थोड़ा स्वार्थी होना भी जरुरी है – संगीता त्रिपाठी

 “माँ.. मेरा सिलेक्शन अमेरिका के एक अच्छे कॉलेज में हो गया”अंकुर चिल्लाते हुये मधुरा के गले लग बोला। बेटे का अच्छी जगह एडमिशन हो गया ये जान मधुरा भी खुश हो गई।

“कितने साल की पढ़ाई है “मधुरा ने पूछा।

“माँ, दो साल… फिर वहीं जॉब करना होगा “अंकुर ने कहा।

“क्यों, जॉब क्यों करेगा वहाँ.. पढ़ कर आ जा, इंडिया में जॉब की कमी नहीं है “मधुरा बोली।

“माँ… जब इतना लोन ले कर पढ़ाई करूँगा तो लोन चुकाने के लिए जॉब भी वही करनी पड़ेगी तभी जल्दी लोन चुका लौट सकूंगा, इंडिया में इतना हाई पैकेज का जॉब नहीं मिलेगा.. वैसे प्यारी माँ, दो -तीन साल तो चुटकीयों में निकल जायेंगे, और आपका ये बेटा ढेरों डॉलर ले कर आयेगा “अंकुर माँ को समझाते हुये बोला।

       बेटे की खुशी के लिए, बेटे का साथ पाने का अपना स्वार्थ दरकिनार कर मधुरा और केशव जी ने ह्रदय पर पत्थर रख, अंकुर को विदेश भेज दिया। उसके उज्वल भविष्य की खातिर। हाँ मधुरा ने अंकुर से वचन ले लिया था वो लोन चुकाने के बाद जल्दी वापस लौट आयेगा।एयरपोर्ट पर विदा करते समय, जाने क्यों मधुरा जी का दिल कांप उठा। आँसुओं को रोक नहीं पाई।”क्या माँ आप इतनी मजबूत होकर भी रो रही हो, रो कर नहीं हँस कर भेजो अपने बेटे को “अंकुर ने प्यार से माँ के गले में हाथ डालते बोला। आँसुओं को पोंछ मधुरा जी मुस्कुरा दी।फिर भी पता नहीं क्यों एक अनजाना डर उन पर हावी हो रहा था।

          जब अंकुर का जहाज उड़ गया, मधुरा जी और केशव वापस घर आ गये। जिस घर में अंकुर के ठहाके गूंजते थे, वहाँ सन्नाटा तिर आया। मधुरा जी और केशव दोनों ही कॉलेज में पढ़ाते थे। दिन तो कॉलेज में निकल जाता पर शाम जब घर लौटते तो अंकुर की कमी उन्हें बेहद खलती।अंकुर उन दोनों से नियमित रूप से वीडियो चैट करता। केशव और मधुरा जी बेटे का चेहरा देख गदगद हो जाते। अंकुर भी बड़े उत्साह से उन्हें अपना फ्लैट, कॉलेज दिखाता। धीरे -धीरे अंकुर और मधुरा जी अपने नये लाइफ स्टाइल के आदि हो गये। वीडियो चैट कम हो गया व्यस्तता ज्यादा हो गई।




दो साल बीत गये, अंकुर की पढ़ाई पूरी हो गई और एक अच्छी कंपनी में हायर पैकेज पर उसकी जॉब लग गई। जिस दिन अंकुर की जॉब लगी, मधुरा जी ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी। उनकी खुशी का ओर -छोर ही ना था। बस एक साल और फिर तो अंकुर यही आ जायेगा सोच मन ही मन ख्याली पुलाव बनाने लगती। इधर कई लड़कियों के रिश्ते भी आ रहे थे, बस अंकुर आ जाये फिर वे उसकी शादी कर एक प्यारी सी बहू घर लायेगी। उनकी बेटी की साध बहू से पूरी हो जायेगी।मन ही मन अपनी सहेली ऊषा की बेटी महक को पसंद भी कर ली।

                      दिन महीने और महीना साल में बदल गया, अंकुर का आना नहीं हुआ। मधुरा जी जब अंकुर को याद दिलाती कि अब उसका लोन पूरा हो गया, और अगले साल केशव जी रिटायर हो रहे है, अब तुम्हारी जरूरत है हमें ..। अंकुर उनको विश्वास दिलाता वो जल्दी ही इंडिया वापस आ जायेगा..।

  एक दिन अंकुर ने बताया वो अपनी कलीग रोजी से शादी कर रहा। आखिर अच्छी लाइफ स्टाइल और ग्रीन कार्ड पाने के लिए तो ये करना पड़ेगा। मधुरा जी बहुत गुस्सा हुई। इकलौता बेटा था, उसकी शादी के ढेरों अरमान थे। केशव जी ने मधुरा जी को यह कह शांत कराया, बच्चे की खुशी ही इम्पोर्टेन्ट है, देश या समाज नहीं।

              मधुरा जी अब तनावग्रस्त होने लगी एक दिन उच्च रक्तचाप कि वजह से कॉलेज में गिर गई। ब्रेन हमरेज से कोमा में चली गई। अंकुर को कॉल करते -करते केशव जी थक गये अंकुर को कॉल नहीं लगा।थक -हार कर केशव जी ने मैसेंजर पर मैसेज डाला। एक हफ्ते बाद अंकुर का कॉल आया, पता चला वो रोजी के मम्मी -पापा के संग फैमिली ट्रिप पर बाहर गया था, जहाँ फोन नहीं लग रहा था।”पापा आप चिन्ता मत करो माँ ठीक हो जायेगी, आप कहो तो मै आ जाता हूँ, पर मेरा एक इम्पोर्टेन्ट प्रोजेक्ट चल रहा, उसे छोड़ना पड़ेगा…।”




“अरे नहीं बेटा, तुम अपना प्रोजेक्ट देखो, मै तो हूँ यहाँ “कह केशव जी बेटे को चिन्ता मुक्त कर देते।हाँ बेटे की बातों में उसके स्वार्थ को देख कर भी बड़ी सफाई से अनदेखा कर देते। 

एक महीना जिंदगी और मौत से जूझते मधुरा जी की प्रतीक्षारत ऑंखें बंद हो गई।अंकुर को कॉल किया तो वो बोला “पापा मुझे आने में दो दिन लग जायेंगे तुरंत टिकट नहीं मिल रहा, आप काम कर लो, मै बाद में फुर्सत से आ जाऊंगा, मै अपने दोस्त को बोलता हूँ वो कुछ दिन के लिए इंडिया गया है, आपकी मदद कर देगा “बेटे की बात सुन अनुभवी केशव जी समझ गये, अंकुर अब नहीं आयेगा।

  “नहीं बेटा, यहाँ पडोसी बहुत अच्छे है, मुझे तुम्हारे दोस्त की जरूरत नहीं है, मै सब कुछ कर लूंगा “कह फोन रख दिया। पड़ोसियों की मदद से केशव जी ने सारे क्रिया -कर्म अच्छे से निपटा दिये पर एक गहन उदासी मन के अंदर छा गई। मधुरा जी थी तो दोनों खुशी -गम साथ बांट लेते थे पर अब तो वो अकेले हो गये। कई दिन सोचते -विचारते एक दिन उन्होंने अपना घर वृद्धाआश्रम में परिवर्तित कर दिया। अंकुर कभी कॉल भी करता तो केशव जी नहीं उठाते।

        केशव जी के आश्रम में बच्चों से ठुकराये गये वृद्ध या जिनके बच्चे विदेश चले गये, सब खुशी से रह रहे थे, क्योंकि केशव जी ने भी स्वार्थी बनना सीख लिया और अपने आश्रम के सभी लोगों को शिक्षा देते। संतान के लिए करो पर अपने सुखों को त्याग कर नहीं, बल्कि स्वार्थी बनों, थोड़ी अपनी खुशियाँ भी देखो। जिनके लिए आप इतना त्याग कर रहे कल को वो अपने स्वार्थ में आपको भुला देंगे., तब आपको लगेगा आपने अपने जीवन के बहुमूल्य समय यूँ ही गंवा दिया।

 

 संगीता त्रिपाठी

#स्वार्थ 

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