संस्कार’ – -पूनम वर्मा

“मम्मी ! आजकल आप रोज चिड़ियों के लिए दाना-पानी क्यों रखती हैं ?” जिज्ञासु बंटी ने मम्मी को सकोरे में पानी रखते देखकर पूछा ।

” मेरे प्यारे बंटी ! देख रहे हो आजकल गर्मी कितनी पड़ रही है ? सभी नदी-तालाब सूख गए हैं और खेतों में भी अभी फसल नहीं लगती । इसलिए चिड़ियों को दाना-पानी के लिए बहुत भटकना पड़ता है । ऐसे में उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था करना हमारा कर्तव्य है ।” मम्मी ने समझाते हुए कहा ।

एक दिन बंटी ने स्कूल जाते समय मम्मी से कहा, “मम्मी ! आज मुझे थोड़ा ज़्यादा लंच दे देना और एक और बोतल ठंडा पानी भी ।”

“बंटी ! आजकल तू लंच और पानी दोगुना लेकर जाते हो । तुम्हें भूख ज़्यादा लगती है या किसी को बाँट देते हो ?”

मम्मी का सवाल सुनकर बंटी पहले तो सकपका गया । लेकिन फिर उसने सच बताने में ही भलाई समझी ।

“मम्मी…. वो…. मेरे स्कूल के बाहर दो बूढ़े दादा-दादी बैठे रहते हैं । उनका कोई नहीं है । वे कहीं आने-जाने लायक भी नहीं हैं । इसलिए मैं उन्हें रोज अपने लंच में से थोड़ा खाना और पानी दे देता हूँ ।”

“यह तो अच्छी बात है बेटे ! तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? ज़रूरतमंदों की सहायता करना तो पुण्य का काम है । मुझे तुमपर गर्व है ।” कहते हुए माँ ने बंटी को गले लगा लिया ।

-पूनम वर्मा

राँची, झारखंड ।

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