अच्छी बहू बाज़ार में नहीं मिलती – रश्मि प्रकाश

‘बधाई हो सुमिता तेरी बेटी की शादी तय हो गई….तेरी राशि है बड़ी क़िस्मत वाली जो बहुत जल्दी उसका रिश्ता तय हो गया….अब तोबेटी ससुराल चली जायेंगी….देखना कही उसकी सास रति की सास जैसी नहीं हो….बेचारी रति का जीना दुश्वार कर दिया है उसकीसास ने।“सुमन अपने लय में सुमिता से कहे जा रही थी

सुमिता ने देखा राशि सुमन के लिए चाय लेकर आ रही थी और दरवाजे पर ही उसकी बातें सुन कर रूक गई।

‘‘अरे नहीं सुमन तुम तो कबसे मुझे जानती हो, हम पड़ोसी से ज्यादा दोस्त है….तुम्हें लगता है मैं राशि के लिए गलत घर परिवार चुनसकती हूँ….बहुत अच्छे लोग हैं…. राशि को बेटी जैसा प्यार देंगे ।‘‘ सुमिता जी ने कहा 

इसी बीच राशि चुपचाप चाय रख कर चली गईं।

थोड़ी देर बाद सुमन के चले जाने के बाद राशि सुमिता जी के पास आई और बोली,‘‘ मम्मा क्या सच में सास बहू का रिश्ता अच्छा नहींहोता….वो क्या मुझे तुम्हारे जैसे प्यार नहीं करेंगी?‘‘जो राशि पहले ये सोच कर खुश हो रही थी कि उसकी सासु माँ बिल्कुल उसकीमम्मी के जैसी है पर सुमन की बातें सुन कर अब डर उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।

‘‘अरे नहीं बेटा ऐसा कुछ नहीं है….अच्छा सोचेगी तो अच्छा ही होगा बेटा….क्या सास माँ नहीं होती….क्या बहु बेटी नहीं होती….बस येसमझो सब नजरिए की बात है ….तुमने दादी के साथ मेरा रिश्ता देखा है ना ….फिर नानी और मामी का रिश्ता…..तुम्हें क्या लगा इनसब रिश्तों को देख कर?‘‘ सुमिता जी बेटी का सिर अपनी गोद में रख कर प्यार से पूछी 

‘‘मम्मी आप लोगों में तो बहुत प्यार था ….. दादी पापा से ज्यादा तुम्हें अपनी सारी बातें बताती थी हम  दोनों भाई बहन को भी कितनाप्यार करती थी….हम्म नानी भी मामी जी को तुम्हारी तरह ही प्यार करती है…..मैं भी बस यही सोचती हूं मम्मी ….मेरे ससुराल में सासुमाँ नहीं बल्कि मम्मी की बेटी बन कर रहूंगी…. बहू तो रहूँगी ही पर हमारे बीच माँ बेटी का रिश्ता रखना चाहूँगी….बिल्कुल आपके औरदादी के जैसा सास बहू का रिश्ता।”राशि माँ की बात सुन आश्वस्त हो अपने कमरे में चली गईं




सुमिता जी राशि को समझा तो दी थी पर खुद अतीत के गलियारों में घूमने लगी…..उसका सफर आसान नहीं था…..शादी कर के जबससुराल आई तो कड़क सास से सामना हुआ जिनकी कड़कती आवाज से वो सहम जाती थी….ससुर जी के गुजर जाने के बाद  पतिवीरेन और मॉं ही हमेशा साथ रहे …. वीरेन माँ की अकेली संतान थे …..तो मॉं की हर बात सिर आँखों पर रखते…..बेटे की शादी तो करदी थी पर सुमिता जी सास को एक आँख न सुहाती….. ,“वो बात बात पर कहती रहती तू मेरे बेटे को मुझसे दूर कर देगी।”

सुमिता जी चुप रहकर सास की बात सुन कर भी सब सामान्य करने की  कोशिश करती रही। 

अपनी मॉं को जब भी कुछ बताती तो वो समझाते हुए कहती,“ बेटा समधन जी हमेशा बेटे के साथ रही है बहुत वक्त बाद बेटे को तुम्हारेसाथ बॉंट रही है…..तुम बस धैर्य रखो….उनके दिल को समझने की कोशिश करो…..कोई मॉं बुरी नहीं होती बेटा…..उनकी बेटी नहीं हैइसलिए उनको बेटी कैसी होती ये  पता नहीं है…..बस तुम उनकी बेटी बन जाओ….क्या जब मैं तुम्हें डांटती हूं तो तुम मुझसे लड़तीहो….नहीं ना…..तो बस वैसा ही अपनी सास की बात को समझो…..ज्यादा परेशान मत हो…..अच्छा करो तो देर सवेर अच्छा ही होगा….. सास बहू का रिश्ता  वैसे भी बहुत नाज़ुक होता ……अगर एक आग है तो दूसरे को पानी बन जाना चाहिए…..घी बन गई तो सबस्वाहा हो जायेगा….. तुम मेरी बेटी हो और मुझे तुमपे पूरा भरोसा है। ‘‘

 सुमिता जी सास के साथ ज्यादा वक्त बिताने लगी। उनके मन की बात निकलवाने लगी।उनसे सलाह लेकर काम करती बिल्कुल वैसेजैसे मैं कुछ नहीं जानती आप ही बताइए उनकी सौ बातें तो जरूर सुनती पर इस बीच सास बहुत कुछ सीखाने भी लगी और अब दिलकी बात कहने भी लगी…..




कहते है बेटी तो एक पौधे के समान है जिसकी जड़ें उखाड़ कर हम दूसरे के घर की हरियाली बनाने भेजते हैं……अच्छा खाद पानीमतलब प्यार अपनापन मिले तो पेड़ की जड़ें उस घर में भी रच बस जाती…..और न मिले तो समझिए रेगिस्तान में लहलहाने की कोशिशकरनी पड़ती।

सुमिता जी के सौम्य व्यवहार और अपनेपन से सास की कड़क बोली अब मीठी होने लगी….सासु माँ अब सुमिता जी की मॉं बनगई….इसके लिए  सुमिता जी को वक्त लगा पर उसने रिश्ता बचा लिया। 

सुमिता जी की सास अब उसकी हर बात सुनती…..जब बच्चे हुए तो  सुमिता जी से ज्यादा दादी उनका ख्याल रखती….. राशि के बादजब रितेश आया तो सुमिता जी हमेशा सोचती जब सास बनूंगी बहू को राशि की तरह ही बेटी समझूँगी …..जैसे भी हो जो करना पड़ेगाकरूंगी….बच्चे मेरे है तो उनकी खुशियां भी मेरी ही होगी। 

‘‘मम्मी -मम्मी कब से आवाज दे रही हूं कहां खोई हुई थी।” राशि शायद बहुत देर से सुमिता जी को आवाज दे रही थी जो पुराने ख़्यालोंमें खोई हुई थी 

‘‘कुछ नहीं बेटा आज तुम्हारी दादी की याद आ गई….कितनी खुश होती पोती की शादी में ।” सुमिता जी उदास स्वर में बोली

कुछ महीनों बाद राशि की शादी हो गई। उसी शहर में ससुराल होने की वजह से कुछ दिनों के बाद सुमिता जी ने राशि को सबके साथअपने घर  खाने पर बुलाया।

राशि की सासु माँ सुमिता जी का हाथ पकड़ कर बोली ,“ समधन जी आपने मुझे अपना बेशकीमती हीरा दे दिया है….मैं बहुत लकीसास हूं जो  मुझे ऐसी बहू मिली….लगता ही नहीं बहू है….इतने अच्छे संस्कार और इतना अपनापन बिल्कुल  आपकी ही परछाईहै….मैंने आपको बताया नहीं पर शादी से पहले जब हम आपके घर  आ रहे थे हम दूसरे गलत रास्ते पर चल गये थे….कुछ लोगों से जबपता पूछा तो बोले अच्छा वीरेन जी के घर जाना है…..बहुत सज्जन लोग हैं….आप लोगों का ऐसा व्यवहार ही है ना जो लोग इतनीइज्जत देते नहीं तो आज किसी को किसी की क्या ही पड़ी है?”




 सुमिता जी राशि पर नाज़ कर रही थी….उनके दिए अच्छे संस्कार आज उनकी बेटी के  घर संसार को लहलहा रहे थे अगर वो अपने औरसास के कड़वे अनुभव की बातें बताती और  सिखाती तो  शायद राशि कभी भी अपनी सासु माँ में अपनी माँ को नहीं देख पाती ।

अच्छी बहू बाज़ार में नहीं मिलती है वो आपके घर में ही मिलेगी…. मायके से मिली अच्छी सीख और ससुराल में अपनापन और सम्मान मिल जाए तो बहू अच्छी ही होगी ।

अच्छी सीख और अच्छी सोच की बीज अगर बचपन से ही बोई जाये तो वो आगे चलकरआपके ही काम आते। कोई बहू बुरी नहीं होती कोई सास बुरी नहीं होती बस एक महीन सी रेखा दोनों के बीच में होती है और दोनोंउसपर ही अटकी रहती है। क्या हम कभी अपनी सास को अपनी मां की जगह रख सकते सब कहेंगे कभी नहीं। वैसे ही कोई भी सास बेटी की जगह बहू को नहीं रख सकती। बस हम इसी जगह पर गलत हो जाते। अगर आपकी बेटी अच्छी है और जब वो ससुराल में बहू बनकर जाती हैं तो बुरी कैसे हो सकती? वैसे ही सास अगर बेटी के लिए अच्छी माँ है तो अपनी बहु के लिए अच्छी सास क्यों नहीं हो सकती ….बदलना खुद को पड़ेगा अपने लिए अपने बच्चों के लिए।आप और मैं एक औरत को समझने की कोशिश करें। आत्मसात करनेकी कोशिश करें। आपको अच्छी सास नही मिली  तो क्या हुआ आप तो अच्छी सास बन सकती है? शुरुआत कर के तो देखिए…

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## ये मेरी अपनी सोच है ज़रूरी नहीं है आप भी सहमत हो…. सकारात्मक सोच का स्वागत करूँगी ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#बहू

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