आखिर कब तक – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : राधिका जी अपनी तीनो बेटीयों , पति सुमेशजी के साथ हंसी खुशी जीवन बिता रही थी । यूं तो गांव में उनका संयुक्त परिवार था किन्तु यहाँ जयपुर में वे अपने जेठजी के परिवार से अलग रहती थीं ।जब से उनकी बड़ी बेटी थोड़ी समझदार हुई थी तब से वह अपने ताऊ जी के लड़कों को राखी बांध रही थी। उनकी जिठानी को चार-चार लड़के होने का बड़ा घमंड था।

खैर समय चक्र चलता रहा और यह क्रम भी ।फिर राधिका जी की तीनो बेटीयां राखी बाँधती ,पर हर बार कुछ ऐसा होता कि मन क्षुब्ध हो जाता। घर से हंसी खुशी मिठाई का डिब्बा ले वे सब करीब ग्यारह किलोमीटर दूर जाते किन्तु वहाँ जाकर मन खराब हो जाता । ऐसी बातें बोली जाती जो अहसास कराती कि उनके बेटा नहीं है. तुम हमारे बेटों पर निर्भर हो। मेरी बेटियों की थाली में मात्र एक दस रुपए का नोट डाल दिया जाता। वहीं जेठजी जी अपनी वेटीयों से पूछते बताओ तुम्हें क्या चाहिए। हमारे सामने ही उन्हें सौ-सौ रुपये दिए जाते ।समझती तो मैं भी थी किन्तु अनदेखा कर जाती ।

किन्तु अब मेरी बड़ी बेटी समझदार हो गई थी। घर आकर बोली मम्मी हम तो वापस आने वाले ही थे तो ताऊ जी दीदीयों को रुपये बाद में भी तो दे सकते थे। अपने सामने ही दिखा कर क्यों दिए।

होगा बेटा ऐसा नहीं कहते ।

नहीं मम्मी अपन तो इतनी खुशी से जाते हैं किन्तु वहां से हमेशा दिमाग खराब कर के ही आते हैं। अब चलना बंद करो अब हम नहीं चलेंगे।

नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते वे बड़े है हमसे उन्हें बुरा लगेगा।

तो क्या हमें बुरा नहीं लगता ।

मैं भी उनका अहसान नहीं रखना चाहती थी इसलिए कई गुना कीमत की मिठाई दे कर आती। पापा से बहुत बड़े हैं सो पापा को भी बुरा लगेगा।

राधिका जी पढ़ी लिखी नौकरी पेशा महिला थीं । वे बड़ी ही सुलझे विचारों वाली थीं। अपने काम में मस्त रहतीं, कभी इधर -उधर की बातों को ज्यादा तूल नहीं देती थीं।

सोमेशजी अपने भाई से बहुत छोटे थे। पिता के छोटी उम्र में ही न रहने पर भाई ने ही उन्हें पाला पोसा था। अतः वे भाई भाभी को माता-पिता समान ही आदर देते थे।और यही अपेक्षा वे राधिका से भी करते थे , पति की भावनाओं को ठेस न पहुंचे इसलिए बुरा लगते हुए भी अनमने भाव से अनदेखा कर देतीं थीं। सोमेशजी की यह विनम्रता उनके भाई की नजर में उनका दब्बूपन था और वे अक्सर उनका मजाक भी बनाते थे।

खैर अनिच्छा से ही सही ,क्रम चालता रहा

करीब तीन साल बाद उनके दूसरे नम्बर के बेटे के मकान का गृह प्रवेश था सो हम सब वहां गए। दूसरे शहर में था सो सुबह पहुंच कर शाम तक रुकना था। उस दिन होली के बाद की भाई दूज थी मेरी बेटीयाँ भी हमेशा टीका करती थीं किन्तु इस बार उनकी दोनों बहनों और भाइयों ने पुराने मकान में जाकर चुपचाप टीका करवा कर आ गए। किन्तु माथे पर लगे टीके ने तो चुगली कर दी।

मेरी बेटी बोली मम्मी दीदी ने ते हमसे कहा ही नहीं और टीका कर भी दिया। अब हम मिठाई लेकर आए थे, क्या अब अलग से करेंगे।

राधिकाजी बोली नहीं बेटा अब तुम लोग चुप रहो कुछ नहीं करना है। मन खट्टा हो गया था । राधिका की सोचने लगी एक बेटा न होने का खामियाजा मेरी बेटीयों को भुगतना पडता है वे कितनी उदास हो गईं। उन्हें देख राधिका जी की आँखे भी नम हो गई। किन्तु राधिका जी ने ऊपरी तौर पर कुछ जाहिर नहीं होने दिया।

संयोग देखिये की ठीक एक साल बाद होली की ही भाई दूज पर उनके बड़े बेटे के मकान का गृह प्रवेश था ।सब नये घर में ही मौजूद थे किन्तु उन भाई बहनों ने एक कमरे में जा कर फिर चुपचाप टीका कर लिया और मेरी बेटीयों को फिर छोड़ दिया। इस बार मेरी बेटियों ने भी देखा पर कुछ बोली नहीं।

घर आकर वे बोली मम्मी आज फिर चुपचाप टीका कर लिया।

हाँ बेटा।

राधिका जी अपने पति से बोली – सुनो आज के बाद मेरी बेटियां न तो राखी बाँधने जाएंगी और न भाई दूज पर टीका करेंगी। अब तुम हमे इस कार्य के विवश नहीं करोगे। बहुत अपमान के घूंट पी लिए । अब सहन शक्ति के बाहर हो गया।

फिर बेटियों को समझाया बेटा दुःखी मत होओ। भाई से कुछ नहीं होता। तुम तीनों ही आपस में भाई भी हो और बहन भी। आपस में राखी बाँधकर पर स्नेह और हंसी खुशी से अपने दिन की शुरुआत करेंगे न की तानों और द्विअर्थी बातें सुन अपमानित होकर। अब तुम्हें कहीं राखी बांधने नहीं जाना पड़ेगा । बेटीयां खुश हो गईं। यही क्रम चल निकला तीनों एक दूसरे को राखी बाँध कर खुश होती हमें भी बांधती

कालान्तर में वडी बेटी के बेटा होने के बाद वे उसे व जीजा जी को राखी बाँधती वे हमेशा उन्हें छोटी बहनों सा प्यार देते।

जब तीनों की शादी हो गई। बच्चे हो गए किन्तु यह क्रम बराबर चलता रहा। छोटे दामादों ने भी यही क्रम अपना लिया।सब एक दूसरे को राखी भेजतीं। कभी इकट्ठा होते तो एक दूसरे को बाँधती।अपने पूर्व कटु अनुभवों को भूला कर राधिका जी सुमेशजी एवं उनकी बेटीयों ने एक नया खुशीयों भरा रास्ता तलाश लिया था। जहां सिर्फ खुशियां ही खुशियां थी न कोई ताने न अपमान।

राधिका जी के तीनों दामादों एवं चार दोहितों ने एक बेटे की कमी पूरी कर दी थी। पूरा परिवार खुशहाल था।

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मौलिक अप्रकाशित

31-10-23

बेटियां वाक्य कहानी प्रतियोगिता

 रिश्तों के बीच छोटी छोटी बातें कई बार बड़ा रूप ले लेती हैं # वाक्य प्रतियोगिता#

 

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