अनजाने में बना अनोखा परिवार

हर किसी के जीवन में ” परिवार ” बहुत महत्व रखता है, परिवार ही हमें हमारी पहचान देता है, हमें जोड़े रखता है!! परिवार का अर्थ ही ” एक दूसरे को जोड़े रखना ” है, परिवार के बिना हर कोई अकेला है !!

   परिवार सामूहिक होते हैं या एकल, पर आज मैं ऐसे अजीबोगरीब तरीके से बने ” परिवार के बारे में बताऊंगी!! जो आपको भी आश्चर्य चकित कर देगा!!

      मैं करीब १० वर्ष की थी, एक दोपहर, स्कूल से आने के बाद मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ खेल रही थी, गंगा इमली का बहुत बड़ा सा वृक्ष था, जिसे पत्थर मारकर तोड़ा करते थे, नीचे गिरने पर जश्न सा मनाते थे, खाकर दोबारा प्रयासों में जुट जाया करते थे!!

      ऐसी ही एक दोपहर हमने देखा, एक अच्छी शक्ल सूरत की, भले घर की लड़की, हमारे ” गंगा इमली ” के पेड़ के नीचे पैरों में सिर दिए बैठी है, उनके बैठने के कारण हम इमली तोड़ नहीं पा रहे थे, वो लड़की,हम बच्चों के लिए कौतूहल   का विषय बन गईं , हमने उन्हीं के इर्द गिर्द अपना डेरा जमा लिया, और प्रश्नों की बौछार सी कर दी, सबसे पहला प्रश्न था आपने “ब्रेकफास्ट ”  किया? वो रोती रही कुछ बोलें ही नहीं, हम सब परेशान करें तो करें क्या? सब एक एक करके अपने अपने घर गए और जो भी खाने को ला सकता था, दीदी के लिए ले आये!!

 बहुत मुश्किल से उन्होंने खाया , उन्हें खाता देख यूं लगा, जैसे हमने किला फतह कर लिया हो!! खाने का समय हो गया, सब अपने घर जाने लगे, दीदी से लगाव हो गया, मेरा मन ही न हो घर जाने का, मम्मी ने गेट पर आकर आवाज़ दी, मैंने उन्हें दीदी से मिलवाया, मम्मी उन्हें घर लाई, बरामदे में बैठाया और खाना खिलाया!! शाम को पापा के कोर्ट से आने के बाद, दीदी से पूछताछ की गई, पता चला दूर के रिश्तेदार के यहां रहती थीं, अपना कोई नहीं हैं, बहुत जुल्म किया जाता था, इसलिए भागकर यहां आ गईं, अब वहां जाना नहीं चाहती! पुलिस के भी बयान करवा लिए गए। अब प्रश्न था उन्हें रखा कहां जाय, हम बच्चे उनसे इतनी गहराई से जुड़ गए की पढ़ाई में मन कम, बस दीदी में ही रम गया था!!



     अब “दीदी ” सिर्फ हम लोगों की ही नहीं, मम्मी और आंटियों की भी ” दुलारी ” बन चुकी थी, मम्मी, आंटी सबने, उन्हें कपडे गिफ्ट किए, ढेर लग गया कपड़ों का, दीदी अब खुश रहने लगी थी और उन्हें खुश देखकर हम बच्चे जरूरत से ज्यादा खुश!!

      दीदी सभी की घरेलू काम में मदद करने लगीं थीं, वो इतनी अच्छी थीं कि मम्मी, बेटी की तरह उन्हें मानने लगीं थीं!!

   एक दिन मम्मी ने अपने ” महिला मंडल ” में एक प्रस्ताव रखा, ” ममता ” इतनी प्यारी लड़की है, हमें इसका घर बसाने की सोचना चाहिए, महिलाओं से ये मामला,पापा और अंकल वाले ग्रुप में पहुंचा, पापा ने दीदी के बताए पते पर पुलिस जांच करवाई, जिसमें पता चला, दीदी ने जो भी बताया वो पूर्णतः सत्य था, वो रिश्तेदार दीदी की सूरत भी देखने को तैयार नहीं थे !!

    मम्मी ग्रुप को दीदी के रिश्ते के लिए ” हरी झंडी” मिल गई, अब उनका ग्रुप दुगुने जोश के साथ दीदी के लिए  ” दूल्हा ” ढूंढो अभियान में जुट गए, मम्मी उन्हें अपने से ज्यादा दूर नहीं भेजना चाहती थीं इसलिए आसपास ही , ढूंढाई शुरु की गई, आखिकार ” खोज ” खत्म हुई, पापा की कोर्ट में एक बाबू थे जिनकी पत्नी, पुत्र को जन्म देते समय बच नहीं पाईं, उनकी बीमार मां ही बच्चे का पालन और घर की देखरेख करती थीं, मम्मी पापा अपने पूरे दल के साथ ” दीदी ” का रिश्ता लेकर गए, तुरंत रिश्ता स्वीकार कर लिया गया!!



  अब शुरु हुईं ” शुभ विवाह ” की तैयारी, सभी इतने उत्साह में थे जैसे खुद की बेटी का ब्याह हो, पूरा दहेज तैयार , छोटी से छोटी चीज़ भी दीदी के लिए खरीदी गई, ” कन्यादान ” एक नायब तहसीलदार अंकल, जो निसंतान थे, उन्होंने किया, दीदी को सबने अश्रुपूरित पर खुशी के साथ विदा किया, उन्होंने बिन मां के बच्चे को और बिखरी हुई गृहस्थी के साथ “परिवार “को अपनाया !!

 

     ” परिवार ” तो सबका होता है, पर ऐसा अनोखे ढंग से बना परिवार देखना क़िस्मत से मिलता है, आज बरसों बाद सोचने पर यही लगता है ” ईश्वर ” ने ही हम बच्चों के द्वारा, मम्मी और उसके बाद पापा और पूरी कॉलोनी के सहयोग से दीदी का साथ दिया  !! और उन्हें

सौभाग्य के साथ

 

   प्यारा सा ” परिवार ” दिया !!

 

#परिवार

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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