ये बहुएं ही घर आंगन की बेटियां हैं – मंजू तिवारी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :अम्मा बाबा का पांच बहूओ बेटा नाती पोतों से भरा हुआ परिवार था कभी भी घर में  बहुओ के मायके तथा दहेज के लिए अम्मा ने कभी भी ताने नहीं दिए थे

 एक बेटी थी जिसकी बहुत पहले शादी हो गई थी बच्चे भी अपनी बुआ से बहुत प्यार करते ,,,जब भी बुआ घर आती,,, बुआ के आगे पीछे सारे बच्चे घूमते और बुआ को भी किसी भाभी या मां के किसी काम में दखलअंदाजी पसंद नहीं थी,,,,तो उनका सारा परिवार बहुत ही सम्मान करता,,,,

बुआ घंटों अम्मा के पास बैठी रहती लेकिन कभी भी अम्मा अपनी बहुओं की बेटी से कभी भी बुराई नहीं करती,,,, बुआ भी कभी भी अपनी भाभियों की  अम्मा से चुगली नहीं करती  र्लिहाजा बुआ भाई तथा भाभियों की प्रिय थी

अम्मा का बहुओं से झगड़ा तो खूब होता,, लेकिन यह झगड़ा मां बेटी वाला ही नजर आता,,, क्योंकि इसमें वह किसी भी बहू के मायके और माता-पिता,दहेज की कभी भी बात नहीं करती थी इसलिए लड़ झगड़ कर माहौल भी समान्य हो जाता था,,,, अगर किसी बहू की मायके की कुछ बातचीत  ठीक भी नहीं लगती तो कभी भी उस बहू को ताना अम्मा बाबा द्वारा नहीं दिया गया

हमेशा कहा गया जो है ठीक है इसमें बहू की क्या गलती अब यह बहू हमारे घर की है और कभी भी बहू के साथ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर व्यवहार नहीं किया गया,,,,,, बहू से हमेशा बेटी वाला ही व्यवहार किया गया बहुओं को भी अम्मा बाबा का आंगन अपने माता-पिता के आंगन सा लगने लगता वह इतनी सहज हो जाती लड़ते झगड़ते और भूल जाती

यह होता हुआ मैंने बचपन से ही देखा था ना बहू के मन में सास प्रति बैर था ना सास के ही मन में बहुओं के लिए कोई गिला शिकवा,,,, लेकिन डांट फटकार तो अम्मा के द्वारा बहुओं को पड़ती ही रहती थी जो उनके दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था,,,, बहुएं भी अम्मा को खूब जवाब देती उनसे लड़ती और भूल जाती,,,,, इस लड़ाई का हम बच्चे भरपूर आनंद लेते और हमें इसका कोई फर्क ही नहीं पड़ता,,,, अम्मा मम्मी चाची से क्या कह रही हैं या चाची मम्मी अम्मा से क्या कह रही हैं।

इनकी नोकझोंक बड़ी प्यारी लगती,,,

बाबा दोपहर में जब खाना खाने आते नहाते तो अपने कपड़े छोड़ देते जिन्हें सदा से ही अम्मा धोती चली आ रही थी उस समय घर में वाशिंग मशीन तो थी नहीं,,,,, अम्मा ही हमेशा बाबा के कपड़े धोती,,,,,

होली दिवाली बड़े त्योहारों पर सभी के घरों में बहूए अपने ससुर के पैर छूती है। कभी-कभी अम्मा का भी मन कर जाता बहुओं से बाबा के पैर छूआने के लिए,,,,

 बहुए भी पैर छूने के लिए एक के पीछे एक खड़ी हो

 जाती,,, तब बाबा पूछते क्या बात है। अम्मा कहती,,, इन्हें पैर छूने है बाबा नाराज होने लगते यह भी कोई बात है मैं इन बहुओं से पैर नहीं छोआ सकता यह मेरी बेटियां है ।यह  इस घर आंगन की बेटियां है। बेटियों से पैर नहीं छुआए जाते मुझे पाप लगेगा,,,,, बाबा ने कभी भी अपनी बहुओं से पैर नहीं छुआएं,, (उत्तर प्रदेश में बेटियों से पैर नहीं छुपाए जाते)

 अम्मा की बहुत जोर जबस्ती करने पर भी बाबा पैर  छुआने के लिए तैयार ना होते,,,, बहूए वापस चली आती,,,, बिना पैर छुए,,,,,

बाबा की धीरे-धीरे अवस्था बढ़ रही थी बाबा बीमार रहने लगे,,,,, बाबा लगभग 100 साल के हो गए होंगे

एक दिन बाबा अम्मा से बोले मेरे कपड़े सदा से तुमने धोए हैं। अगर मैं बहुत ज्यादा बीमार भी हो जाऊं और मेरे कपड़े मल मूत्र से खराब हो जाते हैं। तो उन कपड़ों को मेरी बहुओं के हाथों से मत धुलवाना मुझे पाप लगेगा,,,,,, क्योंकि बाबा मन से अपनी बहू को बेटियां मान चुके थे,,,,,

बाबा की अवस्था भी बहुत हो चुकी थी बाबा मरणासन्न अवस्था में थे तो उनके कुछ कपड़े जैसे ही बहू ने धोने के लिए उठाए,,,, अम्मा और बेटे ने मना कर दिया कि बाबा ने बहूओ के हाथ  से कपड़े धुलवाने के लिए मना किया है।,,,, बेटे ने अपने हाथ से बाबा के कपड़े धोए क्योंकि बेटा तो पिता के कपड़े धो सकता है उसे कोई पाप नहीं लगेगा जबकि बाबा मानते थे अपने पहने हुए कपड़े बेटी से नहीं धुलवाने चाहिए,,,,, क्योंकि मेरे घर में सदा से ही बेटी को  पूजनीय माना है। देवी और लक्ष्मी का रूप ही माना है। वही सम्मान आज भी घर में महिलाओं और बेटियों को प्राप्त है।

बाबा की बात का मान रखते हुए पापा ने बाबा के कपड़े धोए और मम्मी को मना कर दिया,,,,, मेरी मां जो बहुत छोटी अवस्था में शादी होकर इस घर आंगन में आई थी,,,,, अम्मा बाबा का भरपूर स्नेह मिला,,,,

मैंने अपनी मां को कभी भी नाना और नानी के लिए इतना रोते और याद करते नहीं देखा,,,, जितना मेरी मां मेरे दादा और दादी को याद करके आज भी रो लेती है। क्योंकि मेरे दादा और दादी ने अपनी बहुओं को दिल से बेटियां माना था,,,,, अम्मा बाबा ने सदा से ही अपनी बहुओं पर वात्सल्य दिखाया,,,, पुराने जमाने के होते हुए भी सोच से बड़े आधुनिक  थे अम्मा बाबा,,,

आज अम्मा बाबा को दुनिया से जाए लगभग 20 साल गुजर चुके हैं लेकिन मेरी मां के हृदय में आज भी माता पिता के रूप में जीवित है। हम दो बहने अपने माता-पिता की संतान थे लेकिन मेरी अम्मा बाबा ने कभी भी मेरी मां को सिर्फ बेटियां ही बेटियां होने का कभी भी ताना नहीं दिया और अम्मा बाबा हम दोनों बहनों को बहुत बहुत लाड प्यार करते थे,,,, अम्मा बाबा का घर आंगन बहूओ के लिए बेटियों का आंगन सदा से बनकर रहा,,,,, बहु बेटा पोता पोती यों से भरा हुआ फूलों के सादृश्य घर आंगन छोड़ कर अम्मा बाबा सदा के लिए चले गए,,,, जो आज भी हम सबकी सुनहरी यादों में जीवित है।

#घर आंगन #

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वरचित मौलिक रचना

सर्वाधिकार सुरक्षित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!