिए राजी हैं ।

बस फिर क्या दोनों घरों में शादी का माहौल बन गया था । सारे समारोह बहुत ही धूमधाम से हो गए थे । शादी के दिन सब लोग बहुत खुश थे ।शादी संपन्न हो गई और तुलसी हमारे घर आ गई । दस दिन समय का पता ही नहीं चला और बहू बेटे के वापस जाने का समय आ गया था । हम सब उन्हें एयरपोर्ट छोड़ने के लिए गए थे । सही समय पर उनकी फ़्लाइट निकल गई । हम सब वापस आ गए ।




मुझे अच्छा लग रहा था कि तुलसी और महेश की शादी हो गई है । दोनों साथ में ही अमेरिका चले गए हैं । एक महीना अच्छे से गुजरा । एक दिन तुलसी ने फ़ोन करके बताया पापा महेश कह रहे हैं कि मैं भी यहाँ से एम एस कर लूँगी तो अच्छी नौकरी मिल जाएगी । मैंने कहा- बहुत अच्छी बात है बेटा जब वह कह रहा है तो कर लो बेटा अच्छा हो जाएगा । फिर उसने कहा कि पापा महेश कह रहे हैं कि एम एस ख़त्म होने के लिए समय लग जाएगा इसलिए एक बार इंडिया जा कर आ जाओ इसलिए मैं अगले महीने आ रही हूँ । तुलसी का हम इंतज़ार करने लगे । दूसरे महीने में ही तुलसी इंडिया आ गई थी । उसके आने के हफ़्ते भर बाद ही महेश का मेल आया था कि वह तुलसी से तलाक़ लेना चाहता है ।

पुरानी बातों को याद करके रामकिशन का दिल भर आया उसी समय उन्होंने एक निर्णय लिया और सुलोचना को भी अपना निर्णय बताया । सुलोचना भी इस बात पर राजी हो गई । दूसरे दिन रामकिशन वकील के पास गए और उन्होंने अपनी संपत्ति का वारिस तुलसी को बनाया और बेटे को अपनी संपत्ति से बेदख़ल कर दिया । यह सुनकर तुलसी और उसका परिवार गदगद हो गए थे कि बहू पर होने वाले अन्याय को सुनकर बुरा तो सब मानते हैं पर इस तरह का फ़ैसला कोई नहीं लेते हैं ।

उन्होंने तुलसी से कहा —अपना जॉब फिर से ले लो बेटा और तुम्हारी मर्ज़ी है तो हमारे साथ इस घर में आकर रह सकती है । तुलसी ने हाँ में सर हिलाया वे बहुत खुश हो गए थे ।

महेश ने जब फ़ोन पर इस बारे में पूछा तो रामकिशन ने कहा यही मेरा अंतिम फ़ैसला है महेश जो कुछ भी तुमने किया है उससे मैं खुश नहीं हूँ । इसलिए मेरा यह फ़ैसला कभी नहीं बदलेगा । सॉरी

दोस्तों हर माँ बाप अगर इस तरह सोचने लगे तो किसी भी लड़की के साथ अन्याय करने के लिए लड़के दस बार सोचेंगे ।

दोस्तों वैसे भी यह उनका अपना फ़ैसला है ऐसा जरूरी नहीं है कि सबकी सोच ऐसी ही हो । हर किसी को अपना निर्णय लेने का अधिकार है । यह निर्णय सबको अच्छा लगे यह ज़रूरी नहीं है ।

के कामेश्वरी

 

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