अधजल गगरी- डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

बधाई हो!गौरव का रिश्ता हो गया,क्या वाराणसी की है लड़की?सुमिता चहकी,फिर तो जीजी,बनारस की गलियां खूब घूमोगी आप अब।

रिचा हंस पड़ी थी छोटी बहन सुमिता की बात सुनकर,बहुत समय से इंतजार था इस शुभ घड़ी का उसे।उसका बेटा गौरव डी आर डी ओ में साइंटिस्ट था,ज्यादा पढ़ी लिखी और संस्कारी लड़की ढूंढने के चक्कर में उम्र बढ़े जा रही थी उसकी,अब एक बिजनेसमैन फैमिली की लड़की श्वेता जो संस्कृत से एम ए किए थी से बात पक्की हुई थी, गौरव तो अभी भी मान नहीं रहा था लेकिन घर वालों के दवाब में हां कर दी।

अच्छे बड़े पैसे वाले हैं,मोटा रुपया खर्च कर रहे हैं,लड़की भी सीधी ही लगी,क्या हुआ जो जॉब नहीं कर रही,मां ने समझाया था गौरव को और उसे मानना पड़ा क्योंकि उसकी उम्र ज्यादा हो जाती तो अच्छी लड़की मिलनी मुश्किल हो रही थी।

श्वेता के पिता गिरधारी लाल जी बड़े ज्वेलर थे,नाजों से पाली बेटी,एक वैज्ञानिक के घर विदा करते हुए,पूरा ठोक बजा के उसे चैक कर रहे थे।उसकी मोटी सैलरी,घर पर और कोई जिम्मेदारी नहीं है,पिता की बढ़िया पेंशन आ रही है,पुश्तैनी कोठी नुमा बंगला,गाड़ी,नौकर चाकर “सब कुछ है” देखकर खुश और संतुष्ट थे।

रोके के लिए उन्होंने गौरव के परिवार को शहर के प्रतिष्ठित बैंक्वेट हॉल “कंट्री इन”में बुलाया।

गौरव को कुछ अटपटा लगा,”अम्मा!ये जरा से फंक्शन में इतना खर्च कर देंगे!मुझे ये ठीक नहीं लग रहा कुछ।”

“तू क्यों फिक्र करता है,है उनपर पैसा,अपनी लड़की के लिए कुछ भी कर सकते हैं,करने दो,हमें क्या?” वो हंसते हुए बोलीं।

जितना बड़ा होटल,बैंक्वेट हॉल,वैसे ही खर्चे।वहां की सजावट,भव्यता से उन सबकी आंखें चौंधिया गई,पता चला एक छोटा सा फंक्शन जिसमे चाय, कॉफी और स्नैक्स ही थे,वो हजारों,लाखों में बैठा।जब एक कॉफी ही पांच सौ रुपए की होगी तो बाकी हिसाब  खुद ही समझ आ जाता है।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

गहने भी भला कभी उतरन होते हैं क्या?? – सविता गोयल

गौरव को ये फिक्र खाए जा रही थी कि जब ये लोग इस तरह दिखावे में इतना खर्च कर रहे हैं तो हमसे भी ये उम्मीद रखेंगे जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।पढ़े लिखे होने का यही तो फायदा है कि हम सोच समझ कर पैसा खर्च करते हैं,अंधी कमाई तो है नहीं जो इस तरह झूठी शानो शौकत में उड़ा दूं?न मुझे इन लोगों से कुछ लेना है और न ही ऐसे खर्च करना है।

दबी जुबान में उसने अपने मां पिता को आगाह करना चाहा लेकिन उन्होंने उसे,”बहुत सोचता है बेटा तू…” कहकर  टाल दिया और बात आई गई हो गई।

आज श्वेता के पेरेंट्स,शादी के सारे इंतजाम,वेन्यू और बाते तय करने गौरव के घर आ रहे थे।

गौरव की मम्मी ने सुबह से जुट कर उन के लिए बढ़िया खाने की तैयारी की,शाही पनीर, मिक्स वेज,कढ़ी चावल,दही भल्ले,चटनी,पापड़ सलाद।

श्वेता की मम्मी बैठते ही बोलीं,”आपके सेंट्रली एयर कंडीशन नहीं लगा घर में?”

गौरव की मां पलभर सिटपिटा गई,”बस लॉबी में ही नहीं है बाकी हर कमरे में है,हम सब बन्द कर लेते हैं तो किचेन/लॉबी सब ठंडे हो जाते हैं।”वो बोलीं।

“पर किचेन में तो अलग होना चाहिए…”श्वेता की मां फिर बोलीं।

“श्वेता आएगी तो जो चाहे करा लेगी”,गौरव की मां ने उन्हें टालते हुए कहा।

गौरव को उनकी ये बात नागवार गुजरी पर चुप रहा।

थोड़ी देर में,श्वेता की मां ने गौरव को उसके मम्मी पापा को लपेटना शुरू किया,”आप मान्यवर,तनिष्क,नल्ही से  ही खरीदारी करोगे ना?”

“कहीं से भी कर लेंगे आंटी…आप फिक्र न करें।”वो संयम रखते बोला।

“श्वेता को ऐसे ही शो रूम्स की आदत है,उसे पसंद नहीं आती कोई और जगह।  वो बोलीं।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“बुढ़ापे और बेबसी से बड़ा कोई दर्द नहीं होता!!!” – अमिता कुचया

फिर गिरधारी लाल शादी के वेन्यू में रेडिसन और कंट्री इन के नाम गिनाने लगे।

गौरव को अब बोलना ही पड़ा,”आप इन सबमें इतना खर्च न करें,शादी तो किसी साधारण बेंकेट हॉल में भी हो सकती है।”

“लेकिन क्यों?” वो हंसते हुए बोले,आखिर हमारे स्टेटस का सवाल है,हमारे सब रिश्तेदार बातें बनाएंगे।

देखिए! श्वेता का कोई जॉब भी नहीं है, मै अकेला कमाने वाला हूं,भगवान की कृपा से हम पर सब है लेकिन इस तरह खर्च करने पर तो कुबेर का खजाना भी खाली हो जायेगा,मेरी कमाई जो है वो आपके सामने हैं ,हमने सब आपको बता दिया है।वो गंभीरता से बोला।

ये सब हम खुशी से कर रहे हैं,आप परेशान न हों।उन्होंने कहा तो गौरव फिर चुप गया।

तभी उसकी मां ने पूछा श्वेता की मम्मी से,उसकी पसंद के कुछ रंग बताएं,साड़ियां खरीदनी हैं हमें।

“साड़ियां पहनवाएंगी श्वेता को?” वो मुंह बनाते बोली,”आजकल तो गाउन और मैक्सी का जमाना है।”

“पर…एकाध तो पहनेगी,गोद भराई की रस्म में…?”वो हकलाई।

“न ,न, बहन जी,हमारी श्वेता साड़ी नहीं पहनना चाहेगी। वो मुखरता से कह बेइथिन

गौरव को लगा,हम लोगों में बहुत असमानता है,बात सिर्फ पैसा कम ज्यादा होने की ही नहीं है,मेरी क्लास वन गवर्नमेंट जॉब,इतना पढ़ा लिखा होना सब इन बिजनेसमैन पैसे वालों के आगे छोटा है।इनकी सोच,रहन सहन सब कुछ हमसे बहुत भिन्न है,कैसे निभेगी हमारी?

तभी,गिरधारी लाल बोले,आप गाड़ी कौन से लेंगे?

गाड़ी तो मेरे पास है,अभी दो ही साल हुए हैं,गौरव बोला, मै उसे बदलना नहीं चाहूंगा,सॉरी!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दिन बीत गए पर दर्द रह गए – रत्ना साहू 

 

देखिए!गाड़ी तो हम जरूर देंगे,आखिर हमारी इज्जत का सवाल है,वो बोले।

इसी तरह की बहुत सी विरोधाभासी बातें उन लोगों में हुई और अगले ही दिन,वाराणसी से फोन आया,हम आप जैसे लोगों के घर अपनी बेटी नहीं देंगे। हमने आपको क्या समझा था और आप क्या निकले।

गौरव को एक क्षण भी बुरा नहीं लगा बल्कि वो रिलैक्स हुआ,उसकी मां की आंखों में आंसू भर आए…खुद इन लोगों में जरा तमीज,संस्कार नहीं थे और आरोप हम पर लगा रहे हैं,सच ही कहते हैं बड़े सयाने “रिश्ता हमेशा बराबरी वालों में ही करना चाहिए,पैसे से भी बराबर और पढ़ाई लिखाई,सोच में भी एक समान।ये लोग सिर्फ पैसे की भाषा समझते थे,दिमाग,बुद्धि सब टखनों में थी,जैसे मां बाप वैसी ही लड़की भी होगी,बहुत बाल बाल बचे हम।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली गाजियाबाद

2 thoughts on “अधजल गगरी- डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi”

  1. आजकल है ही ‘branded’ लोग मिलते हैं, सही मायने मैं शिक्षित -संस्कारी लोग कम ही मिलते हैं। शुक्र है कि रिश्ता हो न सका वरना ज़िन्दगी भर की घुटन‌- क्लेश तो तय बात थी और स्सावाभाविक रूप से सामाजिक सहानुभूति लड़की वालों के पक्ष में होने के कारण एक अच्छा- भला परिवार सुख-चैन से जी ने पाता।
    अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
    छद्म ego में जीने वाले काफी आक्रामक हो जाते हैं क्योंकि सिर्फ पैसे से संस्कार नहीं मिल जाते। full

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!