यादों का सहारा – रश्मि सिंह 

सुबह के 6:30 बज रहे थे।

चाँदनी- आजा रोशनी बेटा नाश्ता कर ले, वरना परीक्षा के लिए लेट हो जाएगी।

रोशनी- बस आयी माँ, एक बार कबीर जी की जीवनी दोहरा लू। हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में ये जीवनी ज़रूर आती है।

माँ मैंने नाश्ता कर लिया है। माँ बस दो परीक्षा और रह गयीं है अपने कान्हा जी से कह देना ये परीक्षाएं भी बहुत अच्छे से हो जाए। तथास्तु ! पुत्री, यह कहकर माँ उसे दही-चीनी खिलाती है और दोनों हँसने लगते है।

रोशनी माँ के गाल पर चुंबन कर परीक्षा के लिए चली जाती है और चाँदनी घर के काम में लग जाती है।

रोशनी परीक्षा देकर ख़ुशी ख़ुशी घर लौट रही थी, घर के बाहर इतनी भीड़ और रोने की आवाज़ सुनकर कुछ देर ठहर जाती है। धीरे धीरे कदमों से आगे बढ़ती है। मन में कई तरह के बुरे विचार आ रहे थे, पर जो हुआ वो उसने कभी नहीं सोचा था। 

अंबिका ( रोशनी की मौसी) रोशनी के गले लगते हुए, ये देख क्या हुआ जीजी को। अभी एक घंटे पहले मेरी जीजी से बात हुई थी सब ठीक था, फिर गुप्ता जी (रोशनी के पड़ोसी) ने फ़ोन किया कि जीजी को हॉस्पिटल ले जा रहे है, उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। वहाँ पहुँचकर पता चला जीजी हमे छोड़कर हमेशा के लिए चली गयी।

रोशनी ने ये तो अपने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि जो माँ उसे एक दिन भी किसी रिश्तेदार के यहाँ नहीं छोड़ती थी, वो उसे ऐसे अकेला छोड़कर कैसे चली गयी। दोनों की एक-दूसरे में जान बसती थी। पिता के बाद चाँदनी ही तो उसकी मम्मी-पापा दोनों थी, अब इस जीवन में वो किसके सहारे जिएगी, किसके विश्वास और प्यार के साथ अपने शिक्षा अधिकारी का सपना पूरा करेगी।

माँ के शोक में रोशनी भूल ही जाती है की इसकी हाई स्कूल की दो परीक्षा बाक़ी है और वो पेपर नहीं दे पाती है। 



अंबिका( रोशनी की मौसी)- बेटा, अब तू हमारे साथ बनारस रहकर अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना। यहाँ रहेगी तो पल-पल जीजी को याद कर रोती रहेगी। घर और खेती तेरे चाचा चाची देखेंगे।

रोशनी मौसी के साथ बनारस आ जाती है और मौसी के बच्चो (किंजल और कार्तिक) के साथ विद्यालय जाने लगती है। पर जो रोशनी पहले बहुत चंचल हुआ करती थी एकदम से बिल्कुल गंभीर और शांत हो गई थी। किंजल और कार्तिक उसे खुश रखने की बहुत कोशिश करते है पर जो बच्ची अपना संसार खो चुकी थी उसे किसी चीज़ में मन नहीं लग रहा था। उसके यहाँ आने से उसके मौसा जी खुश नहीं थे कि वैसे ही महंगाई के जमाने में दो बच्चो की परवरिश करना मुश्किल है और ऊपर से अंबिका, रोशनी को भी ले आई। रोज़ किसी ना किसी बात पर अंबिका और उसके पति के बीच कहासुनीं होने लगी और उस बहस में रोशनी का नाम आना लाज़मी था।

रोशनी इस बात को भलीं भांति समझती थी कोई छोटी बच्ची तो थी नहीं। वो दिन रात बस यही सोचती कि कैसे वो सब ठीक करे। एक दिन उसने मौसी से घर में ट्यूशन पढ़ाने की बात कही, मौसी ने भी उसकी बात को नकारा नहीं पर ये ज़रूर कहा कि ट्यूशन से तुम्हारी पढ़ाई पर कोई असर ना हो। वैसे तो उसकी पढ़ाई का खर्च चाचा चाची देते थे पर अब वो अपने व्यक्तिगत ख़र्चे ट्यूशन के पैसों से करने लगी।

पढ़ाई में अच्छी होने के कारण बीएचयू में बीएड में प्रवेश तो मिल गया, पर उसने शिक्षा अधिकारी बनने का सपना पूरा करने का विचार त्याग दिया था क्योंकि अब वो किसके लिये बने शिक्षा अधिकारी। माँ मुझे शिक्षा अधिकारी बनते देखना चाहती थी इसी उधेड़बुन में कब  उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला। तभी उसने अपने माथे पर एक स्नेहपूर्ण स्पर्श महसूस किया, तभी उसकी आँख खुली, उसे लगा जैसे माँ उसके पास थी और वो उससे कुछ कहना चाहती हो। 

 अगले दिन अंबिका( रोशनी की मौसी)- रोशनी तुम्हारी बीएड कम्पलीट हो गई है अब तुम खण्ड शिक्षा अधिकारी की तैयारी करो, जीजी ने मुझे बताया था कि कैसे तुम बचपन में गाँव के छोटे छोटे बच्चो को इकट्ठा कर हाथ में छड़ी और दादी का चश्मा लगाकर पढ़ाने लगती थी, तुम्हारा बचपन से शिक्षा के क्षेत्र में जाने का मन था। तुम्हारे शिक्षा अधिकारी बनने से जीजी और जीजा जहां भी होंगे बहुत खुश होंगे, और मुझे पूरा भरोसा है तुम ये करके दिखाओगी।



मौसी के इस विश्वास के सहारे रोशनी परीक्षा की तैयारी में लग जाती है। डगर थोड़ी मुश्किल ज़रूर थी पर नामुमकिन नहीं। तीन बार असफलता हाथ लगी, पर बचपन में पढ़ी इस कविता के यह बोल उसमे साहस भरने का काम कर थे-

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

उसने फिर चौथी बार लिखित परीक्षा दी, और अबकी बार उसने सफलता का स्वाद चखा और भगवान और माँ को नमन कर साक्षात्कार में गई, वहाँ उससे पूछा जाता है कि आप अपने जीवन में किससे प्रेरित है तब वो कहती है –

मेरी प्रेरणा मेरी माँ का प्यार और मौसी का विश्वास है जिसके सहारे मैं इस परीक्षा के आख़री चरण पर हूँ।

साक्षात्कार के  कुछ दिन बाद चयनित विद्यार्थियों की अंतिम सूची आ गयी, जिसमे रोशनी का नाम 14वें स्थान पर था। आज वो इतने साल बाद इतनी खुश थी और ये गीत गुनगुना रही थी –

माँ तेरी यादों का सहारा ना होता,

हम छोड़कर दुनिया चले जाते

ये दर्द जो प्यारा ना होता,

हम छोड़कर दुनिया चले जाते।

आशा है कि आप सबको यह कहानी पसंद आए। आप सबकी खट्टी-मीठी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। 

श्री शिवाय नमस्तुभ्यम।

आपका दिन शुभ हो।

#सहारा 

रश्मि सिंह 

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