मैं प्रेम की दीवानी हूँ – मनप्रीत मखीजा

सूरज की किरणें झिलमिल के चेहरे पर पड़ रही थीं। कमरे की बालकनी में योगासन करता हुआ झिलमिल का पति प्रेम, झिलमिल को निहारने लगा। इन चमकीली किरणों ने जब झिलमिल के चेहरे को छुआ तो मानो कोई सोना चमक रहा हो। गोरा रंग, घनी पलकों वाली बड़ी बड़ी आँखें और लाल सुर्ख होंठ झिलमिल तो सोते हुए भी शहजादी सी खूबसूरत लगती थी। प्रेम का मन किया कि जाकर अपनी पत्नी झिलमिल को बाहों में भर ले, लेकिन अचानक उसे बीती रात की बातें याद आ गईं|

बीती रात झिलमिल ने कैसे प्रेम को अपने से दूर रहने का फ़रमान जारी कर दिया था। शादी को सात महीने बीत गए, मगर प्रेम और झिलमिल के बीच अभी तक कोई रिश्ता क़ायम नहीं हुआ था। कहने को तो दोनों पति पत्नी थे, लेकिन कमरे के अंदर तो कहानी कुछ और ही थी। झिलमिल को प्रेम बिल्कुल पसंद नहीं था, होता भी कैसे! झिलमिल गोरी चिट्टी, खूबसूरत लड़की थी| तो प्रेम साँवले से रंग का ठीक ठाक दिखने वाला लड़का।

झिलमिल स्वभाव से बहुत बिंदास और बेपरवाह थी जो ख्वाबों की दुनिया मे जीती थी वहीं प्रेम..स्वभाव से शांत सीधा साधा सा और सच्चाई को अपनाकर खुशी खुशी जीने वाला इंसान।तब भी प्यार, इश्क़, मोहब्बत अपनी जगह ढूंढ ही लेता है।

इन दोनों की शादी तो हुई जैसे राम मिलाये जोड़ी। प्रेम की भाभी मालती की चचेरी बहन थी झिलमिल… जिसे पहली बार देखते ही प्रेम ने अपने दिल मे बसा लिया। मालती की शादी के बाद घरवालों ने बिना किसी गुंजाइश के प्रेम का रिश्ता स्वीकार कर लिया। घर परिवार भी अच्छा था और रुपए पैसों की भी कोई कमी नहीं थी। लेकिन झिलमिल तो ख्वाबों की दुनिया के जैसे अपने किसी राजकुमार के आने के इंतजार में थी और जब घरवालों के दबाव में उसे प्रेम से शादी करनी पड़ी तो उसने प्रेम को सब कुछ बता दिया।और पहली ही रात प्रेम को ये सब जानकर भी कुछ बुरा नहीं लगा। प्रेम को अपने सच्चे प्यार पर विश्वास था, उसे यकीन था कि वो एक दिन झिलमिल का दिल जरूर जीत लेगा और झिलमिल खुद उससे अपने प्रेम का इज़हार करेगी। खैर… , योगासन के बाद प्रेम तैयार होकर नीचे नाश्ता करने चल दिया।

“बहुरिया कहाँ है प्रेम बेटा!”

“जी ….जी वो…”



“हम्म…. अभी तक सो रही होगी है न! आखिर कब तक चलेगा ये प्रेम बेटा! सारी दुनिया के सामने तुम चाहे कितना नाटक कर लो लेकिन मैं तुम्हारी माँ हूँ , मैं समझती हूँ कि तुम दोनों के बीच पति पत्नी का कोई रिश्ता नही। अगर बहू को तुम पसंद नहीं थे तो शादी से पहले कहना था,अब अगर शादी की है तो दूरी कैसी! अब उसे तुम्हारा सम्मान करना होगा, तुम्हे अपनाना होगा, अपने फ़र्ज़ निभाने होंगे …ऐसे तो दिन बीतते जायेंगे और बहू को अपनी नादानी का एहसास ही नहीं होगा।तुम्हे उसपर अपना हक जताना चाहिए प्रेम।”

“नहीं माँ… वो रिश्ता ही किस काम का जिसमे किसी एक को घुटन या दबाव महसूस हो, झिलमिल ने न किया हो लेकिन मैंने तो उससे प्रेम किया है और इस तरह उस पर जबरदस्ती अपना हक जताकर मैं शायद अपने ही प्रेम का अपमान कर दूँगा। तुम चिंता मत करो माँ, सब ठीक हो जाएगा।”

प्रेम तो कहकर ऑफिस के लिए निकल गए लेकिन सीढ़ियों में खड़ी झिलमिल ने जब अपने कानों से ये बात सुनी तो एक पल में पिघल गई। अपने कमरे में जाकर झिलमिल शीशे के सामने खड़ी हुई तो बीती रात की बात सामने आई जब बीती रात पार्टी से आकर झिलमिल अपने गहने उतार रही थी तो प्रेम ने उसके गले का हार उतारने में उसकी मदद करते हुए उसके करीब आने की कोशिश की तब शीशे में अपने रूप के सामने प्रेम को साधारण सा समझकर झिलमिल ने उसे बहुत भला बुरा कहा और अपने से दूर रहने की हिदायत दी और आज ….आज वही शीशा झिलमिल को उसकी सच्चाई दिखा गया। झिलमिल अपने आप पर बड़ी शर्मिंदा थी । ये ऊपरी चमक, रंग ,रूप ये सब तो सिर्फ दिखावटी बातें है। ये यौवन ये सौंदर्य तो केवल चार दिन की बात है असल खूबसूरती तो दिल से होती है, व्यवहार से होती है , इंसान की बातों में होती है।



शादी के इतने महीने बीते लेकिन प्रेम ने कभी भी अपने आप को झिलमिल पर थोपा नही। हमेशा झिलमिल की भावनाओं का सम्मान किया। अपने खुद के कमरे में आरामदायक बिस्तर को छोड़कर नीचे जमीन पर सोने जैसी मामूली बात हो , या  झिलमिल की जिद और अकड़ में घरवालों का सामना करने वाली बड़ी बात ..प्रेम ने हर बार बिना सोचे समझे झिलमिल का साथ दिया

“प्रेम का दिल इतना खूबसूरत है , उनकी सादगी और सच्चाई ही उनकी सबसे बड़ी खासियत है। कितनी नादान और अल्हड़ थी मैं! अपने प्रिंस चार्म का इंतजार करती रही जबकि वो तो मेरे साथ ही थे। उन्होंने अपने सारे फर्ज निभाये है और अब मैं भी अपना पत्नी धर्म निभाऊँगी। उनसे माफी माँगकर अपने आप को उन्हें सौंप दूँगी। उन्हें कह दूँगी कि मैं प्रेम की दीवानी हूँ।”

झिलमिल ने मन ही मन सब तय कर लिया। रात को जब प्रेम घर वापिस आये तो झिलमिल , नई नवेली दुल्हन सी सजी धजी प्रेम के सामने आ गई और हाथ जोड़कर बोली, “मैं….. मैं…. वो..मैंने…”

“कुछ मत कहो झिलमिल, मैं सब समझ गया हूँ कि तुम क्या कहना चाहती हो!”

“मुझे माफ़ कर दीजिए प्रेम, मैं कभी आपके दिल की खूबसूरती देख ही नहीं पाई”।

“दिल तो तुम्हारा भी साफ है झिलमिल, तभी तो तुम्हारे मन का प्रेम तुम्हारे चेहरे पर झलक रहा है और तुम्हारी आँखे , तुम्हारे दिल की सारी बातें बयां कर रही है।”

झिलमिल शर्माते हुए प्रेम के गले लग गई। वाकई,

प्रेम तो प्रेम होता है

इसका न कोई रंग न कोई रूप होता है

कोई पढ़ लेता है दिल की सारी बातें आँखों से

तो कभी अनकहे लफ़्ज़ों से ये बयां होता है।

©®मनप्रीत मखीजा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!