ज़िन्दगी जाने वाले के साथ ख़त्म नहीं होती – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जीवनसाथी के ना होने का दर्द कोई नहीं बाँट सकता ये बात आज महुआ को अच्छे से समझ आ रही थी…सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था कि सब कुछ पल भर में ही बदल गया… कल की सुबह का सोच सोच कर महुआ परेशान हो रही थी…. नींद आँखों से कोसों दूर थी फिर भी करवटें बदल रात गुजार ली।

अगली सुबह उठ कर वो अपने बग़ल में सो रही बिटिया को एक नजर भर देखी और घर के काम में लग गई।

आज घर में पंचायत लगने वाली थी… वो गाँव में ब्याह कर आई थी ….भरा पूरा परिवार था उसका और घर में जब भी कोई निर्णय लेना होता वो अधिकार दद्दा ससुर को ही था।

आज ये पंचायत महुआ के लिए बैठने वाली थी… कारण था एक महीने पहले धीमी गति से चलती ट्रेन से उतरते वक़्त संतुलन ना बन सकने के कारण वो  दूसरी तरफ़ से आती ट्रेन के नीचे आ गया था…. जीवनसाथी की ज़िन्दगी गई सो गई महुआ और उसकी बेटी की ख़ुशियाँ भी मानो उसके साथ ही चली गई… बेटी अभी साल भर की ही तो थी…अब भरण पोषण कैसे होगा … महुआ का क्या होगा… इसी सिलसिले में पंचायत होनी थी… महुआ के माता-पिता को भी ससुराल वालों ने न्योता दे दिया था…आख़िर बिटिया की ज़िन्दगी का सवाल जो था….

तय समय पर सब उपस्थित हो गए थे….. महुआ के सास ससुर इतने सक्षम ना थे कि बहू और पोती का भरण पोषण उठा सकें… क्योंकि कमाने वाला एक ही था और वो तो चला गया था …नाते रिश्तेदारों ने भी मौन साध लिया था।

“ समधी जी आपको मेरी महुआ बोझ लग रही है तो हम दोनों इसे अपने साथ ले जाते हैं… अभी इसके माँ बाप ज़िन्दा है… हम अपनी बेटी और नातिन की ज़िम्मेदारी सँभाल सकते हैं ।” महुआ के पिता ने आदर सहित अपने हाथ जोड़कर कहा

“ नहीं बाबूजी… मैं कहीं नहीं जाऊँगी… विदा करते वक़्त इस घर को अपना समझने की सलाह दी थी फिर आज अपने सास ससुर को मँझधार में छोड़ कर कैसे जा सकती हूँ… अब तो जो होगा देखा जाएगा .. आपकी बेटी कमजोर नहीं है… वो अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी की हर बाज़ी जीत सकती है बस आप लोग अपना आशीर्वाद दे…।” महुआ ने धीमे स्वर में अपनी बात कह दी

“ बहू चाहे तो तू पवन( चचेरे देवर) से शादी कर सकें है… हमारे में पति के ना रहने पर कुंवारे देवर से ब्याह कर दिया जाता है…।”दद्दा ससुर ने पूछा 

महुआ ने देखा पवन नज़रें झुकाएँ खड़ा था… वो जानती थी पवन उसे बहन मानता है और फिर महुआ भी तो भाई मानती थी इस रिश्ते को यूँ दाग़दार नहीं कर सकती।

“ बिल्कुल नहीं दादा जी… पवन मेरे भाई समान है… ऐसी कल्पना करना भी पाप है… मुझे अपनी ज़िन्दगी में किसी दूसरे पुरुष की ज़रूरत नहीं है …बस आप सब मुझे मेरी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने का हक दे दे.।” महुआ इस बार थोड़ी मज़बूती से बोली 

“ क्या कहना चाहती है खुल कर बोल!” दद्दा ससुर ने थोड़ा कड़क हो कर कहा 

दूर घूँघट की ओट से महुआ ने कहना शुरू किया,“ मुन्नी के बाबूजी के चले जाने से हमारे घर में कमाने वाला कोई भी नही रहा…. मैं चाहती हूँ आप मुझे काम करने की इजाज़त दे दे…. जानती हूँ हमारे कुनबे में लड़कियों को घर से बाहर कदम रखने की इजाज़त ना है …फिर भी मैं काम करना चाहती हूँ…. मुझे सिलाई कढ़ाई और बुनाई बहुत अच्छे से आती है बस मुझे इसे ही जीविकोपार्जन के लिए चुनने की आज्ञा दे दे… !” महुआ ने स्पष्ट किया 

सब एक दूसरे का मुँह देख रहे थे अब क्या फ़ैसला होगा… 

“ ठीक है महुआ बहू… जो तू चाहे कर।” दद्दा ससुर ने निर्णय सुना दिया 

महुआ की मेहनत और लगन का पारिश्रमिक मिलने लगा।

साल दर साल निकलते गए अब महुआ की बेटी रूही बड़ी हो गई थी । सास ससुर के देहांत के बाद और बेटी की उच्च शिक्षा के लिए महुआ गाँव छोड़कर शहर अपने माता-पिता के घर आ गई थी पर यहाँ भी वो अपनी शर्तों पर ही रही… अपना खर्च वो खुद करती थी और अपने भाई भाभी के काम में भी हाथ बटाया करती थी…. वो जानती थी कही भी इज़्ज़त से रहना हो तो अपने हाथ में पैसा बहुत ज़रूरी है.. और वो इसी शर्त पर यहाँ रह रही थी ।

अब महुआ की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी  बेटी का ब्याह करने की रह गई थी… बेटा होता तो बहू आती और अपना एक अलग घर बसा लेती पर बेटी के साथ वो क्या कर सकती है… वो तो ब्याह कर दूसरे घर चली जाएगी ।

खैर महुआ ने रूही की शादी भी कर दी… बेटी दामाद के साथ ससुराल चली गई… और महुआ यहीं मायके में रह गई ।

एक दिन रूही महुआ से मिलने आई और उसका सारा सामान पैक करने लगी।

“ रूही ये क्या कर रही है बेटा… मेरा सामान क्यों बाँध रही है?” महुआ ने कहा 

“ माँ अब तू हमारे साथ रहेंगी इसलिए तेरा सामान बाँध रही हूँ … बस ये तेरा आख़िरी सामान रह गया है तेरा ये पुराना सिलाई मशीन..? इसका क्या करना है इसे भी ले चले..?” रूही ने पूछा 

“ रूही तू पागल हो गई है मैं तेरे ससुराल में कैसे रह सकती… अरे बेटा होता तो अलग बात थी पर बेटी के साथ किस माँ को रहते देखी है?” महुआ रूही से अपनी सामान लेकर वापस रखने लगी 

“ क्यों माँ मैं तेरा बेटा नहीं हूँ…. जब तू माँ बाप बन कर मुझे इतनी अच्छी परवरिश दे सकती है तो मैं क्यों तेरा बेटा नहीं बन सकती? चल मुझे ना सही दामाद को ही बेटा समझ ले और साथ चल… वो भी अभी आते होंगे… आज की बस से हम सुमेर की कंपनी वाले घर जा रहे…माँ तू मेरी ज़िम्मेदारी है… जब तक मैं काबिल नहीं थी तू साथ दी अब मेरी बारी… ना कर के अपनी बेटी का अपमान मत करना।” रूही महुआ का हाथ पकड़कर बोली 

“ पर बेटा… ।” महुआ कुछ कहती उससे पहले ही रूही ने उसे चुप करा दिया तभी दोनों ने देखा सुमेर सामने से आ रहे थे 

“ क्या हुआ हो गया पैकिंग?” सुमेर ने आते ही पूछा

“ बेटा ये सब क्या है… मैं ऐसे तुम लोगों के साथ नहीं रह सकती… बात को समझो..!” महुआ विनम्र स्वर में बोली

“ माँ आप रूही की माँ है मतलब मेरी भी माँ हुई… अब रूही के अलावा आपका कोई और होता तो हम कुछ नहीं बोलते फ़िलहाल हम दोनों के अलावा आपका बहुत अपना कौन हो सकता है…. नाना नानी भी अब नहीं रहे.. मामा मामी अपने में व्यस्त हो गए हैं… जब तक रूही थी आपको अकेलापन नहीं लगता होगा पर अब… इसलिए हमारे साथ चलिए हमें भी तो नई गृहस्थी में किसी बड़े के मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ने वाली है ।” सुमेर ने कहा 

“ बेटा अब मैं आपको क्या बोलूँ पर मैं आपके साथ तभी रहूँगी जब आप मेरा काम मुझे वहाँ भी करने देंगे और मैं अपने ख़र्चे खुद उठाऊँगी… मुझे इसके लिए मना नहीं करोगे..?” महुआ ने कहा 

“ ठीक है माँ जैसा आपका मन करें…आप अपनी बेटी के साथ रहने के लिए भी शर्त रख रही इसपर मैं क्या बोलूँ..?” सुमेर मायूसी से बोला

महुआ अपनी बेटी के साथ चली गई… वहाँ भी उसने अपनी शर्तों के हिसाब से ही चलना चाहा… अब ज़िन्दगी की हर सुबह नए काम नए जोश के साथ करती और यही उम्मीद करती आने वाला कल इससे और बेहतर हो…!”

आज भी महुआ अपनी बेटी के साथ रहती है..अपना काम करती है और अब तो उसके भी नाती नातिन है जिनके लिए वो ढेरों खिलौने ख़रीद सकती हैं… किसी के उपर आश्रित जो नहीं है ।

दोस्तों ये मात्र एक कहानी नहीं है बल्कि किसी की सच्चाई है जिसने अपने आसपास बहुत ऐसे लोगों को देखा जो जीवनसाथी के ना रहने पर बहुत दीन हीन सा जीवन जीव् लगते हैं पर महुआ ने उस वक्त हिम्मत दिखाई और अपने बूते अपनी और अपनी बेटी की ज़िंदगी संवार ली … दुख उसे भी था पर उसने जाने वाले के पीछे जो सामने था उसके लिए सोचा।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#जीवनसाथी के ना होने का दर्द कोई नहीं बाँट सकता

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