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हर बार  रिश्ता निभाने के लिए झुकना ज़रूरी नहीं है….. – रश्मि प्रकाश

“ नानी तुमने माँ को ऐसा क्यों बना दिया कि वो अपनी ज़िंदगी का इतना बड़ा फ़ैसला भी खुद नहीं ले सकती थी….. घुट घुट कर रहती रही थी पर ना कभी हमें जताया ना तुम सब उसको समझ पाएँ….. आज इस कदर निराश हो गई कि….।” कहते कहते दीया सुबकने लगी.

सुमिता जी नतनी की बातों से उद्वेलित हो गई थीं…. बिस्तर पर राशि निढ़ाल सी पड़ी थीं….. डाक्टर कह गए थे ,“अब इन्हें ये खुद ही बचा सकती हैं…. क्योंकि कोई भी दवा अब असर नहीं कर रही है….. समझ नहीं आ रहा इतनी सुख सुविधाओं के साथ जीवन यापन करने वाली महिला को किस बात का गम सालता जा रहा था कि ये खुद को ख़त्म करने पर उतारू हो गई हैं….. कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है कि अपना ख़्याल भी ना रख सकें…।

जानती तो ठीक से सुमिता जी भी नहीं थी पर अब वो हर घटना के तार जोड़ती जा रही थी और समझ आ रहा था कहीं ना कहीं गलती उनसे भी हुई है ।

“ नानी ….माँ को ठीक होना होगा…. हमारे लिए…. तुम उसको बोलो ना…. तुम जो कहती हो वो कभी ना नहीं करती है इस बार भी तुम्हारी बात मान जाएगी ।” पन्द्रह साल की दीया माँ को यूँ देख व्यथित हो रही थी।

सुमिता जी दीया की बातें सुन कर सोचने लगीं आज शायद अपनी बेटी की इस हालत की ज़िम्मेदार बस वही हैं…. राशि बहुत बार माँ को बता चुकी थी….. सास ससुर का और देवर देवरानी का व्यवहार उसके प्रति कैसा है….. सासु माँ का ही वर्चस्व रहा हमेशा से…. ससुर जी सरकारी नौकरी करते थे रिटायरमेंट के बाद जब घर पर रहने लगे तो सासु माँ का व्यवहार उनके साथ अच्छा नहीं रहने लगा…. कभी कभी अजीब सी हरकत करने लगते….जब तक राशि अकेली बहू थी घर की ज़िम्मेदारियों को उठा रखी थी पति कभी इस बात पर ध्यान नहीं देता था कि उसकी पत्नी थकी हुई है उसे बस अपनी इच्छा पूरी करनी होती थी…. राशि कभी-कभी मना करती तो सौ गालियों से उसे नवाज़ा जाता…..समय के साथ दो बच्चों की माँ बन गई….. बढ़ती ज़िम्मेदारियों ने उसके अंदर इतनी कमजोरी ला दी की वो जब तब बीमार सी रहने लगी…. देवर के ब्याह बाद जब देवरानी आई वो कोई जॉब नहीं करती थी पर घर की स्थिति देख कर बाहर रहना मुनासिब समझा और वो घर से बाहर जाकर जॉब खोज ली…. सुबह की गई रात को आती…..थोड़ी तेज स्वभाव की देवरानी सास ससुर की जरा भी परवाह न करती।

एक दिन ससुर की तबियत बिगड़ गई….. उस दिन छुट्टी थी…..राशि किसी काम में व्यस्त थी उसने देवरानी को कहा ससुर जी को जाकर दवा दे दो…..पर देवरानी गई ही नहीं ये बात जब राशि के पति को मालूम चली तो वो बहुत ग़ुस्सा करने लगा…. सासु माँ ने भी अपने बेटे का साथ दिया….. ” ये बस अब कामचोर होती जा रही है…. ” राशि घबराते हुए दवा लेकर जैसे ही कमरे में आई उसके पति ने दवा छिनते हुए ऐसे परे ढकेला की वो दीवार से जा टकराई… सिर फट गया और उसके पति को जरा सी भी परवाह ना हुई….. ये सब दीया दूर से देख रही थी…. वो भाग कर भाई के पास गई और नाना नानी को फ़ोन लगा कर सब बता दिया……और घर आने बोली जो उसी शहर में एक आध घंटे की दूरी पर रहते थे।

सुमिता जी पति के साथ राशि के ससुराल पहुँची…..उन्हें देखते राशि की सासु माँ ने कहा,“ अपनी बीमार बेटी हमारे पल्ले बाँध दिया है आप लोगों ने….. जब तब चक्कर खा कर गिरती रहती है…. कितना इलाज पर खर्च करें इसे और इसके बच्चों को यहाँ से ले जाइए….. ।”

राशि का पति एक शब्द ना बोला…. दीया आश्चर्य से दादी और पापा को देख रही थी….. वो माँ के पास गई और बोली,” उठो माँ ….. उठो…।”

सुमिता जी बेटी को ले अस्पताल आ गई जहाँ डाक्टर उसकी हालत देख बोले ,“ इतना कमजोर शरीर हो रखा है…. खुद को सँभालने लायक तो होती….।”

दीया बताना चाहती थी कि धक्का खा कर गिरी पर सुमिता जी ने रोक दिया….. बेटी को भी ऐसे ही रोक देती थी ये कह कर बेटा जैसे भी हैं तेरे ही घरवाले है….. निभाने की कोशिश कर….. ससुराल से मायके आ जाएगी तो जग हँसाई होगी….. और राशि माँ की बात मान चुपचाप निभाने की कोशिश करती रही पर …..आज जो कुछ हुआ वो राशि को तोड़ चुका था….. वो अब जीना ही नहीं चाहती थी….. मान लो सोच ही लिया हो कितना भी किसी के लिए कर लो कभी निभा नहीं सकेंगी ।

सुमिता जी सोच को परे झटक अचानक से उठी….. दीया और दिव्य को लेकर डॉक्टर से राशि के पास जाने की परमिशन माँगी…… डॉक्टर के हाँ कहते वो उसके पास गई और बोली,“ तेरी इस हालत के लिए ज़िम्मेदार मैं हूँ बेटी…..देर से आँख खुली मेरी ….. पर अब और नहीं….. ज़िन्दगी में जब निराशा हाथ लगने लगे….. कुछ मज़बूत फ़ैसले लेने होते हैं….. तुझे भी लेना होगा….. अपने बच्चों की ख़ातिर…… उठ राशि….. नहीं जाना उस घर जहाँ निभाने की कोशिश में मौत परिणाम बन जाए…… दीया और दिव्य भी माँ के समर्थन में हमेशा से रहे पर निभाने की सीख ने उन बच्चों को भी चुप करवा दिया था….. आज अपने लोगों के साथ राशि को शायद हिम्मत मिलने लगी थी…..जीने के लिए बच्चे ही बहुत थे उसके पास…… समय के साथ वो ठीक हो मायके आ गई…… अब बारी थी जीविका चलाने की……. इतनी पढ़ी लिखी थी कि थोड़े ट्यूशन लेने शुरू किए…… फिर घर पर ही छोटे स्तर पर आचार मुरब्बा बना अपने पापा की शॉप से बेचना शुरू किया…ज़िन्दगी रफ़्तार पकड़ने लगी थी……ससुराल वालों ने पूछना ज़रूरी ना समझा पर एक पति और पिता जिसे उनकी आदत हो जाए रहना मुश्किल लगता तो यहाँ आ जाता मिलने …. घर भी चलने को कहता पर ना अब बच्चे जाना चाहते थे ना राशि…….वो जान रहा था गलती उसकी ही रही है तभी यहाँ आ माफ़ी माँग रहा था पर अब राशि ने फ़ैसला ले लिया था……ज़िन्दगी जीने के लिए निभाने से ज़्यादा ज़रूरी है उसे कैसे निभाया जाए ये समझना….. जहां निभाने के लिए एक हाथ को ही बार बार आगे बढ़ना पड़े वो रिश्ता कभी निभ ही नहीं सकता…..

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

 

 

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