आखिरी उम्मीद – प्रेम बजाज

15 दिन से हर वकील, पुलिस के पास, इन्साफ के लिए भटक रही है।

पहले तो थाने में बलात्कारी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने जब गई तो थानेदार ने लम्बा चौड़ा भाषण दे दिया।

“अरी कमला रानी, किसके खिलाफ रपट लिखाने चली है तू, तुझे पता है ना वो कितने बड़े बाप का छोरा है, तू अकेली नार, ना तेरे सिर पर आदमी की छत, ना कोई तेरे आगे-पीछे,  किस बूते पे तू केस लड़ेगी, कुछ ना होने का, मेरी मान कुछ ले-दे के निपटारा कर‌दे केस का। तेरी छोरी का ब्याह भी उस ते आराम ते हो जायेगा”

“साहब जी छोटा मुंह बड़ी बात दिल पर हाथ रख कर बोलिएगा, मेरी छोरी की जगह आप ……” आगे बोल नहीं पाई कमला कि साहब ने घुड़की दी।

“कमला…. बहुत जबान निकल रही थारी, मुझे क्या भुगत लिओ अपने-आप, मैंने तो अपना समझ के समझाया था, तेरी समझ में ना आवे तो मैं क्या करूं”

और इतना कह कर उसकी रिपोर्ट लिखवा दी।

“अच्छा सुन आज रात को थाने में चक्कर लगा जाइए, कुछ पुछताछ करनी है तेरे से”

“साहब जी, जो पूछना से अभी पूछ लिजिए ना, रात को कोई अलग बात थोड़ा ना होवेगी”

“रे पगली, रात की बात तो रात में ही होवेगी ना, चल जा अब तू, रात को आ जाइए”

कमला थानेदार का इशारा समझ गई कि वो क्या चाहता है। उसने जिस फैक्ट्री में काम करती थी, उस फेक्ट्री के मालिक के पास जाने का सोचा।




और वो गई फैक्ट्री के मालिक के पास, जा कर इंसाफ़ दिलाने की गुहार लगाती है।

लेकिन वहां भी यही सब।

“कमला कल मेरी पत्नी और बच्चे दो दिन के लिए बाहर जा रहे हैं, तू घर पर आ जाना वहीं बात करेंगे आराम से, मैं तेरे लिए बड़े अफसर से बात कर लूंगा”

बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए वो खुद से नाइंसाफी करने पर मजबूर हो गई।

इस तरह 15 दिन बीत गए, केस इधर से उधर फाईल जा रही है, लेकिन कुछ खास कार्यवाही नज़र नहीं आती।

जहां भी कमला जाकर इंसाफ की गुहार लगाती वहीं पर सभी जिस्म की रिश्वत लेते और इंसाफ का झूठा दिलासा देकर बड़े अफसर से बात करने की कह देते।

आज शायद यह उसकी आखिरी उम्मीद थी, वो आफिसर नाम की सीढ़ी चढ़ते हुए जज  नाम की ऊंची सीढ़ी पर पहुंचीं,”जज साहब मिनिस्टर के बेटे ने मेरी बेटी का बलात्कार किया है, आखिरी उम्मीद लेकर आई हूं साहब, इन्साफ चाहिए”

जजसाहब,”रात को बेटी को मेरे पास भेज देना, मुझे उससे पूछताछ करनी है, तुम फिक्र मत करो मैं इन्साफ दिला दूंगा”

“बस साहब आज आखिरी उम्मीद भी टूट गई”

और वो चुपचाप बिना लड़े हार मान गई।

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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