रंगीलो म्हारो ढोलना – कमलेश राणा

लड़कियां थोड़ी बड़ी होते ही अपने सपनों के राजकुमार की कल्पना करने लगतीं हैं,,स्वाति भी इससे अछूती नहीं थी,,वो भी कितने सपने संजो रही थी,,

शादी के बाद हम हनीमून पर जायेंगे,,फूलों की वादियों में,,सिर्फ़ हम दोनों एक-दूसरे के प्यार में मस्त,,वो बस मुझे ही देखेगा,,मेरी चाल,मेरे बाल ,मेरे गालों की तारीफ ही करता रहेगा जैसे हीरो करते हैं फिल्मों में,,

अनाप-शनाप पैसा होगा,,नौकरौं की फौज होगी,,बस मैं तो सज संवर कर राज करूंगी,,,पिया का घर है ये,,रानी हूं मैं घर की,,

इन सपनों को हवा देने का काम अपरोक्ष रूप से घर के बड़े लोग भी करते हैं,,अपने मन का कुछ भी करने का सोचे तो बस,,यहाँ मत करो,,अपने घर जाकर करना,,

उसके पापा ने उसके जीवनसाथी के रूप में अजय को चुना,,स्वस्थ सुदर्शन युवक था वो,,मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन,,हर तरह से स्वाति के योग्य,,परिवार में माता पिता और एक भाई था ,,

आखिरकार वह दिन भी आ गया जब उसे अपने पिया के घर जाना था,,संगीत में सखियाँ नृत्य करते समय उसको भी खींच ले गयीं और वह झूम उठी,,

आयो रे ,,आयो रे,,आयो रे म्हारो ढोलना,,

रंगीलो म्हारो ढोलना ,,जी,,

उसके सपनों का राजकुमार उसको अपनी नगरी ले गया,,,पंख लग गये थे उसके,,

दो तीन दिन तक जब अजय ने कहीं बाहर जाने को की बात नहीं की तो हिम्मत कर के उसने ही पूछा,,अजय ,,हम हनीमून के लिए कहाँ चल रहे हैं,,,

फिलहाल तो कहीं नहीं,,इस समय ऑफ़िस में काम बहुत ज्यादा है तो छुट्टी नहीं मिलेगी,,

पहली बार कुछ चटक सा गया स्वाति के अंदर,,वह अपनी सहेलियों से क्या कहेगी,,आजकल तो सभी जाते हैं,,पर वह चुप रही,,

अजय कर्मठ,कर्तव्यपरायण और परिवार के लिए समर्पित इंसान था,,मितभाषी,व्यसन से दूर ,सरल स्वभाव ,,ऑफ़िस से आ कर माँ पापा के पास बैठता,,फिर स्वाति के पास आता,,

पर वह चाहती थी कि अजय आते ही कहीं घुमाने ले जाये,,


एक दिन बरसात हो रही थी,,स्वाति बड़े रोमांटिक मूड में थी,,बोली,,चलो आज तो पार्क में चलते हैं,,बाहों में बांहें डाले भीगेंगे,,

अरे,,सर्दी हो जायेगी,,यहीं गरमागरम चाय पकौड़े का आनंद लेते हैं न,,

स्वाति बुझे मन से किचिन की ओर चल दी,,यह जीवन तो उसके सपनों की दुनियां से कोसों दूर था,,

 

कभी वह तैयार होती और पूछती,,कैसी लग रही हूँ,,तो संक्षिप्त उत्तर मिलता,,बढ़िया,,

जबकि उसे लगता अजय अपनी पसंद के पाश्चात्य परिधान लाये उसके लिये,,उसके अंग-अंग की तारीफ करे,,

धीरे-धीरे स्वाति अन्तर्मुखी होती जा रही थी,,वह दूसरों से अजय की तुलना करके कुढ़ती रहती,,उसे लगने लगा की अजय उसके योग्य नहीं है,,,

एक दिन बाजार में उसकी पुरानी सहेली मिल गई,,सहपाठियों के बारे में जानने की उत्सुकता तो सभी के मन में होती है,,

तब सहेली से उसने जाना,,किसी का पति निकम्मा था,,किसी का रात दिन शराब के नशे में धुत रहता,,किसी का दूर शहर में नौकरी करता और 6 महीने में 10 दिन के लिये आ पाता,,किसी की सास से नहीं पटती तो उसका BP ही बढ़ा रहता,,

यानि सर्वगुण संपन्न उसे कोई दिखाई नहीं दिया,,फिर उसके दिमाग में विचार आया कि अजय ने तो उससे कभी कोई शिकायत नहीं की,,

क्या उसमें कोई कमी नहीं है,,वह भी तो किसी मामले में अजय की सोच के अनुरूप नहीं होगी,,फिर उसे ही इतनी शिकायतें क्यों हैं,,

स्वाति जब घर आई तो उसका मन बहुत हल्का था,,आज अजय पर उसे बहुत प्यार आ रहा था और सास भी ममता की मूर्ति नज़र आ रही थीं,,

वह समझ गई थी कि फिल्मों में दिखाया जाने वाला जीवन आभासी दुनिया है,,असली दुनियां तो यही है,,कर्तव्य और प्यार से भरपूर,,

शाम को जब अजय घर आया तो वह गुनगुना रही थी,,रंगीलो म्हारो ढोलना

 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!