अब से हम ना कुछ लेंगे–ना कुछ देंगे – कुमुद मोहन

मम्मी! मामी को कह देना मेरे लिए कोई ड्रेस वगैरह ना खरीदें। वैसे भी मेरी और उनकी च्वाईस बिल्कुल नहीं मिलती, वो पैसा भी खर्च करेंगी और मुझे पसंद भी नहीं आएगा ऐहसान ऊपर से होगा।

देखा नहीं था पिछली बार उन्होंने निया दीदी का रखा हुआ टाॅप मुझे थमा दिया था यह कहकर कि इम्पोर्टेड है बहुत महंगा है जबकि वो मेरे नाप का भी नहीं था” रिया ने अपनी मां रूचि से कहा।

रिया का परिवार दो चार दिन के लिए भाई दूज पर रिया के ननिहाल उसके मामा रजत के घर जाने वाला था।

“हां बेटा। कह तो तुम ठीक रही हो। मामी हर बार ऐसे ही करती हैं इधर-उधर से आए गए गिफ्ट जो उनके मतलब के नहीं होते वे मुझे और तुम्हारी सिया मौसी को टिका देती हैं।

याद है पिछली बार जो साड़ी उन्होंने मुझे जबरदस्ती दी थी खोली तो देखा उसमें ड्राईक्लीन का टैग लगा था। अपनी पुरानी साड़ी जो पसंद ना होगी ड्राईक्लीन करा कर मुझे दे दी। मन में खटास ऐसी हरकतों की वजह से ही आती है और रिश्तों में दरार पड़ जाती है।

तुम्हारे मामा ठहरे सीधे सादे उन्हें हमें देने के लिए दिखाती कुछ हैं देती कुछ हैं। इससे तो बेहतर है ना दें। मुँह पर एकदम से कुछ कहना अच्छा नहीं लगता बेकार मामा का दिल दुखेगा उस बेचारे की तो कोई गल्ती नहीं है ना? इतने प्यार से बुलाता है। मां-बाप के जाने के बाद भी इतना मान सम्मान देता है यही हमारे लिए बहुत है। कम से कम हमारा मायका तो खुला तो है

चीजों का क्या? किसी के देने या ना देने से किसी का घर थोड़े ही भरता है।

तुम इन छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान मत हुआ करो। मैं सब संभाल लूंगी”रूचि ने रिया को समझाया!



शाम को रूचि ने अपनी भाभी नैना को फोन करके कहा “तुमने इतने प्यार से बुलाया हम आ रहे हैं पर मैं तभी आऊंगी जब तुम एक वादा करो कि तुम हमारे या रिया के लिए कुछ नहीं खरीदोगी।हम वहीं आकर जो लेना होगा ले लेंगे।

सुनकर नैना को बड़ा दुःख हुआ कि जो बेकार का सामान उसने रिया और रूचि के लिए रखा था वो पड़े का पड़ा रह जाएगा। उस पर बाजार जाकर खरीदवाना पड़ेगा। जाने कितने का चूना मां बेटी लगवाऐंगी।रजत तो पूरा दिल खोलकर रख देगा उन दोनों के लिए?

रूचि अपने भाई का मनपसंद गाजर का हलवा,भाभी के लिए उसकी पसंद के मलाई पान और निया और नियम के लिए उनकी पसंद की बेकरी का सामान लाई थी।

नैना ऊपर से तो नार्मल दिख रही थी पर अंदर ही अंदर उसके मन में खटका लगा रहता कि कहीं रूचि शापिंग की फरमाइश ना कर बैठे।

जाने से पहले दिन छुट्टी थी रूचि ने बाहर खाने और मॉल का प्रोग्राम बनाया।बस नैना का मूड ऑफ हो गया।लो। जिसका डर था वही हुआ नैना ने सोचा, वो सर दर्द का बहाना बनाकर जाना नहीं चाहती थी पर रजत किसी तरह नैना को मनाकर ले गया।

सबने खाना खाया। नैना रेस्टोरेंट में ही बैठी रही यह कहकर कि बहुत थक गई है।

रूचि और रिया निया और नियम के साथ माॅल घूमने चल दीं।बच्चों ने अपनी अपनी पसंद की थोड़ी-बहुत शापिंग की और सब वापस घर आ गए।

नैना को यही डर सता रहा था कि अब रजत मोटी सी रकम रूचि और रिया को थमाऐगा।

जाते हुए रजत ने रूचि और रिया को नेग का लिफाफा देना चाहा पर रूचि ने यह कहकर मना कर दिया कि अब हम लोग अपने बीच में ये पैसों का लेनदेन बिल्कुल नहीं करेंगे। एक दूसरे के पास जब मन हो आऐंगे जाऐंगे।

हमने तो अपने दोस्तों और पड़ोसियों के साथ भी यही तय कर लिया है हमलोग अपने रिश्तों के बीच पैसा नहीं आने देते। इससे जब जिसका जहाँ मन चाहा आ जा लेता है। इससे रिश्तों में मिठास बनी हुई है।

और तुमने जो निया और नियम को इतनी सारी शापिंग कराई? रजत ने कहा?



“तुम चुप रहो।ये बुआ और भतीजी भतीजे के बीच की बात है।वैसे भी तुम छोटे हो छोटों की तरह ही रहो।रूचि ने प्यार से रजत को डपट दिया।

तभी रजत ने एक छोटा सा गिफ्ट पैक रूचि की तरफ बढ़ाया”ये भी लोगी या नहीं ?सोच लो पछताना ना पड़े?रूचि ने लपककर लिया और खोल कर खुशी से उछल पड़ी “वाओ।मेरा मनपसंद पर्फ्यूम?

“हां। इस बार सिंगापुर ट्रिप से लाया था तुम्हारे और सिया के लिए।” रजत ने कहा।

फिर रूचि ने नैना को गले से लगाकर कहा”तुम देने-लेने के पचड़े में ना पड़ा करो। तुम प्यार से बुलाती हो हम आ जाते हैं। चार छः दिन हंसी खुशी बिता लेते हैं क्या इतना काफी नहीं है।

रही जो सामान तुम देती हो अगर उसमें से मेरे पास कुछ नहीं होगा तो जो तुम्हारे पास एक्स्ट्रा है वो में तुमसे मांग कर ले लूंगी।

अब से “ना हम देंगे ना लेंगे”

और हाँ रजत।अपने राखी और भाई दूज के 101 रूपये मैं नहीं छोड़ने वाली ये याद रखना।

चलो-चलो इसी बात पर एक सेल्फ़ी हो जाए

चीयर्स।

दोस्तों।

तीज-त्यौहार पर लेने-देने की बात फर्क है हांलांकि वो भी किसी पर बोझ डालकर या बंधन में बंध कर  ना हो तभी ठीक। फिर अगर किसी को कुछ देना भी हो तो ऐसा तो हो कि वह उसका इस्तेमाल कर सके। अपने घर का फालतू सामान दूसरे को उपहार में देना सही नहीं है। अक्सर यही देखा जाता है दिवाली में तो कभी-कभार आपका दिया तोहफ़ा ही घूम-फिर कर आपके पास ही वापस आ जाता है। इस लिए बेहतर यही कि “ना दें ना लें”

आप मेरी बात से सहमत हों तो प्लीज लाइक-कमेंट अवश्य दें। आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी हौसलाअफजाई है। धन्यवाद

#स्वार्थ

कुमुद मोहन

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