अंतर्मन की लक्ष्मी ( भाग – 11) – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

“हूं तो अब बताइए ऐसे ही घर पर भी आप दोनों गुटर गूं करती रहती हैं क्या?” दीपिका कॉफी के सिप के साथ पूछती है।

“क्यों जलन हो रही है क्या भाभी।” विनया चुटकी लेती हुई दीपिका से कहती है।

“जलन क्यों होगी भला, कभी हम ननद–भाभी भी इसी तरह गुटर गूं करती थीं, फिर ननद उड़ गईं और अब वो अपनी ननद के साथ गुटर गूं करती हैं। हाय, क्या दिन थे वो भी।” माथे पर फिल्मी अंदाज में हाथ रखती हुई दीपिका कहती है।

“हहाहा भाभी पर भैया का असर हो गया है।” दीपिका के अंदाज पर तीनों ही जोर से हॅंसने लगी और उसी बीच में विनया कहती है।

“प्यार का हुआ है ऐसा असर, हर पल ढाता है वो कहर।” दीपिका शायराना होती हुई कहती है।

क्या हैं ये लोग। सच में ये लोग ऐसे ही रहती हैं। सास के साथ, ननद के साथ इस तरह कौन बोलता है। बुआ तो कच्चा चबा जाएंगी इन लोगों को ऐसे देखकर। एक ही फ्रेम में सास, बहू और बेटी, वो भी खुशी खुशी, कहाॅं होता है ऐसा। जरूर मैं कोई सपना देख रही हूॅं। 

“आ”…सोचती हुई संपदा खुद को चिकोटी काटती चीख पड़ी।

“क्या हुआ” संपदा के अचानक चीखने पर तीनों एक साथ पूछती हैं।

“कुछ नहीं, कुछ नहीं।” संपदा झेंपती हुई कहती है।

“दिन में सपने देख रहा है कोई।” दीपिका हॅंस कर कहती है।

“कोई बात नहीं संपदा जी, होता है, होता है।” दीपिका उसे छेड़ती हुई कहती है।

“टाइम आउट टाइम आउट, भाभी कुछ लंच वंच भी होगा या बस पास्ता कॉफी से ही विदा करने के मूड में हैं।” विनया विषय बदलते हुए दीपिका से कहती है।

“सब कुछ होगा, सब कुछ होगा। टेंशन नहीं लेने का। उससे पहले एक गेम।” दीपिका अपने दोनों हाथों को रगड़ती हुई कहती है।

“नहीं भाभी, नहीं। ये पंजा–वंजा लड़ाना मुझसे नहीं होगा।” विनया अपने दोनों हाथ पीछे करती हुई कहती है।

“पंजा लड़ाने कौन कह रहा है, ये गेम तो अब मम्मी के हवाले है।” दीपिका लाड़ से संध्या की ओर देखती हुई कहती है।

 

“गेम ये है कि मेरे साथ किचन में आइए और अपनी ननद रानी की पसंद बताइए और फिर आपकी ननद रानी अपनी भाभी की पसंद बताएंगी। वो सारी डिशेज मैं बनाऊंगी और अगर आप दोनों नहीं बता सकी तो हमारी पसंद का खाना बनेगा जहांपनाह।” दीपिका खड़ी होकर पेट पर हाथ रख आधी झुकती हुई कहती है।

“दुनिया में ऐसा परिवार होता भी है क्या या सिर्फ मेरे सामने दिखावा किया जा रहा है। ये घर विनया भाभी का कम और दीपिका भाभी का ज्यादा लग रहा है और संध्या आंटी तो सास की तरह व्यवहार कर ही नहीं रही हैं। दीपिका भाभी की सहेली लग रही है। उनकी हर बात पर कैसे हॅंसे जा रही हैं। ऐसे तो कोई बेटी को भी बर्दाश्त ना करे, जैसे ये बहू को”….विनया संपदा को तीनों का एक दूसरे के साथ खुला व्यवहार उहापोह में डाल रहा था। जैसे ही दीपिका और विनया अंदर गई, संपदा के चारों ओर फिर से सोच का अजगर फन फैला कर बैठ गया। 

“संपदा बेटा, कहाॅं खो गई। बेटा बहू को अपना बनाने के लिए उसे समय देना होता है। हर कोई अलग–अलग परिवेश से आते हैं। माॅं की जगह तो कोई भी नहीं ले सकता है। लेकिन जब हम नब्बे में दस मिला देते हैं तो वो सौ हो जाता है, वैसे ही बाहर से आए इस एक सदस्य को खुद में मिला देने से परिवार की एकता बढ़ जाती है, खुशियाॅं बढ़ जाती है। गम आते–जाते रहते हैं लेकिन तोड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पाते हैं।” संध्या संपदा के दिमाग में जमी काई को अपनी वाणी से धोने की चेष्टा कर रही थी।

एक मिनट बेटा, अभी आई, ये दोनों फिर बातों में लग गई होंगी। एक अवसर नहीं छोड़ती हैं।” संपदा को कहती हुई संध्या रसोई की ओर बढ़ गई।

“अगर मुझसे सच में इन्होंने पूछ लिया भाभी की पसंद क्या है तो क्या उत्तर दूंगी। मुझे तो कुछ भी पता नहीं, इतने दिनों में तो आज पहली बार मैं भाभी से बात कर रही हूं। इतनी भी बुरी नहीं हैं भाभी, जितनी बुआ ने बताया था और ना ही इनके घर वालों में कोई खराबी नजर आ रही है।” संपदा संध्या के अंदर जाते ही टेबल के नीचे से एक मैगजीन उठाकर पलटती हुई अपने अस्त व्यस्त विचारों को समेटने की कोशिश कर रही थी।

“दीदी लंच के लिए बाहर ही चलें क्या।” संध्या जब रसोई के दरवाजे पर पहुॅंची तब दीपिका विनया से आगे के कार्यक्रम पर विचार कर रही थी।

“ओह तुमदोनों भी ना। पहले उस बच्ची को घर के मायने तो बता लो। पहले ये तो बताओ कि घर के सभी सदस्यों का साथ होना, एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े रहना कितना आवश्यक है। फिर पिकनिक के लिए भी चल लेंगे। इसलिए लंच की तैयारी करो और विनया संपदा को भी किचन में बुला लो, उसे भी शामिल करो हर कार्य में। अब आगे की कार्यवाही तुम दोनों के बलिष्ठ कंधों पर डालकर मैं जा रही हूॅं अपने कमरे में।” संध्या दोनों को बाय बाय का इशारा करती हुई कहती है।

“पर मम्मी, हम अकेली जान, उसे कैसे।” दीपिका संध्या को रोकती उसके आगे खड़ी होकर कहती है।

“आज मेरे शागिर्दों की अग्निपरीक्षा है, देखते हैं तुम दोनों संपदा के अंदर परिवार के सदस्यों का प्रेम दर्शा पाती हो की नहीं। उसके प्रेम चक्षु को खोल पाती ही की नहीं।” दीपिका के गाल थपथपाती हुई विनया की ओर मुस्कुरा कर देखती हुई संध्या कहती है।

“स्माइल”…दीपिका अचानक से मैगजीन में खोई संपदा के पास जाकर मोबाइल सेल्फी मोड में लिए कहती है।

संपदा दीपिका की आवाज पर ज्योंहि सिर उठाती है क्लिक की आवाज के साथ दीपिका और संपदा की तस्वीर दीपिका के फोन कैद हो गई। “ये होती है स्वीट एंड सुंदर फोटो।” फोटो देखती संपदा के बगल में बैठती हुई दीपिका कहती है।

“तो संपदा जी अब आप बताएं, आपकी पसंदीदा डिश क्या है। देखें आपकी भाभी ने जो बताया है, उससे मैच करती है कि नहीं।” मैगजीन संपदा के हाथ से लेकर टेबल पर रखती हुई दीपिका कहती है।

“भाभी ने क्या बताया।” संपदा दीपिका के सवाल पर असहज होकर पूछती है।

“आपकी भाभी साहिबा ने बताया कि आप आलू के परांठे और टमाटर की मीठी चटनी चटखारे लेकर खाती हैं और जब तक स्कूल गमन होता रहा, तब तक आपके लंच बॉक्स में इसकी उपस्थिति बनी रही।” दीपिका संपदा के ऑंखों में देखती हुई कहती है।

ये सुनने के बाद संपदा की ऑंखों की पुतलियाॅं आश्चर्य से फैल गई। उसे कुछ कहते नहीं बन रहा था क्योंकि उसे खुद समझ नहीं आया कि विनया को आखिर इतनी बातें कैसे पता चली जबकि वो तो कभी सीधे मुॅंह बात करना भी पसंद नहीं करती रही है। आज जाने किस बहाव में बह कर वो विनया के साथ यहाॅं आ गई। जबकि बुआ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि विनया को भी ज्यादा इज्जत दी जाएगी तो ये भी संपदा की माॅं की तरह ही किसी को उचित इज्जत नहीं देगी। लेकिन दीपिका भाभी को देखकर ऐसा तो नहीं लग रहा है कि वो किसी को मान नहीं देती होंगी। कितना प्यारा, खुला–खुला सा लग रहा है यहाॅं सब कुछ। कभी माॅं भी तो ऐसे ही खुल कर हॅंसती थी, लेकिन फिर….सोचती हुई संपदा के माथे पर बल पड़ गए थे।

“ओके, ओके अगर आपकी पसंद आलू परांठे नहीं है तो, ये कैंसल।” संपदा के माथे पर आ गई तनाव की रेखाओं को देखकर दीपिका कहती है।

“नहीं नहीं भाभी, मैं तो ये सोच कर आश्चर्य में हूॅं कि भाभी ने मेरी पसंद कैसे जान लिया।” संपदा खुद को ढीला छोड़ती हुई दीपिका से कहती है।

“जादू की छड़ी हैं आपकी भाभी, विनया द जादू की छड़ी।” दीपिका जोर से हॅंसती हुई कहती है।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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