उम्र सिर्फ़ नंबर है – के कामेश्वरी

जी सही सुना आपने उम्र तो सिर्फ़ एक नंबर है ।उम्र कुछ भी हो परंतु हम उम्र पछाड़ कर बहुत कुछ सीख सकते हैं ।

सरला जी एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी थी । जहाँ लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था । अपने भाइयों से भी ज़्यादा वे पढ़ाई में होशियार थी । परंतु उन्हें पढ़ाई करने का मौक़ा नहीं मिला क्योंकि पापा कहते थे कि बेटा कितना भी पढ़ लो लड़की जात हो अंत में चूल्हा चक्की ही तो संभालना है । यह सुनकर सरला को बहुत बुरा लगता था उनकी यह सोच बिल्कुल अच्छी नहीं लगता था । परंतु अपने पिता से सवाल जवाब करना यह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे । इसलिए मन मारकर उनसे बिना कुछ कहे उनकी बात मान लेना  ही अच्छे घर की लड़कियों के संस्कार माने जाते थे । माता-पिता ने तेरह साल की उम्र में ही उसकी शादी कर दी थी । सरला के बीस साल की होते होते में ही तीन बच्चे भी हो गए । उनकी देख रेख करते हुए परिवार को सँभालते सँभालते कब वह पचास साल की हो गई उसे भी समझ नहीं आया ।

वह अब अपने पोते पोतियों के बीच समय व्यतीत कर रही थी । अब तो बहुएँ आ गई थी इसलिए थोड़ा खाली समय भी मिल जाता था । अपनी ज़िंदगी में खुश थी । एक दिन दोपहर को जब वह सोकर उठी तो देखा उसके कमरे में पति बहुएँ और बेटे सब चुपचाप बैठे हैं । उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है यह सब मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं । अभी वह कुछ कहती इसके पहले ही बहू मेरे सामने एक फार्म लाकर रखती है और कहती है कि हमने कभी भी आपके बारे में नहीं सोचा था मैंने कहा — क्या नहीं सोचा था और यह क्या है?

पति की तरफ़ मुड़कर देखा और कहा आप बताइए न क्या बात है ? पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हैं आप सब ।


तब पति ने कहा सरला गलती मेरी है इसलिए मुझे ही सुधारना है । सरला ने कहा आप भी क्या बात कर रहे हैं । वाहह आप भी? कौनसी गलती को सुधारने चले हैं मैं भी तो सुनूँ ?

पति ने कहा— जब हमारी शादी हुई थी तब एक बार बातों बातों में तुमने मुझसे कहा था कि तुम्हें पढ़ना अच्छा लगता है । तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारी बात सुने बिना ही तुम्हारी पढ़ाई छुड़वाकर तुम्हारी शादी मुझसे करा दी थी । मैंने उस बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया था क्योंकि उस समय मेरे माता-पिता के खिलाफ जाकर मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता था । इसलिए चुप रहना ही बेहतर समझा । उसके बाद मैंने कभी भी तुम्हारे बारे में नहीं सोचा था और न ही तुम्हारी कही हुई बात के बारे में सोचा था । कल मैं जब अपनी एक फ़ाइल ढूँढ रहा था तब मुझे तुम्हारी डायरी मिली । मैंने उसे पढ़ा तब मुझे तुम्हारी अधूरी ख़्वाहिश के बारे में पता चला है । मैंने ही बच्चों को डायरी दिखाई और पढ़ने के लिए कहा । उन्होंने भी उसे पढ़ा और हम सबने मिलकर यह तय किया है कि तुम्हारा एडमिशन दिलवा देंगे और घर बैठे ही तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लेना । हम सब तुम्हारे साथ हैं । सब बच्चे और बहुओं ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई ।

मैंने कहा —- आप लोगों का दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या ? इस उम्र में मैं और पढ़ाई ?

सबने एक साथ कहा माँ उम्र तो सिर्फ़ एक नंबर है । आप अब भी पढ़ सकती हैं ।

मैंने कहा — पर बच्चों लोग क्या कहेंगे । सबने एक साथ कहा लोगों का क्या है माँ वे तो कहेंगे ही पर जब हम साथ हैं तो लोगों की परवाह क्यों करना चाहती हैं ।

उन सबकी बातें सुनकर मेरे मन में दबी हुई इच्छा जाग गई और मैंने अपनी पढ़ाई शुरू कर दिया और इतने सालों बाद मैं गर्व के साथ कह सकती हूँ कि मैंने एम ए कर लिया है और बच्चों के साथ मिलकर कंप्यूटर चलाना सीख लिया है । मेरे पोते भी कहते हैं कि हमारी दादी पोस्ट ग्रेजुएट है और पढ़ाई में हमारी मदद भी कर देती है

दोस्तों अगर हम कुछ ठान लें तो कर सकते हैं । बस मन में हौसला होना चाहिए परिवार का साथ होना चाहिए । किसी ने सच ही कहा है कि “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती “

के कामेश्वरी

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