” कोई अंदर हैं, दरवाजा खोलो मुझे सहायता की आवश्यकता हैं ?” दरवाजे पर एक स्त्री की आवाज सुनाई दी।
रात के ग्यारह बजे थे और कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी मैं आवाज सुनकर घबरा गयी थी।
” इतनी रात को कौन हो सकती हैं?”मन में आशंका जन्म लेने लगी।
दरवाजे पर दस्तक गहरी होती जा रही थी और मैं असमंजस में थी की दरवाजा खोलूं या ना खोलूं?
” दरवाजा मत खोलो ना जाने कौन हैं, आजकल इसी तरह अपराध बढ़ते जा रहे हैं ?” पतिदेव बोले।
मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की यह आवाज बहुत जानी पहचानी सी हैं ना जाने क्यों दरवाजा खोलने का मन किया?
दरवाजा खोलने पर सामने एक वयोवृद्ध स्त्री नजर आयी, तिरंगे जैसी साड़ी में लिपटी हुई और उनके चेहरे पर इस आयु में भी एक तेज था।
” माताजी आप कौन हैं और इतनी रात में यहाँ क्यों आयी हैं?” मैंने उनको पूछा।
मुझे वो बहुत जानी पहचानी और आत्मीयता से परिपूर्ण नजर आयी, ऐसा लग रहा था मैं बचपन से उनको जानती हूँ पर मैंने उन्हें कहां देखा हैं यह स्मरण नहीं हो पाया?
पतिदेव भी बाहर निकल कर आये उन्होंने भी उन स्त्री को देखा हुआ था और उनका हाल भी मेरी तरह ही था।
मैंने और मेरे पति ने उनको आदर सम्मान के साथ घर के अन्दर बुलाया उनकी हालत अच्छी नहीं थी वो भूखी प्यासी लग रही थी।
मैंने उनके लिए भोजन और पानी का इंतजाम किया लेकिन उन्होंने कुछ नहीं खाया पिया और उसी तरह निःशब्द, उदास बैठी रही उनकी आखों से लगातार आँसू बह रहे थे।
” मैं यह सब नहीं खाती हूँ, मेरा भोजन व पानी अलग होता हैं ” वो आने के बाद पहली बार बोली।
उनकी रहस्यमयी आवाज सुनकर मैं और मेरे पति डर से जड़वत हो गये।
कौन हैं ये रहस्यमयी स्त्री जो भोजन और पानी नहीं ग्रहण कर रही हैं, क्या यह कोई मायावी शक्ति हैं अथवा बुरी ताकत हैं, यह आम इंसान नहीं हैं,मैंने इसे शरण देकर बहुत बड़ी गलती कर दी हैं?
मेरा दिल धड़कने लगा, चेहरा सफेद पड़ता जा रहा था मन ही मन मैं बजरंगबली का स्मरण करने लगी, यही हाल पतिदेव का हो रहा था।
” बेटी!! घबराओ मत मैं कोई बुरी ताकत नहीं हूँ मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी ” वो स्त्री मेरी मनोस्थिति समझकर बोली।
” पर आप कौन हैं, ऐसा लग रहा हैं आपसे कोई गहरा नाता हैं लेकिन समझ नहीं पा रही हूँ ? ” मैंने बोला।
” मैं वो हूँ जो तुम्हारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हूँ मेरे बिना तुम्हारा व्यक्तित्व अधूरा हैं मैं संचार का मुख्य स्त्रोत व विश्व की सबसे प्राचीन भाषा देवनागरी हिन्दी हूँ ” वह स्त्री अब भी दुखी नजर आयी।
देवनागरी हिन्दी !! हमारी राष्ट्रभाषा आज स्वयं इंसान के वेश में मुझसे मिलने आयी हैं, यह सोचकर मैं गर्व का अनुभव करने लग गयी।
” माँ!! मेरा अहोभाग्य आप मेरे घर अतिथि बनकर आयी ” मैं देवनागरी हिन्दी से बोली।
” अतिथि…!! बेटी मैं अतिथि नहीं हूँ मैं तो हर भारत वासी के दिल में बसी अनमोल विरासत हूँ जिस तरह श्वास तुम्हारे शरीर का अभिन्न अंग हैं वैसे ही भाषा तुम्हारे मस्तिष्क का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं ” देवनागरी हिन्दी बोली।
” पर माँ आप इतनी निस्तेज व वृद्ध कैसे नजर आ रही हैं?” मैंने कहा।
” बेटी!! मैं संसार की सबसे प्राचीन भाषा हूँ मैं स्वयं भगवान के मुख से प्रकट हुई हूँ,मैं संसार की सभी अन्य भाषाओं की जननी हूँ, मुझे किसी समय में चिर-यौवन का वरदान मिला था लेकिन मुझ पर हुए अत्याचार के कारण मेरा स्वरूप यौवन की जगह वृद्धावस्था में बदल गया ” देवनागरी हिन्दी रोने लगी थी।
” आपके इस स्वरूप को बदलने वाले व आपका पतन करने वाले कौन हैं?” पतिदेव ने प्रश्न किया।
” मेरे स्वयं के बच्चे भारतवासी मेरे पतन के जिम्मेदार हैं, मैं अपने ही देश में उपेक्षित व अपमानित होती जा रही हूँ, आने वाली युवा पीढ़ी के बच्चे अन्ग्रेजी बोलना पंसद करते हैं और हिन्दी बोलना अपमान समझते हैं, मैं यहां आने से पहले कितने ही नामचीन घरों में जाकर सम्मान रूपी भोजन पानी ग्रहण करना चाहती थी लेकिन मुझे पोषण कहीं नहीं मिला और मैं कमजोर व हताश हो गयी ” देवनागरी हिन्दी की कमजोरी निरंतर बढने लगी।
” पहले मैं एक बड़े उद्योगपति के घर गयी थी, वहां जाकर देखा की मेरा स्थान कितना कम हैं जो उद्योगपति हिन्दी देश में रहते हैं, यहाँ की जनता के कारण उनका वर्चस्व हैं, वो और उनके परिवार वाले अपनी बोलचाल की भाषा में अन्ग्रेजी का प्रयोग करते हैं और हिन्दी बोलना अपमान समझते हैं, हिन्दी बोलने वालों की हंसीं उडाते हैं, मुझे बहुत दुःख हुआ ” देवनागरी हिन्दी व्यथित नजर आयी।
” वहां से आगे बढ़कर मैं हिन्दी सिनेमा के उभरते हुए सितारे के घर गयी मैंने देखा जो सितारे हिन्दी बोलकर अपनी कमाई के साधन बनाते हैं और पर्दे पर हिन्दी भाषा का समर्थन करते नजर आते हैं वो भी असली जीवन में अन्ग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं और हिन्दी बोलना उनकी शान के विपरीत होता हैं, वो हर साक्षात्कार भी अन्ग्रेजी में देते हैं ” देवनागरी हिन्दी आज अपनी बात सुना रही थी।
” पर माँ अन्ग्रेजी एक अन्तराष्ट्रीय भाषा के तौर पर जानी जाती हैं, कभी अन्ग्रेजी का प्रयोग अनिवार्य हो जाता हैं ” मैंने उन्हें समझाया।
” बेटी!! मैं किसी अन्य भाषा का विरोध नहीं कर रही हूँ, मेरा स्वरूप विशाल हैं और सभी भाषाएँ मेरे स्वरूप का हिस्सा हैं पर मेरी भावनाए तब आहत होती हैं जब मेरा अपमान दूसरी भाषा में होता हैं, यह तो ऐसा हुआ जैसे बच्चे अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं करते हैं ” देवनागरी हिन्दी ने स्पष्ट किया।
” विडम्बना यह है कि किसी का अपमान करते समय देशवासी बड़ी शान से प्रचलित कहावत बोलते हैं “आज तो हमने उसकी हिन्दी कर दी”अर्थात हिन्दी व अपमान करना पर्यायवाची शब्द बन गये हैं ” देवनागरी हिन्दी का रोष फूट पड़ा।
” आजादी से पहले मेरा स्वर्णिम युग था तब मेरे सच्चे साधक मुंशी प्रेमचंद, रामधारीसिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, महादेवी वर्मा और इनके जैसे सैकडों लेखक व कवि मेरे महत्व को सम्मान देते थे और मेरा चिर-यौवन वाला रूप सदाबहार था हालांकि उस समय देश में अन्ग्रेजो का शासन था पर भाषा का महत्व अधिक था ” देवनागरी हिन्दी भावुक हो गयी।
” आज मानसिक गुलामी के चलते हुए मेरे देशवासी मुझे भूल गये हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी यही सीखा रहे हैं ” देवनागरी हिन्दी बोली।
” माँ ऐसा नहीं हैं आज भी आपका सम्मान करने वाले बहुत से देशवासी हैं, आज भी अच्छे व सच्चे कवि, लेखक आपको पूरे देश में मिल जाएंगे, आज भी भावनाओं के आदान-प्रदान हेतु हिन्दी भाषा का ही प्रयोग किया जाता हैं, आप इस तरह निराश ना हो ” मैंने उन्हें समझाया।
” बेटी !! मैं इसी मकसद से तुम्हारे पास आयी हूँ तुम अपनी लेखनी के माध्यम से मेरी व्यथा जन-जन तक पहुँचा सकती हो और मुझे फिर से सम्मान रूपी भोजन-पानी से पोषित कर सकती हो,मैं सदैव तुम्हारी आभारी रहूँगी ” देवनागरी हिन्दी ने निवेदन किया।
” माँ मैं मेरी तरफ से आपका महत्व समझाने वाला सार्थक प्रयास अवश्य करूंगी ” मैंने उन्हें आश्वासन दिया।
” माॅम !! यू आर स्टिल स्लीपिंग,वेयर इज माई ब्रेकफास्ट?” मेरे दस वर्षीय अन्ग्रेज बेटे की आवाज सुनकर मेरी नींद टूट गयी।
मैंने चारों तरफ देखा वो वृद्ध स्त्री कहीं नही दिखाई दी, ओह यह तो स्वप्न था पर सच्चाई के बहुत नजदीक था।
” यह माॅम क्या बोल रहा हैं, सीधी तरह से सरल भाषा में बात कर हिन्दी बोलकर नाश्ता नहीं मांग सकता हैं?”
मैंने बेटे को डांटा।
” आज मेरी लेखिका महोदया को क्या हो गया हैं, इतनी सी बात पर नाराज हो रही हैं? ” पतिदेव हैरान होकर बोले।
” यह प्रश्न आप पूछ रहे हैं, आप भी तो कल रात देवनागरी हिन्दी माता से मिले थे ?” मैं अभी भी यथार्थ में नहीं आयी थी।
” देवनागरी हिन्दी माता !! क्या बोल रही हो लगता हैं अब स्वप्न में भी तुम्हारे अन्दर की लेखिका जागृत रहती हैं ?” वो हंसते हुए बोले।
” जो भी हो हम आज से बातचीत में राष्ट्रभाषा का प्रयोग अधिक करेंगे और अपने बेटे को भी यही सिखाएंगे परिवर्तन की शुरुआत अपने ही घर से करेंगे ” मैंने हंसते हुए कहां।
” माँ !! अब से मैं आपको माॅम नहीं माँ कहूँगा ” मेरा बेटा मेरे मनोभाव समझ गया।
अचानक देवनागरी हिन्दी माता फिर से मुझे थोड़े युवा स्वरूप में मुस्कुराती हुई नजर आयी वो मेरे घर में विराजमान थी।
मैंने सोचा काश भारत के हर घर में देवनागरी हिन्दी माता का स्वरूप फिर से पोषित और युवा हो जाए तो देश का स्वर्णिम युग फिर लौट आएगा।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में
पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं
धन्यवाद।