आत्मग्लानी – माधुरी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : एसी कोच में बैठे होने पर भी सुधा जी केचेहरे पर पसीना आ रहा था,बगल में बैठे पति मनोहरजी ने पूछा

  क्या बात है है तबियत तो ठीक है न तुम्हारी इतना पसीना क्यों आरहा है फिर।नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही मन में

कुछ पिछली कडबी यादें सिर उठा रही थी। अच्छा ऐसी कौन सी कडबी यादें हैंजो तुम्हारा चेहरा पसीने से भीग रहा है,जहां तक मुझे याद है मैंने तो तुमसे कभी भी तुम्हारा दिल दुखाने वाली बात नहीं की,हमेशा तुम्हें पूरा मान

 सम्मान दिया है, तुम्हारी हरेक इच्छा को पूरा किया है,चाहे इसके लिए मुझे कभी-कभी जोरू का गुलाम जैसे

  विशेषण से भी मां ने मुझे पुकारा।फिरआज ऐसी कौन सी याद तुम्हारे मन मेंखटक रही है , क्या शेयर

  नही करोगी  मुझसे।

  अच्छा सुनो जब तुम इतनी जिद कर ही रहे हो तो सब बताती हूं।याद है पांच साल पहले जब हमारे बेटे मनीष ने

  किसी विजातीय लड़की से विवाह करके उसे हमारी बहू का दर्जा दिया था तो मैने घर में कितना क्लेश किया था।मैने तो उस सीधी साधी सुरीली को अपनी बहू  तक  मानने से इन्कार कर दिया था।

आप व मनीष तो अपने अपने ऑफिस चले जाते ,फिर मै उस नादान लड़की का जीना हराम कर देती।बहमुझे खुश करने का भरसक प्रयास करती परंतु मैं उसके हरेक काम में मीनमेख निकाल कर उसे नीचा दिखाने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती।

जबकि मेरे द्वारा किया गये गलत व्यवहार की मनीष से भी कोई शिकायत नहीं करती थी।दरअसल सुरीलने पढाई करने के चक्कर में घर के काम काज की तरफ ध्यान ही नही दिया था,अपनी खुंदक निकालने के चक्कर में मैं कभी कभार उसकी मां तक को कोस डालती,कैसी मां है बेटी को घर का कामकाज तक नही सिखाया।

  सुरीली यह सब सुन कर कभी उदास जरूर हो जाती थी ,लेकिन उसने कभी भी पलट कर मुझे जबाव नही दिया।

   और आज जब हम लोग अपने बेटे बहू के पास पूरे एक महीने रह कर लौटे है,तो उसने हमें कितना मान सम्मान दिया है, कितना अच्छा खाना बनाने लगी है,मेरी पसंद न पसंद का कितना ख्याल रखती रही,सच कहूं तो हमारी बहू तो जस नाम तक गुण है,बोलती है तो ऐसा लगता है कि उसके मुंह से फूल झड़ रहे हों।घर को भी कितने करीने से सजा कर रखा है,घर वापस दोनों तरफ की जिम्मेदारी कितनी सुघड़ता से निभारही है।

  अपनी पिछली गलतियों व व्यवहार के लिए  जव मैने उससे कहा बेटा सुरीली  हो सके तो मुझ माफ कर देना मैने नासमझी में तुम्हारे साथ बहुत गलत व्यवहार किया,और तुम चुपचाप सब सहती रही,तुमने तो मनीष से भी मेरे

इस गलत व्यवहार की शिकायत तक नही की।

   जानते हैं इस पर उसने कहा कि नही मम्मी जी माफी तो मुझे आपसे मांगनी चाहिए कि मेरी नादानियों ने आपका दिल दुखाया।

 उसके घर से निकलते हुए किस तरह लिपट करके रही थी,जैसे मेरी सगी बेटी हो।

 बस यही सारी बातें सोच सोच कर मेरा मन आत्मग्लानि से फटा जा रहा है,ये पसीना उसी आत्मग्लानि के कारण ही आ रहा ।

स्व रचित व मौलिक

  माधुरी

 आत्मग्लानी

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