माँ मुझे गोद ले लो – संगीता अग्रवाल

वृद्धाश्रम मे बहुत गहमगहमी थी ऐसी क्या बात है जो नम्रता बिटिया ने यहाँ इकट्ठा होने को कहा है  सभी बुजुर्ग आपस मे यही चर्चा कर रहे थे । वृद्धाश्रम का वो हॉल जिसमे सभी बुजुर्ग खाना खाते थे वो आज शाम के वक़्त भी गुलजार था वरना इस समय सभी कमरों मे होते है या बाहर टहल रहे होते है । सब बातो से अंजान सबसे दूर दूर रहने वाली विमला जी हॉल के बाहर एक बेंच पर बैठी है हमेशा की तरह चुपचाप।

तभी वृद्धाश्रम की संचालिका नम्रता ने अपने सहायक नवीन के साथ वहाँ प्रवेश किया साथ मे एक व्यक्ति और भी था। उन्हे देख सभी बुजुर्ग बात करना छोड़ उनकी तरफ देखने लगे ।

” देखिये मैं जानती हूँ आप सभी ये जानने को उत्सुक होंगे कि मैने इस वक़्त आप सबको यहाँ क्यो बुलाया है ?” नम्रता ने बोलना शुरु किया।

” हां बिटिया ऐसी क्या खास बात है जो इस वक़्त बतानी है सभी जरूरी सूचना तो सुबह प्रार्थना के समय दे दी जाती है ना !” एक बुजुर्ग बोले।

” हाँ काका आपने बिल्कुल सही कहा पर आज मैने आपको कोई जरूरी सूचना देने को नही बुलाया बल्कि एक शख्स से मिलने को बुलाया है ….ये है मिस्टर शरत जी !” नम्रता साथ आये शख्स की तरफ इशारा करते हुए बोली।

” ये तो वही है ना जो पिछले हफ्ते अपने जन्मदिन पर यहाँ फल मिठाई बाँटने आये थे ?” एक बुजुर्ग महिला बोली।

” हाँ अम्मा मैं वही हूँ पर आज मै यहां कुछ देने नही लेने आया हूँ !” शरत ने हाथ जोड़ कर कहा।




” बेटा इस वृद्धाश्रम मे सभी लाचार लोग है कुछ अपनी औलाद के सताये कुछ हालात के सताये । हम तुम्हे क्या दे सकते है !” एक बुजुर्ग बोले।

” बाबा मैं भी हालात का सताया ही हूँ और जो मुझे चाहिए वो यही है !” ये बोल शरत ने नवीन को कुछ इशारा किया तो नवीन बाहर बैठी विमला जी को ले आया। जो अंदर क्या हो रहा वो सुन तो रही थी पर उदास सी ही बैठी थी।

” मुझे यहाँ क्यो लाये हो …मैं अकेले ही रहना चाहती हूँ !” अंदर ला जब नवीन उन्हे सबके साथ बैठाने लगा तो वो बोली। नवीन ने जबरदस्ती उन्हे बैठा दिया तो वो सिर झुका कर बैठ गई।

शरत बहुत गौर से उन्हे देख रहा था। यूँ तो उनकी उम्र साठ बासठ के आस पास होगी पर हालतों ने उन्हे काफी बूढ़ा बना दिया था। छह महीने पहले ही उन्हे उनका बेटा यहां छोड़ गया था। जबसे वो यहाँ आई थी गुमसुम ही थी ना तो किसी से बात करती थी ना अपना दर्द बांटती थी बस गुमसुम सी रहती थी जरूरत भर का खाती थी और एक कोने मे बैठे बैठे पूरा दिन काट देती थी। उनके बारे मे बस सबको इतनी जानकारी थी कि उनके पति बहुत बड़े व्यवसायी थे एक एक्सीडेंट मे उनकी मृत्यु के बाद अपने इकलौते बेटे की अकेले परवरिश की पति का कारोबार भी संभाला । बेटे के बड़ा होने पर सब उसे सौंप निश्चिन्त हो गई वो । घर मे बहू भी आ गई । वो खुद को ख़ुशक़िस्मत समझती थी कि बेटा इतना लायक है पर बेटे बहू के दिमाग़ मे तो कुछ और ही चल रहा था । बेटा धीरे धीरे कारोबार समेटने लगा और एक दिन सब बेच उन्हे यहां छोड़ अपने ससुराल चला गया। वहाँ अपनी पत्नी के भाइयो के साथ मिलकर कारोबार शुरु कर दिया था उसने। छह महीने मे एक बार भी झाँक कर नही देखा उसने । बेटे का ये धोखा वो सह नही पा रही थी इसलिए गुमसुम सी हो गई थी।

” माँ !” अचानक शरत आकर उनके चरणो मे बैठ गया।




” मैं किसी की माँ नही हूँ …नही हूँ मैं किसी की माँ !” हमेशा शांत रहने वाली विमला जी एक दम से चिल्ला पड़ी और अपने कमरे मे चली गई पीछे पीछे शरत भी आ गया। सभी बुजुर्ग हैरान थे ये हो क्या रहा है। नम्रता ने उन्हे शांत रहने को बोला।

“मै भी किसी का बेटा नही हूँ माँ पर बनना चाहता हूँ एक अनाथ हूँ कभी अपने माता पिता को नही देखा अभावो मे पला बड़ा हुआ हूँ आज अपने दम पर सब पा लिया पर अनाथ का ठप्पा आज तक नही हटा सका अपने आप से ।” शरत प्लंग पर बैठी विमला जी के कदमो मे बैठ भरी आँख से बोला।

” बेटा !” ना जाने क्या था शरत की आँखों के आंसुओं मे कि विमला जी उसे बेटा बोल पड़ी।

” बेटा बोला है तो सिर पर हाथ भी रख दो ना माँ इस अनाथ को अपना लाड दे दो माँ बहुत तरसा हूँ ममता की छाँव को उस दिन यहां आकर जब आपको देखा तो आपमें अपनी माँ नज़र आई एक जुड़ाव सा महसूस हुआ आपसे ।घर जाकर बैचैन सा रहा बहुत सोचा तब जाकर आज फैसला कर पाया हूँ !” शरत इतना बोल चुप हो गया।

” कैसा फैसला ?” शंकित निगाहों से विमला जी ने उसे देखा।

” आपका बेटा बनने का फैसला माँ । मुझे गोद ले लो माँ और चलो अपने घर जहाँ आपका बेटा रहता है लोगी ना माँ मुझे गोद !” शरत उनकी गोद मे सिर रखते हुए बोला।




ये क्या कह रहा है ये लड़का कभी ऐसा भी होता है क्या की वृद्धाश्रम मे कोई माँ को लेने आये वो भी खुद की नही किसी और की माँ को यहाँ तो लोग अपने माँ बाप को छोड़ने आते है । क्या सच मे ऐसे बच्चे भी है आज की दुनिया मे विमला जी के मन मे अनेको बाते चल रही थी।

विमला जी के कमरे के बाहर खड़े नम्रता , नवीन और बाकी बुजुर्ग ये नज़ारा देख अपने आँसू पोंछ रहे थे ।

” मान जाइये ना आंटी ये बहुत उम्मीद लेकर आये है पहले मैं भी इनकी बात से हैरान थी कि जिस वृद्धाश्रम मे लोग अपने बूढ़े माँ बाप को छोड़ जाते है उनसे सारे नाते तोड़ लेते है वहाँ कोई माँ गोद लेने कैसे आ सकता है कही इनका कोई स्वार्थ तो नही पर इन्होने मुझे विश्वास दिलाया कि इन्हे सच मे माँ की जरूरत है और इन्हे आप मे एक ममतामयी माँ नज़र आई थी । बल्कि इनकी सोच हमें इतनी अच्छी लगी क्योकि लोग बच्चे तो गोद लेते है अपने आंगन का सूनापन दूर करने के लिए लेकिन अपने आंगन मे ममता की छाँव करने को माँ गोद लेने वाले पहले शख्स है ये !” नम्रता विमला जी के पास आकर बोली।

” नही नम्रता जी माँ को कोई भी मजबूर नही करेगा उनको ये बेटा नही पसंद आया कोई बात नही इस अनाथ की किस्मत मे माँ का प्यार नही है कोई बात नही !” शरत निराश हो बोला उसकी आँखों मे आँसू थे जिन्हे देख विमला जी हैरान हो गई। अपने बेटे के कारण उन्हीने खुद को पत्थर बना लिया था जिस बेटे के लिए सारी जिंदगी न्योछावर कर दी उस बेटे ने जो दग़ा किया उसने विमला जी को सबसे अलग थलग कर दिया था गुमसुम कर दिया था पर आज ऐसा लगता था जैसे किसी ने एक बर्फ पिघला दी हो अपनत्व की आंच से ।

” कौन कहता है तू अनाथ है मै हूँ ना तेरी माँ ।” विमला जी अचानक से बोली और आँसू बहाने लगी । शरत विमला जी के कदमो से लिपट गया। सबकी आँखे आंसुओ से भीग गई वहाँ का नज़ारा देख । आज ये वृद्धाश्रम जो अपने बच्चो के तिरस्कार को याद करते बुजुर्गो की सिसकियों से गूँजता था आज गूंज रहा था अपने बच्चो से सताई माँ और ममता को तरसते बच्चे की मिलन के अद्भुत रुदन से।

दोस्तों भले ये काल्पनिक कहानी है जो हकीकत से दूर भी लगती है पर सोच कर देखिये अगर ये कल्पना सच हो जाये तो कितना अच्छा हो क्योकि अगर ये सच है कि दुनिया मे बहुत से माँ बाप बच्चो के तिरस्कार के मारे है तो ये भी सच है दुनिया मे बहुत से बच्चे माँ बाप के प्यार से वंचित है वो बड़े होकर अपना मुकाम पाने के बाद भी ममता को तरसते है । तो क्यो ना ऐसे बच्चे माँ बाप को गोद ले ले । जब बच्चे गोद लिए जा सकते है तो माँ बाप क्यो नही।

ये केवल मेरी सोच है जरूरी नही सब इससे इत्तेफाक रखते हो तो कृपया जो इत्तेफ़ाक ना रखते हो वो नकारात्मक टिप्पणियां ना करे 

#कहानी_प्रतियोगिता_अप्रैल धन्यवाद
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल  ( स्वरचित )

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