” अरे वाह !
माँ आपने तो इसे फ्रेंड बना लिया है “
शाम के पाँच बजे रहे थे …
‘ जया’ बुरी तरह झेंप गई।
अभी बहुत हिम्मत कर के वह अपने पाँव में जूते डाल जैसे ही उस विशाल झबरैले माईलो के गले में पड़े पट्टे को थाम कर सैर के लिए निकलने को तैयार हुईं थीं।
पीछे से बिटिया शिप्रा ने कहा है।
लजाई हुई सी बोली,
‘ क्या करती ?
तुम दोनों ऑफिस में बिजी हो ये मेरे पास आ कर कूँ-कूँ कर मेरे पांव पर लोटने लगा है तो … मैंने सोचा आज इसे मैं ही घुमा कर ले आती हूं ‘
‘ गुड गोईंग माँ, मैं तो पहले से ही कह रही हूँ।
आप इसे अपना कर देखें फिर छोड़ नहीं पाएंगी ‘
कहती हुई शिप्रा ने उनके गले में प्यार से अपनी दोनों बाहें डाल दी हैं…
जया ने तिरछी नजर से शिप्रा को देखा जिसके चेहरे पर संतोषजनक मुस्कान फैली हुई है।
वह याद कर रही है …
उस दिन !
जब वह नितान्त अकेली … बेटी के घर के मुख्य द्वार पर खड़ी थीं।
और जिस बड़े झबरैले को देख कर दरवाजे से अन्दर ही नहीं घुसना चाह रही थी।
आज उसी का पट्टा थाम कर वे कितनी सुरक्षित महसूस करती है।
ये भी तो मुआ !!
तब उन्हें देख कर अपने पैर उठा कर कितनी जोर से उछलने लगा था।
उनकी तो सांस ही अटक गई थी। मन कर रहा था।
सब कुछ छोड़ कर उल्टे पाँव वापस अपने घर दिल्ली लौट जाएं।
मन ही मन भुनभुनाती हुई …
‘ इससे तो बेहतर मैं अकेली ही भली थी ‘ लेकिन लौट जाना भी इतना आसान था क्या ?
अन्दर आने के लिए उठे कदम ज्यों के त्यों टिक गये, भारी दुविधा है।
लेकिन तब तक शिप्रा ने अपनी सधी हुई आवाज से माईलो को काबू में कर के उनके पाँव छू लिए।
जया अन्दर तो आ गई थी पर कुछ दिनों तक असहज ही बनी रही।
आते-जाते-खाते हर वक्त उसे लगता कि सिर पर कोई तलवार सी लटक रही हो और कोफ्त से भरी वो अक्सर कह उठती ,
‘ कम से कम इसे बाँध कर तो रख ही सकती हो शिप्रा ‘
‘ नहीं माँ तब यह ज्यादा आक्रामक हो जाएगा ‘
‘ हुँह… इस माईलो की ऐसी-तैसी ‘ वह चिढ़ जाती। उनमें और माईलो में हमेशा ठनी ही रहती।
जब कभी वह आराम से बैठती माईलो आकर छोटे बच्चे की तरह उनके स्लीपर्स उठा कर पूरे घर में नाचता फिरता तब नहीं चाहते हुए भी उसके इस बचकाने खेल पर जया को हंसी आ जाती।
अक्सर उनके पास आ बैठ कर अपनी मूक नजरों से उन्हें देखता रहता।
मानों दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाह रहा है।
जब कभी लाख नहीं चाहने पर भी जया की नजर उसकी नजर से टकरा जाती है … वो तो सिहर जाती है।
पर माईलो खुश हो कर और करीब आ जाता जैसे कह रहा हो,
‘मुझसे दोस्ती कर लो आँटी जी,
बहुत मजा आएगा हम दो मिलकर एक दूसरे के अकेलापन को बाँट लेगें ‘
खामोशी की भी अपनी एक अलग जुबान होती है।
फिर तो धीरे- धीरे उन्हें भी माईलो से प्यार होने लगा है।
लाचारी से शुरु हुई उनकी दोस्ती अब अटूट प्रेम के बंधन में बंध चली है।
सीमा वर्मा / नोएडा / स्वरचित