आज़ादी।-  कामनी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ना मुझे आपके पैसे चाहिए ना आपकी संपत्ति…  मैं अब बच्ची नहीं हूँ। अपने तरीके से जीने दो मुझे। कहते हुए कोमल पैर पटकते हुए घर से बाहर चली गई। मम्मी और पापा खुद को दोषी मानते हुए आज फिर एक दूसरे से यही बात करते रहे… नहीं, हमें बच्चों को थोड़ा स्पेस देना चाहिए। शायद हम ज्यादा ही दखल देते हैं बच्चों की ज़िन्दगी में। कोमल अभी शादी नहीं करना चाहती और माही… वो तो कब का हमसे दूर हो गया है। 

नहीं कविता… दिल छोटा मत करो, हम भी अपनी जगह सही हैं और बच्चे भी। हम भविष्य का सोच कर फैसला ले रहे थे कि कोमल को आगे कोई परेशानी न हो। पर कोमल समझती है हम उस पर दबाव बनाते हैं और हम पैसे खर्च नहीं करने देते। कविता ने पति राज के बाहर जाते ही कोमल को फोन करना शुरू कर दिया…

कोमल गुस्से में फोन नहीं उठाती और दिनभर अपनी सहेली के घर बैठी रहती है। बेटा माही तो पहले ही दूसरे शहर नौकरी करता था। उसने भी साफ कह दिया था ना मुझे आपके पैसे चाहिए ना आपकी संपत्ति। मैं बस अपनी मर्जी से आज़ाद होकर रहना चाहता हूँ।लगता था अब वो शादी भी वहीं करना चाहता है। उसे घर वापस आने को कहो तो बहाने बनाकर टाल देता था। जैसे घर में उसे हमने पाबंदी लगा कर रखा हो।

कोमल अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, नौकरी पसंद नहीं आती थी। कोमल जानती थी कि पापा ने बहुत संपत्ति बनाई थी, गांव में पुश्तैनी घर,बाग, और बरसों की कमाई जोड़ कर बनाई हुई संपत्ति, गाड़ी,बंगला। बहुत कुछ तो था, पर जाने मम्मी पापा पैसे खुलकर खर्च करने से रोकते क्यों हैं?? कोमल का गुस्सा शांत होता है तो वो फोन उठा लेती है। बोलो मम्मी, अब क्या है?? 

आज का सोचा करो, भैया भी यही समझाता है आपको। आज मुझे खर्चा करने का मन है, अपनी पसंद की खरीदारी करने का, अच्छा पहने का , घुमने का, दुनिया देखने का मन है। आप और पापा तो चाहते हैं कि बस भविष्य के लिए पैसे जोड़ कर रख लिए जाएं। बाद किसने देखा है?? जब पैसे खर्च करने की बात करो,आप और पापा यही भाषण देते हो सारे पैसे, संपत्ति तेरी तो है। तू ही खर्च करना, फिजूल मत गंवा। मुझे नहीं चाहिए कुछ। जब आप मुझे आज मर्जी से खर्च नहीं करने देते, बाद में क्या करूंगी पैसे??, मुझे शौक आज है। अच्छा कोमल… अब घर आ जा। 

कविता जान चुकी थी बच्चों और अपने बीच की खाई को भरने के लिए कुछ कदम उनको आगे बढ़ना होगा। राज घर आ चुके थे। थोड़ी देर में कोमल भी आ जाती है। मम्मी को देख कर अजीब तरह से मुस्कुराती है पर पापा को देख फिर गुस्से वाला मुंह बना लेती है। कविता राज को समझाती है,

जब इनके लिए रखा पैसा इन्होंने ही खर्च करना है तो हम क्यों इनके पहरेदार बने??चलो कुछ दिन बाहर तीर्थ हो आते हैं और अपने पुश्तैनी घर में रहने चलते हैं। वैसे भी अब रिटायर तो हो ही गए हैं, समय भी होता है। अपने बागों का ख्याल रखेंगे तो समय भी आसानी से बीतेगा। भगवान् का दिया बहुत कुछ है। बच्चों के लिए भी है और हमारे कल के लिए भी अपना सा है । इसी बहाने अपनों से मिलना भी होगा और अपनेपन से थोड़ा सुकून भी मिलेगा।

इस दिखावे की दौड़ से डर सा लगता है। हम बहुत पीछे रह गए हैं और हमारी पीढ़ी आगे बढ़ना चाहती है, दौड़ लगाना चाहती है।  आज़ादी से जीना चाहती है। राज और कविता समान इकट्ठा करते हैं। माही से भी कह देते हैं, हम पुश्तैनी घर में जा रहे हैं, कोमल को भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ता कि मम्मी पापा जितनी मर्जी देर रहें उस घर में।

कोमल  इतनी बड़ी तो थी कि, खुद का ख्याल रख सके। कोमल उनको जाता देख कर चैन की सांस लेती है कि अब वो अपनी मर्जी से आज़ादी से अपनी ज़िंदगी  जी पाएगी। कविता और राज इस उम्मीद से घर से निकलते हैं कि शायद उनके दूर जाने से बच्चों को उनकी बातों की समझ आए कि वो क्या बात समझाना चाहते हैं। 

कामनी गुप्ता***

जम्मू!

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