दायित्व अपने अपने – माधुरी गुप्ता: Moral stories in hindi

न जाने क्यों अनुज का मन अतीत की तरफ लौट रहा था,उसके दिमाग में उसके साथ हुईं बचपन की घटनाऐं किसी चलचित्र की तरह सामने आरही थी। लगा कि मैं एक बार फिर से अनाथ होगया हूं।मेरा दायित्व उठाने बाली जीजी मां मेरा साथ छोड़ कर चली गई थी।उनके साथ बिताए गए ३० साल सामने आरहे थे।

मेरी आयु उस समय सिर्फ पांच साल थी और सरलाजीजी की आयु दस साल।तबऐक ऐक्सिडेंट ने ऐक झटके में ही मां व बापूजी दोनों को हम से छीन कर हमें अनाथ कर दिया था।मां बाबूजी किसी निकट सम्बन्धी की शोक सभा में शामिल होने के लिऐ जारहे थे कि सड़क दुघर्टना के शिकार हो गए।उन दोनों के निधन की खबर सुन कर बरेली से चाचा चाची व मथुरा से बुआ घर आ पहुंचे थे।उन दोनों का अंतिम संस्कार कर घर लौट कर मैं दौड़कर सरला जीजी से लिपट कर कितना रोया था। मुझे चुप कराते कराते जीजी की भी रूलाई फूट पड़ी थी।तेरह दिन तक घर में नाते रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहा।हर कोई अपने तरीके से सहानुभूति के कुछेक शब्द कह कर चला जाता।कैसे समय के क्रूर चक्र ने दोनों बच्चों को ऐक क्षण में ही अनाथकर दिया।

एक दिन रात को सोते समय मैंने सरलाजीजीसे पूछा था,‘‘अनाथ किसे कहतेहैं सब लोग ऐसा क्यों कह रहे थे कि हम अनाथ होगऐ हैं।मेरी बात सुनकर जीजी कीएक जोरकी सिसकी निकली और मुझे कस घर अपने से लिपटा घर कहा,अनुज मेरे भाई मेरे होते अपने को कभी अनाथ मत समझना।आजसे मैं तेरी जीजी ही नहीं जीजी मां भी हूं।मैं जब-तक जीती हूं तेरा पूरा दायित्व उठाऊंगी।तू किसी की बातों पर ध्यान न देकर अपने पढ़ने लिखने में अपना ध्यान लगा।

तेरहवीं का कार्यक्रम पूरा होने पर चाच चाची व बुआ आपस में सलाह मशविरा करने लगे कि अब इन बच्चों का दायित्व हमें ही उठाना है, आखिर बड़े भैया ने भी उस समय हमारे लिऐ कितना कुछ किया था, जब बाबूजी नही रहे थे।ऐसा कहते हुए चाचाजी ने बुआ की तरफ़ देखा, हां कह तो तुम ऐकदम सच रहे हो, मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरी शादी में तो शारदा भाभी ने तो अपने गहने तक गिरबी रख दिए थे,मेरे लालची ससुराल बालों की दहेज की मांग पूरी करने के लिऐ।

मैं तो खुशी खुशी इन बच्चों को अपने साथ ले जाती ,लेकिन क्या करू मेरे बहू बेटे जवान के इतने तीखे हैं कि मुझे ही दो समय की रोटी देने में उन्हें आफ़त लगती है।जबकि अभी तो तेरे जीजाजी की पैंशन आरही है ऊसीसे मेरा गुज़ारा होता है।और बात सिर्फ रोटी की ही तो नहीं है।इन बच्चों की पढ़ाई लिखाई शादी बिबाह सब कुछ तो अब हम लोगों को ही सम्हालना है।

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बुआ की बातें सुनकर चाची ने आश्चर्य चकित नजरों से उनकी तरफ देखा कि कितनी चतुराई से बुआ ने अपने बहू बेटे को बुरा भला बना कर इन बच्चों का दायित्व उठाने से अपना पल्ला झाड़ लिया था।

बुआ की बात पूरा होते ही चाचा ने एलान किया किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है।ये दोनों बच्चे अब हमारे साथ रहेंगे।। उनके ऐसा कहने पर चाची ने आंखें तरेर कर देखा था।पर चाची की आंखों को अनदेखा करते हुए चाचा ने सरला जी जी से कहा ,बेटा अपना व अनुज का ज़रूरी सामान पैक करले,हमलोग कल सुबह ही बरेली के लिए निकलेंगे।

बरेली आने पर चाचाजी ने हम दोनों का एडमिशन अच्छे स्कूल में करबा दिया था।सरला जीजी पढ़ने में तेज हीं अतः साल-दर-साल के सा अच्छे नम्बरों से पास होती रहीं।चाचा के सामने तो चाची हम लोगो पर खूब प्यार जताती , परंतु उनके पीछे गाहे वगाहे जली कटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ ती साथ ही जीजी के उपर घर का पूरा काम करने का जिम्मा डाल कर खुद घूमने निकल जाती। जीजी रात को देर तक जाग कर अपनी पढ़ाई पूरी करती।

समय अपनी गति से बीत रहा था,

जीजी ने हाईस्कूल पास कर लिया था।आगे की पढ़ाई के लिए जीजी ने चाचाजी से आआज्ञा ली कि यदि आप इजाजत दें तो मैं व अनुज अब अपने घर आगरा जाकर शेष पढाई पूरी कर सकते हैं। क्यों कि उस घर में मांबाबूजी की यादें जुडी हैं।चाचा हम दोनों को हमारे घर आगरा छोड़ गयेथे साथ ही घर की जरूरत के सामान की व्यवस्था करना भी नही भूले थे।

जीजी ने बीए पास कर लिया था और पूरे आगरा में टॉप किया था,इस बीच चाचाजी ने उन पर शादी करने को कहा,तिस पर जीजी ने कहा,नही चाचा जी जब तक अनुज को सैंटिल न कर दूं मैं शादी नहीं करूंगी।

जीजी ने ट्यूशन लेना शुरू कर दिया था,जिससे हमारी रोजमर्रा की जरूरतें आराम से पूरी हो रही थी। बारहवीं पास करते ही जीजी मां ने मुझे इंजीनियरिंग की कोचिंग दिलवानी शुरू करदी। फर्स्ट अटेम्प्ट में ही मेरा सलेक्शन इंजीनियरिंग में होगया। ट्यूशन की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी।मेरी इंजीनियरिंग पूरी होते ही मेरा सलेक्शन एक मल्टीनेशनल कम्पनी में हो गया।पैकेज भी पूरे आठ लाख का था।समय व मौका देख करकर मैंने जीजी मां से कहा अब आपको ट्यूशन लेने की जरूरत नहीं है,अब आप आराम कीजिए।

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नौकरी लगते ही जीजी मां के पास मेरे रिश्ते आने लगे। कई लड़कियां देखने के बाद नीना को मेरे लिए चुना था।नीना के घर में आने के बाद घर में खुशियां लौट आईं थी। चाचाजी भी जीजी मां को अपना दायित्व पूरा करते देख कर खुश थे।समय व मौका देख कर मैंने नीना को अपनी अब तक की जिंदगी के बारे में बताया कि किस तरह जीजी मां ने अपनी खुशियों का बलिदान देकर मुझे खुशियां दी हैं अतः तुम कभी उनका दिल मत दुखाना,तुम सदैब उनकी पसंद नापसंद व खुशियों का ध्यान रखना।नीना पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी।उसने मुझसे कहा तुम्हारी जीजी ने मां बन कर तुम्हारे दायित्व का भार उठा या है,उसी तरह में भी उनको बराबर मान सम्मान देने में कोई कसर नही रखूंगी।

संयोगिता घटनाओं की विचित्रताऔ को भला कौन समझ सकता है,पता नही हमारी खुशियों को किसकी नज़र लग गई।

कुछ दिनों बाद नीना का बर्थ डे था,। जीजी मां ने घर को खूब सजाया साथ ही घर में एक छोटी-सी पूजा भी रखी।इस मौके पर नीना की मां भी आईं हुईं थी।उस दिन नीना ने खूब टेस्टी लंच तैयार किया था और जीजी मां की पसंद के कच्चे केले के कोफ्ते बनाना भी नही भूली थी।सब लोग बहुत खुश थे।

कोफ्ते का डोंगा खाने की टेबिल पर देखकर नीना की मां ने विस्मय से पूछा, नीना तू कब से कच्चे केले के कोफ्ते खाने लगी?

नही मां ये तो मैने जीजी मां की पसंद से बनाए हैं,उन्हें ये कोफ्ते बहुत पसंद हैं।ये मेरा उनके लिए प्यार है।मेरा व जीजी मां का खाना पूरा हो चुका था।मां बेटी को बात करते देख हम दोनो अपने कमरे में आ गए।

मेरे कमरे में नीना की मां का स्वर साफ सुनाई दे रहा था।वे नीना के कान भरने में लगी हुई थी।ये क्या हर समय जीजी मां का रागअलापती रहती हो और उनके आगे पीछे घूमती रहती हो हरेक काम में उनकी इजाजत लेना क्या जरूरी है।जीजी कभी मां नहीं बन सकती।इस घर की मालकिन तुम हो,जीजी मां नही ,इस बात को जितनी जल्दी अपने दिमाग में बैठा लोगी,उतना ही तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा।इतने साल से अनुज की तनख्वाह पर ऐश कर रही है यह जीजी मां का चोला पहन कर।और अनुज भी तेरी कम उनकी इच्छा अनिच्छा का ही अधिक खयाल करता है।

ऐसा कुछ नही है मां, जीजी मां सच में बहुत अच्छी है, मुझे व अनुज को बहुत प्यार करती हैं विलकुल अपने बच्चों के जैसा,जीजी मां ने ही अनुज की मां बन कर,उसको पढा लिखा कर इस लायक बनाने में अपनी खुशियों का बलिदान दिया है ।किसीका दायित्व उठाना आसान नहीं होता।तन मन अपनी खुशियां सब कुछ कुर्बान करना पड़ता है,नीना ने कहा।तो उसकी मां तुरंत बोली,तू मुझे ज्यादा ज्ञान मत दे, मैंने तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है। तू कहां समझेगी जिन्दगी के दांव पेंच छल फरेव। ये प्यार व्यार सव एक ढोंग व दिखावा है।मैं तो तेरे भले केलिए ही कह रही हूं।मेरा कहा न मानने पर कहीं बाद में पछताना न पड़े।

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मां के जाने के बाद नीना का व्यवहार जीजी मां के प्रति बदलने लगा,यदि जीजी मां कुछ कहती तो तुरंत पलट कर जवाब देने लगी। जीजी मां अब अधिक समय मंदिर में पूजा-अर्चना व सत्संग में बिताने लगीं।

एक दिन ऑफिस से आने पर नीना ने साफ शब्दों में कहा,तुम कब तक अपनी जीजी मां के पल्लू से बंधे रहोगे।इनके इस घर में रहते तुम मेरे पति कभी नहीं बन पाओगे।इस घर में या तो मैं रहूंगी या तुम्हारी जीजी मां।

जीजी मां के मन्दिर से लौटने का समय हो रहा था,दरबाजा खुला हुआ था,नीना के शब्द उनके कानों में पड़ चुके थे। जीजी मां ने रसोई में जाकर सभी के लिए चाय बनाईं और अपने साथ लाए समोसे प्लेट में डालकर नीना को बुलाया।चायतो सभी ने पी परंतु समोसे यों ही प्लेट में पड़े रहे।

दूसरे दिन मेरे ऑफिस से आने से पहले ही वे ओल्ड एज होम में शिफ्ट हो गई। मुश्किल से चार दिन बीते होंगे कि उनके बीमार होने की सूचना मिली और अगली खबर जो किसी सदमे के कारण हुऐ हार्ट अटैककी थी,जिसने मेरी जीजी मां को मुझसे छीन लिया था।उनके दायित्व निभाने की ये कैसी सजा दी थी, प्रभु ने उनको।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

#दायितव #

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