बेटे के लिए अंधा प्यार – के कामेश्वरी

प्रतीक माँ के सामने ग़ुस्से से खड़ा था । माँ उसे समझा रही थी कि बेटा ऐसे नहीं कहते वह तुम्हारी बहन है । प्रतीक अपने ग़ुस्से को क़ाबू में करते हुए कहता है कि माँ मुझे समझाने की ज़रूरत नहीं है मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना है । बेटे के लिए अटूट प्यार ने जानकी का मुँह बंद कर दिया था । वह जानती थी कि प्रतीक जो कह रहा है वह ग़लत है पर प्रतीक को देखकर उसे ग़ुस्सा नहीं आता था बल्कि प्यार उमड़ता था।उसकी हर बात पर जानकी की रज़ामंदी रहती थी ।इस बात का प्रतीक ख़ूब फ़ायदा उठाता था। जानकी शुरू से ही ऐसी ही थी ।बेटे के प्यार में इतनी अंधी थी कि उसे बेटे की ग़लतियाँ नज़र नहीं आती थी । बेटे की फ़रमाइश को पूरी करने के लिए उधार लिया करती थी । बेटी उसके लिए कुछ नहीं थी । सबके सामने कहती थी मेरा बेटा ही मेरे लिए सब कुछ है ।बेटी से मैं प्यार नहीं करती हूँ ।

जानकी की क़िस्मत अच्छी थी कि इतने लाड़ प्यार और बिगड़ा बेटा भी पढ़ लिख गया और नौकरी पर भी लग गया था । इसके लिए भी जानकी सबसे कहते फिरती थी कि मेरा बेटा बिगड़ गया है किसी काम का नहीं है सब कहते थे पर देखा वह भी नौकरी करने लगा है ।

प्रतीक ने भी अपनी माँ का उसके प्रति जो अंधा प्यार था उसका भरपूर फ़ायदा उठाया । उसे मालूम था कि पिता की भी माँ के सामने नहीं चलती है । इसी के चलते उसने अपनी दोस्त की बहन से शादी करने की सोची ।माँ से कहा और उन्होंने उनकी शादी सबके ख़िलाफ़ जा कर करवा ने के लिए तैयार हो गई पर उसके सामने शर्त यह रखी कि बहन की शादी पहले कर देते हैं फिर तुम्हारी शादी तुम्हारे पसंद की लड़की से करवा दूँगी । प्रतीक इस बात पर राजी हो गया । बहन सुगता के लिए रिश्ते ढूँढने लगे ।


सुगता ने डिग्री किया था । माँ बेटे ने किसी तरह एक अच्छा पढ़ा लिखा लड़का देख उसकी शादी करा दी । वह अपने पति के साथ स्विट्ज़रलैंड चली गई । अब प्रतीक माँ के पीछे पड़ गया कि उसकी भी शादी करा दें क्योंकि उसकी लवर शनाई उसके पीछे पड़ गई थी । ख़ैर रो धोकर किसी तरह प्रतीक ने शादी तो कर ली पर माँ और पत्नी के बीच छत्तीस का आँकड़ा था ।दोनों की नहीं पटती थी ।जैसा प्रतीक है वैसे ही उसकी पत्नी थी ।दोनों ने घर को अखाड़ा बना कर रख दिया था । शनाई सास की शिकायत प्रतीक से करती थी और माँ बेटे के बीच कहा सुनी हो जाती थी ।जानकी बेटे को कुछ नहीं कहती थी बहू को आड़े हाथों ले लेती थी । इस रोज रोज की चिकचिक से तंग आकर जानकी के पति मूर्ति ने बेटे के लिए एक किराये का मकान अपने घर के पीछे ही ढूँढ लिया और उससे कहा कि वे लोग घर से बाहर रहे । शनाई यही चाहती थी कि साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे जैसे उन्होंने घर से निकाल दिया है तो बहू तो बिचारी अच्छी है सास ससुर ही समाज में बुरे बने । शनाई को घर का काम करना अच्छा नहीं लगता था ।इसलिए आए दिन प्रतीक से कहकर ससुराल से खाना मँगवा लेती थी । जानकी भी बेटे की पसंद की सब्ज़ी या दाल बनाकर रोज उनके घर में रख कर काम वाली बाई से घर साफ़ करवाकर आती थी क्योंकि उसे मालूम था कि बेटा साफ़ सुथरा घर और अच्छा खाना पसंद करता था । ऐसी थी अँधी माँ की ममता ।

शनाई के पिता ने अपने इंडिपेंडेंट घर को तुड़वा दिया और उसमें पाँच फ्लेट्स बनवा दिया ।उन्होंने अपने बच्चों के लिए तीन फ्लेट्स तीन लड़कियों के लिए और एक लड़के के लिए एक अपने लिए । अब शनाई ने अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पिता के दिए घर में चली गई । जानकी बहुत रोई ।उसने बहू से माफ़ी माँगी कि तुम जैसे चाहो वैसे रहो क्योंकि वह बेटे को बिना देखे रह नहीं सकती थी । माँ को रोते देखकर भी प्रतीक ने भी कुछ नहीं कहा और अपनी पत्नी के साथ चला गया । हाँ माँ से यह वादा ज़रूर किया कि हम वीकेंड पर आएँगे । माँ ने उसकी बातों को मान लिया और दिल पर पत्थर रख कर बेटे को जाने दिया । शनाई से जब प्रतीक ने कहा कि चलो एक बार घर चलते हैं बस उसने प्रतीक पर चिल्लाना शुरू कर दिया कि जिस घर से मुझे बाहर निकाल दिया है ।मैं वहाँ नहीं जाऊँगी ।वे दोनों आकर मुझसे माफ़ी माँगेंगे तो ही उस घर में कदम रखूँगी । प्रतीक अकेले ही हर हफ़्ते माँ से मिलने चला जाता था । पर शनाई का ख़ुराफ़ाती दिमाग़ तो चल ही रहा था ।उसने प्रतीक को पट्टी पढ़ाई कि अपनी माँ से कह दो इस घर में आपकी बहन को हिस्सा नहीं मिलना चाहिए । प्रतीक तो वैसे ही बददिमाग़ था ऊपर से शनाई की बातें आग में घी डालने का काम कर रही थी ।

बहन सुगता स्विट्ज़रलैंड से लंडन गई वहाँ से अब आबुदाबी में रह रही थी । उसने अपने माता-पिता को अपने साथ रहने के लिए वहाँ बुलवा लिया था । जानकी पति के साथ वहाँ दो साल रही पर उसका दिल बेटे के लिए ही धड़कता था ।बेटे का ग़म या उम्र के कारण नहीं मालूम पर जानकी का ओपन हार्ट सर्जरी हुआ । दामाद ने ही बेटे का फ़र्ज़ निभाया । दामाद को देख जानकी खुश हो जाती थी । जानकी तो जानकी है उसने दामाद को उसके ही माता-पिता के खिलाफ कर दिया और उसे और बेटी नातिन को लेकर आबुदाबी से वापस आ गई । दामाद एक महीना रहा पर माता-पिता से मिलने नहीं गया । दामाद के जाते ही प्रतीक घर पर पहुँच गया और माँ से कहने लगा कि इस घर में या आपके बैंक बेले्न्स या गहनों में बहन का कोई हक़ नहीं होगा ।यह मुझे उससे लिखवाकर दो इसी बात पर वह माँ से बहस कर रहा था ।



कहानी की शुरुआत में हम यह सब पढ़ रहे थे ।

सुगता माँ और भाई की बातें सुन रही थी ।वह अपने कमरे से बाहर आई और भाई के हाथों से पेपर्स लिए और पूछा बोल कहाँ सिग्नेचर करने हैं ।पापा उदास होकर बेटी को देख रहे थे और जानकी को देख रहे थे कि इसे रोक पैसे मेरे हैं पर प्रतीक ने जल्दी से सुगता को पेपर्स दिए और सिग्नेचर करा लिया ।माँ ने देखा पर चुप रही सोच रही थी कि दामाद तो बहुत कमा रहे हैं बेटी को कुछ न दिए तो भी चलेगा । प्रतीक खुश था कि एक काम हो गया है । माँ के हाथों दी गई कॉफी पीकर सीटी बजाते हुए चला गया ।

जानकी ने सोचा चलो काम हो गया है ।अब आराम है ।पति ने डाँटा पर उन्हें भी यही कहकर चुप कराया कि बेटी की शादी इतने अच्छे घर में कराया है ।उसके पास सब कुछ है ।उसके लिए बुढ़ापे के सहारे को नाराज़ नहीं कर सकते हैं न । एक महीने ठीक चला ।बेटी अब वापस पति के पास जाने की तैयारी कर रही थी ।शनिवार को हमेशा की तरह प्रतीक आया और माँ के पास बैठकर कहने लगा माँ मेरे ससुर ने अपने घर को तुड़वाकर फ्लेट्स बनाए हैं आपने देखा न सब कितने आराम से एक ही जगह रह रहे हैं ।हम भी अपने घर को तोड़कर फ्लेट्स बनाएँगे उनमें एक आपका बाकी मेरे क्या कहते हैं ।वैसे भी इतनी अच्छी डील है ।मैंने उसी बिल्डर से बात भी कर ली है ।आप लोग बहन का घर ख़ाली पड़ा है वहाँ रहिए बस दो साल की बात है आपको अपना फ्लेट मिल जाएगा । माता-पिता की बातों को अनसुना करके उसने मकान तुड़वा दिया और फ्लेट्स के लिए दे दिया । माता-पिता बेटी के घर में रहते थे ।दामाद ने जानकी से कहा आप फ़िक्र मत कीजिए मैं हूँ ना । जो अपने माता-पिता का न हो सका ।वह सास ससुर की देखभाल के वादे कर रहा था क्या ज़माना आ गया है ।

दोस्तों बच्चों से प्यार करना चाहिए पर उनके प्यार में इतने भी अंधे भी न हो जाओ कि अपनी ज़िंदगी ही ख़राब कर लो ।

आस-पास के लोगों की बातों को पति की बातों को अनसुना करके जानकी ने जो मुसीबत मोल ली है ।वह उन सब माँओं के लिए उदाहरण बन गई है जो आँख मूँदकर अपने बेटों पर भरोसा करती हैं और बेटी को पराया कर देती हैं । आप सब सोच रहें होंगे कि जानकी को घर मिला या नहीं दामाद ने उनकी देखभाल की है कि नहीं?

जब बेटा धोखेबाज़ है तो उसे यह सब कहाँ मिल सकता है । आज वे दोनों वृद्श्रम में बेटे के इंतज़ार में हैं ।नए फ्लेट् में ले जाएगा कब उनका इंतज़ार ख़त्म होगा ईश्वर ही जाने ।

के कामेश्वरी

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