अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 25) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“हाहाहा भाभी, बुआ को इस तरह हड़बड़ाते देख एक कहावत याद आ रही है।” विनया के दोनों कंधे को पकड़ झूलती हुई संपदा हॅंसी से दुहरी हुई जा रही थी।

“ननद रानी कौन सी कहावत है वो, जो हमारी प्रिय बुआ जी के लिए आप सोच रही हैं।” विनया परांठे सेंकती हुई कहती है।

“भागते भूत की लंगोटी भली, भैया को देखते ही बुआ भी आपकी हाॅं में हाॅं मिला गईं भाभी। अब दिल्ली दूर नहीं है भाभी।” विनया के साथ हाई फाई करती संपदा कह रही थी।

“आज नाश्ता हो जाएगा संपदा, तुम अपने साथ साथ इसे बिगाड़ने पर लगी हो। ससुराल जाकर यही सब करोगी क्या तुम। आजकल तुम्हारे पैर जमीन टिक नहीं रहे हैं संपदा, दूसरों के घरों की तरह कुसंस्कारी मत बनो।” मनीष रसोई से आती हॅंसी की आवाज सुनकर और बुआ के उकसाते में आकर विनया पर कटाक्ष करता हुआ और साथ ही संपदा की ओर रूष्ट नजरों से देखता हुआ कहता है।

“हाॅं, हाॅं बस सिंक गए परांठे, ये लीजिए , ले चलिए। मैं कॉफ़ी लेकर आती हूॅं।” अपने घर वालों के लिए मनीष द्वारा कुसंस्कारी शब्द के प्रयोग से आहत विनया नेत्र सजल हो जाने पर भी स्वयं को संभालती साधिकार मनीष को परांठे का प्लेट पकड़ाती हुई कहती है और विनया द्वारा इस तरह संबोधन सुनकर मनीष भी अकचका कर प्लेट थाम लेता है।

“भाभी सॉरी, मेरे कारण भैया ने”… 

“नहीं दीदी, आपके कारण नहीं, अपनी अज्ञानता के कारण वो खुद नहीं जानते की वो क्या बोलते हैं और किस तरह का व्यवहार करते हैं। आप उदास न हो।” कहती हुई विनया ट्रे में कॉफी का मग सजाए डाइनिंग टेबल की ओर भागी।

“परांठे तो बहुत स्वाद के बने हैं। आज मामी को तुमलोगों ने छुट्टी दे दी है क्या।” संभव विनया की ओर देख कर कहता है।

“परांठे के सारे मसाले उन्हीं के तैयार किए हुए हैं भैया। मैंने तो बस सेंका है”….

विनया को देख बड़ी बुआ के तन मन में आग लग गई थी। उन्हें अपने स्वभाव के खिलाफ जाकर आज उसकी बात में हाॅं करनी पड़ी थी, सो वो तुरंत बोल पड़ी, “घर तोड़ने से फुर्सत मिले तब ना किसी और काम में ध्यान लगे।” 

“शादी का साल लगने वाला है, लेकिन अभी भी घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमलोग को ही हाड़ तोड़ मेहनत करनी पड़ती है।” मंझली बुआ बड़ी बहन की के विचार को आगे बढ़ाती हुई कहती हैं।

“हमलोग को नहीं मौसी जी, मामी जी को। आपलोग तो यहाॅं आकर थकान ही उतारा करती हैं। मामी जी तो पता नहीं कब से अपने मायके भी नहीं गई होंगी।” दोनों बहन को झूठ का खदान खोदते देख कोयल से नहीं रहा गया तो वो बोल पड़ी।

“भाभी बड़ों से इस तरह बोलना शोभा देता है क्या।” बड़ी बुआ का अपमान महसूस कर मनीष कोयल से कहता है।

“मनीष भैया ऑंखों पर पट्टी बांध लेने से सब कुछ विलीन नहीं हो जाता है। गांधारी बनने से अच्छा है कि बिन पट्टी के सच्चाई का सामना करें।” कोयल चिढ़ गई थी।

“अरे अरे आपलोग ये सब क्या बातें लेकर बैठ गए। नाश्ता कीजिए, फिर माॅं के हाथ के बने गर्मा गर्म गाजर के हलवे को खाकर खुद को शुद्ध कीजिए।” विनया तर्क वितर्क बढ़ते देख भाप उठता हलवा प्लेट में लिए हाजिर हो गई थी।

“दीदी, अब अपने प्लान पर काम किया जाए क्या?” लंच के बाद जब सभी अपने अपने कमरे में लिहाफ के अंदर दोपहर की नींद से गुफ्तगू कर रहे थे, उस समय विनया संपदा के कमरे में बैठी विचार विमर्श कर रही थी। इस वक्त दोनों की आँखों में गहरी सोचों का समुंदर हिलोरें मार रहा था, जैसे कि एक अचानक बढ़ते हुए तूफान ने समुद्र को उत्तेजित कर दिया हो। दोनों के चेहरे पर आंधी से हिलते हुए पेड़ों की तरह गिर जाने के भय से एक अजीब सी उदासी बसी हुई थी जैसे कि किसी प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहे हों। यह चुपचाप सा क्षण उनके चेहरे पर एक चित्र की तरह सजीव था, जो उनकी तनावपूर्ण दिनचर्या को दर्शा रहा था।

“पर भाभी, मम्मी मानेगी क्या”… संपदा तनावपूर्ण स्थिति में ही विनया से पूछती है।

“मायके कौन सी स्त्री नहीं जाना चाहेगी दीदी। सुलोचना बुआ कह रही थी कि जब से बड़ी और मंझली बुआ अपने मायके की चौखट पकड़ कर बैठ गईं हैं, तब से माॅं का मायका भी छूट गया है और यहाॅं सभी को उनकी ऐसी आदत हो गई है कि उनकी उपस्थिति ही महत्वहीन हो गई। तो उन्हें कुछ दिन के लिए यहाॅं से रवाना होना ही होगा और ये अभी ही करना है क्योंकि अभी वो सब तथाकथित इस जगह उपस्थित हैं, जिनसे यह घर चल रहा है।” विनया संपदा के हाथ पर अपना हाथ रखती हुई कहती है।

संपदा ने अपनी आंखों में समझदारी और समर्थन की चमक लिए हुए कहा, “भाभी, यह समस्या सिर्फ आपकी नहीं है, बल्कि हम सभी की है। हम मिलकर एक अच्छे समाधान की दिशा में काम करेंगे, ताकि घर की स्थिति में सुधार हो सके और सभी को अच्छा लगे।

“क्या बात है ननद भाभी सिर से सिर जोड़े किस समस्या की चर्चा कर रही हैं।” कोयल गोलू को गोद में लिए संपदा के कमरे में प्रवेश करती हुई कहती है।

“क्या कहें कोयल भाभी, हमारी दीदी ने जब से शकुंतला का रूप धारण किया है, एक समस्या के साथ दूसरी समस्या फ्री, फ्री, फ्री लाती हैं।” विनया हवा में दोनों हाथों की उंगलियों को घुमाती हुई कहती है।

“इनकी फ्री वाली समस्या के लिए कोई दुष्यंत खोजा जाए, क्यों संपदा जी।” कोयल भाभी गोलू को लिए हुए बिस्तर पर आलथी पालथी कर बैठते हुए मजाक करती हुई कहती हैं।

विनया कोयल की बात संपदा को लजाती देख मधुर मुस्कान के साथ कहती है, “अभी इन्हें दुष्यंत की नहीं, डायलॉग्स याद करवाने वाले गुरु की आश्यकता है भाभी और दुष्यंत तो डायलॉग्स के बदले दिल को छूने वाली जीवन की कहानी को जीवंतता से याद करा देगा।”

“और हमें फ्री फंड में एक रोमांटिक मूवी देखने मिलेगी।” कोयल संपदा को छेड़ती चुटकी लेती हुई कहती है।

“ओह हो, ये भी ना, एक मिनट आराम से कहीं बैठने नहीं देता।” गोलू कोयल की गोद में सो कर जग चुका था और अब कुनमुनाते हुए रोने लगा था।

कोयल गोलू के रोने पर बिस्तर छोड़ कर खड़ी हो गई और कमरे से बाहर जाने लगी, “आप दोनों डायलॉग्स याद कीजिए, मैं तो जीवन याद करूं।”

“बच गए दीदी, मुझे तो लगा था भाभी ने सुन लिया है।” कोयल के जाने के कुछ देर तक चुप रहने के बाद विनया कहती है।

“कोयल भाभी जान भी लेंगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी। वो तो ऐसे भी अपनी सास से खार खाए बैठी हैं।” संपदा कहती है।

“यही तो दीदी, बहुत सोच समझ कर कुछ भी करना होगा क्योंकि कल को उन दोनों सास बहू में दिक्कत बढ़ी और कोयल भाभी उलाहना देने के अंदाज में सब कुछ उगल दी तो और हम दोनों में कोई दिक्कत हुई तो दोनों ही इसमें शामिल हैं तो न आप मुझे उलाहना दे सकती हैं और ना ही मैं। बताइए है ना पते की बात।” विनया दोनों भौंह नचाती हुई कहती है।

“इतनी दूर की तो मैं सोच ही नहीं सकी भाभी। अपना थोड़ा सा दिमाग इस मंदबुद्धि कोने में भी डाल दीजिए।” संपदा अपने सिर पर चपत लगाती हुई कहती है।

“भाभी, जिस दिन मैं आपको उलाहना दूं, वो मेरे जीवन का आखिरी दिन ही होगा। आप तो इस घर का कोई पुण्य हैं, जो इस घर को फिर से जीवित करने आईं हैं। आप ही हैं जो इस घर को एक नए आरंभ की दिशा में ले जा रही हैं। आपकी जगह यदि मैं होती तो या तो नियति को स्वीकार कर लेती या केवल अपना वर्चस्व स्थापित करने का सोचती, शायद स्वयं के अलावा कुछ भी नहीं सोच सकती। भाभी, आप मेरे लिए प्रेरणा का कारण बनी हैं। आपकी मेहनत और समर्पण ने इस घर को नई जीवनी शक्ति दी है। इस घर की दीवारें भी अब मुस्कुराती सी प्रतीत होती हैं भाभी नहीं तो घर में घुसते ही भाग जाने की इच्छा होती थी।” संपदा भावातिरेक में विनया के दोनों हथेली को अपनी दोनों हथेली में कसती हुई कहती है।

विनया भी अपनी हथेली से संपदा की हथेली कसती हुई भर्राई आवाज में कहती है, “दीदी, हम सभी मिलकर इस परिवार को एक नए रूप में समृद्धि और खुशियों से भरने का संकल्प करते हैं। हम एक-दूसरे के साथ मिलकर इस मुश्किल समय को पार करेंगे।”

“आपने तो रुला ही दिया है दीदी, चलिए अच्छा ही है इसी बहाने ऑंखों की सफाई भी हो गई।” विनया ऑंखों को अपनी बाॅंह से पोछती हुई कहती है।

“भाभी , मम्मी को मायके भेजने के लिए पापा को भी तो मनाना होगा ना।” संपदा बिस्तर पर बैठ लिहाफ में घुसती हुई कहती है।

“हूं, एक बात बताइए दीदी, पापा क्या हमेशा से ऐसे हैं, चुप चुप से। डाइनिंग टेबल पर भी देखिए चुपचाप खाना खा कर उठ जाना। क्या बात हो रही है, इन सब से कोई लेना देना नहीं, संन्यासी के समान समभाव क्या पापा का हमेशा का स्वभाव है दीदी।” विनया आज अपने ससुर के बारे में विस्तार से जानने की इच्छुक थी।

“नहीं भाभी, पहले तो ऐसा नहीं था। याद है मुझे एक बार मैं और भैया मम्मी के बिना ननिहाल गए थे। वहाॅं से आने के बाद देखा तो पापा चुप से हो गए। जितनी आवश्यकता हो उतनी ही बोलना, बोलना की जरूरत ना हो तो हां, हूं ही काफी होने लगा। ये हाल हो गया था कि किस के जीवन में क्या घट रहा है, उन्हें इसकी भी खोज खबर नहीं होती थी। उनका कहना होने लगा दूसरों के फटे में पैर डालने से खुद के गिरने का डर रहता है। हम भाई बहन बुआ के करीब आते चले गए। बुआ की जैसी इच्छा होती थी हमें डुगडुगी पर नचाती थी। करती मम्मी थी और हमें उन्होंने ऐसा चश्मा लगा दिया था कि हम उन सभी कार्यों की तारीफ में बुआ का नाम लेते थे। हम तीनों को गलत चश्मे की आदत हो गई थी भाभी। वो तो आप मजबूत इच्छा शक्ति की हैं भाभी, जो इस चश्मे के चढ़ने से पहले ही उचित अनुचित समझ गईं। हम तो मम्मी के पेट जाये होकर भी उनके मनोभाव को समझ नहीं सके।” संपदा बोलती हुई सुबकने लगी थी।

लेकिन ऐसी क्या बात हो गई , जो बुआ इस घर पर हावी होती चली गईं। विनया संपदा को गले से लगाए सोच रही थी और पूछना भी चाह रही थी। लेकिन संपदा की पश्चाताप वाली हालत को और अधीर गंभीर रूप नहीं देने की चाह से उसने कुछ और पूछने से खुद को रोका और बिना कुछ बोले संपदा की पीठ पर थपकियाॅं देती सांत्वना महसूस कराती अंजना से किस तरीके से बात की जाए, इस पर भी गौर करने लगी।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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