विरोध को मुखर करना पड़ता है… –  संगीता त्रिपाठी

 “हमें ये रिश्ता मंजूर है, पर आपने अपनी पत्नी को तलाक नहीं दिया है, वो इस शादी में अड़चन तो नहीं डालेगी “नेहा के पिता ने रजत की तरफ देखते हुये कहा।

  “क्या बात करते है भाईसाहब, कनक विरोध किस मुँह से करेंगी, सात साल हो गये इंतजार करते पर एक भी किलकारी नहीं गुंजी इस घर में अब और कितना इंतजार करुँगी, इसका तो कोई है भी नहीं, कहाँ जायेगी ये सोच कर घर में रहने दे रही हूँ ये कम है क्या “रजत की माँ ऊषा जी ने बात सँभालते हुये कहा।

    “पर फिर भी बहन जी, मन तो नहीं मान रहा की अपनी कोमल सी बेटी को किसी की सौत बनाऊं, पर पांच लड़कियों के पिता की भी मज़बूरी है।”हताशा से श्याम जी बोले।

    “ठीक है अगले रविवार को मंदिर में शादी हो जायेगी, वही से बहू को विदा करा मै यहाँ ले आऊंगी, आपको भी ज्यादा खर्च नहीं पड़ेगा “ऊषा जी ने चतुराई से कहा।

   “जी बहन जी “कह श्याम जी वहाँ से उठ गये। पर्दा पकड़े दो डबडबाई आँखों पर उनकी नजर पड़ी, एक पल ठिठके पर बेटियों की याद आते ही कदमों में तेजी आ गई, घर से निकल लिये।

     उनके जाते ही, ऊषा जी ने रजत को झाड़ लगाई, “सब कुछ मुझे ही संभालना है या तू भी कुछ करेगा, कनक को समझा दिया है ना “रजत कुछ ना बोला।

           ऊषा जी ने भी पर्दे की ओट में खड़ी कनक को देख लिया, आवाज दे कर बुलाई “कनक तुमने सब सुन लिया ना, मै रजत की दूसरी शादी करने जा रही हूँ, तेरी गोद भरी नहीं, दूसरी आयेगी तो उसके बच्चे को खिला लेना, तेरी भी साथ पूरी हो जायेगी “



      “माँ, मेरी साध तो अपने बच्चे से पूरी हो जायेगी,”अचानक सीधी -सादी कनक ने तीखे स्वर में कहा तो ऊषा जी ने व्यंग से कहा “सात साल तक तो बच्चा आया नहीं अब क्या आयेगा “।

    “माँ जी जरुरी नहीं जो सात साल में ना हुआ वो आगे भी ना हो “कनक ने कहा।

   “आज तेरी जुबान इतनी क्यों चल रही, तू तो कभी जवाब नहीं देती थी, आज इतनी हिम्मत…? ऊषा जी तल्ख़ स्वर में कहा।

    “माँ जी जब सब्र का घड़ा भर जाता तो विरोध को मुखर करना जरुरी हो जाता है।आज तक मैंने कभी कोई जवाब नहीं दिया, जो आपने और रजत ने कहा वही किया पर आज आप बिना सोचे -समझें बच्चा ना होने की जिम्मेदार मुझे ठहरा रही है, मुझे बाँझ करार दे आप अपने बेटे की दूसरी शादी करना चाह रही, और रजत मेरे पति जिन्होंने हर परिस्थिति में साथ देने का वचन दिया था, वो भी अपना वचन भूल गये, एक बात बताइये माँ जी, किसी भी गलती या कमी के लिये एक औरत ही क्यों जिम्मेदार मान ली जाती है, क्यों पुरुष में कोई कमी नहीं देखी जाती, मेडिकल टेस्ट सिर्फ औरत की ही कराई जाती क्यों नहीं आप अपने बेटे का मेडिकल करवाती है, बिना किसी आधार पर स्त्री को बाँझ करार दे दिया जाता, क्यों…. क्या पुरुष में कमी नहीं हो सकती, स्त्री में कमी हो तो पुरुष दूसरा विवाह कर लेता पर जब पुरुष में कमी तो क्यों नहीं स्त्री का दूसरा विवाह कर दिया जाता, क्यों उसे यही तुम्हारा भाग्य है कह बरगलाया जाता है “। कनक आज विद्रोह पर उतारू थी।



    “तेरी इतनी हिम्मत जो तू मेरे बेटे पर दोष लगा रही “ऊषा जी कनक की बात सुन आग बबूला हो उठी।

        “माँ जी मै दोष नहीं लगा रही, पर कमी आपके बेटे में ही है, रजत मेरी जो रिपोर्ट आप ने छुपा रखी थी आज मुझे मिल गई, मुझमें माँ बनने की क्षमता है, तो फिर कमी तो आपमें ही होगी “कनक के कहते ही रजत ने तड़ाक से एक थप्पड़ कनक के गाल पर मारा,।

   थप्पड़ खा कर भी कनक मुस्कुराती रही,”सच कड़वा होता है रजत जी, मै तो जा रही, कुछ दिन पहले मैंने जॉब के लिये अप्लाई किया था, मुझे जॉब मिल गई, हाँ मेरा मशवरा है नेहा से शादी कर उसके जीवन से खिलवाड़ मत करें,”

     और कनक ने अपनी अटैची उठाई, बाहर निकल एक गहरी सांस ली, रजत उसका पति है, उसने रजत से प्रेम किया था पर रजत के धोखे ने उसके मन से रजत को उतार दिया। कुछ दिन पहले ही छत पर बने कमरे की सफाई में उसे अपनी मेडिकल रिपोर्ट मिली थी, जिसमें उसको नार्मल करार दिया था।अरे वो तो बिना बच्चे के भी रजत के साथ रह लेती, पर रजत उसे छोड़ कर दूसरी शादी के सपने देख रहा था, तब कनक विद्रोह कर बैठी, किसी ने सच कहा “औरत जब प्यार करती तो बेपनाह करती पर जब नफरत करती तो वो भी बेपनाह करती “।

         ये हमारे समाज की सच्चाई है हर गलती या कमी का ठीकरा स्त्री के सर पर फोड़ा जाता, पर क्यों…., अक्सर एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की जड़े काटती है… पर क्यों…. चाहे दूसरा विवाह हो या प्रेम…। सहनशील सिर्फ स्त्री को ही क्यों कहा जाता…।

संगीता त्रिपाठी

#विरोध 

 

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