अंतहीन प्रतीक्षा – शुभ्रा बैनर्जी: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सब कुछ पा लेने का सुख बड़ा निर्मोही होता है,ठहरता ही नहीं।खोकर फिर कुछ ना खोने का अहसास कदाचित ज्यादा सुखमय होता है।शालिनी पिछले पच्चीस वर्षों से शिक्षण कार्य में संलग्न थी।अनगिनत छात्रों की सबसे प्रिय  शिक्षिका  होने का सौभाग्य भी मिला था उसे।सारी ज़िंदगी खोया ही था शालिनी से,अपने प्रिय जनों को।एक -एक करके जीवन में समय के वज्र पात होते ही रहे।इन सबके बीच शिक्षण ही एक ऐसा आनंदित करने वाला अनुभव रहा ,जिससे उसके सारे दुखों पर मरहम लगता रहा।

पति को खोने के बाद अब सजना संवरना अच्छा नहीं लगता था।टोकने वाला या तारीफ़ करने वाला आलोचक पति से अच्छा कोई और हो ही नहीं सकता।एक ही समय पर आंखें तरेर कर घूरते हुए साड़ी की कमी निकालना और तुरंत अपनी दी हुई साड़ी पहनने का आग्रह करना ,पति से बेहतर कोई कर नहीं सकता।

शालिनी की बोलती हुई आंखें अब कभी -कभी उसे ही बेजान लगने लगती।शाम को कंघी करना जान बूझकर भूलने वाली शालिनी को आज उसकी मां(सास)ने ऐसी गहरी बात बोली कि ,वह निरुत्तर रह गई।अस्सी पार कर चुकी,पंद्रह वर्षों से वैधव्य का बोझ लेकर और अपने इकलौते बेटे को खोकर एक औरत की आंखों में अब भी ना जाने किस खुशी की प्रतीक्षा है? याददाश्त अब भी गजब की।कान अब भी चौकन्ने, मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाकर पंद्रह दिनों के अंदर फिर से अखबार पढ़ती हुई मां ने एक सद्ध विधवा हुई बहू  को कहीं मां की कमी महसूस ही नहीं होने दी।समय का कुचक्र चलता रहा,पर उनके सारे कार्य आज भी समय पर ही होते थे।खाने की मेज पर अपनी थाली लगते ही उनका एक पुराना वाक्य”अपनी थाली भी ले आओ”आज भी अपरिवर्तित है।

शालिनी उनके साथ शाम को टी वी पर एक दो सीरियल(बांग्ला भाषी)रोज़ देखती थी,चाय पीते हुए।आज मन थोड़ा उदास होकर कहीं अतीत में भटकने लगा था,कि उन्होंने झट से पकड़ लिया और बोलीं”बहू,तुम्हारी आंखें देखकर ही मैंने तुम्हें एक नज़र में पसंद किया था।तुम्हारा मन दिखता है तुम्हारी आंखों में।ऐसे नीरस मत रहा करो।आंखें निर्जीव होती जा रहीं हैं तुम्हारी।”

शालिनी ने सपाट स्वर में कहा”मां,अब इन आंखों में किस बहाने से चमक आए।कुछ अच्छा नहीं लगता।”उन्होंने एक भी आंसू बिना बहाए कहा”अच्छा!!मेरी आंखों से भी ज्यादा बूढ़ी हो गईं हैं क्या तुम्हारी आंखें?दुःख के आंसुओं को सुखाकर आने वाले सुख की जगह तो बनानी पड़ती है ख़ुद को।सौ सपने बस सकतें हैं अभी इन आंखों में।तुमने इतनी जल्दी हार मान ली नियति से।मुझे देख,मेरा तो कोई भी नहीं इस दुनिया में अपना।दो बेटियां शादी के बाद पराए घर चलीं गईं।माता -पिता हैं नहीं।पति को गए जमाना हो गया।एक मात्र सहारा था इकलौता बेटा,वो भी चला गया।मैं तो तुझे ही अपना सब कुछ मानकर जी रहीं हूं।अपने नाती के काम पर जाने के बाद उसके आने का इंतजार रहता है इन आंखों में।नितिन से जब तुम फोन पर बात करती हो,उस शाम का इंतजार करती हैं रोज़ मेरी आंखें।अखबार वाले की साइकिल की घंटी की आवाज का इंतजार करती हैं।तुम्हारे संध्या के शंख बजाने का इंतज़ार करती हैं ये आंखें।”उनके चुप होते ही शालिनी ने छेड़ते हुए पूछा”और,क्या क्या इंतज़ार है आपकी आंखों को?”

वह हंसकर बोलीं”अरे अभी तो सबसे महत्वपूर्ण इंतज़ार है तुम्हारे सास बनने का।मुझे बहुत ताना दिया करता था तुम्हारा पति ,मेरा बेटा कि मैं बहुत ख़तरनाक सास हूं।हां तुम्हारी तरफदारी करने का लांछन भी लगाया था उसने मुझे पर।अब मैं यह देखना चाहती हूं कि तुम कैसी सास बनोगी?मुझसे अच्छी बन पाओगी क्या?”

शालिनी ने मां को जोर से सीने में भींच लिया।दोनों की आंखों से एक ही स्वाद के आंसू बह रहे थे।खारापन कुछ कम हुआ था शालिनी के आंसुओं का।आज एक मां ने उसे चुनौती देकर अपने सर्वश्रेष्ठ सास होने का परिचय दिया।शालिनी सौ जनम भी ले ले,उनके जैसी अच्छी सास कभी नहीं बन पाएगी।कोई मां अपने बच्चों से ज्यादा एक पराई लड़की को इतना प्यार और दुलार दे सकती है भला?अपनी बहू के आने वाले सुख की कामना करती है,उनकी हर एक सांस।उनकी बूढ़ी आंखों में एक अंतहीन प्रतीक्षा है,जो शायद उनके साथ ही खत्म होगी।अपने अपनों को खोने का दुख इतनी बारीकी से छिपाया था उन्होंने कि ,बहू के जीवन में आने वाले खुशनुमा कल के स्वप्न दिखते हैं अब उनकी आंखों में।जिसे पूरा शहर एक अच्छी टीचर के नाम से सम्बोधित और सम्मानित करता है,आज वही शालिनी अपनी मां से जीवन की अबाध गति का सबक सीख रही है।

अपने लिए कुछ ना मांगकर अपने नाती-नातिन की शादी का पंजीयन करवा रहीं हैं ईश्वर के रजिस्टर में।शालिनी से आज उन्होंने  खोकर, कुछ ना खोने का सुख साझा करके अपनी संवेदनाओं की अथाह गहराई बताई।

अब से शालिनी अपनी आंखों में सारे इंतज़ार का फिर से इंतज़ाम करेगी।शाम को तैयार भी होगी,कोई ऊपर से भी तो देख-देख कर कुढ़ता होगा।जब तक स्पंदन है हृदय में,तब तक आंखों में भी स्वपन आवश्यक हैं,वरना आंखें मन का दर्पण कहां बन पातीं हैं?

शुभ्रा बैनर्जी

1 thought on “अंतहीन प्रतीक्षा – शुभ्रा बैनर्जी: Moral Stories in Hindi”

  1. वेरी वेरी नाइस दिल को छू लेने वाले
    शब्दों के हार को बहुत मर्मतापूर्वक पुरया है

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