एक सास ऐसी भी – संगीता अग्रवाल 

“देखिये मीना जी हमें यूँ तो सिमरन बहुत पसंद है पर ..!” अपने बेटे के लिए लड़की देखने आई संध्या जी लड़की की माँ से बोली।

” पर क्या संध्या जी ?” मीना जी पति चेतन जी को देखते हुए बोली।

” पर मैं चाहती हूँ बात आगे बढ़ाने से पहले मैं सिमरन बेटा से थोड़ी देर अकेले मे बात करूँ !” संध्या जी अपने एक एक शब्द  पर जोर देते हुए बोली।

” जी….!” मीना जी और चेतन जी के साथ साथ संध्या जी के पति महेश जी भी हैरानी से उन्हे देखने लगे । अब संध्या जी ने बात ही ऐसी की थी । विवाह की बात करने पर लड़का लड़की को अकेले मे बात करने के लिए छोड़ा जाता है पर यहाँ तो लड़के की माँ लड़की से अकेले मे मिलना चाहती थी ये एक अजूबा ही तो था।

” जी देखिये आपको मेरी बात अजूबा लग रही होगी पर मेरा मानना है कि सास बहु सबसे ज्यादा वक़्त एक साथ बिताती है घर मे तो उनके बीच सामंजस्य होना बहुत जरूरी है बस इसलिए थोड़ा वक्त सिमरन के साथ बिता उसके बारे मे जानना और अपने बारे मे बताना चाहती हूँ जिससे अगर ये रिश्ता होता है तो हमारे बीच पहले से ही अच्छी बॉन्डिंग हो !” संध्या जी सबके आश्चर्य चकित चेहरे देख बोली।

क्योकि मीना जी और उनके पति को अपनी बेटी के लिए ये घर और वर हर मायने मे उपयुक्त लगा था और संध्या जी भी एक संभ्रान्त और शिक्षित महिला थी इसलिए उन्होंने संध्या जी के ये अनोखी बात भी मान ली और सिमरन संध्या जी को अपने कमरे मे ले आई।

” बहुत सुंदर कमरा सजाया है तुमने अपना !” सिमरन के कमरे को देखते हुए संध्या जी बोली।

” जी आंटी जी मुझे घर सजाने का बहुत शौक है !” अपनी तारीफ़ सुन सिमरन मुस्कुराते हुए बोली।

” अच्छी बात है बेटा पर क्या रिश्ते सजाने का भी शौक रखती हो ?” संध्या जी सिमरन की तरफ देख बोली।



” मैं कुछ समझी नही ?” सिमरन अचानक से उठ खड़ी हुई।

” अरे बेटा बैठो …अच्छा ये बताओ ये जो तुम्हारे परिवार की तस्वीर है इसे किसने यहां लगाया ?” संध्या जी उसे बैठाती हुई सामने लटकते चार फोटो वाले फोटोफ्रेम को देख बोली।

” वो आंटी जी मैने पूरे परिवार को एक सूत्र मे बाँध कर रखा है मैने यहां !” सिमरन फिर बोली।

” बेटा परिवार को एक सूत्र मे बाँध कर रखना बहुत अच्छी बात है हर लड़की मायके मे ये बाखूबी करती है क्योकि बेटियां अपने परिवार को ले ज्यादा ही भावुक होती है …पर क्या तुम बहु बनने के बाद भी परिवार को एक सूत्र मे बाँध कर रख पाओगी ?” संध्या जी प्यार से बोली।

” आंटी जी परिवार परिवार होता है चाहे मायके का हो या ससुराल का वैसे भी मायके का परिवार हमें जन्म से मिलता है तो वो अपना होता ही है पर ससुराल के परिवार को अपना बनाया जाता है अपने व्यवहार से इसलिए मैं जिस घर भी बहु बनकर जाउंगी ऐसे ही उस परिवार को भी एक सूत्र मे बाँध कर रखूंगी । और हां मुझे मेरी मम्मी ने रिश्ते संभालना भी बाखूबी सिखाया है ।” सिमरन ने जवाब दिया।

” बहुत अच्छा बेटा ..देखो सिमरन मेरी कोई बेटी नही है दो बेटे ही है ये तुम जानती हो बेटी की ख्वाहिश थी पर पूरी हो नही पाई ..तुम मेरी बेटी बनो इससे पहले मैं तुम्हारी माँ बनना चाहती  हूँ तुम अपने दिल की हर बात मुझसे कह सकती हो अपनी पसंद नापसंद मुझे बताओ जिससे तुम उस घर मे आओ तो तुम्हे यहां जैसा ही लगे !” संध्या जी बड़े प्यार से बोली। संध्या जी का प्यार और अपनापन देख खुशी से सिमरन की आंख भर आई ।

” आंटी जी आप मुझे उस घर के हर सदस्य की पसंद नापसंद बताइये जिससे मैं उस घर मे आऊं तो सबको खुश रख सकूँ रही मेरी पसंद नापसंद की बात तो वो तो मैं अपनी इस माँ को कभी भी बता सकती हूँ …!” सिमरन मुस्कुराते हुए बोली।



” अरे वाह मैने आंटी से माँ का सफर तय कर लिया मतलब तुम्हे ये रिश्ता मंजूर है ….पर एक बार अंश ( संध्या जी का बेटा) से भी तो मिल लो क्योकि शादी तुम्हे उसके साथ करनी है मेरे साथ नही !” संध्या जी हँसते हुए बोली संध्या जी की बात सुनकर सिमरन शर्मा गई। उसे शर्माता देख संध्या जी ने उसे गले से लगा लिया। संध्या जी के सीने से लगते ही सिमरन को ऐसा एहसास हुआ मानो अपनी माँ के ही गले लगी हो।

” देखिये मीना जी हम दोनो को तो अपना रिश्ता मंजूर है बस अंश और सिमरन बात कर ले फिर लगे हाथ हम रोके की रस्म भी कर लेंगे …अगर आपको अंश पसंद हो तो !” सिमरन के साथ संध्या जी बाहर आकर बोली। बेटी के चेहरे की खुशी देख माता पिता को संतोष हुआ।

” जी बिल्कुल सिमरन बेटा अंश को गार्डन दिखा लाओ अपना इतने हम आपस मे बाते कर ले ।” चेतन जी बोले ।

थोड़ी देर बाद सिमरन और अंश अंदर आये और उन्होंने विवाह को रजामंदी दे दी । संध्या जी ने तभी शगुन दे सिमरन को ऑफिशली अपनी बहु बना लिया मीना जी और चेतन जी ने भी अंश का टीका कर उसे शगुन दिया । इस तरह एक खूबसूरत रिश्ता जुड़ गया दो लोगो के बीच नही दो परिवारों के बीच।

दोस्तों यहां कुछ लोगो को मेरी कहानी हकीकत से दूर लगेगी क्योकि कुछ लोग की नज़र मे सास बहु का रिश्ता लड़ाई झगड़े का ही होता है। पर मेरी ये कहानी एक छोटी सी कोशिश है समाज मे बदलाव लाने की क्योकि मेरा ये मानना है अगर हमें सास अच्छी नही मिली तो क्या भविष्य मे हम अच्छी सास तो बन सकते है ना ।

आपको मेरी सोच कैसी लगी बताइयेगा जरूर ?

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!