पंख – कंचन श्रीवास्तव

गरिमा उठो न कितनी देर तक सोती हो देखो तुम्हारे यूनिवर्सिटी जाने का टाइम हो गया।

जी मां उठ गई हूं बस बेबी को रेडी कर रही ,

सोचा इसे भी ड्राप करती जाऊं वरना हरीश को परेशानी  होगी । इधर कई दिनों से हर रोज आफिस  लेट  जा रहे। 

ठीक है ,अच्छा सुनो टिफीन बना रखा है और फ्रीजर में पानी  जरूर लेती जाना कल भूल गई थी ।

कहते हुए रमा बाथरूम में चली गई और गरिमा तैयार हो किचन से टिफीन उठा बेबी को ले बाहर निकल ही थी कि पतिदेव ने आवाज लगाई,अरे मैं छोड़ देता हूं तो ये बोली,नहीं नहीं मैं चली जाऊंगी तुम आराम से आना और हां पापा का चश्मा आज जरूर दें देना उनकी आंख से पानी आता है।

और मम्मी को दीदी के घर ड्राप कर देना कई दिनों से कह रही है जाने को।

कहती हुई लान में खड़ी स्कूटी स्टार्ट किया और बेबी को आगे बैठा रोड़ पर आ गई ‌।

जो कि सामने खड़ी मिश्रराइन देख रही थी ।और अपने भाग्य को कोस रही थी कि ये लोग कितने खुश रहते हैं और एक हमारा घर है कि  खुशी कभी भूल से भी दस्तक नहीं देती । जब कि उस घर में तो वो सुख सुविधा भी नहीं है जो  यहां इस पर पास खड़ी तान्या ने आकर उनका ध्यान भंग किया बोली ,मैं जा रही हूं खाना बनाकर खा लीजिएगा। हो सकता है शाम तक ना भी आएं।

इस पर इनके तो मानों सिर से पैर तक आग लग गई।और बोली जब देखो तब मायके पता नहीं क्या रखा है पैर जैसे टिकते ही नहीं बड़बड़ाती हुई अंदर चली गई और वो कार निकाल अपने घर।



मतलब सांस बहू में छत्तीस का आंकड़ा है जब से उतर के आई कभी बनी ही नहीं  और एक वो कि लगता ही नहीं सांस बहू है।

ताल मेल जो बहुत अच्छा है।ऐसा लगता है जैसे हर कोई एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े हों।

कभी कोई काम कोई कर लेता है तो कभी कोई काम कोई। बदले की की भावना तो है ही नहीं।इकलौते बेटे की पसंद जो ठहरी कम उम्र में शादी हो गई थी तो सारी पढ़ाई आकर यहां पूरी की और सास ससुर ने भी पैसे से लेकर घर के काम काज तक में सारा सपोर्ट किया।

और आज देखो यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर बन गई है जिंदगी चैन से कट रही।

तभी तो हर किसी से अपने सांस ससुर के गुन गाते फिरती है वो तो कहती है मायके में होती तो शायद मेरे ख्वाब पूरे ना होते ।

पर आधुनिक, शिक्षित और सुलझे हुए सांस ससुर पाकर मैंने अपने पढ़ाई का ही शौक पूरा नहीं किया बल्कि  नौकरी भी कर रही हूं।

जिसका पूरा पूरा श्रेय इनको जाता है।

आज मैं फक्र से कहती हूं मेरे ख्वाबों को पंख इनसे मिले लोगों ने दिया तब जाके कहीं मैंने  उड़ान भरी।

 

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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