अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 43) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“तुम दोनों, सौरभ बेटा तुम” मनीष के साथ बैठक में छोटी बल्ब की हल्की रोशनी में दीपिका और सौरभ को देखकर अंजना आश्चर्यचकित होकर कहती है।

“शी.. शी..आंटी जी, आपकी बहू की नींद बहुत पतली सी है। कल उनका जन्मदिन है और अब मेरे पतिदेव और उनके पतिदेव के बीच दोस्ती हो गई है तो दोनों मिलकर कल सुबह के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रहे हैं।” दीपिका झुककर चरण स्पर्श करती हुई धीरे से कहती है।

“कल के लिए की अभी के लिए, मतलब अभी केक वगैरह कुछ”…अंजना अब धीरे धीरे बोलती हुई पूछती है।

“अरे आंटी जी, आपकी बहू का कहना है रात के अंधेरे में जन्मदिवस क्या सेलिब्रेट करना। दिन का उजाला जीवन में भी उजाला भरने का संदेश देता है, इसलिए इस विशेष दिवस को दिन में सेलिब्रेट करना चाहिए। वैसे भी प्रकृति प्रेमी है आपकी बहू।” दीपिका टेबल पर रखे बैग को खोलती हुई कहती है। “आपके बेटे को ही उत्सुकता थी ये जानने की कि मेरी ननद रानी का जन्मदिन कब है। अच्छा आंटी जी क्यों ना आपके बेटे का नाम ही प्रकृति प्रेमी रख दिया जाए क्योंकि अब तो इन्हें प्यार श्यार हो ही गया है।” मनीष की ओर तिरछी निगाह से देखती हुई दीपिका कहती है।

दीपिका को आंटी जी की ने सुना और उसके चेहरे पर मुस्कान में चमक आ गई। “तुमलोग की जैसी इच्छा हो, बोलो, करो।” अंजना हॅंस कर कहती है।

“आंटी जी आप सो जाइए। आपकी बहू जग गई ना तो ऑंखें मसलती हुई यहां आ जाएगी। सरप्राइज़ खराब करने में उस्ताद हैं मेरी ननद रानी।” कुर्सी पर बैठी हुई अंजना को कंधे से पकड़ कर उठाती हुई दीपिका कहती है।

“तुम बच्चे तैयारी करो, किसी चीज की आवश्यकता हो तो बताना मुझे।” अंजना कहती है।

“आपको” अंजना के कमरे की ओर इशारा करती दीपिका ऑंखों को फैला कर कहती है।

“ठीक है बाबा, मनीष से कहना।” अंजना मुस्कुरा कर कहती है।

“मुझसे भी कह सकती हो।” फुसफुसाहट भरी आवाज सुनकर मुकुंद कमरे से बाहर आते हैं और दीपिका की बात सुनकर खुद को सबके साथ शामिल करते हुए अंजना की ओर देखते हुए कहते हैं।

“बिल्कुल अंकल जी, नेकी और पूछ पूछ।” दीपिका मुकुंद की ओर बढ़ती हुई कहती है।

रात की गहराईयों में दीपिका की मेहनत ने एक नई कहानी रची। उसने बैग से निकले रंग-बिरंगे तोरणों को खूबसूरती से बाँधकर खिड़कियों और द्वारों को सजाकर बैठक को एक जादुई बाग का रूप दे दिया। वहां फूलों की महक ने हर कोने को खूबसूरती से भर दिया था। वह फूलों के गुलदस्ते से लेकर छोटे-छोटे दीपों तक का आयोजन करने लगी, जिससे बगीचे को ऊर्जा और सुंदरता से भर सके।

दीपिका ने छोटे रंगीन दीपों से घर की रंगत बदलने का जतन करने लगी। रात को वहां की रौशनी ने हर दिल को बहुत सा आनंद दिया। उसने एक नया और खास माहौल परिवार को दिया, जिसने रात को विशेष बना दिया। इस सुंदर क्षण में दीपिका ने जीवन की सुंदरता को एक नए दृष्टिकोण से महसूस किया।

रात की ठंडक, रंगीन दीपों की रौशनी और घर की मिठास ने सभी को एक अद्वितीय माहौल में लिपटा दिया। परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ हंसी-मजाक में खोए हुए थें और रात की शांति में सभी ने अपने दिलों में बहुत सा सुकून महसूस किया। दीपिका ने नहीं सिर्फ अपने घर को सजाया, बल्कि एक खास और यादगार पल बनाया, जो सभी के दिलों में सदैव बना रहने वाला था। जब दीपिका और मनीष ने घर को नया रूप दे संवार रहे थे। तब संभव रसोई में उठा पटक करता हुआ कॉफी तैयार करने में जुट गया था।

“ये लो अब गर्म गर्म कॉफी पियो, भाई इतनी ठंडी है।” कॉफी मग टेबल पर रखता संभव एक मग उठाकर पकड़ता हुआ उसकी गर्मी को महसूस करता कहता है।

“ये तो बहुत अच्छा किया आपने”, दीपिका पति की प्रशंसा करती हुई कहती है।

“भाई प्रकृति प्रेमी आपका ये आइडिया तो लाजवाब था। घर का तो कायाकल्प ही हो गया। मेरी बहन की खुशी का ख़्याल रखने के लिए थैंक्यू आपको।” संभव का स्वर बहन के प्रति प्रेम से भरा हुआ था।

“इस खुशी के लिए मेरी ननद रानी को बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं मनीष जी।” दीपिका कॉफी को मग में गोल गोल घुमाती हुई मग को देखती हुई कहती है।

“दीपिका!” संभव उसकी बात पर उसका नाम लेकर उसे टोकता है।

“कहने के लिए तो बहुत कुछ है मनीष जी, जो दीदी आपसे कभी नहीं कहेंगी। लेकिन इतना तो वादा कीजिए, अब इस खुशी से आप उन्हें पूरी उम्र नवाजेंगे।” बैठक के एक एक कोने की ओर देखती हुई दीपिका कहती है।

“जी भाभी”, इस समय मनीष दीपिका से नजर मिलाने का साहस नहीं कर सका था। उसे अहसास था कि इस एक साल में उसने जो व्यवहार विनया के साथ किया, वो कदापि सही नहीं था। विनया के घर वालों के द्वारा सम्मान मिलने के बावजूद उसने शादी के कभी वहां जाने की जहमत नहीं उठाई और विनया को इस घर में स्थिर होने के लिए पहले इस घर को स्थिर करना पड़ा। मनीष संभव और दीपिका के सामने खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था।

“चलो अब काम संपन्न हुआ।” मनीष सीढ़ियों के सहारे बैठक की छत पर बिजली की छोटी छोटी लड़ी लगाकर उतरा , तब संभव उन लड़ियों को देख कहता है।

“आपकी बहन तो मुंह अंधेरे ही जागती हैं, उससे पहले हमें ये दीए में रौशनी करनी है और उनके बैठक में आते ही इन लड़ियों को ऑन करना है। अब ये काम आपका संभव, मेरा और मनीष जी का रंग रोगन करने के बाद कार्य समाप्त।” दीपिका उबासी लेती हुई कहती है।

“भाभी, आप और भैया निश्चिंत रहिए। मैं ये सब कर लूंगा। आप लोग आराम कीजिए।” अतिथि कक्ष की ओर इशारा करते हुए मनीष कहता है।

“अच्छा, तो सारा श्रेय आप लेना चाहते हैं।” दीपिका मसखरी करती हुई कहती है।

“श्रेय नहीं भाभी, बस उसके चेहरे पर आई खुशी देखना चाहता हूं।” ये कहते हुए मनीष का चेहरा आरक्त हो उठा।

“ओह हो, चेहरे का रंग तो देखिए।” दीपिका हॅंसती हुई कहती है।

दीपिका ने मनीष के चेहरे की खुशी को देखकर एक स्वीकृति भरी मुस्कान बिखेरते हुए कहा, “चेहरे की यह खुशी है जो सब कुछ कह जाती है, उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं है। यह हर ममेंट को खास बना देती है।” कहती हुई दीपिका कमरे की ओर बढ़ गई और मनीष वही सोफे पर पसर गया।

मनीष की मुस्कान में समाहित थी खुशी, जो उसके चेहरे को और भी प्यारा बना दे रही थी। मनीष भी खास पल की प्रतीक्षा में इसका आनंद ले रहा था, जिससे उसका चेहरा उत्साह और प्रसन्नता से भर गया था। 

सोफे सोफे पर मनीष उनींदा सा पल पल करवट बदलता हुआ मनीष बार बार अपने मोबाइल में समय देख रहा था।

मनीष घर देखता खुद से बातें करता उठा बैठा, “आज की रात कितनी लंबी हो गई है। अभी तो दो ही बजे हैं। अभी अगर सो गया तो विनया मुझसे पहले जाग जाएगी।” 

“चलो उसकी डायरी ही पढ़ता हूं। सोच कर मनीष अपने कमरे से डायरी ले आया। लेकिन बिना पूछे तुम्हें पढ़ना सही रहेगा क्या।” डायरी हाथ में लिए पृष्ठों को पलटने से पहले मनीष डायरी को संबोधित करता हुआ बोल रहा था।

“नहीं, बिना पूछे ठीक नहीं।” मनीष ने डायरी की ओर से प्रतियुत्त्तर दिया।

उधर अंजना ने भी ऑंखों ही ऑंखों में रात गुजारी थी। बच्चों की कभी धीमी, कभी ऊंची आवाज में उसे नींद नहीं आई। सवेरा होने की आहट से वो धीरे से सरक कर उठी और कमरे का दरवाजा खोल बैठक की ओर देखती है।

भोर के अंधकार में अंजना बाहर से आती स्ट्रीट लाइट की दूधिया प्रकाश में बैठक को देख हतप्रभ रह गई। उसे ऐसा लगा मानो वह किसी सुंदर बगीचे में खड़ी हो और चारों ओर गुलदस्ते पर बैठी तितलियां उसे देख मुस्कुरा रही हो। उसने गहरा विचार किया और महसूस किया कि जीवन के सबसे सुंदर पलों की ऐसी भी रंगत हो सकती है। 

वही सोफे पर सोए अपने बेटे को देख वो मुस्कुरा कर फिर से कमरे का दरवाजा बंद कर बिस्तर की ओर बढ़ गई। “ये पूरी साज सज्जा सबसे पहले विनया को ही देखना चाहिए। अपने जीवन के अनमोल पलों को तो इसने इस घर को दे दिया, अब इस घर की बारी है।” अंजना ममतामयी नजर से विनया की ओर देखती बिस्तर पर बैठ गई। उसके बैठते ही विनया कुनमुनाई और मोबाइल उठा कर समय देखती उठ बैठी, उसे जगते देख अंजना चुपचाप ऑंखें बंद लेट गई। 

विनया अंजना और संपदा को सोती देख धीरे से बिस्तर से उतर कर कमरे से बाहर निकलने के लिए अंगराई लेती कदम दर कदम बढ़ने लगी। अंजना को चिंता सता रही थी कि विनया कमरे से बाहर चली जाए और मनीष सोया ही रहे इसलिए अंजना संपदा का मोबाइल उठा कर जल्दी जल्दी मनीष के मोबाइल पर रिंग करने लगी। जिसे उसने इन बीमारी के दिनों में संपदा से सीखा था। 

मोबाइल की आवाज पर मनीष की लग गई ऑंख खुली, साथ ही कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज भी आई। मनीष शीघ्रता से सोफे से उठकर बल्बों की रौशनी से बैठक को जगमगा देता है। नीचे दीयों की रौशनी और बैठक की छत पर चमकते छोटे छोटे बल्ब ऐसे लग रहे थे जैसे रात के सितारे आकाश में खिले हुए थे और उनसे कनक की छाया नीचे दीयों पर गिर कर उन्हें प्रकाश प्रदान कर रही हो। विभिन्न रंगों के तोरण घर की दीवारों को सज रहे थे, जैसे सपनों की बातें कह रहे हों। यह सब एक साथ मिलकर एक संगीतमय वातावरण बना रहे थे और विनया स्तब्ध चारों ओर उस रौशनी में खड़ी जगमगा रही थी।

दीपों की रौशनी ने घर को ऐसे छुआ जैसे कि जादू की सीढ़ी आसमान तक लगी हो और वो ऊपर से अपने नेह की बारिश में पूरे घर को रौशन कर रहा हो। हर दीप एक कहानी कह रहा था, उसमें उनके आसपास के सारे सुंदर पलों को साकार करने की शक्ति थी। रंग-बिरंगे तोरण रंग बिरंगे बहार बिखेर रहे थे, जैसे कि समय ने उन्हें स्वर्गीय सुंदरता से आभूषित किया हो। घर की दीवारें प्रेम की कथाओं को बता रही थीं, हर तोरण पर लिखी गई कहानियां विनया को अचंभे में डाल रही थी।

संगीत की धीमी धीमी मेलोडी में मनीष और विनया एक दूसरे के सामने खड़े एक दूसरे से लिपटे महसूस कर रहे थे, जैसे कि यह वक्त राग और रंगों का संगम हो रहा हो। रात की ठंडक ने दोनों की सांस को अद्वितीय मिठास से भर दिया था और प्राकृतिक छाया ने दोनों को अपने आलिंगन में लपेट लिया था। हर पल एक गुनगुनाहट से भरा हुआ था, जैसे कि साक्षात प्राकृतिक संगीत घर का हिस्सा बना हुआ हो।

विनया मुंह पर हाथ रखे चमकती ऑंखों से यह पूरा दृश्य आत्मसात कर रही थी। 

“हैप्पी बर्थडे मेरी जान।” मनीष एक गुलदस्ता बढ़ाता विनया से कहता है।

यह वह पल था जब विनया सच में मनीष के आलिंगन में समा गई थी, जिसमें सिर्फ और सिर्फ खुशी और प्यार का स्पर्श था। उन दोनों के बीच यह मिठास भरे समय का प्रारंभ था। जब सभी तारे भी उनके प्यार के गीत गा रहे थे। यह मिठास ने उन्हें एक-दूसरे के क़रीब ले आया, और वे दोनों एक-दूसरे की आँखों में खो गए। यह वह पल था जब विनया ने महसूस किया कि उसका सच्चा घर मनीष के साथ है और मनीष ने लौटाई थी उसकी वो खोई हुई मुस्कान, जिसे उसने इन जिम्मेदारियों के बीच कहीं गिरा आई थी, मनीष लौटा रहा था उसकी चंचलता, जिसे छोड़ वह इस डगर पर चल पड़ी थी। मनीष लौटाना चाह रहा था उसका पति जिसके साथ विनया ने अरमानों भरे फेरे लिए थे और उस समय मनीष की नजर में उन फेरों का कोई महत्व नहीं था। लेकिन अभी विनया को आगोश में लिए मनीष के सामने हर फेरा था और हर फेरा के साथ वो विनया का हर कदम पर साथ देने का संकल्प ले रहा था।

चमकते हुए तारों ने भोर की चिड़िया को चहचहाने का मंत्र दे दिया था, जैसे कि प्यार की आत्मा उन दोनों के बीच बसी थी। मनीष के आलिंगन से विनया के चेहरे पर प्यार का अबीर कई रंगों के साथ बिखर गया था। उसकी लजीली मुस्कान जो चेहरे पर खिली थी, वह सुंदरता का गीत गा रही थी, जिसमें हर बीतते पल की मिठास और खुशी छुपी हुई थी। यह वह सुंदर लम्हा था  उनके प्यार की कहानी उनके साथ गूँथी जा रही थी और विनया बस यूं ही निःशब्द मनीष के आलिंगन में समय गुजर देना चाहती थी। लेकिन चारों तरफ के शोर ने उसे मनीष के आलिंगन से निकलने के लिए मजबूर कर दिया।

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4 thoughts on “अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 43) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत प्यारी रचना !
    किंतु सौरभ का नाम कहीं – कहीं भूलवश संभव लिख दिया है आपने। इसे ठीक करने की जरूरत है।

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    • इसमें सौरभ विनय का भाई होता है कहानी बीच से मत पड़ा, Karo

      पूरी पड़कर hi samajh aati hai

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  2. Hello
    कहानी बहुत सुंदर है।परंतु जरूरत से ज्यादा अभिव्यक्ति कहानी को बोझिल बना रही है ।अगर आप कम शब्दों में अधिक कहने का भाव रखेंगी तो कहानी का मर्म अच्छे से व्यक्त कर पाएंगी। हर भाग एम मात्र 10 से 15 लाइन ही कहानी की पकड़ लायक लगी बाकी तो जबरदस्ती की हिंदी को घुसाना लगा ।इससे असल कहानी का रस जाता रहा ।

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    • सत्य वचन.मात्र क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग आपकी रचना को सराहनीय नही बनाता. न ही बार विभिन्न प्रकार से एक ही भाव को दोहराना.कम शब्दों मे अधिक भाव अभिव्यक्त करते हुए कहानी की गति बनाए रखना आवश्यक है.

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