स्वाद अपनेपन का….! (भाग 2)- लतिका श्रीवास्तव

…….एक बार सोमेश ने अपने दोस्तों को घर पर डिनर के लिए बुलाया था कालिंदी से पूछ कर ही तय किया गया था….उसी दिन सुबह कालिंदी की मां का फोन आ गया था बेटा तेरी मौसी सीढ़ियों से गिर पड़ी है तू आजा मेरे साथ चलना तेरे पापा नहीं जाएंगे….कालिंदी ने तुरंत सोमेश को फोन करके बताया और कहा तुम्हारे दोस्त हैं तुम्हारा रहना जरूरी है ऐसा करो उन्हें होटल में डिनर करवा दो …

…सोमेश ने तब भी आपत्ति की थी मम्मी को अकेले जाने दो या फिर पापा को अपनी परिस्थिति बता कर उनके साथ जाने को समझा दो….होटल में तो खाते ही रहते हैं घर की बात अलग है फिर मां को भी अच्छा लगेगा..

लेकिन कालिंदी कुछ सुनने को तैयार नहीं हुई थी मम्मी बिचारी मुझ पर निर्भर है जाने के लिए कैसे मना करूं दुखी हो जाएंगी…उसने कहा था।….और मेरा दुख..!!सोमेश ने कहना चाहा था….!

ऐसी ही कई मौकों पर कालिंदी हमेशा मेरा मायका मेरी मम्मी मेरे पापा कह मायके को ही वरीयता देती थी…सोमेश को ये बुरा नहीं लगता था ये मायके के प्रति मोह तो स्वाभाविक था किसी भी लड़की के लिए ……उसे तो बुरा ये लगता था कि कालिंदी शादी के इतने दिनों बाद भी अपनी ससुराल को अपना घर अपनी सास को अपनी मां ससुराल की जिम्मेदारियों को अपनी खुद की जिम्मेदारियां नहीं बना सकी ना ही इसके लिए कोई कोशिश ही करती है….मेरी मां तुम्हारी मां वाला उसका व्यवहार सोमेश को आए दिन क्षुब्ध कर देता था…!

आज भी सोमेश की नाराजगी जाहिर करने पर ……..अब मैं अपनी मां के हाथ का खाना भी नहीं



खा सकती ..!!वहां जा भी नहीं सकती ..!जैसे ये तुम्हारा घर है तुम्हारी मां हैं वैसे ही वो भी मेरा घर है मेरे मां बाप हैं मेरे सिवाय उनका ख्याल रखने वाला और कोई नहीं है..! मैं तो तुमसे उनलोगो का ख्याल रखने को नहीं बोलती ….मेरी शादी होने से वो अकेले से हो गए हैं अगर मैं रोज शाम को थोड़ी देर उनके साथ बिता लेती हूं …मेरे जाने से उन्हें अच्छा लगने लगता है … तो क्या गुनाह करती हूं..!!….उत्तेजित कालिंदी बोलते बोलते रोने लगी…!और वहां से पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई…!और वहां जाकर अपनी मम्मी को फोन पर रोकर सारी बातें बताने लगी….!

शोभा जी अपने आपको अपराधी समझ रही थीं उन्हें बहुत ग्लानि महसूस हो रही थी ..इस सारे फसाद की जड़ वो अपने आपको समझ कर व्यथित थीं….दुखी हृदय से वो अपने पूजा कक्ष में जाकर प्रार्थना करने लगीं थीं..!

तभी सोमेश का मोबाइल बज उठा…कालिंदी के पापा का फोन था …सोमेश को लगा कालिंदी के रोने धोने के कारण कर रहे हैं…..”हेलो बेटा सोमेश अचानक घर में शॉर्ट सर्किट होने से बिजली चली गई है इनवर्टर भी काम नही कर रहा है …रात हो गई है अब क्या करूं समझ में नहीं आ रहा है…कालिंदी की मां ने तुमसे बताने केलिए कहा तो बहुत संकोच से तुम्हें फोन कर रहा हूं…!”

जी पापा जी मैं देखता हूं…आप चिंता नहीं करिए…!ना चाहते हुए भी फोन पर सोमेश अपनी विनम्रता नहीं त्याग पाया .था..!

……”हुंह ….मुझे क्यों बता रहे हैं अपनी बेटी को बताएं..वही उनका ख्याल रख सकती हैं ना …उसके मां बाप हैं वो जाने..!मैं भी बस अपनी मां का ही ख्याल रखूंगा..!अभी उसको बता देता हूं जाए और लाइट ठीक करवाए…आक्रोश से भरा हुआ सोमेश कालिंदी के कमरे की तरफ जाने के लिए मुड़ा ही था कि शोभा जी आ गईं..कैसी गलत बातें कर रहे हो सोमेश..!रात का समय है बहू क्या कर पाएगी..!फिर उन्होंने पहली बार तुमसे कुछ सहायता मांगी है …तुमको कुछ करना ही चाहिए..!वो भी अपने ही हैं…!

अरे मां फिर हर बार वो मुझसे इसी तरह के काम कहने और करवाने लगेंगे….चिढ़ कर सोमेश ने कहा तो शोभा जी ने प्यार से समझाया ऐसा नहीं है बेटा ..आज तो तुम जल्दी से कुछ कर दो कालिंदी की मां की तबियत भी ठीक नहीं रहती है मुझे बहुत चिंता हो रही है…!

मां के समझाने पर सोमेश ने गाड़ी निकाली और उनके घर गया…. वो दोनो वास्तव में बहुत परेशान थे उनका घर भी शहर से थोड़ा दूर स्थित था….इतनी रात को कोई इलेक्ट्रिशियन नहीं मिलने की संभावना के दृष्टिगत  सोमेश ने दोनों को समझा कर अपनी गाड़ी में बिठाया और अपने घर ले आया ….कालिंदी उन्हें आया देख कर चकित हो गई थी …!

शोभा जी ने बहुत आत्मीयता से उनका स्वागत किया और उनके खाने और सोने की व्यवस्था करने लगी …आज चुपचाप कालिंदी भी उनके साथ सभी कामों में सहयोग दे रही थी…!दूसरे दिन शाम तक लाइट ठीक हो पाई तब तक वो दोनों शोभा जी के साथ ही रहे ….।

“….आप सुबह से घर के कामों में और सबका ख्याल रखने में कितनी प्रसन्नता से जुटी हुई है ऐसा लग ही नहीं रहा है हम लोग आपके घर अपनी बेटी के ससुराल पहली बार रहने आए हैं  ……”जाते समय कालिंदी की मम्मी जो शोभाजी की कार्यकुशलता और अपनेपन से बहुत प्रभावित हो चुकी थीं बिना बोले ना रह सकीं……नौकरों को समझा कर काम करवाना भी बड़ा भारी काम ही है….शोभा जी उनकी बात सुनकर… ये भी आपका ही घर है …मुस्कुरा कर बोल पड़ीं…!

कालिंदी की मम्मी शोभा जी के मधुर अपनत्व भरे व्यवहार और बेटा बहू दोनों का समान भाव से ख्याल करना देख गदगद हो गईं थीं….और कुछ विचार मग्न सी अपने घर वापिस आ गईं थीं…….!सोमेश ने उनके घर की इलेक्ट्रिसिटी और इनवर्टर दोनों सही करवा दिए थे…!



रोज की तरह शाम को कालिंदी के ऑफिस से आने पर उसकी मम्मी ने शोभा जी के स्वभाव और मृदुल व्यवहार की बहुत सराहना की और कालिंदी को समझाया …बेटा तुझे बहुत अच्छी ससुराल मिली है…..पर मेरी गलती की वजह से तू भी गलती ना कर…!

कालिंदी की कुछ समझ में नहीं आया तुम्हारी क्या गलती है मम्मी इसमें..?

….अरे मेरी ही तो गलती है पुत्री के मोह और अपने स्वार्थ में इतनी मगन हो गई हूं कि शादी के बाद अब बहु की भी जिम्मेदारियां तुझे कैसे निभानी चाहिए ये बता ही नही रही हूं….वो सब तेरा कितना ख्याल रखते हैं तुझे भी उनका ख्याल रखना चाहिए….शोभा जी को तेरे सहयोग स्नेह और  अपने आस पास मौजूद रहने के एहसास की सख़्त ज़रूरत है बेटा …सोमेश भी तभी दिल से खुश होंगे….!अब तू रोज यहां आना बंद कर….अपनी मां शोभा जी के साथ समय बिता उन्हे अपना स्नेह दे……”

…..पर मम्मी आप लोगो के पास आना गलत क्यों है!!मेरा मन वहां नहीं लगेगा…कालिंदी मम्मी की बातो से थोड़ा आहत हो गई थी

…..नही बेटा यहां आना गलत नहीं है पर रोज यहां आना और वहां की जिम्मेदारियों की अनदेखी करना गलत है….यहां जब कोई दिक्कत हो या ऐसे ही सोमेश के साथ मिलने आ जाना …. अभी तुमने वहां मन लगाके रहने की ना तो कोशिश की है ना समय दिया है…. उन्हें पराया ही समझ रही है और परायों सा व्यवहार भी कर रही है…. वहीं रहकर अपनी जिम्मेदारियां समझो सबके साथ समय बिताओ अपने आप अच्छा लगने लगेगा….हमारी चिंता की जरूरत नहीं है ….सब सुविधाएं हैं..पापा भी हैं…और सोमेश भी तो है देखो कल पापा के एक फोन करने पर ही वो तुरंत आ भी गया और यहां की सारी व्यवस्था भी कर दी…..!

कालिंदी को भी दिल से इस बात का एहसास हो रहा था कि सोमेश ने उसके मम्मी पापा का बहुत सम्मान भी किया और ख्याल भी रखा जबकि वो इस तरह से सोमेश की मां का ख्याल कहने पर भी नही रख पाती है….!वास्तव में इस तरह से उसने कभी सोचा ही नहीं…..!!

सोमेश ने उसे समझाया था कालिंदी तुम्हारी मां सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी हैं और मेरी मां भी सिर्फ मेरी नहीं तुम्हारी भी हैं….दोनो जगह का ख्याल हम मिलकर रख सकते हैं….आवश्यकता है आपसी विश्वास और सम्मान और स्नेह भाव  की…….!जिसके बिना अपने भी पराए हो जाते हैं और जिसके साथ पराए भी अपने बन जाते हैं…!

…अरे लंच तैयार हुआ कि नहीं मां थक गई हैं और जोर से भूख भी लगी है बाहर का कुछ खाती ही नहीं है….कालिंदी की जोर से आती आवाज और डोर बेल की आवाज़ दोनो सोमेश को वर्तमान में ले आई …….”अरे आज सन्डे का स्पेशल लंच मेरी तरफ से आप लोगो के लिए एकदम तैयार हैं ..बस आ जाइए… कहते हुए सोमेश ने दरवाजा खोला तो कालिंदी खुशी के मारे चिल्ला पड़ी….. अरे मम्मी पापा आप लोग यहां……!! ये कैसे…!”

….कैसे क्या भई हमने तो सुबह ही कहा था हमारी श्रीमती जी सबका ध्यान रखती हैं तो उनका ध्यान रखने के लिए ये बंदा सदा हाजिर है…..सोमेश ने कालिंदी की ओर देखते हुए कहा तो जोर से ठहाका लगाते हुए सभी ने डाइनिंग टेबल पर खाने का आनंद लेना शुरू कर दिया ….अपनेपन का स्वाद जो रचा बसा था उसमें….।

लतिका श्रीवास्तव 

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