Moral Stories in Hindi : सौजन्य के माता पिता के अलावा घर में उसकी दादी भी थी जो अब कुछ अस्वस्थ रहतीं थी। उन्हें घर में किनारे के एक छोटे सा कमरा दिया गया था ।वो ज्यादातर कमरे के अंदर ही रहतीं ।यदि कभी बाहर आना चाहतीं तो भी उनकी मम्मी पसंद नहीं करतीं कहतीं “चिकने फर्श हैं गिर जाओगी तो कौन देखरेख करेगा?
अभी कम से कम खुद बाथरूम तो चली जाती हो बिस्तर पर पड़ गई तो मुझसे सेवा की उम्मीद न रखना।”बेचारी मन मसोस कर रह जातीं ।सौजन्य यह सब देखता ,समझता ,उसे दादी से बहुत लगाव और हमदर्दी थी । उसे याद आता कि बीमार होने से पहले दादी बहुत एक्टिव थीं।पहले सुबह सवेरे उठकर मोहल्ले के पार्क का चक्कर लगा के आतीं।
आकर नहा धो कर पूजा करतीं और फिर मंदिर जातीं।मंदिर में वो अक्सर भजन गाया करतीं इसलिए वो वहां सभी में बहुत प्रचलित थीं।उनका भजन मंडली का एक अच्छा खासा सर्किल था लेकिन दो माह पूर्व गिर जाने की वजह से उनका आप्रेशन हुआ था ।अब वो वाकर के सहारे चलने भी लगीं थीं लेकिन मम्मी ने उनके बाहर जाने पर प्रतिबंध ही लगा दिया था कि दुबारा ऐसी प्राब्लम फेस न करनी पड़े।
उनको अंदर ही अंदर बंद कसमसाते देख वो उदास हो जाता ।उसने जाकर एक दिन दादी से पूछा” आपको बाहर जाने का मन नहीं करता ?”दादी बोली किसका मन नहीं करता बाहर निकलने को कौन घुटन में सारा दिन रहना चाहता है ।बेशक कितनी सुविधाएँ हो पिंजरे में लेकिन पंछी को खुशी तो बाहर आजाद रहने में ही मिलती है ना”
सौजन्य ने कहा “ठीक है आप कल से तैयार रहना मैं टयूशन जाते समय आपको कालोनी के मंदिर छोड़ दिया करूँगा और आते समय लेते आया करूँगा ।
मुझे पता है जब आप स्वस्थ थीं तो रोज वहाँ जातीं थी आपकी सहेलियां भी हैं वहाँ ।वो तो अभी भी आपका पूछतीं हैं ।मम्मी से मैं बात कर लूँगा। मैं साथ होऊँगा तो मम्मी को कोई आपत्ति नहीं होगी।” इतना सुनते ही उनकी आँखो में चमक ,शरीर में स्फूर्ति और चेहरे पर खुशी छा गई ।
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वो बोली “सच में तू मुझे ले जाएगा ना मंदिर “हाँ बिलकुल कल आप इसी समय तैयार रहना ।दादी ने खुशी ने सौजन्य को गले लगा लिया ।वे उसक पल से ही कल का इंतजार करने लगीं ।कितने दिन हो गए मंदिर गए,पडोसियों,गली मोहल्ले ,रास्तों को देखे,अपनी मंदिर की सहेलियों से गप्पें मारे।
अगले दिन टूयूशन के समय सौजन्य दादी का हाथ पकडकर मंदिर ले गया हालांकि सपोर्ट के लिए वो वाकर के सहारे ही चल रहीं थीं।बहुत दिनों बाद उसने पुरानी दादी की तरह चपलता महसूस की ।बच्चों की तरह वे रास्तों,सडकों को निहार रहीं थी ।सभी पास-पड़ोस वालों को देख के हुलस रहीं थीं ।
यहां तक कि सब्जी वाले , किराना वाले और सभी रेहड़ी वाले उनको देख कर बहुत खुश थे और कोई कोई तो उनके पैर भी छू रहे थे ।दादी भी कभी किसी की बेटी की शादी का ,कभी किसी की पत्नी की बीमारी और कभी किसी से बच्चों की पढ़ाई और नौकरी का पूछ रहीं थीं।
सौजन्य हैरान था कि उन्हें सबके परिवार की पृष्ठभूमि पता थी।
वो सब के अभिवादन का गर्मजोशी से जवाब दे रहीं थीं ।सबके परिवार और बच्चों का हालचाल लेते ऐसे ही मंदिर पहुँच गईं ।एक अभूतपूर्व शान्ति सुकून अनुभव किया सौजन्य ने उनके चहेरे पर ।अपनी सहेलियों को मिल कर तो वे रोने ही लगीं ।सौजन्य उनके इस रूप से आश्चर्य चकित भी था और खुश भी ।
चाहे एक घंटे के लिए ही सही दादी में मानो प्राण वापिस आ गए थे। वो उनको छोड़ कर चला गया और आते समय घर ले आया ।दादी इतनी खुश थीं कि मानो कोई खजाना हाथ आ गया हो ।सारे रास्ते वो वहाँ की बातें उमग उमग कर बतातीं रहीं और सौजन्य को ढेरों आशीर्वाद दे डाले।
अब तो रोज का यही क्रम बन गया था और इन सबका सुखद परिणाम यह हुआ कि डाॅक्टर ने हैरान होते हुए स्वयं ही उनकी ब्लडप्रेशर व विटामिन्स की गोलियां बंद कर दीं ।अब तो वो कभी-कभी बिना वाकर के बस सौजन्य का हाथ पकड़े भी चल लेतीं ।वो अपनी सारी घुटन ,बीमारी ,उदासी ,अवसाद वहाँ छोड़ आतीं और बदले में ले आतीं मुस्कान ,खुशियाँ,सकारात्मक ऊर्जा और सुकून।वो एक घंटा उनकी तेईस घंटे की शून्यता को भरने के लिए संजीवनी बन गया था और सौजन्य उनका” हनुमान” ।
पूनम अरोड़ा