“विश्वास  और वफादारी” – दीपा साहू “प्रकृति”

इंसान हैं भावनाएँ तो होती हैं।बिना भाव के इंसान ,इंसान कहां रह जाएगा? और किसी से लगाव होना स्वाभाविक प्रक्रिया ।स्वतः ही अपनापन जन्म ले ही लेता है।पर  इस अपनत्व के दायरे होने चाहिए या नहीं होने चाहिए ? कृति के शादी के बाद उसके पति कार्तिक के दोस्तों का आना-जाना लगा ही रहता ।वो खुश भी रहता ।कृति हर सम्भव प्रयास करती की वो कार्तिक को खुश रख सके।कृति कार्तिक के लिए अपनी ज़िंदगी को जैसे भूल ही गई।उसके दोस्त उसकी सहेलियाँ जैसे सबसे उसने रिश्ता ही तोड़ लिया।ज़िन्दगी में अच्छे दोस्तों के बीच भी कुछ लोग दिल के बहुत ज्यादा करीब अज़ीज़ भी होते हैं जिनसे आप अपने सुख-दुख बाँट लेते हैं।ऐसे ही कार्तिक के भी दोस्त थे कृति के भी थे।कार्तिक और राम्या एक ही आफिस में काम करते थे और दोनों एकदूसरे को बहुत अच्छे से समझते भी थे हर बात शेयर कर लेते ।उनका रिश्ता दोस्ती से ऊपर पर मुहब्बत से कम का रिश्ता था।अपनत्व का।

उन्होंने अपने रिश्तें की मर्यादाओं को कभी नहीं तोड़ा। न ही शादी के बारे में कभी सोचा।कार्तिक की शादी के बाद राम्या ने  अपना ट्रांसफर करा लिया।और बात भी बंद कर ली ।उसे लगा कि दोनों साथ रहेंगे तो कार्तिक के शादीशुदा जिंदगी में कोई परेशानी न आ जाए।राम्या के जाने के बाद कार्तिक उसकी कमी महसूस करने लगा।खुश तो रहता कृति को भी पूरी तरह खुश रखता पर,राम्या से जो उसका भाव का रिश्ता जुड़ा था वो भूल नहीं पाया।कृति कार्तिक की उदासी को समझने लगी।उसको खुश करने के लिए उसके सभी दोस्तों को घर पे चाय के लिए बुला ली।

तभी राम्या और कार्तिक के बारे में कार्तिक के दोस्तों को बातें करते हुए सुन कृति समझ गई कि कार्तिक उदास क्यों रहता है।एक दिन देर रात राम्या का कॉल कार्तिक के मोबाइल स्क्रीन पर दिखा;पर कृति को बुरा न लग जाए ,कार्तिक ने उसे रिसीव नहीं किया।रिंग बंद हो गई।कार्तिक बेचैन सा कमरे की खिड़की पर जा खड़ा हुआ।तब कृति कार्तिक के पास गई बोली-“कार्तिक आपके और राम्या के रिश्तें को मैं जानती हूं;




हम इंसान हैं भाव होते हैं किसी से लगाव हो जाना  आम बात है फिर आप तो साथ रहे हो।ये दो लोगो के बीच का अजीब सा रिश्ता है जो न दोस्ती ही होती है न प्यार बस मन बाँटने का अजीब सा रिश्ता होता है।एकदूसरे के साथ रहना अच्छा लगता है।एकदूसरे को समझना अच्छा लगता है। मेरे आ जाने से उन रिश्तों को खत्म करने की  ज़रूरत नहीं है।हाँ पर  बस बात इतनी है कि

कार्तिक आप मेरे हो मेरे ही रहो।दोस्त और पत्नी के बीच की उस मर्यादा को कभी मत तोड़ना फिर आप राम्या से मिलो बात करो  मुझे कोई समस्या नहीं।लीजिए राम्या को कॉल करिए बात करिए।ये अपनापन एक स्वाभाविक क्रिया हैं।जीवन के किसी भी पड़ाव में किसी से भी  हो जाती है।

पर मर्यादाएं ज़रूरी है पत्नी और दोस्त या पति और दोस्त की।

मेरा विश्वाश है आप वफादार और मेरे लिये लॉयल रहोगे।

सच है न खासकर शादी के बाद ये अपनेपन का रिश्ता विपरीत ध्रुव के बीच हो  तो घातक होने की संभावनाएँ बड़ जाती है।पर ये अट्रैक्शन कहे या लगाव जाने कैसे किसी से भी कभी भी हो ही जाता है कोई भी हमें कभी भी अच्छा लगने लगता या लगती है, स्वाभाविक क्रिया है।पर अगर मर्यादाओं का ध्यान रखा जाए तो कभी कोई घर न टूटे।कभी किसी की दोस्ती न छूटे।कोई किसी को धोखा न दे।एकदूसरे को समझें समझाएं

अगर पति-पत्नी एकदूसरे से अपनी मन की बात कह पाते तो कितना अच्छा होता।पर ये सबसे बड़ा झूठ है कि पति-पत्नी एकदूसरे से अपनी बातें कह पाते हैं। वो एकदूसरे से अपनी बातें कभी कह ही नहीं पाते और कह दे तो समझ नहीं पाते।पहले शक की चिंगारियां जन्म ले लेती हैं।एक दोस्त की तरह समझकर देखो एकदूसरे को। शायद ज़िन्दगी आसान हो जाएगी।

दीपा साहू “प्रकृति”

रायपुर छत्तीसगढ़

 

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