आने वाला पल जाने वाला है – निशा जैन  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : –  रोहन बेटा आजकल लेट आ रहे हो ऑफिस से ? कई दिनों से बैठे नही मेरे पास आकर रोहन के पिताजी शंभूनाथ जी ने पूछा

 हां पापा आजकल  एक प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है बस उसी मे लगा रहता हूं। अभी निकल ही रहा हूं बस ।

 रोहन और शंभूनाथ जी में अक्सर ये ही दो चार बातें होती थी।

  शंभू नाथ जी को  सुबह जल्दी उठकर वॉक पर जाने की आदत थी ।वो सुबह पांच बजे उठकर चाय पीकर फ्रेश होते फिर वॉक पर चले जाते , आने के बाद नहा धोकर मंदिर चले जाते । वहीं रोहन  उनके वॉक पर जाने के बाद  उठता था। और उनके मंदिर से आने के पहले ही ऑफिस चला जाता और रात को लेट आता ।

   एक घर में रहने के बावजूद भी पिता पुत्र अक्सर कम मिल पाते। कभी रोहन जल्दी आ जाता तो उसके फोन चैन नहीं लेने देते ,कभी  शंभूनाथ जी अपनी टीवी पर न्यूज या सीरियल देखने में लगे रहते। दोनो सोचते कल थोड़ी देर बैठेंगे पर आने वाला कल कब बीता हुआ कल बन जाता किसी को पता भी नही चलता। 

   पिता पुत्र मे बातचीत काम से ही होती । शंभूनाथ जी की पत्नी सावित्री जी की कैंसर से मौत हो चुकी थी तब से वो कम ही बात करते और रोहन बचपन से ही अपने पिता से डरकर रहता था क्युकी शंभूनाथ जी का स्वभाव थोड़ा गुस्सैल था। इसलिए उन्होंने कभी मुश्किल से ही कीमती पल साथ बिताए होंगे।

   रोहन के दो बच्चे थे वो भी अपने पढ़ाई में व्यस्त रहते या खेल कूद में या फिर मोबाइल या टीवी

   घर का माहोल तनावयुक्त ज्यादा और प्यार भरा कम रहता

    आने वाले पल एक एक कर जा रहे थे साथ में उनका आपसी रिश्ता भी कमजोर पड़ रहा था और एक दिन शंभूनाथ जी भी बीमारी के चलते कम बल्कि अकेलेपन की वजह से  चल बसे।

    

     रोहन को अब पछतावा रह गया कि अपने पापा के साथ कुछ यादगार पल कभी क्यों नही बिताए। क्यों उनको समझा नही।  क्युकी  वो ये बात अब समझा कि आने वाला पल जाने वाला है ,हो सके तो इसमें जिंदगी बिता लो पल जो ये जाने वाला है………यही सोचकर उसे रह रह कर आत्मग्लानि हो रही  थी।

      जैसा रोहन और शंभूनाथ जी का रिश्ता था , लगभग वैसा ही रिश्ता रोहन का अपने बेटे अवि के साथ था। और आज रोहन शंभूनाथ की जगह और अवि रोहन की जगह खड़ा था पर अब रोहन नही चाहता था कि  कल को अवि और उसके बेटे का रिश्ता भी वैसे ही बन जाए, जो गलती उन दोनो बाप बेटों ने की एक दूसरे के साथ वक्त नहीं बिताने की वो  अवि और उसका बेटा  भी करे । 

      क्युकी उसने महसूस किया था की जो बोएगा वही पाएगा  अर्थात जैसा उसने अपने पापा के साथ किया वैसा ही अवि अपने पापा के साथ कर रहा है इसलिए वो नही चाहता की अवि के बच्चों पर कुछ गलत प्रभाव पड़े इसलिए उसने पहल करके अवि को अपने पास बुलाया और कहा 

       बेटा, तुमने शायद मुझे दादाजी से कभी हंसते , बोलते नही देखा इसलिए तुम भी मुझसे ऐसा ही व्यवहार करते हो शायद,  पर ये मेरी गलती थी जो मैने उन पलों को जिया नही , अपने में ही मस्त रहा । कभी अपनों को समय नहीं दिया । अपने पैसे कमाने के चक्कर मे  , काम की भागदौड़ में ये समझा ही नहीं की समय किसी के लिए नही रुकता, आने वाले पल जाने वाले भी होते हैं और शायद दादाजी भी मुझे ये समझा न सके पर मुझे  अब बहुत आत्मग्लानि होती है मेरे पिताजी के बारे में जब भी सोचता हूं कि क्यों मैने कभी उनके अकेलेपन और उदासी को नही समझा? क्यों मैने कभी उनके मन को जानने की कोशिश नही की? रोहन लगभग रोते हुए बोला

        पर अब जब मैं उनकी जगह और तुम मेरी जगह खड़े हो तब एहसास हुआ  है कि बुढ़ापे में अपने बच्चों के साथ बिताए पल शरीर में जान फूंक देते हैं। जो पल हमे मिलते हैं उन्हें साथ बैठकर जी लेने से बड़ा सुख और कोई नही। 

       तुम्हारा बुढ़ापा ऐसा न हो इसलिए समझा रहा हूं जो समय गुजर गया उसे भूल जाओ और अब से कुछ समय परिवार के साथ , अपनों के साथ भी बिताओ। बच्चों के साथ खेलो, पत्नी को घुमाने ले जाओ। जो गलती मैने की वो तुम मत करो। देखो तुम्हारी मां भी अकेलेपन और ज्यादा सोचने  से कितनी जल्दी बीमार हो गई ।( रोहन की पत्नी रमा को आर्थराइटिस, बीपी, शुगर ,थायराइड सारी बीमारियां चिंता और तनाव की  वजह से समय से पहले ही घर कर गई थी)

        शुरू से घर का माहोल ऐसा ही देखा था मैने बस वैसा ही मैं भी बन गया पर अब गलती पता चली तो उसे सुधारना बहुत जरूरी है।

        अब समझ आया कि नौकरी , पैसे कमाना अपनी जगह है और परिवार के साथ बिताए पल अपनी जगह इसलिए अभी भी देर नहीं हुई है बेटे अपने परिवार को सम्हाल क्योंकि कल के चक्कर में आज कब, कल बन जायेगा पता भी नही चलेगा।

         अवि भी रोहन की बात और अपनी गलती अब तक समझ चुका था इसलिए रोहन के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा और रोहन ने उसे गले लगा लिया

          अगले दिन घर में बड़ी चहल पहल थी तो रोहन ने देखा अवि और उसके बच्चे आज साथ में क्रिकेट खेलने की तैयारी कर रहे थे और अंपायर थी अवि की पत्नी ऐशा

          तभी रोहन के दोनो पोते भागते भागते आए और बोले दादा , दादी आप हमारे खेल देखने वाले ऑडियंस( दर्शक ) बनोगे?

           रोहन और रमा ने साथ कहा….” क्यों नहीं बच्चों हम तुम्हारे लिए चीयर जरूर करेंगे।” रमा रोहन का ये रूप देखकर दंग रह गई और आंखों ही आंखो में उसे बहुत धन्यवाद दिया कि चलो रोहन को समझ तो आया परिवार की अहमियत क्या होती है। नही तो पहले जब भी रमा बोलती कि पिताजी के पास बैठो, दो बातें करो तो रोहन हमेशा समय नही है का बहाना बोलकर किनारे हो लेता था।

            पर अब रोहन को आत्मग्लानि हुई तो उसने अपनी गलती को दोहराया नही बल्कि आगे से पहल कर अपने बेटे को समझाया कि समय किसी के लिए नही रुकता । हम आज को कल पर छोड़ देंगे तो शायद आत्मग्लानि के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा पर आज को आज में अपनों के साथ जी लेंगे और समय का भरपूर उपयोग कर लेंगे  तो जिंदगी खुशियों से महक उठेगी।

            दोस्तों हम जिंदगी की भागदौड़ में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि कभी कभी हमारे रिश्तों पर धूल जमने लगती है और हम कल के चक्कर में अपने आज के आने वाले पलों को जीना भूल जाते हैं और भविष्य में अतीत को सोचकर पछताते हैं और  हमेशा आत्मग्लानि में जीते हैं । कब अपना आज ,कल बन जाता है पता ही नही चलता।

             इसलिए तो कहते हैं आने वाला पल 

             जाने वाला है

             हो सके तो इसमें जिंदगी बिता लो 

             पल जो ये जाने वाला है ……..

धन्यवाद

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

दिल्ली

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