विदाई – अभिलाषा कक्कड़

वकील जयराम ने फ़ोन रखते ही अपनी ओर आँखें गड़ाये पुरे परिवार की ओर देखा । सब बड़ी आस लगाए उनकी ओर देख रहे थे । बेटी प्रीति कोने में चुपचाप बिना कोई उत्सुकता दिखाये आराम से बैठी अपना टी वी देख रही थी ।

जैसे वो जानती थी कि जवाब क्या है ।माँ यशोदा आकर पास खड़ी हो गई । बेचैन होकर पूछने लगी .. जय कुछ बोलता क्यूँ नहीं क्या कहा लड़के वालों ने, उन्हें हमारी प्रीति पसन्द आई ?? बताइये ना !!पत्नी कावेरी भी रसोई में सब्ज़ी बनाती हाथ में ही करछी लिए खड़ी पूछने लगी

 अब बिना देर किये वकील साहब ने कहा.. हाँ उन्हें हमारी प्रीति पसन्द है और वो जल्दी शादी करना चाहते हैं । क्योंकि योगेश को फिर वापिस दुबई जाना है । यह सब सुनते ही सब की धड़कन जैसे पल भर को बढ़ गई ।

प्रीति के यक़ीन को विश्वास नहीं आ रहा था कि कोई लड़का उसे हाँ भी कर सकता है !!वो तो शादी की आस खो बैठी थी । माँ यशोदा तो ख़ुशी से आँसू बहाने लगी ।

अपने ठाकुर जी को धन्यवाद देने अपने मंदिर को ओर जाने लगी तो बहु कावेरी ने रोक कर कहा.. माँ जी बधाई हो हमारी प्रीति का ब्याह होने जा रहा है ।

तुझे और जय को भी बहुत बहुत बधाई, कहती हुई माँ रास्ते में बैठी प्रीति को गले लगाकर मंदिर का दीया जलाने चल पड़ी ।

 प्रीति जयराम और कावेरी की पहली सन्तान सुशिक्षित सम्पन्न परिवार की बेटी  होने के बावजूद भी चौतीस  साल की उम्र में भी पिता की दहलीज़ पर बैठी अपने सपनों के राजकुमार के आने का इन्तज़ार कर रही थी । बचपन में प्रीति बहुत गोल मटोल सी लगती थी ।

सबकी चहेती लाड़ली हर कोई उसे कुछ ना कुछ खिलाता ही रहता था । देखते ही देखते प्रीति का वजन बढ़ने लगा ।लाड़ प्यार में किसी ने उसके आने वाली ज़िंदगी के बारे नहीं सोचा । प्रीति बढ़ती उम्र के साथ बेडौल सी नज़र आने लगी ।

रंग उसका गहरा साँवला नाक नक़्श भी  साधारण दिखने में प्रीति बिलकुल वैसे ही लगने लगी जैसी कभी उसकी दादी यशोदा अपनी जवानी में दिखती थी । दादी ने अपने रंग रूप की वजह से जीवन में बहुत कुछ सहा था ।

अपने पति के दिल में अपने लिए कभी वो प्रेम सम्मान ना देख पाई जो हर स्त्री ख़ुद को सबसे पहले देखना चाहती है ।पति के देहांत के बाद बेटा जयराम ने माँ को ह्रदय से लगा कर रखा । सच में माँ और बच्चे का रिश्ता होता ही बड़ा अनोखा है रंग रूप शक्ल कभी आड़े नहीं आती ।

बहू कावेरी ने भी सास को हमेशा प्यार सम्मान दिया । बदले में यशोदा ने प्रेम न्योछावर करने में कोई कमी नहीं रखी । प्रीति के वक़्त जब कावेरी के पाँव भारी हुए तो सासु माँ ने बहू के आराम सुख सुविधा का पुरा ख़्याल रखा ।

यशोदा कई बार सोचतीं कि अगर वो जानती होती कि बहू के आसपास रहने से बच्चा माँ कीं बजाय दादी पर जायेगा तो थोड़ी बहू से दूरी बनाकर रखती ।




 प्रीति को जो भी देखता यही कहता है यह तो सारी दादी की ही छाया है । दादी का मन बहुत डरता कि कहीं पोती भी ना जीवन में वो सब मुश्किलें सहे जो कभी उसने सही ।

कावेरी सासु माँ को जब संशय के सवालों में घिरा देखती तो हमेशा कहती कि माँ जी रंग रूप सदा साथ नहीं रहते क़िस्मत अच्छी होनी चाहिए । हमारी प्रीति की सीरत ही उसकी क़िस्मत के द्वार खोलेगी ।प्रीति धीरे-धीरे मोटी प्रीति के नाम से जानी जाने लगी ।

चौबीस साल की उम्र में पिता ने उसके लिए वर तलाशना शुरू किया । लड़के वाले आते खाते पीते और जवाब में ना कहकर चले जाते । प्रीति के मोटे भारी भरकम शरीर में एक बहुत ही सुन्दर नेक विचारों वाली प्रीति रहती थी ।

खूब गुणकारी सलीका तहज़ीब हर काम में दक्ष निपुण जो भी उसे जानता तारीफ़ किये बिना नहीं रहता था । लेकिन प्रीति के गुण तो कोई देखना ही नहीं चाहता था । सभी उसकी बाहरी रूप रेखा देख कर उसे ठुकरा कर चले जाते ।

 पैसे के बल पर अगर वर ढूँढना होता तो प्रीति कब की अपने ससुराल पहुँच गई होती । लेकिन प्रीति की ही पहली और आख़िरी तमन्ना थी कि उसका जीवन साथी भले ही ग़रीब हो कम पढ़ा लिखा हो लेकिन शादी वो प्रीति से करें ना कि अथाह सम्पत्ति के मालिक जयराम की बेटी से…. प्रीति इसी इन्तज़ार में उम्र का चौंतीसवा साल भी पिता की दहलीज़ पर बिताने वाली थी ।

अन्दर से थोड़ी बूझ भी गई थी और अब तो काफ़ी ना उम्मीद भी हो गई थी । प्रीति के छोटा भाई राहुल ने भी साल पहले शादी कर ली । उसकी पत्नी को सजा धजा घर में घूमते सारा दिन देखती तो सोचती पता नहीं क्या सोचकर भगवान ने उसे ऐसा रंग रूप दिया ।

प्रीति ने वक़्त बिताने के लिए एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी शुरू की लेकिन जल्दी ही वहाँ से निराश होकर लौट आई जब उसे पता चला कि आधे से ज़्यादा स्कूल उसे मोटी मैडम कह कर बुलाता है । घर में रह कर ही ग़रीब बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाने लगी । और इस काम में स्वयं को प्रसन्न रखने का भी प्रयास करती ।




दादी यशोदा भी पोती के ग़म में काफ़ी बीमार रहने लगीं । उसे देखते देखते तनाव चिंता ने कई बीमारियाँ दे दी । सारा दिन बिस्तर पर पड़ी प्रीति की ख़ुशी की प्रार्थना करती ।

आज अचानक से पोती की शादी की ख़बर ने उसके मन को एक अलग से रोमांच से भर दिया । अपने हाथों से रसोई में जाकर प्रसाद बनाने लगी ।

प्रीति हैरान थी कि तीन दिन पहले जब वो हँस हँस कर योगेश से बातें कर रही थी । उस वक़्त उसने एक पल के लिए भी नहीं सोचा कि यह वो भी हो सकता है जिसका वो सालो से इन्तज़ार कर रही थी ।

अगर पता होता तो हमेशा की तरह ख़ुद को छुपा कर अपनी इस छवि को आगे रख देती। लेकिन उस दिन योगेश और उसके बीच ग़ज़ब का एक दोस्ती और समझ का समन्वय बना रहा ।

बीच में ना कोई दिखावा था और ना ही कोई छल कपट बस मासूमियत और सामान्य से भरे भाव थे।

हंसी था मज़ाक़ था बिना भावनाओं को ठेस पहुँचाये कितना सारा वक़्त उन्होंने साथ बिताया ।

योगेश दुबई में किसी कम्पनी में बतौर तकनीशियन काम करता था । पिता बहुत समय पहले ही स्वर्ग सिधार गये थे ।

माँ ने छोटा सा ज़मीन का टुकड़ा बेचकर उसे दुबई भेजा था ।माँ के अलावा ब्याहने की उम्र की एक छोटी बहन थी । दुबई में जीवन मशीनी बना हुआ था । काम खाना पीना सोना …परिवार यार दोस्त एक सामाजिक जीवन नाम मात्र था ।

दो साल के बाद दुबई से आया तो अपने चाचा नरेंद्र जो कि जयराम के सहायक वकील थे । सरप्राइज़ देने के मक़सद से सीधा कचहरी पहुँच गया बजाय अपने घर जाने के, वहाँ जाकर पता चला चाचा सपरिवार शहर से बाहर गये हैं ।

रात काफ़ी हो चुकी थी और अपना घर जो कि दूसरे शहर में था जाना नामुमकिन था । वकील जयराम ने बहुत सम्मान से उसे अपने घर आने का न्योता दिया । अपने ड्राइवर के साथ उसे घर भेजा ।

प्रीति इत्तफ़ाक़ से उस वक़्त घर में अकेली थी । पिता द्वारा भेजे मेहमान की उसने अच्छी आवभगत की , योगेश भी काफ़ी समय के बाद फ़ुरसत में किसी के साथ समय बिता रहा था । उसे प्रीति का साथ उसकी सादगी व्यवहारिक सुन्दरता ने हर लिया ।

थोड़ी ही देर में उनमें अच्छी दोस्ती भी हो गई । प्रीति भी योगेश की संगत में काफ़ी समय के पश्चात ख़ुद को प्रफुल्लित सा महसूस कर रही थी । रात को खाने के वक़्त दादी कावेरी और जयराम योगेश के मिलनसार स्वभाव से काफ़ी प्रभावित हुए ।




   सुबह चाचा के आने पर योगेश सबसे बड़े प्रेम से विदा लेकर चला गया ।चाचा को जब उसने प्रीति के साथ बिताए वक़्त की बात करने लगा तो चाचा ने बीच में ही टोक कर पूछा… कैसी लगी तुझे प्रीति योगेश ?? योगेश ने हैरानी से देख कर कहा बहुत ही अच्छी लड़की है ।

चाचा- शादी करोगे उससे ??

योगेश- शादी इस बारे में तो कभी सोचा ही नहीं !! पूजा यानि छोटी बहन के ब्याह का ही सदा सोचा अपना तो कभी सोचा ही नही

चाचा – नहीं सोचा तो अब सोच लो । 38 की उम्र हो चली है । दो चार साल में ओर अच्छी लड़की मिलने में दिक़्क़त होगी । प्रीति अच्छी ही नहीं बल्कि बहुत समझदार भी है । शादी कर लो योगेश फिर दोनों मिलकर पूजा के लिए वर ढूँढ लेना ।

  चाचा की बात गौर करने लायक़ थी । जो काम सही समय पर ना हो, उनमें फिर सदा ही देरी बनी रहती हैं । फिर यहाँ तो सवाल उम्र भर का था ।

प्रीति बिलकुल वैसी ही लड़की थी जिसकी एक जीवन साथी के रूप में उसके मन में छवि थी । चाचा की बात का समर्थन करते हुए उसने अगले ही दिन अपनी माँ और बहन को बुला लिया ।

चाचा जब जयराम के यहाँ शादी का प्रस्ताव लेकर गये तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा । सब आये प्रीति को देख गये और आज हाँ सुनकर प्रीति भी सोच में पड़ गई और दादी से पूछने लगी …दादी जो भी आया ना करके गया योगेश ने मुझमें ऐसा क्या देखा ??

दादी ने मुसकरा कर जवाब दिया सब ने बेटा तेरी सूरत देखी और योगेश ने तेरी सीरत देखी ।दुनिया में अच्छे लोग भी होते हैं…तू बिलकुल सही घर में सही इन्सान के पास जा रही है । आज मन को मेरे बहुत संतोष मिला कहकर दादी ने प्रीति को गले से लगा लिया ।




बीस दिन में प्रीति का ब्याह तह हो गया । क्योंकि फिर योगेश को छह महीने के लिए वापिस दुबई जाना था । घर में तैयारियाँ शुरू हो गई । जयराम बाहर के इन्तज़ाम में लग गये और कावेरी और प्रीति ख़रीदारियों में जुट गई ।

इस बीच दादी अपने आप को काफ़ी अस्वस्थ और कमजोर महसूस करने लगी । लेकिन वो अपनी तकलीफ़ छुपाने लगी । वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से ख़ुशियों में कोई विघ्न आये ।

 आख़िर शादी वाला मुबारक दिन भी आ गया । दादी की हालत बैठने लायक़ भी नहीं थी । जयराम जल्दी से डाक्टर को बुला कर लाया । डाक्टर ने कहा बुख़ार है, आज के लिए दवा दे देता हूँ लेकिन कल इनका अस्पताल में भर्ती होना बहुत ज़रूरी है । आज इन्हें आराम ही करने दे । सोच समझ कर

यही फ़ैसला लिया कि दादी शादी भवन में ना जाकर घर ही रहेगी । जयराम की चचेरी बहन सुधा ने बीच बीच में आकर चाची को देखने की ज़िम्मेवारी ली ।

प्रीति शादी भवन में जाने से पहले दुल्हन के लिबास में दादी का आशीर्वाद लेने आई । बारात आ गई,प्रीति वर माला लेकर सखियों के संग आ रही है । यह सब देखने के बाद सुधा यशोदा चाची को देखने चली गई ।

चाची कैसी हो ?? उसने सोई हुई चाची को उठाया । कुछ बेचैनी सी है चाची ने कहा !! लेकिन मेरी छोड़ तू मुझे वहाँ का हाल बता ।

सुधा धीरे-धीरे वहाँ की हर बात बताने लगी । चाची को उसने जूस पिलाया दवाई खिलाई और वापिस फिर से शादी समारोह में आ गई ।

चाची की हालत उसे कुछ ठीक नहीं लगी । लेकिन बताने का ख़याल आया तो सामने देखा भाई भाभी दोनों आज बेटी की ख़ुशी में थोड़ा थोड़ा झूम रहे हैं । उसने कुछ भी कहने से ख़ुद को रोक लिया ।

अब प्रीति की फेरों पर बैठने की तैयारी थी । सुधा अपनी गाड़ी चलाकर फिर से चाची को देखने आ गई । चाची सो रही थी, उसने चाची को हिलाया और पूछा कि कुछ खाने के लिए लाऊँ?? यशोदा ने कहा थोड़ी सी चाय बना ला ।

सुधा चाय बना कर लाई तो देखा चाची औंधे मुँह पड़ी है । उसने जैसे ही सीधा किया उसकी चीख निकल गई । चाची का बदन ठंडा हो चुका था , उसकी साँस भी नहीं चल रही थीं ।उसने अपना सिर सीने के पास ले जाकर धड़कन सुनने का प्रयास किया तो वहाँ से भी कोई आवाज़ नहीं थी ।

चाची को झकोर झकोर कर खूब आवाज़ें लगाई लेकिन उसने आँख नहीं खोली । पाँच दस मिनट पहले उसने चाय माँगी और पाँच मिनट में प्राण भी त्याग दिये !! सच में इस ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं । सुधा अकेली वहाँ खड़ी बहुत डर गई । शरीर उसका काँपने लगा ठंड में भी पसीना छूटने लगा । जल्दी से उसने गाड़ी स्टार्ट की और शादी भवन की तरफ़ रवाना हो गई ।




 मंडप में पहुँची तो देखा दुल्हा दुल्हन अग्नि के आसपास फेरे लगा रहे हैं । उसने फिर से ख़ुद को रोक लिया यह सही समय नहीं है ।

शादी थोड़ी देर में सम्पन्न हो गई । कावेरी ने जैसे ही कहा कि प्रीति की विदाई घर से देंगे तो सुधा की धड़कन बढ़ गई । भाभी को रोकना बहुत ज़रूरी था । विदाई रस्म सही ढंग से हो जाये इस दुखद घटना को छिपाना ज़रूरी था ।

 वो भैया भाभी के पास आई और बोली मुझसे घर की चाबी खो गई है । प्रीति की यही से विदाई कर देते है । योगेश के चाचा के घर पर ही तो डोली जा रही है । सुबह घर आकर दादी से मिल जायेगी । सबको लगा ताला तुड़वाने के चक्कर में कहीं देरी ना हो जाये इसलिए प्रीति की पूरे रस्मों रिवाज के साथ विदाई कर दी ।

घर वापिस आये तो इस बार सुधा का पति भी साथ था । उसने घर के ताले को तोड़ने के लिए जैसी ही पत्थर उठाया तो सुधा ने चाबी आगे कर दी ।

सभी हैरानी से सुधा की ओर देखने लगे । दरवाज़ा खोला माँ के कमरे में जब बेटा बहू आये तो सुधा फूट फूट कर रोने लगी ।

अब तक वहीं जानती थी इस ज्वालामुखी को कैसे अपने अन्दर समेटे हुई थी । उसने बताया तीन घंटे पहले चाची जा चुकी है । उसने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए अपने पति से भी यह बात छुपाई ।

माँ चली गई कावेरी जयराम पल में बिखर गये । थोड़ी देर रोने के बाद ख़ुद को सँभाला । कावेरी ने सुधा को गले लगाकर बहुत प्यार करते हुए कहने लगी … आज इस नाज़ुक मौक़े पर तुमने जो समझदारी और सब्र दिखाया है ।

उसका आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं । तुमने हम पर आज बहुत उपकार किया है । ज़रा सी भी अगर यह बात बाहर निकलती तो आग की तरह फैल जाती फिर शायद स्तिथि नियन्त्रण में लाना मुश्किल हो जाता । आज तुमने एक बहन और बुआ दोनों का बहुत अच्छा फ़र्ज़ निभाया मेरी बहन !!

 सुधा ने रोते हुए कहा लेकिन भाभी चाची का यूँ प्रीति की विदाई के दिन ही चले जाना  .. प्रीति के लिए यह दिन हमेशा असमंजस में रहेगा उसकी विदाई का दिन उसकी दादी की ज़िन्दगी का आख़िरी दिन… कैसे मना पायेगी वो यह ख़ुशी??।

सुधा की बात पर कावेरी ने ख़ुद को सँभाला । फिर वही माँ के पैरों के पास ही बैठ कर बोली । जन्म मरण शादी ब्याह सब उपर से लिख कर आते हैं । हम इन्सान इसमें कुछ फेर बदल नहीं कर सकते ।

लेकिन मैं इस बात को बड़े विश्वास से कह सकती हूँ कि प्रीति यह दिन ख़ुशी से मनायेगी वर्ना माँ कीं आत्मा को बहुत दुख होगा । क्योंकि इस दिन के लिए उसकी दादी ने बहुत इन्तज़ार और प्रार्थना की है ।

प्रीति की विदाई ने माँ जी को सभी चिन्ताओं से मुक्ति दी है ।उनका यूँ चले जाना लगता है जैसे इस दिन को देखने के लिए वो ख़ुद को मुक्त करने से रोके हुए थी ।

आज वो संतोष और प्रसन्न मन से इस संसार से विदा हुई है । यह दिन हम सब उनकी याद और प्रीति की शादी की सालगिरह के रूप में हर साल मनायेंगे ।

जयराम ने पत्नी और बहन को गले लगाते हुए कहा । चलो ख़ुद को सँभालो जैसी विधाता की मर्ज़ी कहकर वो फ़ोन लेकर माँ कीं अंत्येष्टि की तैयारी और रिश्तेदारों को सूचित करने के मक़सद से बाहर निकल गये ।

स्वरचित कहानी

अभिलाषा कक्कड़

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