“बहु वचन” – रमेश चंद्र शर्मा

” क्या माताजी जी आप भी बड़ी कंजूस हैं ।आपकी  गांठ से पैसे छूटते ही नहीं? आजकल तो फल सब्जियां कितनी महंगी हो गई है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई भी”

   आज सुनंदा का मूड कुछ ज्यादा ही खराब था। उसने माताजी के पेंशन की डायरी मांगी  देख ली थी ।

“अरे वाह रुपया तो हर माह निकाले जा रही हो पर वह जाता कहां है? घर में तो फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं करती” सुनंदा गुस्से से तमतमा कर बोली !

  आज माताजी को तेज बुखार है । सर्दी खांसी के मारे बुरा हाल । उनका पुत्र मनीराम अभी तक दफ्तर से लौटा नहीं। माताजी ने  सुनंदा से कहा “बहु पेंशन मिलती ही कितनी है? मेरी बीमारी पर हर माह खर्चा हो जाती है। अच्छा है मुझे मनीराम के पिता की पेंशन मिलती है। कम से कम तुम लोगों पर इसका खर्चा तो नहीं है ।छोटा-मोटा कैसा भी अपना खुद का मकान भी छोड़ कर गए हैं वे “।

 यह सुनकर सुनंदा आग बबूला हो गई । “पेंशन नहीं होती तो क्या इलाज नहीं होता? सारी पेंशन तो आप ही डकार जाती हो । मुन्ना के पापा दिन रात एक करते हैं तब कहीं जाकर घर चल पाता है। आपको अपने बेटे की भी दया नहीं है” । सुनंदा एक सांस में बोलकर हांपने लगी ।

 तेज बुखार और ठंड से कांपती हुई माताजी अपने कमरे में जाकर पलंग पर लुढ़क गई ।माताजी बिना दवा के भूखे ही बिस्तर पर पड़ी रही। रात 8:00 बजे मनीराम घर पर फल फ्रूट लेकर आया । सुनंदा ने हाथ से  फल की थैली झपट कर फ्रिज में रख दी। मनीराम ने इधर उधर   देखा। नहीं दिखने पर सुनंदा से पूछा “माताजी नहीं दिख रही उन्होंने खाना तो खा लिया?” सुनंदा ने उपेक्षा से कहा “अपने कमरे में सोए हैं कहां जाएंगे?”




  मनीराम सुनंदा बच्चों के साथ बैठकर डाइनिंग टेबल पर खाना खाने लगे। सुनंदा ने धीरे से कहा “मैंने आज माता माताजी की पेंशन की डायरी देखी ।सारा पैसा निकाल लिया। माना की दवा चल रही है पर क्या इतना पैसा लग जाता है? कहीं अपनी बेटी को तो नहीं दे आई “?

  मनीराम ने सुनंदा को चुप करते हुए कहा “ऐसी बात नहीं है। पिछले माह उन्होंने दीपावली पर बच्चों के कपड़े खरीदे थे। दीदी के यहां मामेरा भी तो उनके ही पैसों से किया था ।” कह कर मनीराम हाथ धोकर अपने कमरे में चला गया। पीछे पीछे सुनंदा भी बच्चों को लेकर  कमरे में चली गई ।

आज माताजी को बहुत तेज बुखार था ।बिस्तर पर लेटे ही माताजी ने “कहा बेटा मनीराम आ गया क्या ?बेटा बहुत तेज ठंड देकर बुखार आ रहा है ।रजाई निकाल दे और अगर दवाई रखी हो तो दे जा”।

  माता जी यह कह कर चुप हो गई। उधर से कोई प्रतिउत्तर नहीं आया।  नहीं पुत्र मनीराम आया ।माताजी पसीने में नहा गई। दांत  किटकिटाने लगे ।थोड़ी देर बेटे की प्रतीक्षा करने के बाद हिम्मत जुटा कर खुद  उठी और  रजाई निकालकर अपने पिंजर शरीर को ढक लिया ।पास में पड़े पानी के गिलास में से पानी का गटककर लेट गई। थोड़ी देर भूख बुखार के मारे हाथ पैर मार कर माताजी मुंह ढक कर सो गई। 

 सुबह मुर्गे की बांग  आ गई । चिड़िया चहचहाने लगी। रोजाना माताजी सुबह जल्दी उठकर भजन करती थी ।लेकिन आज नहीं उठी। सुनंदा ने सुबह उठकर देखा और बढ़ बड़बडा़ती हुई माताजी के पास जाते हुए बोलने लगी “कहीं खसक तो नहीं ली हो ?लेकिन माताजी बड़ी कड़क है इतनी ल्दी जाने वाली नहीं है” ।सुनंदा की आवाज सुनकर माताजी को लगा बेटा मनीराम आ गया वह बोली “बेटा मनीराम तू आ गया? आज तो बिना दूध ,दवा, के रात भर नींद नहीं आई” ?

    सुनंदा माताजी की हलचल एवं बड़बड़ाहट सुनकर धीरे से बाहर  निकल गई !

=================================

#रमेश चंद्र शर्मा

    इंदौर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!