” माँ..मैं कैसा लग रहा हूँ ?” कन्हैया स्कूल की यूनिफ़ाॅर्म पहनकर गले में टाई बाँधते हुए अपनी माँ श्रावणी से पूछा।
” मेरा लाल तो लाखों में एक है।किसी की बुरी नजर न लगे…ठहर, काजल का एक टीका लगा देती हूँ।” कहते हुए श्रावणी ने काजल की डिबिया खोली और अपनी अंगुली को उसमें छुआकर कन्हैया के कान के पीछे एक गोल निशान बना दिया।
कन्हैया पीठ पर स्कूल बैग लादकर जाने लगा तो श्रावणी धीरे-से बोली, ” मेरी परी भी ऐसे ही टिप-टाप होकर स्कूल..।”
” तू फिर से शुरु हो गई श्रावनी…क्यों उसे याद करके अपना कलेजा जलाती है..।” खीझते हुए उसका पति नंदलाल बोला और सिर पर गमछा रखकर काम के लिये निकल गया।श्रावणी ने चौकी के नीचे से टीन का बक्सा निकाला और कपड़ों के बीच से एक तस्वीर निकालकर देखते हुए बुदबुदाई,” तुम नहीं समझोगे कन्हैया के बापू… है तो वो भी मेरे जिगर का टुकड़ा…उसके साथ भी एक बंधन तो है ना…।”
श्रावणी का पति गाँव में खेती करता था जिससे दोनों का गुजारा मजे से हो जाता था।इसी बीच उसने दो लड़कियों को जनम दिया लेकिन दोनों ही दो महीने से ज़्यादा जीवित नहीं रह पाईं।बहुत मनौती के बाद जब वह तीसरी बार गर्भवती हुई तो फिर से उसका दिल धड़का कि कहीं.. परन्तु इस बार ईश्वर की कृपा रही और उसकी गोद में कन्हैया खेलने लगा।
उसी साल गाँव में सूखा पड़ गया.. बारिश नहीं हुई.. तपती धूप में किसानों की फसलें जलने लगी।नंदलाल के घर में भी खाने के लाले पड़ गये तब श्रावणी बोली कि सभी तो गाँव छोड़कर जा रहें हैं..हम भी चलते हैं।
” लेकिन वहाँ जाकर करेंगे क्या?” नंदलाल ने चिंता व्यक्त की तब वह बोली,” हाथ-पैर सलामत है तो कुछ न कुछ करके कन्हैया को बड़ा कर लेंगे।” उसने कपड़ों की एक गठरी सिर पर लादी और आठ महीने के कन्हैया और पति संग शहर आ गई।
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काम की तलाश में इधर-उधर भटकने के बाद नंदलाल बेहाल होकर एक दरवाज़े के आगे बैठ गया।कन्हैया का मुँह भी प्यास से सूख रहा था।श्रावणी ने दरवाज़ा खटखटाया तो एक संभ्रांत महिला ने दरवाज़ा खोला।इंदुमति नाम की वह महिला एक अध्यापिका और समाज-सेविका थी।उन्होंने तुरंत श्रावणी को अंदर बुलाया और अपनी गृहसेविका चंदा को कहा कि नंदलाल को पानी पिलाकर भीतर ले आओ।
श्रावणी की पूरी बात सुनकर इंदुमति ने कहा,” घर के पीछे मेरा आउटहाउस है,जब तक रहने का कोई इंतजाम नहीं होता, तुम लोग यहीं रहो।तुम घर के काम में चंदा का मदद कर दिया करना और नंदलाल को कुछ पते लिखकर दे देती हूँ.. वह कल जाकर मिल लेगा।”
श्रावणी तो उनके चरणों में गिर पड़ी, बोली,” आप तो हमारे लिये भगवान हो..।” उसी दिन से वह उनके आउटहाउस में रहने लगी और घर के काम में चंदा की मदद करने लगी।कुछ दिनों बाद नंदलाल को भी एक फ़ैक्ट्री में काम मिल गया।दो महीने बाद उसको एक कमरा मिल गया तो वो सपरिवार वहाँ शिफ़्ट हो गया।
देखते-देखते तीन बरस बीत गये.. कन्हैया स्कूल जाने लायक हो गया तब इंदुमति ने ही नर्सरी से उसका नाम लिखवा दिया।
एक दिन श्रावणी ने देखा कि इंदुमति बहुत गुमसुम-सी हैं।उसने पूछा तो उन्होंने ‘ कोई बात नहीं है ‘ कहकर टाल दिया।तब उसने अपनी कसम दे दी तो इंदुमति बोली,” क्या बताऊँ श्रावणी…मेरी छोटी बहन कुसुम है ना..।”
” हाँ- हाँ..क्या हो गया उनको?” श्रावणी घबरा गई।
” उसे कुछ नहीं हुआ है लेकिन शादी के दस बरस बाद भी उसकी गोद सूनी है।”
” काहे दीदी…।” श्रावणी ने आश्चर्य-से पूछा।
इंदुमति बोलीं,” उसका गर्भाशय बहुत कमज़ोर है इसलिए बच्चा ठहर नहीं पाता है।दो गर्भपात हो चुका है।मेरे बच्चों से अपना दिल बहला लेती थी लेकिन कब तक..।धन की कोई कमी नहीं है लेकिन बच्चे के बिना उसका आँगन सूना है।”
” ओह…दीदी..यहाँ तो बहुत बड़ा-बड़ा डाकटर है..कोई तो इलाज़ होगा ना…।”
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” है तो..लेकिन उसके लिये एक औरत का कोख किराये पर लेना होगा।”
” किराये पर कोख! इसका क्या मतलब है?” श्रावणी की आँखें आश्चर्य-से चौड़ी हो गई।
” मतलब ये कि डाॅक्टर कुसुम के शरीर से उसके अंडे और उसके पति के शरीर से शुक्राणु निकालकर अस्पताल में ही मिलाएँगे और फिर उस भ्रूण को एक दूसरी महिला के बच्चेदानी यानि गर्भाशय में प्रवेश कर देंगे।नौ महीने तक बच्चा उसी के गर्भ में पलेगा और फिर डिलीवरी के बाद बच्चा कुसुम को मिल जायेगा।”
” तो फिर दिक्कत क्या है दीदी?”
” कोई ऐसी महिला मिल नहीं रही है श्रावणी और जो मिलती है वो डाॅक्टर के टेस्ट में फ़ेल हो जाती है।” कहते हुए इंदुमति निराश हो गईं।
श्रावणी कुछ देर चुप रही और फिर इंदुमति का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली,” हम कुसुम जीजी का बच्चा अपनी कोख में रख लेंगे।”
सुनकर इंदुमति चकित हो गई, बोली,” पहले तू अपने पति से तो पूछ ले..।”
” पूछना क्या है दीदी…आप लोगन ने हमारे लिये इतना कुछ किया है तो आपके लिये हम इतना भी नहीं कर सकते हैं क्या।अभी चलिये डाकटर के पास और बात करते हैं।” श्रावणी बहुत उत्साहित थी।
” मैं तेरी भावना को समझती हूँ पर तू अभी घर जा और नंदलाल से बात करके कल आ..।”
श्रावणी ने अपने पति को पूरी बात बताई और कहा कि जैसे हमने अपने तीन बच्चों को जन्म दिया है, वैसे ही कुसुम जीजी के बच्चे को भी जन्म देकर उनको दे देना है।इस नेक काम के लिये नंदलाल भला कैसे मना कर सकता था।उधर इंदुमति ने भी कुसुम को श्रावणी के बारे में बता दिया और कहा कि अब तुम दोनों भी आ जाओ।
श्रावणी को लेकर इंदुमति डाॅ• आनंदी के क्लिनिक गईं..उसके सभी रिपोर्ट पाॅज़िटिव आये।कुसुम और उनके पति सिद्धार्थ के एग एंड स्पम को मिलाया गया जो सफल रहा और फिर उस भ्रूण को श्रावणी के गर्भाशय में इंजेक्शन के द्वारा डाल दिया गया।श्रावणी के लिये सब कुछ नया था लेकिन वह बहुत खुश थी।इंदुमति और कुसुम बारी-बारी से आकर उसके खाने-पीने का ध्यान रखते और समय-समय पर चेकअप के लिये उसे ले जाते थें।
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पाँच महीने के बाद इंदुमति श्रावणी को अपने घर ले आईं।नंदलाल ने कहा कि हम कन्हैया को संभाल लेंगे।एक दिन श्रावणी बैठी इंदुमति से बातें कर रही थी कि अचानक उसे पेट में हलचल-सी महसूस हुई।उसके लिये वह एहसास सुखद था।कन्हैया और उससे पहले के बच्चों के समय तो उसकी उम्र बहुत कम थी…मातृत्व के मायने से वह अनभिज्ञ थी लेकिन अब तो वह पूरी औरत बन चुकी थी। गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन से उसकी धड़कन मिलने का अहसास उसे हो रहा था।नंदलाल से जब वो मन की बात कहती तो वह डर जाता कि कहीं श्रावणी बच्चे से जुड़ गई तो..।तब वह पत्नी को आगाह करता,” श्रावनी..ये बच्चा कुसुम जीजी का है..तू बस एक माली है..।”
” हाँ-हाँ..जानती हूँ।” हँसकर श्रावणी कह तो देती थी लेकिन मन में उठती अपनी भावनाओं को वह रोक नहीं पाती थी।
जैसे-जैसे श्रावणी का पेट बड़ा होता जा रहा था…वह बच्चे के साथ एक अटूट बंधन में भी बँधती जा रही थी।नौ महीने पूरे होते ही उसने एक फूल-सी बच्ची को जनम दिया जिसके स्पर्श से उसका रोम-रोम खिल उठा था।डाॅ• आनंदी ने कुसुम से कहा कि बच्ची थोड़ी कमज़ोर है, श्रावणी कुछ दिन अपना दूध पिलाये तो आपको कोई एतराज़ तो नहीं होगा।
” इसमें एतराज़ कैसा…आखिर वह बच्ची की जन्मदात्री है।” कुसुम के स्वर श्रावणी के कानों में पड़े तो बहुत खुश हो गई।इसी बहाने बच्ची कुछ दिन उसके पास रहेगी।कन्हैया ने उसे परी नाम दिया था।
डाॅ• आनंदी ने बच्ची का चेकअप करके कुसुम को सारी हिदायतें दे दीं और कहा कि अब आप बच्ची को ले जा सकती हैं।वो दिन श्रावणी के लिये बहुत कष्टकारी था।कुसुम उसकी गोद से बच्ची को लेते हुए बोली,” तुम्हारा उपकार हम कभी नहीं चुका पायेंगे।” सिद्धार्थ ने परी के साथ वाली उसकी तस्वीर और रुपयों का एक पैकेट उसे देना चाहा तो उसने तस्वीर ले ली और पैकेट वापस करते हुए बोली,” बस कभी-कभी मुझे याद…।” चाहकर भी वह अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई थी।
इंदुमति के यहाँ जाती तो श्रावणी पहला प्रश्न पूछती कि परी कैसी है? अच्छी है’ सुनकर उसके कलेज़े को ठंडक मिल जाती थी।कन्हैया को बड़े होते देखकर उसे परी का भी ख्याल आ जाता।साल भर बाद उसने इंदुमति से कहा कि कुसुम जीजी को आने को कहो ना..।श्रावणी की बेचैनी देखकर इंदुमति भी डर जाती कि कहीं..।फिर सोचती कि समय के साथ वो खुद को एडजेस्ट कर लेगी।
एक दिन इंदुमति ने श्रावणी को बताया कि उनके पति का दूसरे शहर में तबादला हो गया।अगले महीने वो चलीं जाएँगी।अब परी का हाल कौन बताएगा, सोचकर ही श्रावणी घबरा गई थी।परंतु माँ की ममता अपना रास्ता ढूँढ ही लेती है।एक दिन वह डाॅ• आनंदी के क्लिनिक पहुँच गई और हाथ जोड़कर रोते हुए बोली कि एक बार हमारी बात करा दो।
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दो दिन बाद कुसुम ने श्रावणी को फ़ोन करके बताया कि तुम्हारी परी बहुत अच्छी है।उस दिन तो खुशी के मारे उसके पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ रहे थे।उस दिन नंदलाल ने भी श्रावणी और परी के बीच के अटूट बंधन को स्वीकार कर लिया था।
आज श्रावणी ने कन्हैया को स्कूल के नये यूनिफ़ार्म को देखा तो वो सोचने लगी कि अब परी भी पाँच बरस की हो गई होगी.. ऐसे ही स्कूल की डरेस(ड्रेस) पहनकर…।”
” श्रावनी…एक साहेब तेरे बारे में पूछ रहें हैं।” पड़ोसिन की आवाज़ सुनकर उसकी तंद्रा टूटी।बाहर आई तो देखा कि एक बड़ी गाड़ी खड़ी है।तभी उसमें से एक प्यारी-सी बच्ची निकलकर उसकी तरफ़ दौड़ी और ‘धाय माँ ‘ कहकर उससे लिपटी तो उसकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह निकली।कुसुम और सिद्धार्थ भी उन्हें देखकर भावुक हो गये।कुसुम ने बताया कि वो लोग भारत से बाहर गये हुए थें इसलिए आने में देरी हो गई।
परी ने श्रावणी के साथ दो घंटे बिताये।श्रावणी को लगा जैसे उसने एक जनम जी लिया हो।विदा लेते वक्त कुसुम ने कहा,” तुम सदैव परी की धाय माँ कहलाओगी।कार्ड भेजूँगी.. अपनी परी की शादी में ज़रूर आना।”
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा।कन्हैया नौकरी करने लगा।श्रावणी सास बनी… अपनी पोती का मुँह देखने के चार महीने बाद नंदलाल ने अपनी आँखें हमेशा के लिये मूँद ली।श्रावणी अब अस्वस्थ रहने लगी थी लेकिन उसकी एक आस अब भी बाकी थी।एक दिन डाकिया उसकी बहू को एक बड़ा लिफ़ाफा थमा गया।बहू ने उसे खोला और उसे दिखाती हुई बोली,” आपकी परी की शादी का कार्ड है।परी की फ़ोटो के नीचे कुसुम और सिद्धार्थ के साथ आपका नाम भी छपा है अम्मा जी।”
पति की तस्वीर के आगे कार्ड दिखाते हुए श्रावणी बोली,” ये देखिये..मेरे और परी के बीच अटूट बंधन का सबूत..।” उसने मन ही मन अपनी परी को ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया और चौकी पर लेटकर अपनी आँखें मूँद ली।सुबह बहू ने सास को जगाया तो उसका ठंडा शरीर देखकर समझ गयी कि परी की शादी भर का ही इंतज़ार था उन्हें।
विभा गुप्ता
# अटूट बंधन स्वरचित
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
माँ सगी हो या सरोगेट मदर… दोनों के ही कोख में बच्चा गर्भनाल से जुड़ा रहता है, इसलिये सरोगेट मदर भी सम्मान की हकदार होती है जैसा कि कुसुम ने श्रावणी को दिया था
I feel this is real story and writer have great art of story writing.