यह कैसी मानसिकता है – कमलेश राणा

रीना बहुत चुलबुली और हंसमुख थी,, हमेशा फूल ही झरते रहते उसके मुँह से,, बस एक ही बात जिसे उसकी खूबी कह लो या खामी,,, सबको अखरती थी,, वो थी, उसकी स्पष्टवादिता,,

अगर कोई बात बुरी लगती तो वह तुरंत सीधे शब्दों में विरोध जताने से नहीं चूकती थी,,

लेकिन शादी के बाद उसके स्वभाव में बड़ा परिवर्तन आया था,, वह एकदम शांत हो गई थी,, हरदम खिलखिलाने वाली रीना के होठों पर बड़ी मुश्किल से ही मुस्कान आ पाती और वो भी ऐसी लगती जिसे बड़ी जद्दोजहद से होठों पर चिपका लिया गया है,,

बहुत पूछने पर भी कभी उसने किसी को कुछ नहीं बताया,, जानती थी वो कि पांच बहनों का भाई किस -किस को संभाले,, अपने बीबी बच्चों को, माता पिता को या शादी कर जिम्मेदारी के बोझ से मुक्त हो कर भी बहनों की गृहस्थी के क्लेश को,,

असल में उसके पति विनीत को जीवन संगिनी के रूप में वह कभी पसंद ही नहीं आई,, अपने साथ कहीं भी ले जाने में उसे बोझ ही लगता,, बस घर के काम और बच्चों के पालन पोषण के लिए ही कोई लड़की ससुराल आती है,, यही मानसिकता थी उसकी,,

बात बात पर सबके सामने उसका मज़ाक बनाना और तौहीन करना जैसे शौक था उसका,, अभी तक घर में अकेली थी तो इतना बुरा नहीं लगता था पर अब बच्चे बड़े हो रहे थे और विनीत के हौसले बुलंद,,उसकी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी,,

करे तो क्या करे,, विरोध करने का मतलब था लात घूंसे खाना,, एक बार हाथ उठा तो अब यह रोज का सिलसिला हो गया,, बच्चे भी सहमे सहमे से रहते,, बार बार मन में आता, इससे तो अच्छा है कि हमेशा के लिए मै इस दुनियाँ से दूर चली जाऊँ पर बच्चों के बारे में सोच कर रह जाती,,

एक दिन विनीत ने फोन किया कि उसके कुछ दोस्त सपरिवार डिनर पर आ रहे हैं,, खाना तैयार रखना ,, रीना के हाथ में गज़ब का स्वाद था,, उसने कई तरह के पकवान बनाये,, सबने उसकी बहुत तारीफ की लेकिन यहाँ भी वह अपनी आदत से बाज़ न आया और सबके सामने रीना को उल्टा सीधा बोलने लगा,,

उस दिन उसे बहुत बुरा लगा और पहली बार उसने कहा,, मैं जब इतनी ही बुरी लगती हूँ तुम्हें तो मुझे छोड़ क्यों नहीं देते,, तुम भी खुश और मैं भी खुश,,

विनीत ढिठाई से बोला,, मर जा न कहीं जा के, अपने आप ही पीछा छूट जायेगा,, तंग आ गया हूँ तुम्हारी यह मनहूस शकल देख देख कर,,




रीना को यह बात चुभ गई और उसने आव देखा न ताव,, रसोई में रखी मिट्टी के तेल की कट्टी अपने ऊपर उड़ेल ली और दोनों बच्चों को चिपका कर आग लगा ली,,

बेटी छोटी थी कुछ समझ नहीं पाई पर बेटा पांच साल का था, वह डर गया और भाग गया,,

बेटी ने तुरंत ही दम तोड़ दिया किंतु रीना बुरी तरह झुलस गई थी और उसने दो दिन तक मौत से संघर्ष किया,,

इन दो दिनों में दुनियां का एक बहुत ही घृणित चेहरा देखा उसने,,इस समय भी सब स्वार्थ साधने में लगे हुए थे,,

सब जानते थे कि उसकी इस हालत का जिम्मेदार उसका पति ही है और यह भी जानते थे कि वह हर हालत में उसके खिलाफ बयान दे कर ही जायेगी,,तभी उसकी आत्मा को शांति मिलेगी जब विनीत को एक हँसती खेलती ज़िंदगी को बर्बाद करने की सज़ा मिलेगी,,

पर हाय री दुनियां,, जो भी आता, बस एक ही ज्ञान देता कि अगर वह जेल चला जायेगा तो तुम्हारा बेटा दर- दर की ठोकरें खाता फिरेगा,, उसका क्या होगा,,

यहाँ भी लोग एक अपराधी को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे और इनमें हर चेहरा वो था जिन्हें वह अपना शुभचिंतक मानती थी,, आखिर क्यों किसी को ऐसी स्थिति में भी उसकी तकलीफ नहीं दिख रही थी जो तन से ज्यादा मन की थी,,

बस रह- रह कर यही ख्याल आ रहा था,,

ये कसमों, ये वादों, रिवाज़ों की दुनियां

ये इन्सां के दुश्मन, समाजों की दुनियां

ये दुनियां अगर मिल भी जाये तो क्या है

और दग्ध तन के साथ दग्ध मन लिये इस दुनियां को अलविदा कह दिया आखिर उसने,,झूठा बयान देकर कि असावधानीवश यह दुर्घटना हो गई,,

यह एक सच्ची घटना है, क्या दोषी को बचाना उचित है? क्या सच में रीना की आत्मा को कभी मुक्ति और शांति मिल पायेगी? मैं भी मानती हूँ आत्महत्या जघन्य अपराध है पर क्या किसी इंसान को इतना अधिक प्रताड़ित करना किसी अपराध से कम है? क्या वो लोग ,जिन्होंने एक हँसती खेलती ज़िंदगी को मौत के मुँह में धकेलने वाले व्यक्ति का साथ दिया,, गुनहगार नहीं हैं??

कमलेश राणा

ग्वालियर

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