• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

अजनबी – मनीषा भरतीया

मानसी अपने पति मनोज ,सासू मां , और चार बच्चे, जिसमें 3 लड़कियां और 1 लड़के के साथ कोलकाता में रहती थी …..जीवन सुखमय बीत रहा था ….हालांकि मनोज बहुत ज्यादा नहीं कमाते थे पर जितना भी कमाते थे उसमें मानसी गुजारा कर लेती थी…..कभी शिकायत नहीं करती थी….मानसी बहुत ही सुदृढ़ और समझदार औरत थी ….मात्र 11 साल ही तो हुए थे शादी को बहुत सारे सपने संजोए थे…..उसने भी अपनी शादी के बाद के लिए लेकिन गृहस्ती की चक्की में वह कब पीस गए पता ही नहीं चला…तीन लड़कियां रीमा, शीला टीना और बेटा राहुल सबसे छोटा….चार चार बच्चों की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी और बीमार सासू मां भी लेकिन कभी उसने उफ तक नहीं कि यह सोच कर कि शायद उसकी जिंदगी में भी कभी सुख का सूरज आएगा….बस पति मनोज से एक बात कही कि मनोज मां जी के कहने पर लड़के की चाह में तीन तीन बेटियां हो गई कृपया अब नियंत्रण रखना ….क्योंकि मेरा भी शरीर है कोई मशीन नहीं और परिस्थिति भी उतनी अच्छी नहीं है कि हम एक और बच्चे का भार उठा सके …वैसे भी हम खाने वाले 6 प्राणी है और कमाने वाले सिर्फ आप…. 

कहते हैं कि सब्र का फल मीठा होता है जब शादी के 13 साल हुए तो मनोज जिस ऑफिस में काम करते थे उसके बॉस ने अपनी फैक्ट्री पटना में खोल ली…और मनोज का तबादला वहां हो गया….. वहां उसे कंपनी की तरफ से क्वार्टर भी मिल गया और सैलरी भी 200 से ₹300 हो गई. … यह उन दिनों की बात है जब ₹200 में पूरा घर  खर्च चल जाता था….. 


गाड़ी पटरी पर आने ही लगी थी तभी एक मुसीबत आन पड़ी….. क्वार्टर बड़ा होने की वजह से मालिक ने भास्कर नाम के इंजीनियर को मनोज के घर में ऊपर वाले माले पर रखने के लिए कह दिया….. बेचारी मानसी मन ही मन सोच रही थी जान ना पहचान मैं तेरा मेहमान…. लड़कियां भी धीरे-धीरे जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी ऐसे में किसी अजनबी जवान मर्द का घर में रहना खतरे से खाली नहीं था लेकिन मनोज भी मजबूर था…सो उसने  और मानसी ने लड़कियों को भास्कर से बात करने के लिए मना किया और स्कूल के बाद अपने कमरे में ही रहने की हिदायत दी….. लेकिन 1 महीने के अंदर ही मानसी को समझ में आ गया कि भास्कर शरीफ है….और उससे डरने की जरूरत नहीं है….. भास्कर ने भी जब मानसी की आंखों में उसके लिए अपने मन का भाव देखा तो पूछा दीदी क्या आप मुझे राखी बांधेगी मेरी कोई बहन नहीं है??  मानसी ने भी सोचा कि इसमें क्या बुरा है वह मेरा भाई तो बनना चाहता है सो मनोज से पूछ कर उसने भास्कर  को राखी बांधी और अपना धर्म का भाई बना लिया….. 

जब रिश्ता जुड़ ही गया तो फिर उसे भास्कर की हालत देख कर दुख हुआ क्योंकि वह रोज-रोज मेष का कच्चा पक्का और जला हुआ खाना खा रहा था…. लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया यह कहने की क्या दीदी मुझे आप अपने हाथों का का बना खाना खिलाओगी?? सो मानसी ने कह दिया कि भास्कर भाई तुम्हें अब बाहर खाने की जरूरत नहीं है तुम नाश्ता खाना सब हमारे साथ ही खा सकते हो…. तो भास्कर ने भी हंसते हुए कहा…मेरी भी एक शर्त है क्या मैं अपनी भांजियों और भांजे को घुमाने लेकर जा सकता हूं और उनके लिए उनकी मनपसंद चीजें ला सकता हूं …तभी मैं खाना खाऊंगा? ? 

मैं जानता हूं कि आप अपनी जगह सही थी आप की जगह कोई भी औरत होती तो शायद यही करती लेकिन अब तो आपको मेरा कैरेक्टर सर्टिफिकेट मिल ही गया होगा..

तो मानसी ने कहा हां हां क्यों नहीं… धीरे-धीरे बच्चे भी भास्कर से हिलमिल गए…. और सब एक परिवार की तरह रहने लगे…. भास्कर भी बच्चों के लिए कभी आइसक्रीम तो कभी चॉकलेट घर में लेकर ही घुसता…. बच्चे भी मामा मामा कहकर उससे लिपट जाते…. संडे संडे सब मिलकर घूमने जाते…. 


इसी बीच मानसी एक बार फिर प्रेग्नेंट हो गई …और डिलीवरी के समय पूरे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था…. क्योंकि डिलीवरी डेट 30 अक्टूबर की थी…. जिस दिन इंदिरा गांधी गुजरी थी…. उस समय मनोज फैक्ट्री के काम से बाहर गया हुआ था….. और मानसी की हालत बिगड़ती जा रही थी… डाक्टर ने हिदायत दी की पैशेंट के शरीर में खुन की बहुत कमी हो गयी है…. अगर तुरंत खुन नही चढ़ाया गया तो कुछ भी हो सकता है…. एक तो कर्फ्यू और ऊपर से 0 ग्रुप के खुन का इंतजाम करना…. बहुत ही मुश्किल हो रहा था…. क्योंकि 0 ग्रुप युनीबर्सल डांनर होता है….0 ग्रुप वाला किसी को भी खुन दे सकता है…. लेकिन ले नही सकता….. 

लेकिन भास्कर ने भी हार नही मानी…. अपने जान पहचान की जगहों पर फोन किया…. कोशिश करते करते आखिर में एक बैंक से तिगुने दाम देकर दो बोतल 0 ग्रुप के खुन का इंतजाम किया…. तब मानसी को खुन चढ़ाया गया…. और मानसी ने एक बेटे जन्म दिया… 

दुसरे दिन मनोज भी आ गया…. मनोज और मानसी दोनों ने भास्कर को बहुत धन्यवाद कहा…. अगर तुम कल नही होते तो पता नही क्या होता.  .. मानसी और बच्चे की जिन्दगी तुम्हारी ही देन है…. उस समय एक एक मिनट कीमती था…. ना कोई आ सकता था…. ना कोई जा सकता था…. अगर तुम न होते तो मानसी की कौन मदद करता? ? 

तुम तो हमारे लिए फ़रिश्ते बन कर आए हो

तब भास्कर ने कहा,  भैया कर  दी ना आपने छोटी बात … मैंने कोई एहसान नहीं किया ….ये तो मेरा फर्ज था….आप सब मेरे अपने हो…मानता हूं …मेरा दीदी और आप सब के साथ खून का रिश्ता नहीं है…. लेकिन इन 4 सालों में दिल का रिश्ता तो हो ही गया है…. मैंने उनसे राखी बंधवाई है….तो भाई होने के नाते बहन या उसके परिवार के किसी भी सदस्य की जान बचाना मेरा प्रथम कर्तव्य है… 

भैया अब बातें  ही करते रहेंगे या मेरे भांजे को गोद में लेंगे….देखिये वो पापा की गोद में आने के लिए बैचेन है. ..

आपको कहानी कैसी लगी…कमेंट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा… और अच्छी लगे तो लाइक और शेयर करने से मत चुकियेगा… 

 # दिल_का_रिश्ता

स्वरचित

© मनीषा भरतीया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!