अहमियत – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral stories in hindi

वैशाली दिन रात भाग-भाग कर सबकी मदद में लगी रहती थी लेकिन घरवालों को ना उसके काम की कोई कदर थी ना ही उसकी कोई अहमियत।

घर के लोगों को ऐसा लगता था एक गृहिणी होने के नाते ये सारे कामकाज करना तो वैशाली का फर्ज है। वह किसी पर कोई अहसान नहीं कर रही है।

वाकई वह अहसान मानती भी नहीं थी। लेकिन विषय यह था कि शारीरिक क्षमता से अधिक लोड पर तो मशीन भी थक जाए!

पढ़ी-लिखी होने के बावजूद, उसे कोई नौकरी भी नहीं करने दी गई। उसने भी अपनी किस्मत से समझौता कर लिया और नौकरी के लिए किसी प्रकार की जिद नहीं की थी।

पहले सास, ससुर, देवर, ननद और सगे संबंधियों की देखरेख करना ही नहीं बल्कि दूर-दराज के रिश्तेदारों की देखरेख करना भी उसका दायित्व था। 

उसका पति भी अपनी पत्नी को सबकी नौकरानी बनाकर रखने में अपनी शान समझता था। कोई खोखली तारीफ कर देता तो उसमें फूला नहीं समाता था। उसको यह समझ नहीं आता था कि इस तीमारदारी में उसकी पत्नी दिन-रात खटती रहती है।

दिमाग से वह इस तरह पंगु बना हुआ था कि उसे यह भी समझ नहीं आता था कि मेरी पत्नी जब क्षमता से अधिक मेहनत करेगी तो असमय  बीमारियों का जखीरा घर आएगा। इससे सिर्फ वैशाली ही नहीं उसका जीवन भी प्रभावित होगा।

लेकिन उसे तो गाँव भर का आदर्श बेटा बने रहने का शौक चढ़ा था। हाँ किंतु अपने दम पर नहीं, वैशाली के दम पर। स्वयं के दम पर तो अपने सगे माता-पिता को भी एक गिलास पानी देने पर बच्चों को आवाज लगानी पड़ती थी। वह ऐसा आदर्श बेटा था। 

अर्थात थोथी शान में जीते रहना मात्र उसका लक्ष्य था।

समय बीता, जनरेशन बदला आज वैशाली के बच्चों का जमाना आ गया तब भी वैशाली की अहमियत वहीं की वहीं थी। बच्चे सोचने लगे जब हमारे पिता ने हमारी माँ की अहमियत नहीं समझी, तो हम ही भला क्यों समझे! 

इसलिए वे भी अपने कामों की जिम्मेदारी वैशाली पर डाल देते हैं और अपनी पत्नियों के संग मगन रहते हैं। 

उनकी पत्नियां उन सबके सामने बिस्तर पर बैठी रहती हैं, वो देखते रहते, वैशाली दिन भर काम में लगी रहती।

वैशाली के पति ने आँखें होते हुए भी  आँखों  पर पट्टी बांध रखी थी या वह देखना ही नहीं चाहता था। कुछ कह पाना मुश्किल था।

अब वैशाली को बहुत चिड़चिड़ाहट होती थी। क्योंकि वास्तव में अब स्वास्थ्य भी सही नहीं रहता और घर भर की जिम्मेदारियों का बोझ जब उसके कंधे में पड़ता है तो चिड़चिड़ाहट और गुस्सा होना भी लाजिमी ही है।

इतना ही नहीं आजकल घर के लोग, घर पर कोई खाश बात में भी, उससे पूछना तो दूर, बताना भी उचित नहीं समझते। ना बच्चे ना ही पति।

चाहे आर्थिक विषय पर  कोई बात हो या काम को लेकर। उसे यह खबरें जब बाहर से मिलती हैं तो अत्यंत क्रोध भी आता है कि मैं इन वाहियात लोगों के लिए अपनी जिंदगी अब तक कुर्बान करने में लगी रही, जिन्हें मेरी लेशमात्र भी फिक्र नहीं है।

कोई नौकरी भी नहीं की ताकि घर की व्यवस्था बनी रहे और पूरी निष्ठा से सबकी आवभगत में लगी रहती हूँ। सबको गर्मागर्म खाना परोसकर, मैं स्वयं तीन दिन पुराना खाना भी खा लेती हूँ ताकि फेंका ना जाए। मेरा परिवार के प्रति वह सारा समर्पण व्यर्थ चला गया।

इस तरह देखरेख करने पर तो जानवर भी अपने हो जाते हैं लेकिन यहाँ पर तो इंसान की भी कोई कद्र नहीं है।

पति में ही वफादारी नहीं, तो बच्चों से उम्मीद पालना भी बेमानी है।

इस तरह एक उम्र आते-आते वैशाली को अनगिनत बीमारियों ने भी घेर रखा है, जब कुछ अधिक परेशानी हो जाती है, तब परिवार जनों को बताती है, अन्यथा नहीं भी बताती। उसे पता है बताने से भी कुछ होने वाला नहीं है। किसे उसकी परवाह है जो ध्यान रखेगा।

वैशाली ने सबसे अलग रहकर अपनी निजी जिंदगी पर ध्यान रखने के लिए एक दिन ऐलान किया था कि वह कुछ दिन अकेली रहेगी और अपनी खुशी के लिए जिएगी कुछ दिन।

सब लोग अपनी देखरेख खुद करो।लेकिन वक्त ने उसको यह अवसर ही नहीं दिया बल्कि एकदिन वह समय आ गया जब वैशाली दुनिया से रुखसत हो गई। वैसे अच्छा ही हुआ, जो इस ऐशो-आराम से उसके शरीर को मुक्ति मिल गई। 

लेकिन जिन्हें मुफ्त की नौकरानी मिली थी उन्हें जरूर तकलीफ हो रही थी। अब सभी घड़ियाली आँसू बहा रहे थे कि वैशाली/माँ आप हमें छोड़कर चली गईं। आपको जीते जी अहमियत नहीं मिल पाई।

काश प्रायश्चित करने का एक मौका तो दे देतीं!

सचमुच अभी भी पारिवारिक लोगों को दर्द था या सिर्फ दिखावा कर रहे थे यह कहना मुश्किल था!

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©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

1 thought on “अहमियत – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral stories in hindi”

  1. Ritu ji acchi Rachna hai aapki… Mata pita ke jhagado ke bich bacche humesha pis jate hai. Baki sab sahi hai.. Per maaf kijiyega.. Aapne bacche ka naam ” Nashwar” Kyu rakha hai? Nashwar ka arth hota hai – ” Naash / nashth hone wala ” .. Aisa naam kaun rakhta hai bacche ka.. Vichar kijiyega 🙏

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