तुमसे नहीं होगा..!!- लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

तुम बीच में बोलती ही क्यों हो जब तुम्हे इस बारे में कुछ पता ही नही है अपना काम करो जाओ जाकर चाय बना लाओ सबके लिए हम लोगो के काम में टांग ना अड़ाया करो तुमसे ना होगा ये हमारा काम है.. सुधीर की उपहास पूर्णआवाज से शांता का सारा उत्साह ही खत्म हो गया था ।

चुपचाप आकर वह चाय बनाने लगी थी।

आज चालीस साल बीतने के बाद बेटा भी वही वाक्य बोल रहा था क्या मां तुम्हारी क्या समझ में आएगा क्यों तुम घर के कामों में टांग अड़ाती रहती हो …कल तुम बाजार क्यों चली गईं थीं फालतू के सामान ले आईं… त्योहार आ रहे हैं तो माला है ना व्यवस्था करने के लिए उसे जो खरीदना होगा ले आएगी मंगवा लेगी..क्यों माला तुमने मां को समझाया नहीं!!सुधीर जैसे उन्हें अपराधिनी ठहरा रहा था।

मां किसी की सुनती है क्या!!अब इस उम्र में उन्हें क्या कुछ समझने समझाने की आवश्यकता है!!अरे पूरा मोहल्ला देखता है और हमे ही कोसता है कि देखो बेटा बहू ख्याल नही रखते बेचारी को अकेले बाजार आना पड़ता है !!….माला भुनभून करती हुई शुरू हो गई थी।

शांता चुपचाप बाहर दालान में बैठ गई थी।

सुधीर ने भी उसे कही आने जाने नही दिया था बाहर का सारा काम वह कर देते थे शांता तो बस सुबह से चाय नाश्ता खाना कपड़ा साफ सफाई मेहमानों के स्वागत में लगी रहती थी बालो की लट कब सफेद हो गई चेहरा झुर्रियों में सिमटता चला गया और जिंदगी भर किया अनवरत काम काज मानो बुढ़ापे के शरीर से बदला लेने पर उतारू हो गया था।

सुधीर के जाने के बाद बेटा बहू का बस चलता तो उन्हे कमरे में कैद ही कर देते….कौन घर में आ रहा है कौन क्या कर रहा है इस सबमें अपनी टांग अड़ाने की क्या जरूरत है …..आए दिन बेटा बहू के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तंज उन्हें व्यथित कर देते थे…किसी मेहमान के घर में आते ही मिलने बात करने की इच्छा होने पर भी वह सहम कर अपने कमरे की चहारदीवारी में ही और भी सिमट जाती थीं।

पर कब तक कमरे में बंद रहो और यूं ही एकांत में एक एक दिन गिनते जिंदगी काटना असहनीय हो उठा क्या मृत्यु का इंतजार करना ही अब मेरी जिंदगी है !! कोई तो अर्थ होना चाहिए जिंदगी जीने का!!जो निर्रुद्देश्य जिया वो जिया ही नहीं…पंक्तियां कानों में सुलग उठती थी और दिल इस बोझिल उबाऊ और घड़ी की सुइयां ताकते रूटीन से हट कर कुछ सार्थक करने के लिए आकुल हो उठता।

पढ़ने पढ़ाने में उनकी रुचि शुरू से बहुत थी लेकिन कभी समय ही नहीं मिल पाया था इस तरफ सोचने का भी…

एक दिन घर की मेड कमला उन्हे रामायण पढ़ते देख बोल पड़ी अरे अम्मा आप पर भगवान की किरपा है जो आप खुद ही पढ़ लेती हैं हम ता अनपढ़ गंवार अगूंठा छाप है समाज में हमर कोनो इज्जत नाही ……हमसे ता पेन पेंसिल पकड़े नही बने….!

ला सीखा दूं पेन पकड़ना शांता ने मुस्कुरा कर कहा तो कमला बड़े उत्साह से पेन पकड़ने आ गई थी …उसका उत्साह देख शांता ने उसका हाथ पकड़कर कागज पर कमला लिखवा दिया था …ये देख ये तेरा नाम लिखा है ” कमला.”तूने खुद अपने हाथ से लिखा है..शांता के कहते ही कमला खुशी के मारे उछल पड़ी …सच्ची में हमर नाम हे…अपने नाम पर उंगलियां फिराकर मानो खुद अपने आपको महसूस करने लगी थी कित्ता सुन्नर है …. हमने लिखा है आपन हाथ से ..!अम्माजी या कागज हमका दे दीजिए सबका दिखायेंगे … कहती वह कागज ले गई थी।

तभी से उनके मन में कमला जैसी उपेक्षित और गरीब महिलाओं को पढ़ाने की इच्छा जागृत होने लगी थी ऐसा प्रतीत होने लगा था उन्हे मानो जीवन जीने का कोई उद्देश्य मिल गया हो ….लेकिन बिना बेटे बहू की स्वीकृति के इस दिशा में कुछ करने की हिम्मत नही हो रही थी ……. उनकी बात सुनते ही बेटा हंसने लग गया आप क्या पढ़ाएगी मां अब इस उम्र में पढाना लिखाना आपसे नहीं हो पाएगा इतना आसान काम नहीं है मां और फिर किसे पढ़ाओगी आपसे कौन पढ़ना चाहेगा और ट्यूशन फीस!!

अरे बेटा मैं मुफ्त में ये काम करना चाहती हूं वह कमला है ना

सोच रही थी इन्हीं जैसी महिलाओं को थोड़ा बहुत अक्षर ज्ञान भी करवा पाई तो लगेगा जिंदगी में कुछ सार्थक किया बस एक कोशिश करना चाहती हूं…..शांता भी मानो दृढ़ थी।

कोई जरूरत नहीं है मां ऐसा करने की….कमला के काम में टांग अड़ाने की उसका जो काम है वही ठीक से कर ले बहुत है ये पढ़ाने लिखने के चक्कर में वह जो काम करती है वह भी ना करेगी वैसे भी मां आपसे यह काम होगा भी नहीं …बहू माला ने व्यंग्य पूर्ण हंसते हुए कहा तो बेटा भी जोर जोर से हंसने लगा ।

आहत हो गईं थीं वह ….बिना कुछ कहे सुने कमरे में आ गई थीं लेकिन आज वह अपने जीवन को कोई उद्देश्य देने के लिए प्रतिबद्ध भी हो गईं थीं।

दूसरे दिन की सुबह कुछ अलग सी थी।

कमला उसकी बहन और आस पास के घरों में काम करने वाली तीन और महिलाएं शांता को घेर कर बैठी थीं ।

अरे कमला यहां क्या कर रही है चलो चाय का टाइम हो गया बर्तन धो जल्दी ….घर में कुछ आहट सुन माला तेजी से वहां आ गईं थी।

ये क्या हो रहा है मां आपको कितना समझाने का कोइ असर नही है ….सुधीर….. सुधीर देख लो अपनी मां के निराले ढंग….!सुधीर ने आते ही मां पर बिगड़ना ही चाहा था कि अचानक शांता ने कमला के हाथ में पेंसिल पकड़ाते हुए गंभीर स्वर में बिना मुंह ऊपर उठाए कहा था

नहीं बेटा तेरी समझ मे नही आयेगा यह मेरा काम है मुझसे ही हो पाएगा मेरे काम में अपनी टांग अड़ाने की जरूरत नहीं है…शांता की बात खत्म होते ही कमला भीपेंसिल पर अपनी रूखी उंगलियों की पकड़ बिठाती बोल उठी थी हां दीदी जी हमारे पढ़ाई के टैम में आप अपनी टांग ना अड़ाईये अभी हमारा काम पे जाने का टैम नहीं हुआ है …!

माला और सुधीर बदले हुए तेवर देख चुपचाप अपने कमरे की तरफ बढ़ गए थे।

#टांग अड़ाना

लतिका श्रीवास्तव

VM

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