अंगूठी   –  गीता वाधवानी

एक दिन सुबह सुबह अचानक मन हुआ कि चलो आज बाग में सैर कर ली जाए और मैं सुबह 6:00 बजे पहुंच गई बाग में। आधे घंटे की सैर करने के बाद मैं थककर एक बैंच पर बैठ गई। तभी अचानक मैंने देखा की बगिया की हरी हरी घास में कुछ चमक रहा है। पहले मैंने इधर उधर देखा कि कोई मुझे देख तो नहीं रहा। फिर आश्वस्त होने के बाद मैं उस चमकीली चीज को देखने के लिए नीचे झुकी। मैंने उसे हाथ में उठाया, वह एक सुंदर सी सुनहरी अंगूठी थी। 

मैंने उसे साफ करके पहन लिया और घर जाने के लिए उठी। अभी चार कदम ही आगे बढ़ी थी कि सामने से पड़ोसन आती हुई दिखी और बोली-“अरे भाभी जी, आज आप भी सैर करने आई हैं, चलो अच्छा है।”(फिर कहीं से आवाज आई, मोटी एक दिन सैर करने से क्या होगा) 

मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया कि यह आवाज कहां से आई थी। फिर सोचा अरे छोड़ो और पड़ोसन को जवाब दिया-“हां जी आज ताजी हवा लेने का मन हो रहा था, सो चली आई।” 

घर पहुंची तो देखा, सासु मां चाय के इंतजार में व्याकुल हो रही थी। मैंने कहा-“मां जी, आने में थोड़ी देर हो गई, अभी चाय बनाती हूं।” 

सासु मां-“कोई बात नहीं, वैसे भी तुम कौन सा रोज ही पार्क में जाती हो।”(फिर कहीं से आवाज आई, आज भी गई क्यों थी?”) 

थोड़ी देर बाद सब नाश्ता खाने बैठे तो पतिदेव बोले-“अरे वाह, नाश्ते में आलू की सब्जी और पूरी बनी है, मजा आ गया।”(फिर एक आवाज आई, छोले होते तो और अच्छा होता) 

तभी मैंने कहा-“छोले किसी और दिन बना दूंगी।” 




पतिदेव हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे। 

तब मुझे लगा कि ऐसा तो नहीं कि यह सब अंगूठी के कारण हो रहा है। मैंने सोचा क्यों ना अंगूठी की परीक्षा ली जाए। 

मैंने थोड़ी देर में अंगूठी उतार कर रख दी और पतिदेव से कहा-“रविवार को फिल्म देखने चलें?” 

पतिदेव-“हां, हां क्यों नहीं।” 

जब वे कार्यालय जाने के लिए निकलने लगे (तब मैंने अंगूठी फिर से पहन ली थी) मैंने जानबूझकर कहा-“रविवार की फिल्म की टिकट बुक करवा देना।” 

पतिदेव-“ठीक है।” 

और फिर आवाज आई, रविवार को भी चैन नहीं है। एक दिन तो मिलता है आराम करने का उसमें भी मैडम को मूवी देखने जाना है। 

यह आवाज आते ही मैंने पतिदेव से कहा-“अच्छा ऐसा करो रहने दो, रविवार को आराम कर लेना। एक ही दिन तो मिलता है आराम करने का। 

अब तो पतिदेव का मुंह हैरानी से खुला का खुला रह गया और चुपचाप चले गए। मुझे तो बहुत मजा आ रहा था। मुझे समझ में आ गया था कि जो मुझसे बात कर रहा होता है उसके दिल की असली आवाज मुझे इस अंगूठी के कारण सुनाई दे रही है। 




अगले दिन मेरे पति के मित्र के बेटे की शादी में हमें जाना था। अब ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं अंगूठी पहनने का इतना सुनहरा अवसर हाथ से गवा दूं। 

हम दोनों विवाह समारोह में पहुंचे। सामने से इनके मित्र आते दिखे और पास आकर हमारा स्वागत किया और बोले-“नमस्कार भाभी जी, आज तो आप को बच्चों को भी साथ लाना था। वैसे आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं।” 

(आवाज आई, फुलझड़ी लग रही है। )

उनके मन की आवाज सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आया ।मैं कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उनकी पत्नी आती हुई दिखी और मैंने तुरंत कहा-“यह लो आपकी फुलझड़ी आ गई।” 

वो हैरानी से मेरा मुंह देख रहे थे और मुझे उनके चेहरे के भाव देखकर हंसी आ रही थी। 

हमने उनकी पत्नी के हाथ में शगुन का लिफाफा दिया तो बोली-“इसकी क्या जरूरत थी, बच्चों को अपना आशीर्वाद दीजिए।” 

(फिर आवाज आई, शादी में बहुत खर्चा हुआ है लिफाफा ले ही लेती हूं) 

लिफाफा देकर हमने सोचा चलो कुछ खा पी लेते हैं। सो हम बढ़ गए गोलगप्पे के स्टॉल की तरफ। गोलगप्पे वाले ने प्लेट पकड़ाई, मैंने दो गोलगप्पे खाए और उसे मना कर दिया कि बस और नहीं चाहिए। 

(फिर आवाज आई, दिखने में तो इतनी मोटी है मैं तो सोच रहा था कि आराम से 10 -12 गोलगप्पे गटक लेगी, पर इसने तो सिर्फ दो ही खाए। )

मैंने गोलगप्पे वाले से कहा-“भैया, तुम्हें क्या, मेरी मर्जी मैं जितने भी गोलगप्पे खाऊं।” 

वह इतना हैरान हो गया कि मैं और वहां खड़ी न रह सकी और हंसते-हंसते वहां से चली गई। वर वधु को आशीर्वाद दिया शुभकामनाएं दी और उनके सामने पहुंचकर अंगूठी ने बताया कि उनके मन में शादी के लड्डू फूट रहे हैं। विवाह समारोह हंसी खुशी निपट गया। 




कल हमें मेरी सहेली ज्योति के घर पूजा में जाना है। सुबह 11:00 बजे के लगभग में पतिदेव के साथ ज्योति के यहां पहुंची। वह खुशी से मेरे गले लग गई और बोली-“बहुत दिनों बाद मिले हैं, तेरे आने से बहुत अच्छा लगा। इनसे बोली, जीजा जी नमस्ते।” 

(फिर आवाज आई, हाय रे! कितना हैंडसम पति है इसका, काश ये मुझे मिला होता। दिल करता है इसे उड़ा ले जाऊं। )

मैंने हंसते हुए कहा-“ज्योति, क्यों मेरे पति पर लाइन मार रही है।” 

वह ऐसे हड़बड़ा गई कि मानो जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो और प्रकट में बोली-“तू भी ना गीता, क्या बोल रही है?” 

मैं उसकी हालत देखकर मुस्कुरा रही थी। इसी तरह मैंने एक दिन बच्चों को हैरान कर दिया। आलू मटर की सब्जी देखकर बच्चे नूडल्स खाने के बारे में सोच रहे थे तब मैंने कहा-“बच्चों, नूडल्स कल खा लेना।” 

बच्चे-“मम्मी, आपको कैसे पता लगा?” 

इसी तरह अंगूठी की वजह से मुझे कई बार बहुत खुशी मिली और कई बार परेशानी भी झेलनी पड़ी। 

एक बार तो हद ही हो गई। जब मैं वह अंगूठी पहन कर गोवा चली गई। सागर किनारे हमने एक आदमी से कहा-“कैमरे से हमारे परिवार की एक फोटो खींच दीजिए।” 

फोटो तो उसने खींच दी। लेकिन उसके मन से आवाज आई, यह परिवार वाले मुझसे फोटो खिंचवा रहे हैं काश वह सुंदर अंग्रेज लड़की मुझसे फोटो खिंचवा ती। 




बस बस बाबा, आगे क्या बताऊं, फिर तो उस अंगूठी को मैंने समुद्र में ही फेंक दिया। (फिर एक आवाज आ रही है क्या आप सोच रहे हैं कि इतने काम की चीज मैंने क्यों फेंक दी, इससे अच्छा तो आपको दे देती। )

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मुझे आपके मन की आवाज कैसे सुनाई दे रही है। 

(बस ऐसे ही मजाक में) 

#5वां_जन्मोत्सव 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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