ये मान सम्मान मेरा नहीं मेरे बेटे का हो रहा है….. – भाविनी केतन उपाध्याय 

 

” क्यों री बहूरिया,मन ही मन क्यों मुस्कुरा रही है ?” कपड़ों को सुखाते हुए  अम्मा जी ने कहा।

 

” कुछ नहीं अम्मा जी,बस ऐसे ही…” शालिनी ने शालीनता से अपनी ख्याल और साथ देने वाली अम्मा जी से कहा।

” ऐसे क्यों नहीं बहूरिया, कहना नहीं चाहती हैं तो मत कहो पर मैं भी तो जानूं जरा कि तुम्हारी होंठों की मुस्कान और दमकते चेहरे का आखिर राज़ क्या है ?” अम्मा जी ने शालिनी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।

” अम्मा जी, आप तो इस घर की सदस्य ही तो हैं…. आप से कहां कुछ छिपा हुआ है ? आप को याद है ना कि पहली डिलीवरी में मेरे साथ कैसा गैरों जैसा व्यवहार किया गया था ? पता है ना क्यों ? क्योंकि मैंने एक नहीं दो दो बेटियों को एक साथ जन्म दिया था…!!उस समय पर आप ने मुझे सहारा नहीं दिया होता तो मैं कैसे संभालती अपनी दो दो बेटियों को…!! दोनों साथ ही सोती थी,साथ ही खाना खाती और साथ ही शू शू पोट्टी भी करती थी…. आप के सहारे और सहयोग से ही तो मेरी बेटियां आज मेरे पास सकुशल और स्वस्थ तंदुरुस्त है। खाना तो आज जो देते हैं वहीं ही उस समय पर देते थे पर ना कभी किसी ने मेरी बेटियों को गोद में लेकर लाड़ प्यार किया और ना ही चुप करने के लिए कंधे पर घुमाया…. और देखिए आज को …!!



जैसे मैंने बेटे को जन्म दिया क्या ? अब सिर्फ वो मेरे पास दूध पीने को आता है….. दिन भर सब के हाथों में प्यार और स्नेह से रह रहा है….ना नींद के लिए मेरे पास भेजा जाता है और ना ही शू शू पोट्टी साफ कराने को…!! ” शालिनी ने आंखों में आसूं लिए कहा ‌।

” तुम्हें खुश होना चाहिए ना बहूरिया…, बेटे की वजह से तुम्हें आराम मिल रहा है और अच्छा है ना तुम्हें संभालना नहीं पड़ता है…” अम्मा जी ने आसूं को पोंछते हुए कहा।

” अम्मा जी, मां तो मैं तब भी बनी थी और आज भी…. परंतु यह मान सम्मान और आराम,आदर सब मुझे नहीं मेरे बेटे की वजह से मुझे मिल रहे हैं जिस पर मेरा कोई हक नहीं….. क्योंकि मान सम्मान और आदर, आराम मिलना होता तो मुझे वो मेरी बेटियों को जन्म देने पर ही मिल जाता इसलिए ये मान सम्मान मेरा नहीं मेरे बेटे का हो रहा है… आज भी आप मुझे सहारा नहीं देते होते तो मेरा और मेरी बेटियों का क्या हाल होता ? ” कहते हुए शालिनी की आंखें फिर से छलक पड़ी क्योंकि दोनों बेटियां उसे दरवाजे की तराड़ में से झांक रही है।

अम्मा जी ने शालिनी के दिल की बात को समझते हुए दोनों बेटियों को भीतर लेकर दरवाजे पर कुंडी लगा दी और भरी आंखों से मां बेटियों का मिलन होते देख रही…. क्योंकि शालिनी का सहारा जैसे वो है तो उसका सहारा भी शालिनी ही तो है….

दोस्तों, आज के जमाने में भी कई जगह बेटे के जन्म को अहमियत दी जाती है आखिर कब तक चलेगा यह भेदभाव ? अपनी कमेंट के जरिए बताइए और कहानी पसंद आए तो शेयर, लाइक करे और मुझे फोलो भी करें 🙏🙏 कहानी के माध्यम से किसी के दिल को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती मैं 🙏🙏

#सहारा 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

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