वर्क फ्रॉम होम – प्रीता जैन

  

घड़ी देखी एक बजने को था जल्दी से गैस के तीनों बर्नर जला दाल-चावल व सब्जी एक साथ रख दिये, इधर आटा गूंथ सलाद भी सजा टेबल लगा दी| पुनीत के आने में 15-20 मिनट थे इसलिए मायके फोन लगा भाभी से बात करने की सोची, हैलो! कहते ही भाभी बोलीं बहुत लंबी उम्र है दीदी अभी छोले बनाते बनाते हुए याद कर रही थी, तुम्हें पसंद हैं याद आ ही जाती है| खैर! इधर-उधर की बातों के बीच ही भाभी ने आवाज लगाई, गरिमा बेटा जरा छोलों का मसाला भून लेना और हाँ! गैस पर पुलाव के लिए कुकर भी रख देना मैं अभी बुआ से बात कर आ रही हूँ, माँ बुआ को मेरी भी नमस्ते कहिये और जल्दी आने को बोलिये|

भाभी और गरिमा की बातें सुन इतना अच्छा लगा कि पल भर को भूल गयी फ़ोन पर भाभी के साथ हूँ अचानक आवाज से तंद्रा भंग हुई, अच्छा! दीदी फिर बात करती हूँ गरिमा को आज पुलाव बनाना सिखाना है उसने गैस ऑन कर दी होगी| हाँ! कह मैंने भी फ़ोन रखा, पुनीत के भी आने का समय हो गया था सो तवा रख फुल्के बनाने लग गई| काम तो कर रही थी पर मन अब भाभी तथा गरिमा की ही सोच रहा था, दोनों के बीच सिर्फ दो प्यार भरे शब्द सुन बहुत सुकून मिल रहा था|

करीब एक साल पहले बड़े ही नाजों-अरमान के साथ प्यारी बहू गरिमा घर आई थी, शादी के बाद 3-4 महीने तो पता ही ना लगे कैसे बीत गए| जब भी मायके बात होती भाभी अधिकतर गरिमा की ही बातें करतीं आज गरिमा संग यहां गए आज वहां जाना हुआ, आज गरिमा की पसंद का खाना बनाया वगैरह-वगैरह…..| गरिमा पढ़ी-लिखी लड़की थी अच्छे इंस्टीट्यूशन से उसने इंजीनियरिंग करी हुई थी इसलिए शादी के 5-6 महीने बाद जॉब करने की बात कही तो ना भैया ना ही भाभी का मन था उन्होंने तो यही कहा, बिटिया आराम से घर में रहो कहाँ रोज़ आने-जाने की परेशानी में पड़ रही हो?



किंतु गरिमा के साथ फिर गौरव का भी मन देख दोनों ने जॉब करने की हाँ कर दी| जहाँ गरिमा को जाना था घर से काफी दूर था करीब डेढ़ से दो घंटे जाने और उतना ही आने में समय लगता, इस तरह दिन कब बीत जाता मालुम ही ना पड़ता| घर आकर इतना थक जाती कि किसी काम को मन से ना कर बस! निपटाने की सोचती तब भी रात के ग्यारह साढ़े ग्यारह तो बज ही जाते, फिर सुबह जल्दी उठ तैयार हो निकलने की चिंता लगी रहती सो अलग|

वीकेंड ज़रूर मिलता तब या तो अपने रूम की साफ-सफाई या फिर कपड़ों की देखरेख में समय बीत जाता और जो बचता भी तो दोनों संग-संग बिताना चाहते, जो जरूरी भी है| ऐसा नहीं था गरिमा घर के लिए ना सोचती हो! वह चाहती सबके लिए कुछ ना कुछ बनाऊं, घर की साज-संवार करूं मगर ऑफिस आने-जाने की वजह से इतना थक जाती कि जरूरी कार्य के अलावा बाकी सब निरर्थक लगने लगता, चाहकर भी परिवार के लिए कुछ अतिरिक्त करने के लिए स्वयं को असमर्थ महसूस करती| इधर भाभी को भी लगता गरिमा नौकरी ना कर उनके साथ घर में रहे, इन कुछ महीनों में साथ रहने की आदत जो हो गयी थी किन्तु मन की बात मन तक ही रहने दी,

जो भी माँ अथवा सास होने के नाते फ़र्ज़ थे उनमें कभी कोई कमी ना आने दी| सब कुछ यंत्रवत सा ही चल रहा था, मेरी अक्सर ही भाभी तो कभी गरिमा से बातें होती ही रहती किन्तु पहले जैसा अपनापन या लगाव ना झलकता, चाहकर भी बेवजह आई दूरी मिटाने में असहाय महसूस कर रही थी| बारबार सोचती भाभी को कहूँ, गरिमा के साथ जैसे पहले रहा करतीं वैसे ही रहें, घरेलू कार्यों में जितना सहयोग देदे उतना ही बहुत समझ प्यार में कमी ना आने दें|



उधर गरिमा से कहने की सोचती, बहुत मुश्किल से भाभी के जीवन का अकेलापन भरा है, भैया व गौरव तो सुबह से निकल शाम ही को घर आ पाते और फिर इतना समय नहीं दे पाते थे कि दो घड़ी बैठ उनके मन को जान उनकी सुनें| अब तुममें भाभी को अपनी बेटी का प्रतिरूप दिखता है, तुझे देख लगता है सुख-दुख बांटने वाली मेरी लाडो आ गयी है अब ना अकेली हूँ ना ही बेचारी|

कैसे बताऊँ? गरिमा तेरी चूड़ियों की खनखनाहट व तेरी हंसी की खिलखिलाहट सुनना ही अब उनका सुख है ये जीवन साथ-साथ रहते कब हंसी-ख़ुशी बीत जाएगा मालुम ही ना पड़ेगा, लेकिन इतना सोचने-समझने के बाद भी मैं कुछ कह अथवा समझा ना सकी| रातदिन यही सोचती रहती कैसे गरिमा और भाभी फिर से पहले वाली माँ-बेटी बन जाएं? बस! इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी कि अचानक देश में लॉकडाउन की स्थिति हो गयी, कुछ दिन तक तो समझ नहीं आया यह क्या हो गया? हर कोई अचंभित हो सोचता ही रह गया खैर! धीरे धीरे इस नए जीवन को जीने में सभी अभ्यस्त होने लगे, एक नए ढर्रे पर ज़िन्दगी फिर गुजरने लगी| 

गौरव और गरिमा भी कुछ दिन तक ऑफिस गए फिर कंपनी की तरफ से सबको घर से ही काम करने को कह दिया गया यानी वर्क फ्रॉम होम|

सोचते-सोचते ही खाने-पीने का काम निपट गया मालुम ही ना पड़ा| खैर! आज दिल बहुत खुश था काफी दिनों बाद भाभी व गरिमा के बीच जो बातचीत सुनाई दे रही थी उसके लिए कान तरस गए थे| मायके तो भाभी से अक्सर ही बात होती रहती पिछले कुछ दिनों से जो सास-बहू के बीच अनकही संवादहीनता बढ़ती जा रही थी वो अब ना रहेगी, सोचने मात्र से ही सुखद लग रहा था जो मैं अंतर्मन से चाह रही थी वही पूर्ववत माँ-बेटी का रिश्ता जीवंत हो उठा था| आज शाम से ही हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी, कहते हैं ना यदि मन अच्छा तो सब चंगा यही कहावत मुझ पर चरितार्थ हो रही थी|

पुनीत और बच्चों को अच्छा लगेगा सोच फटाफट चाय के साथ आलू-प्याज़ के पकोड़े बना सबको आवाज़ लगाई, गर्मागर्म खाते हुए मस्त हवाओं के संग सबकी बांछे खिल गयीं| चाय पीकर प्याला रख डिनर के लिए क्या बनाऊं सोच ही रही थी कि भाभी का फ़ोन बज उठा हैलो! कहते ही बोली, पकोड़े खा रही होंगी तुम दोनों भाई-बहन एक जैसे ही हो अभी गरिमा ने पनीर व गोभी के पकोड़े बनाकर खिलाएं हैं| तुम्हारे भैया को बेटी के हाथ के कुछ ज्यादा ही अच्छे लगे, शगुन के 1100 रुपये हाथ पर रखते हुए बोले बिटिया मुझे रोज ही खिला दिया कर सच! खाकर मज़ा आ गया|

फिर हंसते हुए बोलीं यहां 30 साल हो गए तुम्हारे भैया को खिलाते-पिलाते पर आज तक ऐसे पैसे ना दिए वो तो खुश हो बेटी को ही दिए जाते हैं| सच! बड़े-बुजुर्गों ने सही कहा है मनुष्य स्वभाव होता ही ऐसा है कि किसी भी वजह से रिश्तों की दूरी बेचैन व परेशान कर देती है, अपनों का संग-साथ सभी चाहते हैं| खैर! जब भी मायके बात होती मन खुश हो जाता, एक दिन भाभी से बात हो रही थी तभी गरिमा की आवाज़ सुनाई दी बुआ आ जाइए! आइसक्रीम बनाई है, प्लीज़ आ जाइए ना बुआ|

इतनी प्यार भरी मनुहार सुन तो ऐसा लगा अभी के अभी मायके चली जाऊं पर लॉकडाउन के रहते मज़बूर थी सो कहना पड़ा, बेटा सब कुछ नॉर्मल होते जरूर आऊंगी तब तक बहुत सारा प्यार| इधर-उधर की बातों के बाद अखिर मैंने भाभी से पूछ ही लिया, आजकल गरिमा को तुम्हारे साथ रहने का टाइम कैसे मिल जाता है? घर के काम में हाथ भी बंटा देती है|

भाभी एकदम से खुश हो बोली, अरे वो लॉकडाउन के रहते ऑफिस तो बंद हैं परंतु कंपनी की तरफ से इन्हें वर्क फ्रॉम होम की परमीशन मिली हुई है तो अब कहीं आना-जाना नहीं पड़ता, इससे जो कई घंटे ऑफिस आने-जाने में निकल जाते थे वे बच जाते हैं| वर्क फ्रॉम होम मुझे तो अच्छा लगा क्योंकि घर तथा बाहर दोनों ही बखूबी संभाले जा सकते हैं,

काम का समय सुबह 9 से 6 का होता है तो फिर शाम को जल्दी फ्री हो जाती है, इसके अलावा ब्रेकफास्ट व लंच टाइम में भी ऑफिस का काम कुछ देर के लिये बंद कर किचन में आ हेल्प कर देती है और गर्मागर्म खा भी लेती है| आजकल दीदी मैं बहुत खुश हूँ मेरी गरिमा जो हर वक्त मेरे साथ है सारा दिन कब-कैसे निकल जाता है मालुम ही नही पड़ता, गरिमा के साथ भी ऐसा ही है उसे अपनों का बखूबी प्यार जो हर पल मिल रहा है और आने-जाने की मेहनत बच रही है सो अलग|

हाँ भाभी! ईश्वर की कृपा से हमेशा अच्छा ही होगा कह, मैंने फ़ोन रख दिया| मायके की ख़ुशी महसूस कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था, सोचने लगी लॉकडाउन होने से जहां मन दुःखी हो गया था वहीं आज वर्क फ्रॉम होम की इस नई परंपरा से मन फिर से खुश हो गया|

स्वयं में बुदबुदा ही रही थी कि कब पुनीत आ गए मालुम ही ना चला, पूछने लगे किस मंत्र का जाप कर रही हो मैंने भी तत्काल उत्तर दिया खुशियों के मंत्र वर्क फ्रॉम होम का| जब सारी बात पुनीत ने सुनी तो वे भी खुश हो बोले अरे वाह! जश्न मनाने के लिए एक कप कॉफी और साथ में कुछ मीठा हो जाये बिल्कुल मेरे आका, और मैं ख़ुशी-ख़ुशी हलवा बनाने किचन की ओर चल दी|

   प्रीता जैन

     भोपाल          

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