आत्मग्लानि – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : कामिनी जब से शारदा के घर से आई थी आत्मग्लानि से बोझिल हुई जा रही थी,मैं तुम्हारी मदद करूंगी शारदा को हर वक्त ऐसा बोलने वाली कामिनी आज अपने आपको बहुत छोटा महसूस कर रही थी।

                      शारदा कामिनी के घर काम करती थी झाड़ू पोंछा बर्तन वगैरह, उसके तीन बेटियां और एक बेटा था।की सालों से वह कामिनी के घर काम कर रही थी। कामिनी ने उसकी लड़कियों की पढ़ाई लिखाई में और शादी ब्याह के समय मदद करने को कहा था और अक्सर जरूरत पड़ने पर करती भी रहती थी। शारदा भी कामिनी के घर बहुत अपने पन से काम करती थी ।

शारदा कहती आप लोग मेरे मां बाप की तरह हो ।जब कभी कामिनी की तबियत खराब होती तो बिना कहे शारदा घर का सारा काम करती थी खाना भी बना कर रख देती थी। अभी कुछ समय पहले कामिनी का एक्सीडेंट हो गया था जिससे कामिनी के हाथ और पैर में दो फैक्चर थे आपरेशन हुआ था अस्पताल में एक हफ्ते रहना पड़ा था कामिनी को । शारदा ने पूरा घर संभाल रखा था कोई परेशानी नहीं हुई कामिनी को ।

और जब कामिनी घर आई तो सारा काम निपटा कर शारदा घर चली जाती थी और अपनी बड़ी बेटी को कामिनी की देखभाल के लिए दिनभर को छोड़ जाती थी । कामिनी भी शारदा का बड़ा अहसान जताते थी ।हर सुख दुख शारदा कामिनी से और कामिनी शारदा से कहती रहती थी।

बस ऐसे ही चलता रहता था कामिनी को बहू बेटे की कमी महसूस नहीं होती थी ।बेटा बहू बाहर रहते थे दोनों नौकरी करते थे। इसलिए ज्यादा समय के लिए घर नहीं आ पाते थे छुटियां नहीं मिल पाती थी इतनी। कामिनी को बेटा अपने साथ चलने को कहता था लेकिन कामिनी को यही अच्छा लगता था। शारदा से थोड़ा हंस बोल कर समय कट जाता था वहां बेटे बहू के पास समय ही कहां होता था।

                   शारदा को बेटे की फीस जमा कराने को पांच हजार रूपए चाहिए थे सो कामिनी से कहा शायद ने मांजी बेटे की फीस जमा करनी है आप दे दो काम के पैसे से आप धीरे-धीरे काट लेना पैसे । कामिनी ने दे तो दिए थे लेकिन लो बेटियों के लिए करती थी बेटे के लिए नहीं क्योंकि वो ढंग से पढ़ता लिखता नहीं था । इसलिए कामिनी शारदा को डांटती थी कि लड़कियां पढ़ना चाहती है तो तू उनको पढ़ाती नहीं और सारा पैसा बेटे पर ही खर्च करती है ।

तो शारदा बोलती लड़कियों को तो ब्याह कर दूसरे घर जाना है सहारा तो बेटा ही बनेगा न ,इन छोटे लोगों में अभी भी लड़के लड़कियों का फर्क होता रहता है दूध लेंगी तो बेटे को जरूर पीने को देंगी बेटियों को नहीं ।बेटा किसी चीज की मांग कर देगा तो उसे तुरंत पूरा करेगी। बेटियां कामिनी से शिकायत करती कि मम्मी हम लोगों को नहीं करती है और भाई को सबकुछ करती है कहती हैं तुम लोग तीन तीन हो भाई तो एक ही है इसलिए कामिनी बेटे के लिए कुछ मदद करने को नानूकर करती थी लेकिन स्कूल की फीस भरनी थी तो दिया पैसे और हिदायत दी कि ढंग से पढ़ाई करें दोबारा से फेल हो रहा है।

                 शारदा इधर की दिनों से काम पर नहीं आ रही थी की दिनों से क्या सत्रह अठारह दिनों से काम पर नहीं आ रही थी फोन तो है नहीं उसके पास पता लगा कि बीमार है कामिनी अकेले परेशान हो रही थी इधर उधर से पता लगवाया तो पता चला कि शारदा ज्यादा बीमार है ।

वीपी बिल्कुल लो हो गया था और काम करके जब घर को वापस जा रही थी तो सड़क पर गिर गई थी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कमजोर तो थी ही शारदा फिर चार चार बच्चे और चार पांच घरों में चौका बर्तन भी करती थी आदमी बिजली का थोड़ा बहुत काम करता था जब मिल जाता था नहीं तो घर में बैठा रहता था ।

शारदा को मेहनत तो ज्यादा पड़ ही जाती थी घर का करें फिर बाहर जाकर करें खाना पीना ढंग का मिलता नहीं है जरूरी जरूरतें पूरी हो जाए यही बहुत है । शारदा बताती है आधा किलो दूध लेते हैं उसी में सबकी चाय बन जाती है और बेटे को पीने के लिए भी दे देती है पता नहीं कैसे हो पाता है ।अब पूरे परिवार का खर्चा तो नहीं उठा सकती लेकिन जरूरत पड़ने पर मदद करती रहती थी सामान वगैरह भी दे देती थी जिसके एवज में शारदा कामिनी के घर के कामों में मदद कर देती थी ।

                  फिर एक दिन कामिनी को किसी और काम वाली से पता चला कि शारदा बीमार तो थी लेकिन अब वह ठीक है और गया जी गई है अपने माता-पिता के साथ । कामिनी को बहुत गुस्सा आया कि यहां बीस दिन से काम पर नहीं आ रही है और गया जी घूम रही है । ऐसे ही एक दिन कामिनी को बाजार में शारदा की बड़ी बेटी टकरा गई तो कामिनी ने उसको खूब खरी खोटी सुनाई कि बीस दिन से काम पर नहीं आ रही हो और बीमारी का बहाना बनाकर बैठी हो और गया जी घूम रही हो ।

शारदा की बेटी ने कहा नहीं दादी मम्मी तो घर पर हैं वो बीमार है कहीं नहीं गईं आकर देख ले । लेकिन शारदा को विश्वास नहीं हुआ। कामिनी गुस्से में घर आ गई और शारदा के घर जाने का मन बनाने लगी ‌कामिनी ने एक आटो रिक्शा किया और पूछते पूछते शारदा के घर पहुंच गई। वहां जाकर देखा तो शारदा बिस्तर में पड़ी थी बिल्कुल कमजोर सुस्त सी उसके मुंह से तो आवाज भी नहीं निकल रही थी । कामिनी को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई शारदा बोली गया तो मेरे माता-पिता गये है हम तो चल भी नहीं पा रहे हैं हम कहां जायेंगे।

                 फिर शायद ने दो सौ रूपए निकाल कर कामिनी की तरफ बढ़ाया कि ये ले लो मांजी बाकी पैसे आपके धीरे धीरे लौटा दूंगी ।असल में जब बाजार में शारदा की बेटी मिली थी तो कामिनी ने उससे पैसे के लिए भी कह दिया था कि पैसे लेकर तुम लोग बैठ जाते हो ।

          कामिनी आत्मग्लानि से भर उठी और बोली नहीं शारदा मुझे पैसे नहीं चाहिए मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था तुम अपना ढंग से इलाज करवाओ ठीक हो जाना तो आना कोई बात नहीं ।मुझ नहीं मालूम था कि तुम इतना बीमार हो।और कामिनी के पास एक पांच सौ का नोट पड़ा था निकाल कर शारदा को दिया कि इससे थोड़े फल वगैरह मंगा लेना और जल्दी से ठीक हो जाओ फिर आना काम पर । आत्मग्लानि से भरी हुई  कामिनी घर आ गई और ये सोच लिया कि बिना पूरी बात अच्छे से जाने किसी को भला बुरा नहीं कहना है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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