स्वाद अपनेपन का….! (भाग 1)- लतिका श्रीवास्तव

सोमेश अभी सोकर भी नहीं उठा था की उसने कालिंदी को कहीं जाने के लिए तैयार पाया….!

अरे श्रीमतीजी आज सुबह सुबह कहां की तैयारी हो गई….आश्चर्य और उत्सुकता से उसने पूछा ही था कि कालिंदी ने घड़ी दिखा कर कहा….”सुबह सुबह!!!ये सुबह है.!9 बज गए हैं..!

अरे भाई आज सन्डे तो है….सोमेश ने उसे याद दिलाया।

…..सन्डे याद है तुम्हें पर ये याद नहीं है कि आज मां को लेकर मंदिर जाना है फिर वहीं से डॉक्टर के पास चेक अप के लिए ले जाना है ….दो दिन पहले जाना था डॉक्टर के पास तुम्हे तो कुछ ध्यान ही नहीं रहता है…..कालिंदी ने थोड़ा गुस्से से कहा तो सोमेश ने हंसकर कहा … हमें तो अपनी श्रीमती जी के अलावा कुछ ध्यान नहीं रहता अब…!सबका ध्यान तुम रखती हो तुम्हारा ध्यान कौन रखेगा ….!!

….. हां …हां…बहुत ध्यान रखते हो मेरा…!फिलहाल तो तुम्हारे लिए चाय और नाश्ता मैने बना दिया है ….. हां…लंच का ध्यान तुम रख लेना…..कहकर कालिंदी हंसी  और तुरंत मां के पास चली गई…….!

कालिंदी के जाते ही सोमेश फटाफट उठकर किचन में आ गया  उसको सन्डे किचन में कोई नई डिश बनाके बिताना बहुत सुकून वाला लगता था….

……..उसके जेहन में  वो दिन याद आ गए…… जब शादी के बाद से ही कालिंदी को अपने मायके जाने की धुन सवार हो गई थी….चूंकि कालिंदी का मायका स्थानीय ही था तो सोमेश और उसकी मां शोभा जी को शुरुआती दौर में उसका मायके जाना स्वाभाविक लगा था।लेकिन मायके जाने का ये सिलसिला उस दिन के बाद से रुका नहीं….आए दिन उसकी मां का फोन आ जाता ….कभी शॉपिंग कभी बीमारी कभी अकेलापन कभी त्योहार कभी ……..फिर तो कालिंदी रोज ही अपने ऑफिस से लौटते समय मायके होते हुए ही आने लगी …।

…..कालिंदी ….कालिंदी ….चलो जल्दी तैयार हो जाओ आज मां को डॉक्टर के पास ले जाना है…सोमेश ने एक दिन ऑफिस से जल्दी आकर कहा लेकिन कालिंदी को घर में ना पाकर मां से पूछा तो पता लगा कालिंदी अभी तक ऑफिस से लौट के नहीं आई थी…..!सोमेश अकेले ही मां को लेकर डॉक्टर को दिखाने ले गया था…!

वापिस आने पर कालिंदी ने बताया आज मम्मी के साथ शॉपिंग के लिए चली गई थी।..

लेकिन !!!शॉपिंग मां को डॉक्टर के पास ले जाने से ज्यादा महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है कालिंदी… उस दिन सोमेश ने थोड़ा तल्खी से पूछा था उसकी इस नाराजगी भरी आपत्ति पर कालिंदी ने भी दो टूक कहा था.. तुम थे तो डॉक्टर के पास ले जाने के लिए ….!मेरी क्या आवश्यकता थी …तुम अपनी मां के साथ मैं अपनी मां के साथ…!इसमें इतनी नाराज़गी वाली क्या बात हो गई…!!



शोभा जी डर गईं थी आज मेरी वजह से बेटा बहु में विवाद हो रहा है जल्दी से उन्होंने सोमेश को शांत कर दिया था.. हां और क्या कालिंदी एकदम सही तो कह रही है सोमेश ….डॉक्टर को दिखाना ही बस तो था….!

…लेकिन मां ये रोज रोज इसका मायके जाना जरूरी है क्या..!अरे तुम्हारी तबियत भी तो ठीक नहीं रहती है….! सुबह से तो इसका ऑफिस ही रहता है….दिन भर तुम अकेली ही रहती हो …घर की जिम्मेदारियों में तुम्हें भी सहयोग की आवश्यकता है …शाम को भी देर से आती है ..अधिकतर वहीं से खाना भी खा कर आ जाती है…! यहां तो मेहमान जैसे रह रही है…!”…..कालिंदी की ससुराल के प्रति परायेपन  की भावना,अपनी जिम्मेदारियों के प्रति दिनोदिन बढ़ती लापरवाहियो और मायके के प्रति इस अतिशय लगाव से आज सोमेश केदुखी  दिल का दबा हुआ आक्रोश फूट पड़ा था.

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#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे 

लतिका श्रीवास्तव 

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