वक्त हर घाव को भर देता है- मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : वक्त हर घाव को भर देता है सुषमा आज मोहल्ले में एक पूजा में शामिल होने के लिए गई थी । जिनके घर पूजा थी वो आंटी ने बहुत मनुहार किया था सुषमा से निकलो बेटा थोड़ा घर से आया जाया करो सबसे मिला जुला करो मन हल्का हो जाएगा। अंदर ही अंदर घुटती रहती हो ।

वक्त सबसे बड़ा मरहम है धीरे-धीरे बेटी का दुख कम हो जाएगा ।उस ईश्वर ने ही ग़म को भुलाने की शक्ति भी दी है नहीं तो इंसान पागल ही हो जाए ।तुम पर जो बीती है उसका एहसास तुमसे ज्यादा कौन कर सकता है । लेकिन ऊपर वाले को जो मंजूर है सपा पर किसी का बस नहीं चलता ।

          दरअसल करोना समय में सुषमा ने अपनी तीस साल की बेटी को खो दिया था।तब से हंसने बोलने वाली सुषमा वो सुषमा रही ही नहीं गुमशुम सी हो गई है।सबके यहां आना जाना सबसे हंसना बोलना सबके सुख दुख में बराबर खड़े रहने वाली सुषमा चु सी हो गई थी। उसके ऊपर खुद ही इतना बड़ा दुख आया था ‌।
सुषमा का मन ही नहीं करता था कहीं आने-जाने को , किसी से बात करने को। जरा सा भी कोई उसकी बेटी की बात छेड देता था तो आंसुओं से उसकी आंखें भर जाती थी ।
वो संभल नहीं पा रही थीहर समय मां मां कहने वाली बेटी आज उसके पास नहीं थी। कितना दूर भागोगे आप उसकी यादों से घर के हर कोने में उसकी यादें बसी थी ।उसका कपड़ा उसका सामान उसकी पसंद का कुछ खाना बनाया तो बस,,,,,,,,,,, यादें ही रह गई है बेटी तो चली गई है ।
                 सुषमा के दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी । दोनों ने अच्छी पढ़ाई की थी और अब दोनों ही नौकरी कर रहे थे।बेटा गुड़गांव में था और बेटी हैदराबाद में थी । बेटे की शादी थी उसी में शामिल होने बेटी घर आई थी एक हफ्ते को । लेकिन घर आकर फंस गई ।लाकडाउन लग गया सारी हवाई यात्रा और रेलगाड़ियां सब बंद हो गई जिस पी जी में रहती थी पी जी बंद हो गया बाकी सारी लड़कियां अपने अपने घर चली गई।
कुछ दिन में पता चला कि आफिस भी बंद हो गया ‌फिर बेटी जा नहीं पाई ।घर पर ही बेटी को सदीं जुखाम हो गया था और वो करोना संक्रमित हो गई थी। बहुत कोशिश करी प्राइवेट अस्पताल में दिखाने की पर कोई डॉक्टर हाथ ही नहीं लगा रहा था फिर आखिर में थक हार कर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराना पड़ा ।
फिर तो वहां भर्ती कराने के बाद सुषमा और उनके पति बेटी से मिल ही नहीं पाए । पता नहीं कहां रखा था उसे पता ही नहीं लग रहा था । सुषमा और उनके पति मेडिकल कॉलेज जाते तो रोज थे पर बस बाहर ही बैठकर आ जाते थे मिलने का कुछ पता ही नहीं चलता था कोई डाक्टर दिखता ही नहीं था बस फोन पर ही बात हो पाती थी ।बेटी अस्पताल से बहुत घबराती थी वहां की दवाइयों की महक उसे अच्छी नहीं लगती थी ।और आखिर में अस्पताल ही जाना पड़ा उसे ।
            बड़ी बेचैनी में दो दिन कटे सुषमा के बेटी देखने को नहीं मिल रही थी।दो दिन बाद डाक्टर का फोन आया कि बेटी ठीक हो रही है कल जनरल वार्ड में शिफ्ट कर देंगे तो आप लोग मिल सकते हैं ।
सुषमा और पति ने राहत की सांस ली । लेकिन उसी दिन रात के दो बजे फोन आया कि बेटी की हालत नाज़ुक हो रही है उसे आई सी यू में भर्ती कर रहे हैं और फिर सुबह नौ बजे फोन आया कि बेटी नहीं रही । दोनों पर तो जैसे वज्रपात हो गया ये क्या हो गया।पली प्लाई बेटी को दी हमने। लेकिन क्या कर सकते हैं खाली हाथ रह गए ।
            तबसे सुषमा हंसना बोलना भूल गई थी , जैसे जीना सीख भूल गई थी ।बेटी शादी में शामिल होने आई थी और हैदराबाद वापस भी नहीं जा सकी दुनिया से ही चली गई। अभी भी उसकी यादों में खो जाती है सुषमा।आज तीन वर्ष हो गए बेटी को गए सोंचती थी सुषमा कैसे जीयेगे बेटी के बगैर।
उसकी यादें पीछा नहीं छोड़ती। उसकी बातों को याद करके कभी होंठों पर मुस्कान तो कभी आंखों में पानी आ जाता है। क्या करें हाथ मलते रह गए कुछ नहीं कर सकते मजबूर हो जाता है इंसान।
           मम्मी तुम् बैठो हम गर्म गर्म रोटी खिलाएंगे सबको तो गर्म खिला देती हो तुम गर्म नहीं खाती ।हर चीज समय समय पर देना जब भी हैदराबाद से छुट्टियों में आती मम्मी को भरपूर आराम देती । उसकी बातें याद करके आंखें आंसुओं से भर जाती है । लेकिन कहते हैं न वक्त हर घाव को भर देता है।
अब सुषमा ने फिर से जीना शुरू कर दिया है उसके चेहरे पर जब हंसी आ जाती है तो बड़ा अच्छा लगता है।सब कहते हैं ऐसे ही हंसती रहा करो सुषमा अच्छी लगती हो । ऊपर वाले के फैसले से कौन लड पाया है ।सच ही तो है ऐसी स्थिति में हम सब इंसान बेबस और लाचार हो जातें हैं उसके फैसले से कौन लड पाया है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
9 जनवरी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!