लतिका बिटिया कबे आई हो शाहार से..? खेतों की पगडंडी पर चलते-चलते बगल वाली चाची ने पूछा। कल ही आयी हूँ चाची..।
“अभी तो रहियो कि चली जइयो…!
“चाची परीक्षा हुई गइ है अब हीं रहिए- लतिका बोली।”
लतिका अपने गांव की एकमात्र ऐसी लड़की थी जिसने अपने गांव से बाहर निकल कर पढ़ाई की थी। लतिका ने एमए बीएड किया। गांव में हर किसी की जुबान पर लतिका का नाम रहता कि गांव की बिटिया ने बहुत पढ़ाई- लिखाई की। उससे पहले किसी लड़की ने गांव से बाहर जाकर पढ़ने के बारे सोचा नहीं था, और न ही किसी बच्चियों के मां-बाप ने बेटी को बाहर भेजने की सोची।लेकिन लतिका के माता पिता ने बेटी को बाहर पढ़ाने की ठानी। नतीजन लतिका ने भी खूब मन लगाकर पढ़ाई की और शिक्षिका बनने की समस्त डिग्रियां हासिल की।
तीन चार गांव छोड़कर गोपालगंज गांव में रिटायर्ड हेड मास्टर विनय जी ने अपने खेत में एक जूनियर हाई स्कूल खोला। क्योंकि बच्चों की पढ़ाई के लिए आसपास कोई स्कूल नहीं थे। पढ़ने के लिए सभी बच्चों को तीन-चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता था।
विनय जी का एक पुत्र था व्योमकेश। जो सुंदर, हंसमुख स्वभाव का था। उसे शुरू से ही सेना में सिपाही बनने की चाहत थी। इसलिए वह सेना में भर्ती हो गया। व्योमकेश अपनी मनपसंद नौकरी पाकर बहुत खुश था। व्योमकेश की दूसरी पोस्टिंग लद्दाख में हुई।
वहांँ की सुंदरता, हरियाली, चक्राकार खूबसूरत पहाड़ों के रास्तों का जिक्र अक्सर वह अपने पापा से फोन में करते नहीं थकता था।
सर्दियों की एक रात ब्योमकेश अपने साथियों के साथ पेट्रोलिंग ड्यूटी कर रहा था कि अचानक हिमस्खलन शुरू हो गया। उनमें से चार जवान तो बाहर निकल आए, लेकिन दो जवानों का पता नहीं चल पाया। लापता में व्योमकेश भी था। सेना की कड़ी मशक्कत के बाद मलवा हटाया गया। उस समय व्योमकेश जीवित था, तुरंत उसे सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसका कई महीनो तक इलाज चला। व्योमकेश तो बच गया, लेकिन उसके पैर बिल्कुल क्षतिग्रस्त हो गये थे। जिस कारण पैर अलग करने पड़े, नहीं तो व्योमकेश को बचाना मुश्किल था।
कुछ महीनो के बाद ब्योमकेश बिल्कुल ठीक हो गया एवं चिकित्सा सेवानिवृत्ति लेकर वापिस गांव आ गया।
माता-पिता ने उसे बहुत हौसला दिया। कुछ दिनों के बाद व्योमकेश को अपनी जिंदगी दिशाहीन लगने लगी। वह अपने बारे में सोच कर दुखी रहता, कि अब वह क्या कर पाएगा..? इससे अच्छा होता वह जिंदा ही न रहता..!
माता-पिता बेटा का मनोबल बढाते हुए कहते… जिंदगी उद्देश्य हीन नहीं होती। इसे ईश्वर का खूबसूरत तोहफा समझकर भरपूर जीना चाहिए। बेटा..! तुम्हें भी ईश्वर ने किसी मकसद के लिए ही चुना है।
विनय जी ने कई बार बेटा को अपने स्कूल में देखरेख के लिए बोला, लेकिन उसका वहां मन नहीं लगता। कभी- कभार विद्यालय जाता और अपना समय व्यतीत करता।
लतिका ने बीएड करने के बाद टेट परीक्षा पास कर ली, लेकिन अभी टीचर्स वेकेंसी का इंतजार था। जब तक टीचर्स की वैकेंसी नहीं निकलती तब तक उसने विनय जी के स्कूल में नौकरी करने के बारे में सोचा जिससे उसकी टीचिंग की प्रैक्टिस बनी रहेगी।
लतिका ने स्कूल ज्वाइन कर लिया। उसे बच्चों को पढ़ाने में बहुत अच्छा लगता था। कुछ महीनों के बाद एक दिन लतिका ने विनय जी से कहा- सर..! यदि आप इस विद्यालय का जूनियर हाई स्कूल के साथ-साथ हायर सेकेंडरी की मान्यता ले लेंगे तो बहुत अच्छा रहेगा, क्योंकि आसपास कोई भी स्कूल नहीं है..?
लतिका स्कूल की उन्नति में समय-समय पर अपने विचार रखती, जिसे विनय जी एवं व्योमकेश ध्यानपूर्वक सुनते और उन पर अमल करने की कोशिश करते । लतिका का सुझाव विनय जी को अच्छा लगा। व्योमकेश भी बीच-बीच में स्कूल आता था और पिता के साथ देखरेख में मदद करने लगा।
लतिका के प्रगतिवादी विचारों से व्योमकेश बहुत प्रभावित था। दोनों के विचारों में समानता थी, इस कारण जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई। व्योमकेश अब खुश रहने लगा। उसे लतिका की बातें बहुत अच्छी लगती थी। उसे अब अपने अपूर्ण होने का तनिक मात्र भी आभास नहीं होता। लतिका ने अपने विचारों से हमेशा उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
एक दिन व्योमकेश को अपने विचारों में उलझा हुआ देखकर लतिका ने उसे सुझाव दिया कि आप अपनी पढ़ाई जारी रखें क्योंकि विद्यालय के कामकाज के लिए डिग्री होना आवश्यक है।
व्योमकेश को लतिका की बात अच्छी लगी और उसने आगे पढ़ाई करने की ठानी।
व्योमकेश ग्रेजुएट था। उसने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए एम ए (प्राचीन भारतीय इतिहास) से प्राइवेट फॉर्म भर दिया। दो वर्षों में एम ए हो गया। तत्पश्चात बीएड में दाखिला ले लिया। व्योमकेस की पढ़ाई, प्रोजेक्ट, फाइल आदि बनाने में लतिका ने हर संभव उसकी मदद की।
व्योमकेश एवं विनय जी के प्रयास से विद्यालय को हायर सेकेंडरी की मान्यता प्राप्त हो गई।
व्योमकेश ने अब अपनी विचारधारा को बदल दिया था, अति शीघ्र वह अपने विद्यालय को इंटर कॉलेज बनाना चाहता था। व्योमकेश एवं विनय जी की कड़ी मेहनत और लगन से विद्यालय को इंटर कॉलेज की मान्यता प्राप्त हो गई। दूर-दूर तक कोई अन्य विद्यालय न होने के कारण आसपास की जनता में खुशी की लहर छा गई। बेटियों की पढ़ाई आठवीं के बाद बंद हो जाती थी, अब वह बारहवीं तक आसानी से पढ़ सकेंगी।
व्योमकेश ने इंटर कॉलेज के साथ-साथ आसपास गांव का भी बहुत विकास किया।
एक दिन लतिका की मांँ ने कहा- कल की तुम छुट्टी ले लो..!
क्यों मांँ..?
कल दिल्ली वाली बुआ और फूफा जी लड़के वालों के साथ तुम्हें देखने के लिए आ रहे हैं। लड़के का नाम प्रशांत है। वह लेक्चर है, दिल्ली जैसे महानगर में उसकी अपनी एक शानदार कोठी है। सुंदर और संपन्न परिवार है।
लेकिन मांँ यह अचानक कैसे..?
यह अचानक नहीं है बेटी, काफी दिनों से बातचीत चल रही है, फाइनली वह लोग कल आ रहे हैं।
अगर लड़के वालों को सब कुछ ठीक-ठाक लगा तो कल ही सगाई करके जाएंगे..!
लतिका उधेड़बुन में थी- कि अपनी मनोदशा को वह माँ को कैसे बताएं।
आखिर हिम्मत जुटा कर लतिका ने अपनी मांँ से कहा कि वह व्योमकेश से विवाह करना चाहती है। यह सुनकर लतिका की माँ भड़क गई बोली- कि सहानुभूति, दोस्ती और विवाह यह सब अलग-अलग पहलू हैं। तुम जितना आसान समझ रही हो, वह काम उतना आसान नहीं है।पूरी जिंदगी का सवाल है..? व्योमकेश के साथ विवाह करके तुम कभी भी खुश नहीं रह पाओगी?
क्या तुम्हें व्योमकेश ने विवाह के लिए कहा है..? मांँ बोली।
नहीं मांँ..!
इस संबंध में उसकी क्या प्रक्रिया होगी मुझे वह भी पता नहीं- लतिका बोली। उसे इस संबंध में कुछ पता नहीं है।
तुम मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो..! तुम्हारा व्योमकेश के साथ विवाह के लिए, मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूंँ। और हांँ…! कल लड़के वाले आ रहे हैं उसके लिए तैयार रहो।
लतिका ने में भी मन में गांठ बांँध ली कि वह विवाह करेंगी तो सिर्फ व्योमकेश के साथ।
उसी दिन लतिका व्योमकेस से मिली और अचानक व्योमकेश से पूछ बैठी। क्या आप मुझसे विवाह करेंगे..?
व्योमकेश को ऐसा लगा जैसे उसके कान बज रहे हैं।
क्या …??
व्योमकेश आश्चर्य से लतिका को देख रहा था।
वह हां और न कहने की स्थिति में नहीं था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले। लतिका बहुत समझदार, और बहुत ही प्यारी लड़की है। वह मुझसे …विवाह क्यों करना चाहती है…..कहीं उसे मुझसे सहानुभूति तो नहीं है..!
वह मन ही मन लतिका को बहुत पसंद करता था, लेकिन कभी बोल नहीं पाया। लतिका खुद उससे विवाह की पहल करेंगी यह उसने कभी नहीं सोचा था।
आज अचानक लतिका ने यह बात बोलकर उसे अचंभित कर दिया। वह हांँ, न कुछ नहीं बोल पाया। क्योंकि उसे लग रहा था लतिका जैसी खूबसूरत लड़की के लिए तो बहुत लड़के मिल जाएंगे।
क्या वह मुझ अपूर्ण व्यक्ति के साथ खुश रह पाएगी..? ऐसे कई सवाल उसके जेहन में कौधनें लगे।
व्योमकेश को चुप देखकर लतिका पुनः बोली- मैं कुछ पूछ रही हूंँ..? आप जवाब दीजिए। ब्योमकेश ने कहा मैं क्या बोलूंँ मुझे तो आप पहले से ही बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन शादी….!!! कह कर चुप हो गया।
क्या आप मेरे साथ विवाहोंपरांत भी खुश रह पाएंगी??
हांँ व्योमकेश…! मैंने बहुत सोच समझ कर यह फैसला लिया है। अगर तुम्हारी तरफ से हांँ है, तो आज शाम तक अपने घर वालों के साथ मेरे घर आकर मेरा हाथ मांग लो..!
पता नहीं व्योमकेश क्या सोच कर लतिका के घर नहीं आया.. लतिका बहुत निराशा हो गई।
दूसरे दिन सुबह फूफा जी लड़के वालों को लेकर आ गए फूफा जी ने लतिका की मांँ से कहा… भाभी जी इतना अच्छा रिश्ता चिराग लेकर ढूंँढने से भी नहीं मिलेगा। तुम खुद ही देख लो तुम्हारे सामने है ..!
प्रशांत और उसके माता पिता एकदम सरल स्वभाव के थे। प्रशांत छह फुट का गबरू जवान था, जिसे देखते ही कोई भी एक नजर में हांँ कर देगा। वह बहुत ही मिलनसार, व्यवहार कुशल लड़का था। लतिका की मांँ ने लतिका से कहा… बेटा अब तुम देखो! इतना अच्छे लड़के को छोड़कर तुम गांव में ऐसी जगह विवाह करना चाहती हो। जहां असुविधायें है, और व्योमकेश भी…. मांँ बोलते बोलते चुप हो गई।
लड़के वालों को लतिका बहुत पसंद आई।
प्रशांत लतिका से बोला कि मुझे अपना गांव नहीं दिखाओगी…?
हांँ.. हांँ.! क्यों नहीं। लतिका के अंदर द्वंद युद्ध चल रहा था। ऐसा नहीं कि -“लतिका व्योमकेस से प्यार करती थी। फिर भी न जाने कैसे मन के धागे में व्योमकेश नाम की माला पिरो ली..??” उसे पता ही नहीं चला। लेकिन फिर भी वह व्योमकेश से ही विवाह करना चाहती थी।
लतिका प्रशांत को अपने गांव का खेत, खलिहान, हरियाली दिखाते हुए उस स्कूल में पहुंची जहां वह पढ़ाती थी। वहां प्रशांत को व्योमकेश से मिलाया। ब्योमकेश, प्रशांत से मिलकर खुश हुआ कि लतिका को बहुत ही अच्छा जीवनसाथी मिल रहा है।
लतिका ब्योमकेश की तरफ प्रश्न चिन्ह से देख रही थी और वह उससे नजरें चुरा रहा था।
लतिका प्रशांत से बोली कि मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूंँ..? प्रशांत आप सुंदर है, अच्छी नौकरी कर रहे हैं। आपको तो बहुत अच्छी से अच्छी लड़कियां मिल जाएंगी। मैं व्योमकेस के साथ विवाह करना चाहती हूंँ प्रशांत एकदम से अचंभित होकर उछल पड़ा क्या..?
तुम ब्योमकेश से विवाह करना चाहती थी तो हम लोगों को क्यों बुलाया।
प्रशांत मुझे घर में बोलने की कभी हिम्मत ही नहीं हुई और न ही इस संबंध में व्योमकेस से कभी बात की। मैंने कल ही व्योमकेश से कहा था कि अगर वह मुझे विवाह करना चाहता है तो अपने घर वालों को लेकर कल शाम को आ जाए लेकिन वह नहीं आया।
प्रशांत लतिका को अपना भाभी जीवनसाथी के रूप में देख रहा था अचानक उसका रवैया बदल गया। उसने कहा तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है लतिका इस संबंध में मैं अपने घर वालों को समझा लूंगा।
ब्योमकेश बहुत अच्छा लड़का है जो तुम्हें हमेशा सुखी रखेगा।
एक बात समझ में नहीं आई व्योमकेश..! जब तुम्हें लतिका ने अपने घर आने के लिए बोला था, तुम क्यों नहीं आए..? प्रशांत बोला।
प्रशांत मैं इतना स्वार्थी नहीं हूंँ। मैं खुद दूसरों पर निर्भर हूंँ तो मैं लतिका को कैसे खुश रख पाऊँगा..? व्योमकेश बोला।
प्रशांत कुछ नहीं बोला..!
मैं कुछ नहीं जानता… लतिका की सगाई तो आज ही होगी लेकिन…! मेरे साथ नहीं, तुम्हारे साथ।
घर जाकर प्रशांत ने सभी लोगों को लतिका और
व्योमकेश के विवाह के लिए मना लिया। उसी दिन व्योमकेश और लतिका की सगाई हो गई।
मुझे माफ करना प्रशांत…. लतिका हाथ जोड़कर बोली।
नहीं लतिका…. मुझे तुम्हारे फैसले पर गर्व है।
और हां…मैं खाली हाथ कहाँ जा रहा हूंँ..? तुम और व्योमकेश दो प्यारे-प्यारे दोस्त जो मुझे मिल गये हैं।
प्रशांत अपने परिवार के साथ वापस दिल्ली चला गया।
– सुनीता मुखर्जी श्रुति
लेखिका
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल
#मन की गांठ